चुनावों में बीजेपी की जीत के कारण तो सब गिना रहे, लेकिन आगे क्या-क्या होगा उसे बस देखते ही जाइए...

मुसलमानों, और गोवा में ईसाइयों को भी ‘औकात में रखने’ के लिए कई कदम उठाए जा सकते हैं। ऐसे में एनपीआर की प्रक्रिया जल्द ही शुरू कर दी जाए, तो आश्चर्य नहीं। पिछले साल ही मोदी सरकार इसके लिए 3,900 करोड़ आवंटित कर चुकी है। यह लगभग एनआरसी जैसी प्रक्रिया ही है।

Sparsh Dhaharwal
Sparsh Dhaharwal
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दिवाकर

चुनाव नतीजे क्या रहे, यह सबको मालूम है। इस तरह के क्यों रहे, इसका अंदाजा भी लगभग सबको है। हां, यह जरूर है कि कारणों में कोई अगर किसी बात को नंबर-1 पर रखता है, तो दूसरा उसे नंबर-3 पर रख सकता है। मतलब, हर व्यक्ति अलग-अलग वर्गों के वोटरों के साथ बातचीत से अलग-अलग तरीके से निष्कर्ष पर पहुंच सकता है। लेकिन अंतर सिर्फ रास्तों के नंबर का होगा। मतलब, सबको मालूम है जीत की वजहों की हकीकत लेकिन कोई इसे न समझना चाहे, तो यह खयाल उसका है। पर असली बात यह है कि इस तरह की जीत के बाद आगे क्या दिख रहा है।

सब मान रहे हैं कि जिन राज्यों में बीजेपी जीती है, उनमें फ्री राशन के साथ आवास और शौचालय के लिए पैसे दिए जाने की बड़ी भूमिका है। तीन बातें समझने और ध्यान रखने की जरूरत हैः एक, ये सब पंजाब में भी हो रहा था; ठीक है कि यूपी, उत्तराखंड और मणिपुर की तुलना में इनके ऐसे लाभार्थियों की संख्या वहां कम थी, फिर भी कांग्रेस को इसका लाभ क्यों नहीं मिल पाया? दूसरी बात, खाद्य सुरक्षा कानून, दरअसल, कांग्रेस ने ही लागू किया था, तो उसे इसका लाभ उस तरह क्यों नहीं मिलता रहा जिस तरह बीजेपी को अभी मिला है?

क्या जिन दो राज्यों- राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकारें हैं, वहां उन्हें इनका फायदा मिलेगा? और तीन, आने वाले दिनों के खयाल से यह महत्वपूर्ण है कि कोविड की वजह से तो फ्री राशन, और बाद में, नमक-तेल भी बंटता रहा, पर मार्च के बाद क्या होगा? अब भी अर्थव्यवस्था में इतना सुधार हुआ नहीं दिखता है कि बिल्कुल निचले आर्थिक वर्ग को भी रोजगार उसी तरह आसानी से मिल जाए जिस तरह कोविड से पहले मिल जा रहा था।

इन पांच राज्यों में चुनावों से ऐन पहले तीन कृषि-व्यापार कानूनों को सरकार ने वापस ले लिया था। फिर भी, ये तीन कानून ही शायद बीजेपी और बहुत हद तक शिरोमणि अकाली दल के लिए भी गले की हड्डी बने। कांग्रेस तो पहले दिन से इसका विरोध कर रही थी, फिर भी पंजाब में उसे शिकस्त मिली। जिस आम आदमी पार्टी ने इन कानूनों को लेकर लगातार ढुलमुल रवैया रखा, उसे ही लोगों ने पंजाब में सत्ता सौंप दी है।

सरकार ने इन तीन कानूनों को वापस लेने की घोषणा तो की लेकिन बाद में केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने एक झटके में यह भी कहा था कि कुछ अन्य संशोधनों के बाद वह इन्हें वापस लाएगी। बाद में उन्होंने कहा था कि उन्हें गलत समझा गया। राकेश टिकैत समेत विभिन्न संगठनों के अभियान के बावजूद पश्चिम उत्तर प्रदेश में भी बीजेपी जिस तरह जीती है, उसके बाद नए बोतल में वही पुराने कानून वापस आने की पूरी आशंका है।

माना जा रहा है कि हिन्दुत्व की घुट्टी जिस तरह पिलाई गई है, उसका इस जीत के पीछे गहरा असर है। इसमें शक भी नहीं है। उच्च वर्ग से लेकर बिल्कुल निचले आय वर्ग तक को यह घुट्टी लगातार पिलाई गई है। बीजेपी का संदेश बिल्कुल साफ है कि मुसलमान ‘लगभग दोयम दर्जे’ के नागरिक रहें, तो उन्हें कोई परेशानी नहीं है।

इस ओर थोड़ा कम ध्यान गया है लेकिन बीजेपी नेताओं की सोच रही है कि जिस तरह तीन तलाक कानून ने मुस्लिम महिलाओं के छोटे प्रतिशत को ही सही, उसकी ओर आकर्षित किया है, हिजाब विवाद से भी उसे लाभ मिला है। यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा कि बीजेपी की इस सोच का आधार कितना ठोस है क्योंकि बुरके, नकाब, हिजाब आदि का चलन वैसे कमजोर वर्ग की लड़कियों-महिलाओं में ज्यादा है जिन्हें अपनी अविकसित बस्तियों से निकलने पर सुरक्षा के खयाल से ज्यादा जरूरत महसूस होती है।


