प्रदूषण पर मोदी सरकार की गंभीरता पर सवाल, अपने ही पीएम को पर्यावरण मंत्री के झुठलाने से भ्रम

उज्जवला का बखान करते हुए पीएम मोदी अक्सर अपनी मां को वायु प्रदूषण से होने वाले कष्टों की बात कर भावुक हो जाते हैं, लेकिन उन्हीं के पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के अनुसार प्रदूषण से न तो कोई रोग होता है, न जीवन की अवधि घटती है और मौत का तो सवाल ही नहीं।

फोटोः सोशल मीडिया
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महेन्द्र पांडे

प्रधानमंत्री जी जब भी उज्ज्वला योजना की बातें करते हैं, कभी भर्राए गले से अपनी माता की वायु प्रदूषण से परेशानियों की बात करते हैं तो कभी ग्रामीण महिलाओं को वायु प्रदूषण से होने वाली कठिनाइयों की बात करते हैं। देश के लगभग हरेक पेट्रोल पम्प पर इस बारे में विज्ञापन आज भी खड़े हैं. स्मृति इरानी ने हाल में ही किसी चुनावी सभा में भी उज्ज्वला योजना की चर्चा करते हुए इसे ग्रामीण महिलाओं को वायु प्रदूषण से बचाने वाली योजना बताया। पर, पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर के अनुसार वायु प्रदूषण को लेकर डर का माहौल बनाया जा रहा है, इससे न तो कोई रोग होता है, न ही जीवन की अवधि घटती है और मौत का तो सवाल ही नहीं है। ऐसे में जनता पशोपेश में है कि प्रधानमंत्री सही हैं, दूसरे मंत्री सही हैं या फिर पर्यावरण मंत्री?

दरअसल साल 2014 के बाद से केंद्र सरकार स्वयं समस्याएं खड़ी करती है, फिर संबंधित आंकड़ों को दबाती है और फिर देश और दुनिया को बताती है कि यह समस्या तो देश में है ही नहीं। अर्थव्यवस्था के साथ ऐसा हो रहा है, कश्मीर के साथ भी यही किया जा रहा है, बेरोजगारी के साथ यही हो रहा है, उन्मादी समूहों की हिंसा का भी ऐसा ही समाधान खोजा गया। सरकारी नीतियों के कारण कृषि और उद्योग संकट में हैं, पर सरकार के लिए ये समस्या नहीं है।

पर्यावरण के साथ भी यही किया जा रहा है। देश के जंगल संकट में हैं, नदियां खतरे में हैं, भूजल रसातल में चला गया और हवा जहरीली हो गयी है। मंत्री जी कहते हैं कि जहर से कोई नहीं मरता, फिर चाहे हवा जहरीली हो या फिर नदियां, क्या फर्क पड़ता है? किसी भी प्राकृतिक संसाधन का आकलन कीजिये, उसमें साल 2014 के बाद से केवल गिरावट ही आयी है। यह भी एक बड़ा सच है कि अडानी और अंबानी जैसे उद्योगपतियों के खजाने इन्हीं संसाधनों को नष्ट कर भरे जा रहे हैं। इनके खजाने जितने भर रहे हैं, उतना ही प्राकृतिक संसाधनों का विनाश बढ़ता जा रहा है।

मंत्री जी का तर्क तो देखिये, कहते हैं कि हमारे देश में इस संबंध में कोई प्राथमिक अध्ययन नहीं किया गया है। प्राथमिक अध्ययन का मतलब है किसी गर्भ में पल रहे शिशु का उस समय से मरने तक स्वास्थ्य का और साथ ही उसके परिवेश के प्रदूषण का स्तर कभी नहीं देखा गया, इसलिए प्रदूषण से मरने, जीवन कम होने या फिर बीमार पड़ने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। मंत्री जी से यह प्रश्न करना तो लाजिमी है कि यदि प्रदूषण का कोई असर ही नहीं होता तो फिर केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और स्वयं पर्यावरण मंत्रालय जैसे जनता के पैसे से चलने वाले उद्देश्यहीन सफेद हाथियों की क्या जरूरत है, इन्हें बंद क्यों नहीं कर दिया जाता?


