गुड्डो (मारिया जुबेरी) एक बार थोड़ी देर को लौट आओ, फिर चली जाना

बेटा मैं उस मनहूस दिन बस ऑफिस से निकलने ही वाला था कि खबर मिली कि मुंबई में एक हवाई जहाज गिर गया। जब पायलट का नाम देखा तो मारिया जुबेरी था। दिल धक्क हो कर रह गया।

फोटोः सोशल मीडिया
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ज़फ़र आग़ा

गुड्डो मैं तुमको मारिया जुबैरी कैसे लिखूं। वैसे तो सारा हिंदुस्तान तुमको मारिया जुबेरी के नाम से याद कर रहा है। लेकिन तुम ने जब से आंखें खोलीं मैंने तो तुमको गुड्डो ही पुकारा। एक मैं क्या सारा घर बल्कि पूरा खानदान तुमको गुड्डो जानता और कहता था। बेटा तुमको उंगली पकड़ककरर चलाया, गोद में खेलाया। याद है तुम बहुत बचपन में लखनऊ मेडिकल कॉलेज में एक बड़े ऑपरेशन के लिए भर्ती हुयी थी। हमलोग बहुत बैचेनी से तुम्हारी वापसी का इलाहाबाद में इंतेजार कर रहे थे। उन दिनों तो मोबाईल फोन भी नहीं थे। आमतौर पर हर घर में लैंडलाइन फोन भी नहीं होते थे। भाग-भागकर हम तुम्हारी खैरियत पूछने ऊपर जाते थे। जब तुम कोई पंद्रह दिन बाद ऑपरेशन करवाकर लौटीं तो हम सब हैरत में पड़ गए। तुम बच्ची थी, ऑपरेशन बहुत बड़ा था, तुमको बेहद तकलीफ रही होगी। हमें ये लग रहा था कि तुम तकलीफ से बेचैन होगी, बार-बार रोती होगी। लेकिन बेटा तुमने मुस्कुराते हुए बताया कि जफर चाचा ठीक हूं।

गुड्डो तुम पैदाइश से ही बहादुर थीं। तभी तो बेहद बहादुरी से तुमने हंसते-हंसते बचपन में इतना बड़ा ऑपरेशन झेल लिया। बेटा तुम देखते-देखते खेलने और दौड़ने लगीं। वह नीचे के सहन में दौड़ना और कभी-कभी हौज में नहाना। वह तुम्हारे मासूम कहकहे, चोट लगे तो कभी-कभार रो देना। फिर जल्द ही वह छोटी-छोटी स्कर्ट और टाई में स्कूल जाने का सफर। वह तुम्हारा भोलापन। फिर जल्द ही पढ़ाई की जिम्मेदारी का एहसास। बेटा वह तुम्हारी नन्हीं-नन्हीं बातें, वह तुम्हारी मासूम शरारतें सब भूल गए थे। लेकिन तुमने ऐसा झिंझोड़ा कि सब बातें एक-एक कर याद आ रही हैं।

क्या-क्या याद दिलाऊं गुड्डो! मैं इलाहाबाद से पढ़ाई पूरी कर नौकरी के लिए दिल्ली आ गया। तुमने उधर अपना स्कूल पूरा कर लिया। फिर जल्द ही पता चला कि तुम फ्लाइंड ट्रेनिंग के लिए चली गई। हम जब-जब इलाहाबाद जाते तुम फ्लाइंग ट्रेनिंग के लिए अपनी एकैडमी में होतीं। हमारी तुम्हारी मुलाकात मुलाकातें कम होती गईं। बेटा ये जिंदगी बहुत खराब चीज है। इसका अपना बंधा टिका ठहराव होता है। ये सबसे उसका बचपन छीन लेती है और फिर हर इंसान को वह अपने रोजी-रोटी के चक्र में ऐसा जकड़ती है कि इंसान अपनी जिंदगी भूलकर रोजी-रोटी का हो लेता है। उसके दिन रात उसके नहीं, उसके रोजगार की दया के अधीन हो जाते हैं। हम दोनों के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। तुम फ्लाइंग में डूब गईं और मुझको पत्रकारिता ने जकड़ लिया।

