वायुसेना की एयर स्ट्राइक, शहीदों के बलिदान का राजनीतिकरण और संकल्प रैली के फ्लॉप होने से एनडीए में तू तू-मैं मैं

पाकिस्तान के बालाकोट में वायुसेना का हमला, शहीदों के बलिदान का राजनीतिक और एनडीए की पटना संकल्प रैली में खाली गांधी मैदान के बाद एनडीए नेताओं में तू तू मैं मैं शुरु हो गई है। बिहार में तो बीजेपी और जेडीयू के बीच तलवारें खिंची नजर आने लगी हैं।

फोटो : सोशल मीडिया
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सुरुर अहमद

बिहार में पटना के गांधी मैदान में 3 मार्च को हुई मोदी की संकल्प रैली का मकसद तो था एनडीए में नई जान फूंकना, लेकिन नतीजा उलटा निकला और बिहार के सत्तारूढ़ गठबंधन में सिर फुटव्वल शुरु हो गया। कश्मीर में शहीद हुए सीआरपीएफ जवान पिंटू सिंह का शव लेने के लिए कोई भी एनडीए नेता एयरपोर्ट नहीं पहुंचा इससे राज्य में क तूफान खड़ा हो गया है। और अब बीजेपी, जेडीयू और एलजेपी के नेता सार्वजनिक माफी मांगते फिर रहे हैं। लेकिन लोगों का गुस्सा इस बात पर ज्यादा है कि यही नेता एयरपोर्ट पर प्रधानमंत्री की अगुवाई के लिए तो मौजूद और मुस्तैद थे।

पूरे बिहार में और खासतौर से पटना में सोशल मीडिया पर यह चर्चा जोरों पर है कि चूंकि प्रधानमंत्री को इसी एयरपोर्ट पर आना था, इसलिए शहीद जवान पिंटू सिंह का शव सुबह 8.15 बजे लाया गया, ताकि कोई पीएम और उनके काफिले को कोई दिक्कत न हो। दरअसर एयरपोर्ट से लेकर गांधी मैदान तक पूरे रास्ते को सुरक्षा के लिहाज़ से चौकस कर दिया गया।

यूं तो एनडीए के तमाम नामी नेता पिंटू सिंह का शव लेने के वक्त नदारद रहे, लेकिन बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष मदन मोहन झा एयरपोर्ट पर मौजूद थे। पिंटू सिंह मूलत: बेगूसराय के रहने वाले थे। झा के अलावा एलजेपी के बागी सांसद चौधरी महबूब अली कैसर भी शहीद जवान को श्रद्धांजलि देने लिए एयरपोर्ट पहुंचे थे। चौधरी बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके हैं और चर्चा है कि जल्द ही वे कांग्रेस में वापसी करने वाले हैं, और उन्हें एनडीए का नेता नहीं माना जाता।

बीजेपी नेताओं द्वारा सुरक्षा जवानों की शहादत का राजनीतिक इस्तेमाल किए जाने की पिंटू सिंह के पिता चक्रधर सिंह ने आलोचना की है।

इतना सब होने पर जब बवाल मचा तो जेडीयू उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर के कान खड़े हुए और उन्होंने माफी मांगने वाला एक ट्वीट किया। इसके बाद नीतीश सरकार में बीजेपी के मंत्री विजय सिंह भी दौड़े-दौड़े पिंटू के अंतिम संस्कार में हिस्सा लेने के लिए बेगुसराय पहुंचे। लेकिन जब तक वे गांव पहुंचे अंधेरा हो चुका था और पिंटू सिंह का अंतिम संस्कार हो चुका था। इस पर विजय सिंह ने संकल्प रैली के कारण रास्ता जाम होने का रोना रोया, लेकिन गांव वाले उनकी बात से कतई प्रभावित नजर नहीं आए।

इस तरह पुलवामा के शहीदों का बदला लेने के लिए की गई एयर स्ट्राइक का फायदा उठाने की एनडीए नेताओं की कोशिशें उलटी ही पड़ती नजर आईं

इस सबके बीच बारी आई आरोप-प्रत्यारोप की। बीजेपी के कई नेता और कार्यकर्ताओं ने जेडीयू पर इस पूरे मामले को हाईजैक करने का आरोप लगाया। यहां तक कहा गया कि नीतीश कुमार की पार्टी ने बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए झंडे-बैनर, होर्डिंग आदि लगाने तक की जगह नहीं छोड़ी थी। वैसे तो बीजेपी और एलजेपी के कई झंडे-बैनर पटना में नज़र आए थे, लेकिन जेडीयू के मुकाबले वे न सिर्फ छोटे थे बल्कि उनकी तादाद भी बहुत कम ही दिखी।

यह कोई पहला मौका नहीं है जब किसी शहीद जवान के शव को लेने एनडीए नेता नहीं पहुंचे हों। कुछ वर्ष पहले नीतीश कैबिनेट के एक बीजेपी मंत्री ने खुलेआम कहा था कि किसी शहीद जवान का शव लेने के लिए किसी मंत्री या मुख्यमंत्री का जाना जरूरी नहीं है। लेकिन तब बात 2014 से पहले की थी और उस वक्त किसी बयान के लिए लोगों को राष्ट्रविरोधी नहीं कहा जाता था।

मोदी की संकल्प रैली से पहले केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा था कि जो नेता इस रैली में नहीं जाएगा वह राष्ट्र विरोधी होगा। लेकिन मजे की बात यह रही कि खुद गिरिराज सिंह ही इस रैली से गायब हो गए। बाद में उन्होंने बीमार होने का बहाना बनाया। लेकिन बिहार के नेताओं ने उन पर जमकर निशाना साधते हुए कहा कि अब तो गिरिराज खुद ही राष्ट्रविरोधी और शहीदों का अपमान करने वाले हैं।

स्वतंत्र राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बीजेपी इस बार अपनी ही नीतियों में फंस गई है। उनका मानना है कि भगवा पार्टी ने खुद के अपने ही जाल में फंसा लिया है।

संकल्प रैली के बाद एनडीए खेमे में बेहद मायूसी है, खासतौर से बीजेपी के कार्यकर्ताओं और नेताओं में। एक तो इस रैली में उम्मीद से कही कम भीड़ जुटी और दूसरे सीआरपीएफ जवान के शव को एयरपोर्ट लेने न जाने से छीछालेदार हुई वह अलग।

इसके अलावा एक और कारण है जो बीजेपी को परेशान कर रहा है, वह यह कि संकल्प रैली एक तरह से जेडीयू का शक्ति प्रदर्शन बन कर रह गई। और ऐसा तब हुआ जब पटना की ज्यादातर शहरी विधानसभा सीटों से बीजेपी के विधायक हैं।

(यह लेखक के अपने विचार हैं। नवजीवन का इन विचारों से सहमत होना आवश्यक नहीं है।)

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