'11 साल शासन' का नियम ही तय कर देता है कि कोई नेता कितना दूरदर्शी है और कितना थका हुआ / आकार पटेल
ग्यारह साल एक लंबा समय है। या यूं कहें कि किसी नेता को अपने शासन का प्रभाव छोड़ने के लिए यह पर्याप्त समय है। दुनिया के किसी भी स्थान पर और वास्तव में इतिहास के किसी भी समय में ऐसा व्यक्ति मिलना मुश्किल है, जिसने अपने पहले दशक के बाद कोई बदलाव किया हो।

नेपोलियन बोनापार्ट की ताजपोशी दिसंबर 1804 में हुई थी। और, इसके 11 साल बाद, जून 1815 में, उसे वाटरलू की लड़ाई में हार का सामना करना पड़ा। इन 11 सालों में, उसने पहली बार यूरोप को एकजुट किया। इससे पहले कोई एक हजार साल पहले शारलेमेन ने 804 में यह काम किया था। नेपोलियन ने कामयाबी प्रशिया और ऑस्ट्रिया जैसी अपने समय की महान सैन्य शक्तियों के खिलाफ़ युद्ध के मैदान में जीत के ज़रिए हासिल की।
1978 में जब देंग शियाओपिंग ने कार्यभार संभाला था, तब वे 74 वर्ष के हो चुके थे। ग्यारह साल बाद, 1989 में, तियानमेन स्क्वायर की घटना वाले साल में उन्होंने पद छोड़ दिया। सिंगापुर के नेता ली कुआन यू सहित कई लोग ने उन्हें अब तक का सबसे महान व्यक्ति माना, क्योंकि उन्होंने इन 11 वर्षों में जो हासिल करने का लक्ष्य रखा था, उसे हासिल किया। देंग ने आधी सदी से भी ज़्यादा समय से अंगीकृत किए हुए अपने मार्क्सवादी विचारों को त्याग दिया और चीन में सुधार का रास्ता चुनकर उसे वहां पहुंचाया जहां वह आज है और उस राह पर चल पड़ा है।
ग्यारह साल एक लंबा समय है। या यूं कहें कि किसी नेता को अपने शासन का प्रभाव छोड़ने के लिए यह पर्याप्त समय है। दुनिया के किसी भी स्थान पर और वास्तव में इतिहास के किसी भी समय में ऐसा व्यक्ति मिलना मुश्किल है, जिसने अपने पहले दशक के बाद कोई बदलाव किया हो। ज्यादा से ज्यादा वे वही करते रहे जो वे कर रहे थे, लेकिन अक्सर वे थके हुए दिखते हैं। और कभी-कभी नतीजे खाफी भयावह होते हैं।
देंग से पहले के चीनी नेता माओ इस बाबत एक अच्छा उदाहरण हैं। उनके पहले दशक के बाद नीति और हिंसा से प्रेरित अकाल आए। इंदिरा गांधी की सभी उपलब्धियां, चाहे उन्हें अच्छा या बुरा माना जाए, उनके शुरुआती वर्षों में ही लागू हुईं। बैंकों के राष्ट्रीयकरण और प्रिवी पर्स के उन्मूलन से लेकर बांग्लादेश युद्ध तक। फिर आपातकाल आया और उनके आखिरी सालों में पंजाब में हिंसा हुई।
हम मौजूदा दौर में देखें तो तुर्की के एर्दोगान 2003 से सत्ता में हैं, और रूस के पुतिन को तो सत्ता में 25 साल हो चुके हैं। पुतिन के सत्ता में आने के समय रूस की प्रति व्यक्ति जीडीपी 1700 डॉलर थी। ग्यारह साल बाद, 2011 में, यह बढ़कर 14,300 डॉलर हो गई। आज, उसके 14 साल बाद, विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार यह गिरकर 13,800 डॉलर हो गई है।
पुतिन डेढ़ दशक से बिना किसी आर्थिक विकास के सत्ता में बने हुए हैं, और एक ऐसा युद्ध जारी रखे हुए हैं जो पहले ही रूस के युवाओं और उसके भविष्य को बरबाद कर चुका है।
एर्दोगान ने जब कमान संभाली तो वहां एक ऐसी अर्थव्यवस्था थी जिसमें 2003 में प्रति व्यक्ति 4600 डॉलर थी और 2013 तक उन्होंने इसे 12,500 डॉलर तक पहुंचा दिया। आज भी यह कमोबेश उसी स्थान पर है। फिर भी वह पद पर बने हुए हैं।
