गरीब व्यक्तियों की तुलना में 100 गुना से भी अधिक कार्बन उत्सर्जन कर रहे अमीर लोग, गहरी होती जा रही है असमानता

पिछले कुछ वर्षों से वैज्ञानिक और जलवायु परिवर्तन अध्ययन से जुड़े संस्थान कार्बन उत्सर्जन में बढ़ती असमानता के प्रति आगाह कर रहे हैं। कार्बन उत्सर्जन पूंजीपति और अमीर देश कर रहे हैं, पर इसका प्रभाव गरीब लोगों पर पड़ रहा है।

फोटोः सोशल मीडिया
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महेन्द्र पांडे

चैरिटी संस्था ऑक्सफैम ग्रेट ब्रिटेन ने हाल में ही कार्बन उत्सर्जन के संदर्भ में बढ़ती असमानता पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। यदि दुनिया की जनसंख्या को आर्थिक समृद्धि के संदर्भ में बाँट दिया जाए, तब सबसे समृद्ध 1 प्रतिशत आबादी के हरेक व्यक्ति ने अपने वार्षिक कार्बन उत्सर्जन का कोटा वर्ष 2025 के पहले 10 दिनों में ही समाप्त कर डाला है। इस वार्षिक उत्सर्जन के कोटे को संयुक्त राष्ट्र के उत्सर्जन गैप रिपोर्ट में बताए गए तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर रोकने के लिए आवश्यक वार्षिक उत्सर्जन को दुनिया की कुल जनसंख्या, 8.5 अरब से, भाग देकर निर्धारित किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की सबसे गरीब 50 प्रतिशत आबादी के किसी भी व्यक्ति को कार्बन उत्सर्जन की वार्षिक सीमा तक पहुँचने में कम से कम तीन वर्षों का समय लगेगा। इन आंकड़ों से इतना तो स्पष्ट है कि सबसे अमीर व्यक्तियों का कार्बन उत्सर्जन सबसे गरीब व्यक्ति की तुलना में 100 गुना से भी अधिक है।

पिछले कुछ वर्षों से वैज्ञानिक और जलवायु परिवर्तन अध्ययन से जुड़े संस्थान कार्बन उत्सर्जन में बढ़ती असमानता के प्रति आगाह कर रहे हैं। कार्बन उत्सर्जन पूंजीपति और अमीर देश कर रहे हैं, पर इसका प्रभाव गरीब लोगों पर पड़ रहा है और इसके कारण गरीब देशों की अर्थव्यवस्था लगातार ध्वस्त होती जा रही है। अत्यधिक तापमान, असमय बाढ़, चक्रवात, वर्षा में बदलाव और सूखा– सभी गरीबों को ही प्रभावित कर रहे हैं। 

सबसे अमीर 1 प्रतिशत आबादी सम्मिलित तौर पर जितना वार्षिक कार्बन उत्सर्जन करती है, उसका आधा उत्सर्जन भी दुनिया की 50 प्रतिशत गरीब आबादी नहीं करती। वर्ष 2023 में ऑक्सफैम और स्टॉकहोम एनवायरनमेंट इंस्टिट्यूट के संयुक्त अध्ययन के अनुसार दुनिया की सर्वाधिक अमीर 1 प्रतिशत आबादी के कार्बन उत्सर्जन के कारण आने वाले वर्षों में वैश्विक स्तर पर अत्यधिक गर्मी से मरने वालों की संख्या 13 लाख से अधिक पहुँच जाएगी, इनमें से लगभग सभी गरीब होंगे जिनके पास मौसम की मार से बचने के लिए संसाधन नहीं हैं।


ऑक्सफैम की रिपोर्ट ने गरीबों और अत्यधिक अमीरों के कार्बन उत्सर्जन की तुलना के लिए एक उदाहरण भी प्रस्तुत किया है। अमेज़न के मालिक जेफ़ बेजोस के पास दो निजी वायुयान हैं, जो पूरे वर्ष में औसतन 25 दिन उड़ते हैं। इन विमानों के उड़ने से कार्बन डाइआक्साइड का जितना वार्षिक उत्सर्जन होते है, उस उत्सर्जन की बराबरी करने में अमेज़न के एक सामान्य कर्मचारी को 207 वर्ष लगेंगे।

दुनिया के अमीर देश और अरबपति जलवायु परिवर्तन को रोकने की खूब बातें करते हैं, उत्सर्जन को कम करने के लक्ष्य घोषित करते हैं, पर वास्तविक तौर पर इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाते। दुनिया की सबसे समृद्ध 1 प्रतिशत आबादी ने वर्ष 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में वर्ष 2015 के स्तर की तुलना में 97 प्रतिशत कटौती का लक्ष्य तैयार किया था, पर वर्ष 2024 के अंत तक वास्तविक कटौती 5 प्रतिशत से भी कम हो पाई है।

वर्ष 2024 सबसे गर्म वर्ष रहा, पूरी दुनिया में तापमान के लगभग सभी रिकार्ड टूटे। वर्ष 2024 पहला वर्ष रहा, जिसमें तापमान वृद्धि पूर्व-औद्योगिक काल की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस से भी अधिक रही। वर्ष 2023 की तुलना में तापमान वृद्धि 2024 में 0.1 डिग्री सेल्सियस से भी अधिक रही। पिछले वर्ष महासागरों का तापमान भी सर्वाधिक रहा है। वर्ष 2023 की तुलना में वर्ष 2024 में महासागरों में 2000 मीटर की गहराई तक 16 जेटाजूल्स अधिक ऊष्मा अवशोषित हुई, यह मान पूरे विश्व में जितनी बिजली का उत्पादन किया जाता है उसकी तुलना में 140 गुण अधिक है। पूरी पृथ्वी पर सूर्य से जितनी ऊष्मा आती है, उसमें से 90 प्रतिशत महासागरों में अवशोषित होती है। 

यूनाइटेड किंगडम के मौसम विभाग द्वारा किए गए आकलन के अनुसार वर्ष 2024 में वायुमंडल में कार्बन डाइआक्साइड की सांद्रता में वृद्धि भी अभूतपूर्व रही है। वर्ष 2023 के अंत में अनुमान लगाया गया था कि वर्ष 2024 में वायुमंडल में कार्बन डाइआक्साइड की सांद्रता में लगभग 2.84 पीपीएम की बढ़ोतरी होगी, पर अब वास्तविक बुद्धि को 3.58 पीपीएम बताया गया है, इससे पहले किसी भी वर्ष में इतनी बढ़ोतरी नहीं देखी गई थी। तापमान वृद्धि के साथ ही प्राकृतिक आपदाओं की संख्या बढ़ रही है, एक आकलन के अनुसार पिछले वर्ष प्राकृतिक आपदाओं के कारण वैश्विक स्तर पर 300 अरब डॉलर की हानि हुई। 

तापमान वृद्धि बेतहाशा औद्योगीकरण और फलते-फूलते पूंजीवाद की देन है। इससे वैश्विक स्तर पर आर्थिक असमानता बढ़ रही है, अमीरों का कारोबार बढ़ता जा रहा है और गरीब पिसते  जा रहे हैं।

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