विष्णु नागर का व्यंग्य: सपने बेचने वाले मोदी जी!

मोदी जी का एक सपना था - प्रधानमंत्री बनना और एक सपना बाकी है 2019 के बाद भी प्रधानमंत्री बने रहना! पहला पूरा हो चुका है। दूसरे के बारे में बेचारे घबराये हुए हैं। बाकी सपने तो हमें बेचने के लिए हैं!

फोटो: IANS
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विष्णु नागर

मुझे याद है और शायद आपको भी याद हो कि 1947 में भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू हुआ करते थे। 2014 से पहले आपने भी स्कूल में पढ़ा है तो इतना तो आपको भी पता जरूर है! नेहरू जी के बारे में कहा जाता है कि वह स्वप्दर्शी थे मगर वह साथ ही यथार्थदर्शी भी थे। वह स्वप्न देखते -दिखाते ही नहीं थे, उसे साकार करने की कोशिश भी करते थे।     

एक प्रधानमंत्री आज भी हैं क्योंकि प्रधानमंत्री तो आप जानते ही हैं कि हमेशा हुआ ही करते हैं। ये प्रधानमंत्री हैंं और वे कभी थे, इसलिए हम दोनों की तुलना नहीं करेंगे। फिर क्या है कि वैसे भी ये तो अतुलनीय किस्म के हैं, इनसे किसी की तुलना हो ही नहीं सकती! तुलना से वैसे भी ये बहुत जल्दी नाराज हो जाते हैं। जी मैं आदमी से ही उनकी तुलना करने की बात कर रहा हूं! और नेहरू जी से तुलना करने पर तो ये बहुत ही जल्दी गुस्सा हो जाते हैं। तो हम यह गलती करेंगे नहीं, इसलिए नहीं कि मोदीजी नाराज हो जाएंगे, बल्कि इसलिए कि अगर ऐसी तुलना से मोदी जी खुश हो भी जाएं तो भी गलत तो गलत ही होगा न जी! मोदीजी के ठीक करने से तो वह बिल्कुल ही ठीक नहीं होगी!

मोदीजी, वैसे भी नेहरू जी की तरह सपने देखते नहीं है, अलबत्ता दिखाते जरूर हैं। उनका तो एक ही सपना था - प्रधानमंत्री बनना और एक ही सपना बाकी है 2019 के बाद भी प्रधानमंत्री बने रहना! पहला तो  पूरा हो चुका है। दूसरे के बारे मेें बेचारे घबराये हुए हैं। बाकी सपने तो हमें बेचने के लिए हैैं! जैसे उन्होंने हमें 2014 में कई सपने बेचे थे। एक 'अच्छे दिन' का सपना था और इतने ज्यादा 'अच्छे दिन' का  सपना था कि  हम सबकी जेब में 15-15 लाख  रुपये आ जाने थे। ऐसा होता तो हम मियां-बीवी के खाते में 30 लाख रुपये अब तक आ चुके होते! सोचिए, 30 लाख रुपए! सोच पाते हैं आप कि क्या होते हैैं 30 लाख रुपये? नहीं सोच पाते होंगे! कोई बात नहीं मगर मोदी जी सोच पाते हैं क्योंकि उनके लिए 30 लाख, 50 लाख, दस करोड़ भी क्या हैं! बेची होगी कभी चाय,अब बेचने के लिए उनके पास बहुत कुछ है! आज की तारीख में पैसा तो उनके लिए हाथ का मैल है!            

चलो हमारे 'अच्छे दिन' को तो मारो गोली, आपके पास तो जरूर ही 15-15 लाख रुपए आ गए होंगे।'सबका साथ, सबका विकास ' तो हो ही चुका है क्योंकि मोदी जी सब कर सकते हैं मगर झूठ तो कभी बोल ही नहीं सकते! उन्हें 'गौरव' है कि गुजरात में गांधीजी के बाद वही एक हैं जो 'महान' हुए हैं, इसलिए चाहें भी तो बेचारे झूठ बोल नहीं सकते! और आप  भी अब तक 15 लाख के लिए उन्हें धन्यवाद दे चुके होंगे और उम्मीद है कि आप इस कारण 2019 में  उन्हें ही वोट देने वाले होंगे!

मोदी जी ने सत्ता में आने के बाद अपने लिए 'अच्छे दिन' का सपना नहीं देखा था क्योंकि उसको देखने की जरूरत उन्हें थी ही नहीं क्योंकि उनके 'अच्छे दिन' तो 2002 में ही आ चुके थे! 2014 में तो उनके बहुत ही 'अच्छे दिन' थे। उनका सिर्फ एक सपना और बाकी है 2019 में फिर से प्रधानमंत्री बनने का!

उन्होंने चुनाव जीतने के बाद एक ही सपना दिखाया था - 'स्वच्छ भारत' बनाने का! 'स्वच्छ भारत' भी आप जानते हैं कि भारत बन ही चुका है और जितना काम बाकी है - 2 अक्टूबर 2019 तक वह भी मोदीजी पूरा किए बगैर मानेंगे नहीं। और इसे पूरा करने की आशा उन्हें है तो आपको भी जरूर होनी चाहिए! इसलिए मोदी जी अब और भी आगे का ऊंचा सपना देखने लगे हैं। 'अच्छे दिन' तो आ ही चुके हैं, अब वह 2022 में 'न्यू इंडिया' का सपना देखने -बेचने लगे हैं। 2019 की हकीकत तो अगले साल ही सामने आने  वाली है, अब उसकी बात क्यों करना! अगले साल अप्रैल या मई में चुुनाव होने वाले हैं। वैसे प्रधानमंत्री वह अभी सिर्फ 2019 तक  हैं मगर बेचारे बोझ 2022 तक का लिए  घूमते हैं। कितने जिम्मेदार हैं न!

उनसे ज्यादा जिम्मेदार हैं उनके वित्त मंत्री अरुण जेटली! मोदी जी से भी बहुत आगे हैं! मोदी जी तो बेचारे 2022 पर अटक गए मगर जेटली जी आज से 25 साल बाद क्या होगा, वहां तक पहुंच गए हैं! मोदी जी अपने को कवि मानते हैं, लेकिन रवि तक पहुंचने का काम हमारे जेटली जी करने लगे हैं!गलती से मोदी जी और जेटली जी इतने 'यथार्थवादी' तो होंगे ही कि उन्हें  इतना तो पता होगा कि 25 साल बाद न तो मोदी जी इस देश के प्रधानमंत्री रहने वाले हैं, न जेटली जी इस देश के वित्त मंत्री! बल्कि मई 2019 के बाद क्या होगा वे यह भी नहीं जानते होंगे, लेकिन साहब जेटली जी बात करने लगे हैं 25 साल बाद की, जब उनके अनुसार भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था हो जाएगी! हमारी दुआ लग सकती हो तो  25 साल बाद क्या पहले हो जाए क्योंकि हमें पता है कि हम तो तब शायद ही होंगे!

हां, मोदी जी और जेटली जी का पता नहीं, वे तो हो ही सकते हैं। हालांकि, कहां होंगे, किस हालत में होंगे, यह न उन्हें पता होगा, न किसी और को! हो सकता है तब कोई यह याद करना भी जरूरी नहीं समझे कि एक जेटली जी भी कोई थे, जो कभी कुछ होते थे, जिन्होंने 25  साल बाद भारत की अर्थव्यवस्था के तीसरे नंबर पर पहुंच जाने का  सपना देखा था!

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