उद्योगपतियों और सरकारों की मिलीभगत से दुनिया भर में दबाया जा रहा है पर्यावरण के विनाश का प्रतिरोध 

पूरी दुनिया में प्रदूषण से होने वाला खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है। प्रदूषण के खिलाफ प्रतिरोध का स्वर दबाने में उद्योगपतियों के साथ पुलिस और सरकारें देती हैं। भारत के साथ पूरी दुनिया में ऐसा हो रहा है।

फोटो: महेन्द्र पांडे
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महेन्द्र पांडे

पर्यावरण का विनाश हमारे लिए अनेक तरह की समस्याएं उत्पन्न करता है और अनेक मामलों में जानलेवा भी होता है। लेकिन, समस्या यह है कि तथाकथित आधुनिक विकास का आधार ही पर्यावरण का विनाश है। विश्व की 1 फीसदी से भी कम आबादी के पास पूरी अर्थव्यवस्था का लगभग 70 फीसदी पर अधिकार है और अर्थव्यवस्था प्राकृतिक संसाधनों पर टिकी होती है। जाहिर है, ऐसी अवस्था में प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकार गिने चुने लोगों का है, जो अपनी मर्जी से इसका दोहन करते हैं और इस दोहन का प्रभाव पूरी दुनिया की आबादी पर पड़ता है। ज्यादातर सरकारें, जिनमें भारत भी शामिल है, अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में पर्यावरण संरक्षण के बारे में सारे देश अपनी प्रतिबद्धता दिखाते हैं, लेकिन सभी सरकारें उद्योगपतियों को संसाधन के दोहन की खुली छूट देती हैं।

प्रतिष्ठित समाचारपत्र गार्डियन ने ग्लोबल विटनेस नमक संस्था के साथ सयुंक्त तौर पर वर्ष 2017 में ऐसे लोगों का एक रिकॉर्ड तैयार किया जिनकी हत्या पर्यावरण के विनाश का प्रतिरोध करने के कारण की गयी। ‘रिकार्डिंग एवरी डिफेंडर्स डेथ’ के अनुसार, वर्ष 2017 में पूरे विश्व में 197 लोगों की हत्या सिफ इस लिए की गई, क्योंकि वे पर्यावरण विनाश का प्रतिरोध कर रहे थे, यानि हर हफ्ते 4 लोगों की हत्या की गई। सबसे अधिक हत्याएं ब्रजील में 46, फिलीपींस में 41 और कोलंबिया में 32 दर्ज की गईं। खनन के विरोध करने वालों की हत्या सबसे अधिक की गई, इसमें हमारे देश का भी उदहारण है। रेत खनन का विरोध करने पर मध्य प्रदेश के जैतपुरा में तीन भाइयों को कुचल डाला गया था।

फोटो: महेन्द्र पांडे
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बढ़ता प्रदूषण पर्यावरण के लिए खतरनाक है

पर्यावरण विनाश या प्रदूषण का प्रतिरोध साल दर साल पहले से अधिक खतरनाक होता जा रहा है। प्रतिरोध का स्वर दबाने में उद्योगपतियों या अवैध कारोबारियों का साथ स्थानीय पुलिस और सरकारें भी देती हैं। हमारे देश के साथ-साथ लगभग पूरी दुनिया में ऐसा ही हो रहा है। दूसरी तरफ संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण के अध्यक्ष एरिक सोल्हीम के अनुसार पर्यावरण का अधिकार मानव अधिकार है, और हमारा कर्त्तव्य है कि पर्यावरण विनाश को रोकने के लिए जो लोग काम कर रहे हैं हम उनकी रक्षा करें।