गुड्डो! तुम कुछ दिनों के लिए दिल्ली फ्लाइंग क्लब में शायद दो हफ्ते का कोर्स करने आयी थीं। उन दिनों बहुत दिनों बाद हम फिर साथ रहे। तुम कितना खुश थी। तुम्हारा कोर्स खत्म हो रहा था। जल्द ही तुम बाकायदा पायलट बनने वाली थीं। अरे तुम तो हवाओं से बातें कर रही थीं। वह छोटी सी गुड्डो अब पूरी तरह से मारिया जुबैरी पायलट हो रही थी। तुम्हारी हर बात से खुशी झलकती थी और भला तुम खुश क्यों ना होती ! तुमने तो वह कमाल किया था जो शायद उस वक्त तक किसी मुसलमान लड़की ने नहीं किया था। मेरे ख्याल में तुम पहली मुस्लिम लड़की थी जो प्राइवेट फ्लाइंग कोर्स कर बाकायदा हवाई जहाज उड़ा रही थीं। बेटा तुमने अपने मां-बाप ही नहीं, सारे खानदान का सर ऊंचा कर दिया था। तुम ही नहीं तुम्हारी कामयाबी पर हम सब बेहद खुश थे।

लेकिन तुम दिल्ली से गई तो फिर मुलाकातें कम होती चली गईं। जल्द ही तुमने मुंबई में फ्लाइंग कंपनी ज्वाइन कर लिया। फिर वही जिंदगी का एक नया पड़ाव- तुम्हारी शादी। तुम्हारी शादी में शामिल नहीं होने का मलाल आज तक है। फिर तुम मां बन गई। सुना है तुम्हारी बेटी ने अभी कुछ हफ्ते पहले तुम्हारी ही तरह बहुत अच्छे नंबरों से दसवीं का इम्तेहान पास कर लिया है। तुम्हारे बारे में सारी खबरे हमें मिलती रहीं। एक-दो बार इलाहाबाद में मुलाकात भी हुई। लेकिन हम दोनों जिंदगी के ढर्रे में बंधे एक-दूसरे से दूर हो गए।

लेकिन गुड्डो तुम ने फिर झिंझोड़ कर खुद को ऐसा याद दिलाया कि अब तुम को भुलाए नहीं भुलाया जा रहा है। बेटा मुझे लिखते हुए अब चालीस बरस होने को आ रहे हैं, लेकिन मैं लिखते-लिखते कभी रोया नहीं। आज आंसू नहीं रुक रहे, लिखूं कैसे। ये क्या किया गुड्डो तुम ने! बेटा जब मौसम इतना खराब था कि जहाज उड़ नहीं सकता था तो तुम जहाज उड़ाने के लिए तैयार क्यों हो गई। वह भी इतना पूराना और खराब जहाज। अब तो ये लगता है कि तुम्हारी कंपनी ने तुम को और तुम्हारे साथियों को जानबूझ कर मौत के मुंह में झोंक दिया।

बेटा बस मैं उस मनहूस दिन ऑफिस से निकलने ही वाला था कि खबर मिली कि मुंबई में एक जहाज गिर गया है। जब पायलट का नाम देखा तो तो मारिया जुबैरी था। दिल धक्क हो कर रह गया। अरे ये अपनी गुड्डो तो नहीं। बस कुछ सेकेंडों में अहमद के फोन ने इस अंदेशे की पुष्टी कर दी। वह वक्त और ये वक्त, ना यकीन आता है और ना चैन आता है। तुम्हारे पापा ने, (जिनको हमलोग सद्दू भाई कहते हैं) ये भी बता दिया कि तुम दफन हो गईं। बेटा तुम दफन कैसे हो सकती हो, तुम तो हवाओं में उड़ती हो। नहीं तुम मरी नहीं, तुम तो उड़कर आसमानों में चली गयी और वहां से हम सब को रोता देखकर हंसती होगी।

लेकिन गुड्डो हमारे आंसू तो रुक जाएंगे। हम फिर जिंदगी की दौड़-भाग में डूब जाएंगे। जिंदगी की साइकिल हमें फिर निगल जाएंगी। तुम बहुत याद आओगी। लेकिन ये आंसू जो अभी नहीं रुकते, कुछ दिनों में सूख जाएंगे। लेकिन बेटा मुझे एक बात समझ में नहीं आ रही औऱ वह ये कि मैं सद्दू भाई (तुम्हारे पिता) और फरीदा भाभी (तुम्हारी मां) का सामना कैसे करूंगा!

गुड्डो बस एक बार लौट आओ। मुझको सिर्फ इतना समझा दो कि मैं तुम्हारे मां-बाप का सामना कैसे करूं! बेटा इतना समझा दो और बस फिर उड़ कर वापस आसमानों में वापस चली जाना। उड़ना तो तुम्हारी जिंदगी है। मगर बेटा हम सब ने सोचा भी न था कि तुम हम सब से पहले उड़ कर हमेशा के लिए आसमानों का सफर बांध लोगी। खैर तुम चली गई, लेकिन एक बार तो वापस आओगी ना! बेटा तुम ना लौटी तो तुम्हारी ये यादें जिंदगी को जहन्नुम बना देंगी।

खुदा हाफिज

तुम्हारा, जफर चाचा

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Published: 01 Jul 2018, 7:34 PM