प्रकाश जावड़ेकर जिस प्राथमिक अध्ययन को खोज रहे हैं, उसका आइना उनकी पार्टी के नेता और स्वयं प्रधानमंत्री जी भी समय-समय पर प्रस्तुत करते रहे हैं और पूरी दुनिया में अपने ज्ञान का डंका बजवाते रहे हैं। हमारे देश में प्रदूषण के प्रभावों पर प्राथमिक अध्ययन नहीं है, पर बादलों के बीच रडार काम नहीं करता पर प्राथमिक अध्ययन किया जा चुका है। गणेश जी कॉस्मेटिक सर्जरी के जन्मदाता हैं, गाय सांस के साथ ऑक्सीजन छोड़ती है, हम बंदरों की नहीं ऋषियों की संतानें हैं, राम जी हवाई जहाज उड़ाते थे, स्टेम सेल और टेस्ट ट्यूब बेबी महाभारत काल की देन हैं और मोरनी मोर के आंसू पीकर गर्भवती होती है जैसे अनेक विषयों पर देश में प्राथमिक अनुसंधान किये गये हैं, क्योंकि जावड़ेकर साहब इसके बारे में नहीं कहते। शिक्षा और विज्ञान के मामले में देश कहां जा रहा है, ऐसे वक्तव्य इसी का आईना हैं।

मंत्री जी यदि वायु प्रदूषण के खतरों की चर्चा को आप डर का माहौल बताते हैं तब तो स्वयं आप, अनेक केन्द्रीय मंत्री, पूरी मीडिया और बीजेपी की दिल्ली की पूरी की पूरी इकाई को लोगों को डराने के और माहौल खराब करने के अपराध में दंडित किया जाना चाहिए। अफवाह फैलाना और डर का माहौल बनाना तो देश में अपराध की श्रेणी में हैं और इनके लिए दंड का प्रावधान भी है। जब दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बढ़ता है तब फिर उनकी पार्टी के लोग इतनी हायतौबा क्यों मचाते हैं, क्यों केजरीवाल को कोसते हैं?

सबसे बड़ा आश्चर्य यह है कि मंत्री जी अभी मैड्रिड में आयोजित जलवायु परिवर्तन से संबंधित कांफ्रेंस ऑफ पार्टीज में भारत का प्रतिनिधित्व करके लौटे हैं। जलवायु परिवर्तन का आधार ही वायु प्रदूषण नियंत्रण है। जलवायु परिवर्तन के बारे में प्रधानमंत्री से लेकर मंत्री तक खूब बड़ी-बड़ी बातें करते हैं और अक्षय ऊर्जा स्थापित करने को लेकर खूब वाहवाही बटोरते हैं। पर, शायद इन लोगों को यह नहीं मालूम कि जब तक आप वायु प्रदूषण को नियंत्रित नहीं करते, तब तक जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए सारे प्रयास बेमानी हैं।

इतना तो तय है कि इस सरकार में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने की कोई इच्छाशक्ति नहीं है और न ही आगे होगी, क्योंकि यह तो सरकार की नजरों में समस्या ही नहीं है। मंत्री जी के बयान पर विश्व स्वास्थ्य संगठन के अधिकारियों ने आश्चर्य जताया है। इसके जलवायु परिवर्तन के प्रमुख अधिकारी के अनुसार पूरी दुनिया में वायु प्रदूषण से संबंधित जितने अध्ययन किये गए हैं, सबका एक ही निष्कर्ष है कि वायु प्रदूषण से लोगों का जीवन कम होता है और लोग मरते भी हैं। अधिकारी के अनुसार, यदि मंत्री जी ने कोई ऐसा अनुसंधान कराया है, जिसका नतीजा यह है कि इससे लोग बीमार नहीं पड़ते, मरते नहीं, तब उस रिपोर्ट को दुनिया के सामने प्रस्तुत करना चाहिए।


अपने देश में भी भारत सरकार के अधीन इंडियन कौंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के तत्वावधान में किये गए विस्तृत अध्ययन से स्पष्ट होता है कि देश में वायु प्रदूषण के कारण लोगों की जिन्दगी 1.7 वर्ष कम हो रही है और हरेक 8 मौतों में से एक मौत वायु प्रदूषण के कारण हो रही है। मंत्री जी के बयान के बाद सभी वैज्ञानिक ठगा सा महसूस कर रहे हैं। हार्ट केयर फाउंडेशन के अध्यक्ष की टिप्पणी सबसे सटीक लगती है, “यदि प्रदूषण का कोई असर ही नहीं होता तो इससे संबंधित सभी योजनायें बंद कर दीजिये, सभी संस्थान बंद कर दीजिये और न्यायालयों से इससे संबंधित सभी मुकदमे बंद कर दीजिये।”

इस बयान से इतना तो साफ है कि संसद में सरकार केवल सदस्यों को गुमराह करती है और उसके पास किसी समस्या का कोई भी समाधान नहीं है। पर आप सावधान रहिये, हो सकता है कि आप कभी वायु प्रदूषण की चर्चा करते पकड़े गए तो फिर आपको देशद्रोही करार दिया जा सकता है, या फिर पाकिस्तान भेजने की आवाजें उठ सकतीं हैं, आखिर तथाकथित “न्यू इंडिया” इसी का तो नाम है।

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