पिछले हफ्ते तमिलनाडु ठुत्तुकुदी जिले के कुमारात्तियापुरण गांव में वेदांता ग्रुप के एक ताम्बा उद्योग के विस्तारीकरण का विरोध करने वाले 270 से अधिक लोगों को तमिलनाडु पुलिस ने हिरासत में लिया, बाद में बच्चों और कुछ महिलाओं के छोड़ दिया गया। लेकिन बाकी लोगों पर, जिनमें महिलाएं भी शामिल थी धारा 188, 143 और 441 लगा कर जेल में डाल दिया गया। ध्यान रहे, यह क्रमिक आंदोलन पूरी तरह से शांतिपूर्ण था। दरअसल जिस उद्योग का विस्तारीकरण किया जाना है वह इलाके में प्रदूषण फैलाने के लिए और पर्यावरण कानूनों के उल्लंघन के लिए कुख्यात है। हालत यह है कि वर्ष 2013 में सर्वोच्च न्यायलय ने इसपर 100 करोड़ रुपये के जुरमाना भी इसी कारण लगाया था, लेकिन पता नहीं कौन सी मजबूरी में इसे बंद करने का आदेश नहीं दिया। प्रदूषण फैलता यह उद्योग अब विस्तारीकरण के लिए सारे स्वीकृति को प्राप्त कर चुका है। ठुत्तुकुदी जिले के एसपी महेन्द्रन के अनुसार, जब उद्योग के पास सारी स्वीकृति है तब जन विरोध गैर-कानूनी हो जाता है।

फोटो: महेन्द्र पांडे
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बढ़ता प्रदूषण पर्यावरण के लिए खतरनाक है

पूरी दुनिया में फरवरी, 2018 के दौरान पर्यावरण को बचने वालों पर बहुत जुल्म हो चुके हैं। वियतनाम में होन्ग दुक बिन्ह नामक पर्यावरण से सम्बंधित ब्लॉगर को 14 वर्षों के लिए जेल में डाल दिया गया। बिन्ह का कसूर यह था कि उसने सागर तट पर स्थापित एक स्टील प्लांट से उत्पन्न प्रदूषण के खिलाफ आन्दोलन कर रहे मछुवारों की अगुवाई की और ब्लॉग की मदद से पूरी दुनिया को बताया। केन्या में एस्मोंड ब्रेडली मार्टिन की निवास पर ही गोली मारकर हया कर दी गई। मार्टिन हाथीदांत की तस्करी के विरुद्ध काम करते थे। वे अमेरिका के रहने वाले थे और तस्करी के विरुद्ध 1970 के दशक से ही काम करते थे। यहां यह जानना जरूरी है कि पूर्वी अफ्रीकी देशों में हाथीदांत के लिए बड़ी संख्या में हाथियों का शिकार किया जाता है और पिछले 5 वर्षों के दौरान वहां हाथियों की संख्या में 40 प्रतिशत कमी दर्ज की गई है।

केन्या में ही लेड स्मेल्टर उद्योग के प्रदूषण का विरोध करने वाली स्थानीय निवासी फीलिस ओमिडो के लगातार प्रताड़ित किया जाता है, उन्हें पुलिस ने जेल में भी डाला फिर भी रिहा होने के बाद वे अज्ञातवास में चली गईं और वहीं से न्यायालय में मुकदमा दायर किया। मारे जाने के डर से वे 2 वर्षों से सुनवाई के लिए न्यायालय भी नहीं जा पाई थीं। इसी महीने की सुनवाई में वे पहली बार न्यायलय पहुंचीं।

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बढ़ता प्रदूषण पर्यावरण के लिए खतरनाक है

कम्बोडिया में अवैध जंगल को काटने से रोकने पर 3 लोगों को गोलियों से भून दिया गया, इसमें एक वन सुरक्षाकर्मी, एक फौज का अधिकारी और एक पर्यावरण कार्यकर्ता था। हाल में ही संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण ने ईरान सरकार से कहा है कि वे पर्यावरण रक्षकों की इज्जत करना सीख लें। ईरान में पुलिस हिरासत में बंद वन्यजीव कार्यकर्ता कावोस सैएद इमामी की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई। उनके साथियों का आरोप है कि पुलिस ने उनकी हत्या की है। इमामी अपने दल के साथ ताजी से विलुप्तिकरण की तरफ बढ़ रहे एशियाई चीते का अध्ययन कर रहे थे। उनके दल के दूसरे सदस्य अभी तक हिरासत में ही हैं।

इसी तरह के बहुत सारे उदहारण हैं, जिनसे स्पष्ट होता है कि भारत समेत बहुत सारे देशों में पर्यावरण, वन, वन्यजीव और संसाधन उद्योगपतियों और सरकारों के धरोहर हैं और इनके खिलाफ आवाज उठाने वालों को कुचल दिया जाता है।

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