विष्णु नागर का व्यंग्यः ट्रंप पर खामोशी भी पीएम मोदी की वीरता है, एक तरह से हिंदू राष्ट्रवाद की सेवा है!

ट्रंप पर खामोशी भी अपनी तरह की मोदी जी की वीरता है। कोई आपको बार-बार जलील करे और आप चुप रहें, यह भी हिंदू राष्ट्रवाद की सेवा है! जबान से तो यह बड़ा से बड़ा विश्व युद्ध तक जितवा सकता है और बनना चाहे तो शांति का मसीहा बन सकता है।

ट्रंप पर खामोशी भी पीएम मोदी की वीरता है, एक तरह से हिंदू राष्ट्रवाद की सेवा है!
ट्रंप पर खामोशी भी पीएम मोदी की वीरता है, एक तरह से हिंदू राष्ट्रवाद की सेवा है!
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विष्णु नागर

दुनिया का कोई काम ऐसा नहीं, जो हमारे प्रधानमंत्री जी केवल अपनी जबान हिलाकर नहीं कर सकते। उन्होंने जबान हिलाई और यूक्रेन-रूस का युद्ध रुक गया और आज तक मोदी जी के डर से रुका हुआ है। वे चाहते तो इजरायल और हमास के बीच भी युद्ध रुकवा देते पर उन्होंने सोचा छोड़ो मरने दो सालों को, मारेगा तो इजरायल ही! अच्छा है यहां के मुसलमान भी टाइट हो जाएंगे! इजरायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू भी खुश रहेंगे कि मोदी जी ने मुझ पर कृपा की और युद्ध नहीं रुकवाया।

चूंकि मोदी जी घनघोर राष्ट्रवादी हैं, इसलिए भारत का काम तो वह चुटकियों में कर देते हैं। वे इतने अधिक उदारमना हैं कि वह भी कर दिखा देते हैं, जो जनता ने कभी किसी प्रधानमंत्री से सपने में भी नहीं मांगा। आपने कभी सोचा था कि देश को कोई ऐसा प्रधानमंत्री 21वीं क्या 22वीं सदी में भी मिल सकेगा, जो विदेशों में रखे सारे कालेधन को खींचकर भारत ले आएगा और देश के हर गरीब और अमीर को, हर हिंदू और मुसलमान को, हर मर्द और हर औरत और हर बच्चे को पंद्रह-पंद्रह लाख रुपए यूं ही बांट देगा! ले जाओ प्यारे, तुम सब मौज करो। तुम भी क्या याद करोगे कि कभी कोई मोदी जैसा प्रधानमंत्री भी हुआ था!

हर साल दो करोड़ रोजगार देने का भी उनका वायदा था। प्रधानमंत्री बनते ही उन्होंने जादू की छड़ी घुमाई और देश में रोजगार ही रोजगार पैदा हो गए। जगह-जगह पकौड़े बनने लगे, चाय बिकने लगी! इतना अधिक यह कारोबार बढ़ा कि दुकानदारों को अपनी बनाई चाय खुद पीकर केतली खाली करनी पड़ी और पकौड़े खुद खाने पड़े और बीवी बच्चों को खिलाने पड़े! पकोड़े खा-खाकर पूरे परिवार की जिंदगी हराम हो गई, मगर रोजगार तो मिल गया! वादा रोजगार का था, इसका नहीं कि लंच और डिनर में पकोड़े खाने पड़ेंगे! अब तक ये इस तरह के 22 करोड़ रोजगार दे चुके हैं।

जब कोई युवा और युवती बेरोजगार नहीं रहे तो हम जैसों का नंबर आया कि तुम लोग क्यों बेरोजगार बैठे हो, तुम भी कुछ करो, कमाओ! लो, रोजगार मुझसे। और इस उम्र में उन्होंने मुझे उन पर व्यंग्य करने का रोजगार दे दिया। कोई करता है ऐसी कृपा, कोई दिखाता है ऐसी उदारता! कालाधन भी आप जानते ही हैं, वे खत्म कर चुके हैं। कालेधन के बाद अब सफेद धन के ख़त्म होने की बारी आ चुकी है। आप इससे समझ सकते हैं कि प्रधानमंत्री कितना काम करते हैं और कितना ठोस काम करते हैं!