लेकिन असली खतरा यह है कि मुसलमानों, और गोवा में तो ईसाइयों को भी ‘औकात में रखने’ के खयाल से कई कदम उठाए जा सकते हैं। इस सिलसिले में नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर (एनपीआर) की प्रक्रिया जल्द ही शुरू की जाए, तो आश्चर्य नहीं। अक्तूबर, 2021 में ही केंद्र सरकार इसके लिए 3,900 करोड़ आवंटित कर चुकी है। यह लगभग नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (एनआरसी)-जैसी प्रक्रिया ही है। आपको ध्यान होगा कि संशोधित नागकिता कानून (सीएए) के भारी विरोध की वजह से इसे सरकार ने मुल्तवी कर रखा था। लेकिन अब इसे लागू करने में सरकार शायद ही हिचकिचाएगी।

यह भी याद रखना चाहिए कि यूपी में सीएए विरोधी प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा में सार्वजनिक संपत्ति के एवज में प्रशासन ने 274 लोगों को वसूली नोटिस जारी किए थे। परवेज आरिफ टीटू की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इन नोटिस को वापस लेने और जमा की गई राशि संबंधित लोगों को लौटाने का निर्देश दिया था। लेकिन तलवार इसलिए लटकी हुई है कि मार्च, 2021 में उत्तर प्रदेश विधानसभा द्वारा सार्वजनिक और निजी संपत्ति के नुकसान की उत्तर प्रदेश वसूली विधेयक, 2021 पारित किया गया था। इस कानून के अंतर्गत कार्रवाई करने की योगी सरकार तैयारी करेगी ही। और इसी प्रसंग में यह भी ध्यान में रखना होगा कि मीडिया को भी ‘शिमला की हवा का अहसास’ कराते रहने का क्रम पहले की तुलना में ज्यादा गति पकड़ेगा। मुख्यधारा का मीडिया तो लंबलेट है ही, आने वाले दिनों में यू-ट्यूबर्स पर ज्यादा निगाह रखी जाएगी।

सीएए विरोधी आंदोलन, कोविड के दौरान सरकारी लापरवाही में लाखों लोगों की मौत और किसान आंदोलन की वजह से ऐसा भ्रम पैदा हो रहा था कि बीजेपी बैकफुट पर है। योगी आदित्यनाथ समेत कई मुख्यमंत्री अपने-अपने राज्यों में जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू करने की बात कर चुके हैं। इसे वे तो आगे बढ़ाएंगे ही, केंद्र सरकार भी इस दिशा में पहल करे, तो कोई अचरज नहीं होगा। भले ही सरकारी आंकड़े दूसरे किस्म की सच्चाई सामने लाते हों, बीजेपी और संघ ने यह प्रचारित कर एक बड़े वर्ग को मुतमईन कर दिया है कि मुसलमानों की आबादी निरंतर बढ़ती जा रही है और यह हिन्दुओं के भविष्य के लिए खतरा है। लव जिहाद कानून भी कई राज्य या तो लागू कर चुके हैं या लागू करने की तैयारी कर रहे हैं।

समान नागरिक संहिता भी ऐसा ही मुद्दा है। इस संहिता को लागू करने के लिए जो याचिका दिल्ली हाईकोर्ट में डाली गई है, सब जानते हैं कि उसके पीछे बीजेपी-समर्थक हैं। अभी जनवरी में केंद्र सरकार ने हलफनामा दायर कर यह तो कहा कि फिलहाल समान नागरिक संहिता लागू करने की कोई योजना नहीं है। लेकिन उसने यह भी कहा कि इसे लागू कराने का जिक्र संविधान के नीति निदेशक तत्वों में है और यह पब्लिक पॉलिसी से जुड़ा मुद्दा है तथा इस पर कोर्ट की तरफ से कोई दिशानिर्देश जारी नहीं किया जा सकता।

और आखिरी में सबसे महत्वपूर्ण बात। लालकृष्ण आडवाणी के समय से ही बीजेपी के कई नेता देश में राष्ट्रपति प्रणाली व्यवस्था लागू करने की वकालत करते रहे हैं। नरेंद्र मोदी ने बीजेपी नेताओं की सक्रिय चुनावी राजनीति से रिटायर होने की जो उम्र सीमा तय कर रखी है, वह उस तक पहुंच रहे हैं। मतलब, उनके झोला उठाकर निकल लेने का वक्त आ गया है। ऐसे में, वह यह प्रणाली लागू करना अपने लिए मुनासिब समझें, तो आश्चर्य नहीं। यह सोचकर खुश होने की जरूरत नहीं है कि इस बार के यूपी चुनावों के बाद योगी आदित्यनाथ का कद बढ़ गया है, तो वह केन्द्रीय गृह मंत्रीअमित शाह के लिए खतरा बन रहे हैं। संघ के निर्देश पर बीजेपी के दो बड़े नेता किस तरह तालमेल बिठाते हैं, इसका उदाहरण अटल बिहारी वाजपेयी-आडवाणी की जोड़ी रही है। मोदी शीर्ष पद पर बैठे, तो शाह को मुरली मनोहर जोशी बने रहने में दिक्कत नहीं होगी। हां, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वशर्मा पर भी निगाह रखे रहने की जरूरत है। जिस तरह बीजेपी में योगी को अगले मोदी की तरह देखा जा रहा, उसी तरह हिमंत को अगले योगी के तौर पर।

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