जवाहर लाल नेहरू ने अपने शासन के पहले दशक में संस्थान स्थापित करने में लगाए और यह संस्थान आज भी कायम हैं। 1950 में आईआईटी की खड़गपुर से शुरुआत हुई, 1954 में भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर बना, 1956 में ऑल इंडिया मेडिकल साइंसेस (एम्स) बना, 1961 में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (आईआईएम) बना।
इस दशक में नेहरु ने कई अन्य सार्वजनिक उपक्रम स्थापित किए, जो सभी आज तक कायम हैं। स्टील का विशाल उपक्रम सेल 1954 में, ओनजीसी 1956 में, एनएमडीसी 1958 में, इंडियन ऑयल 1959 में और इस जैसे कई संस्थान स्थापित हुए। वैश्विक मामलों में भी उनका योगदान इसी दौर में हुआ जिसमें 1954 का पंचशील और 1955 का बांडुंग भी शामिल है।
चाहे आप नेहरू की प्रशंसा करें, जैसा कि मेरी उम्र के लोगों को बचपन में करना पड़ता था, या आप उन्हें नापसंद करें, जैसा कि आजकल चलन है, उनकी विरासत उन संस्थाओं में जीवित है और सांस ले रही है, जिनकी उन्होंने कल्पना की और जिन्हें उन्होंने बनाया। यह सब कमोबेश 11 साल में पूरा हुआ।
पाकिस्तान के जनरल अयूब खान की तुलना 'सभ्यताओं के टकराव' के लिए प्रसिद्ध सैमुअल हंटिंगटन से लेकर प्राचीन ग्रीस के कानून निर्माताओं से की जाती थी। अयूब ने 1958 में सत्ता हथिया ली थी और 11 साल बाद 1969 में इसे खोना भी पड़ा था। उनके शुरुआती साल आर्थिक विकास के मामले में उम्मीदों भरे थे,और इसी कारण हंटिंगटन ने उनकी प्रशंसा की, भले ही जापान और दक्षिण कोरिया और ताइवान के मानकों के हिसाब से उनके आंकड़े बेहद मामूली थे। लेकिन 1965 में भारत के खिलाफ युद्ध और पूर्वी पाकिस्तान में चल रहे आंदोलन ने उन्हें खत्म कर दिया।
इतिहास का नजर में दुष्ट नेताओं ने भी इसी अवधि में अपना काम पूरा किया। हिटलर 1933 में सत्ता में आया और 1944 तक अपने बंकर में जनरल झुकोव की सेना का इंतजार कर रहा था, जिन्होंने एक साल पहले स्टालिनग्राद में जर्मनों को हराया था। इतिहास में जर्मन तानाशाह की जितनी भी उपलब्धियां दर्ज हैं, अर्थव्यवस्था और ऑटोबान के लिए उसने जो कुछ किया, अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न से लेकर 'ब्लिट्जक्रेग' की अवधारणा के साथ फ्रांसीसी और ब्रिटिश सेनाओं के साथ दुर्व्यवहार तक, पहले आधुनिक रॉकेट वी2 के विकास तक, ये सभी 11 वर्षों में हुए।
इस 11 साल की परिघटना के पीछे एक नियम होने के साथ-साथ यह एक अवलोकन भी है। यह मनुष्य की प्रकृति और मनुष्य किस तरह के होते हैं, इस बारे में भी बताता है। हमारे पास मौलिक विचार बहुत ही सीमित संख्या में हैं और समय के साथ यह सीमा समाप्त हो जाती है। हममें से ज़्यादातर लोगों के पास दुनिया पर ज़्यादा शक्ति या वश नहीं है। जिन कुछ लोगों के पास शक्ति है, वे हममें से बाकी लोगों को दिखाते हैं कि क्या संभव है और कितने समय तक संभव है।
रुचिर शर्मा अपनी पुस्तक ‘द 10 रूल्स ऑफ सक्सेसफुल नेशंस’ में 'बासी नेता' उपशीर्षक के अंतर्गत लिखते हैं कि 'इस नियम के बारे में सोचने का एक सरल तरीका यह है कि बड़े सुधारों की संभावना किसी नेता के पहले कार्यकाल में सबसे अधिक होती है, और दूसरे कार्यकाल और उसके बाद यह संभावना कम हो जाती है, क्योंकि नेता के पास सुधार के लिए विचार या समर्थन खत्म हो जाता है और वह एक शानदार विरासत हासिल करने की ओर मुड़ जाता है।'
शायद राल्फ वाल्डो इमर्सन ने इसीलिए कहा था कि, 'अंत में हर नायक एक बोरियत बन जाता है'।
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