इसी तरह उन्होंने 'अच्छे दिन' लाकर भी हमारे सामने रख दिए थे, जिसकी जितनी मर्जी हो, ले जाओ। घर पर इनका आनंद काट कर उठाओ या चूसकर! कोई रोक नहीं। चाहो तो दोनों काम एकसाथ करो! एक हाथ से चूसो, दूसरे हाथ से काटकर खाओ। किसान आज इतने खुश हैं कि उनकी आय दोगुनी हो गई है बल्कि प्रधानमंत्री इतने उत्साहित हैं कि यह तिगुनी और दोगुनी हो जाएगी।

चीन ने उनकी लाल आंखों के दर्शन अच्छी तरह कर लिये हैं, इसलिए वह चुपचाप दुबक कर कोने में बैठा है वरना मनमोहन सिंह के समय शेर बना घूमता था। पाकिस्तान की तो भाषण दे देकर, दे देकर इतनी अच्छी तरह बजा दी है कि मोदी प्रधानमंत्री रहे न रहे, इस सदी में तो वह दुबारा पहलगाम नहीं कर पाएगा! उसे रोज अपने भाषणों में ऐसा करारा जवाब दे रहे हैं कि उसकी फूंक निकल गई है। दो नहीं चार टुकड़े कर देंगे। तुम गोली चलाओगे तो हम गोला चलाएंगे। आतंक के आकाओं को मिट्टी में मिला दिया जाएगा। आज दुनिया ने देख लिया कि देश की बेटियों के सिंदूर की कीमत क्या है? दुनिया ने भारत के स्वदेशी हथियारों की ताकत जान ली है। इतने सारे गोला बारूद भरे उनके भाषण सुनकर पाकिस्तान ही नहीं, पूरी दुनिया भारत से डरी हुई है कि पता नहीं कब ये मोदी हमारा भी यही हाल कर दे!

प्रभु राम की नीति को जब से मोदी जी ने भारत की नीति बनाने की बात कही, उस दिन से सोने की लंकाओं के रावण घबराए-घबराए घूम रहे हैं। मोदी शरणम् गच्छामि होने को तड़प रहे हैं। मगर मोदी जी उन्हें भाव नहीं दे रहे हैं। और जब से प्रधानमंत्री जी की नसों में गर्म सिंदूर बहने लगा है, तब से तो क्या बताऊं कि दुनिया का हर शख्स डरा हुआ है क्योंकि उनकी रगों में तो आज भी खून बह रहा है। गर्म सिंदूर से गर्म खून का मुकाबला आज तक दुनिया में कहीं नहीं हुआ है, इसलिए सब तरफ दहशत है। सूरज निकल नहीं रहा है, चांद ने चांदनी बिखेरने से मना कर दिया है।

हमारे देश का दुर्भाग्य कि 1971 में माननीय मोदी जी केवल इक्कीस वर्ष के थे, इसलिए प्रधानमंत्री नहीं बन सके थे, इंदिरा गांधी की जगह वे होते तो आत्मसमर्पण करने वाले 90 हजार पाकिस्तानी सैनिकों को तब छोड़ते, जब करतारपुर उनसे ले लेते! इंदिरा गांधी में वह दम कहां था, जो इनमें है! इनमें तो इतना दम है कि इनका खासुलखास दोस्त ट्रंप अभी शुक्रवार को फिर यह कह बैठा कि भारत  पाकिस्तान के प्रमुखों को व्यापार का लालच देकर युद्ध मैंने रुकवाया, जबकि हमारे माननीय जी के मुंह से यह नहीं निकला कि यह झूठ है या आप इतना सच क्यों बोलकर मेरा खेल क्यों बिगाड़ रहे हैं!


वैसे यह भी अपनी तरह की मोदी जी की वीरता है। कोई आपको बार-बार ज़लील करे और आप चुप रहें, यह भी हिंदू राष्ट्रवाद की सेवा है! जबान से तो यह बड़ा से बड़ा विश्व युद्ध तक जितवा सकता है और बनना चाहे तो शांति का मसीहा बन सकता है। यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध रुकवा ही दिया था। गनीमत है कि यह जबान से यह व्हाइट हाउस पर कब्जा नहीं करवा रहा वरना इतना बड़ा वाक्वीर है कि कर सकता है पर करता नहीं क्योंकि वहां इसका यार ट्रंप रहता है और फिर मामला पाकिस्तान का हो तो आप इससे जो चाहे बुलवा लो। गर्म सिंदूर नसों में बहवा लो। बिल से घसीटकर मार-मार कर भुर्ता बनवा लो। घर में घुसकर दुश्मन को मार दो।जबान की बहादुरी में तो यह दुनिया के बहादुर से बहादुर वीर का भी चचा है।

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