खरी-खरीः मोदी सरकार के कंधों पर सवार संघ हिंदू राष्ट्र की स्थापना की ओर तेजी से अग्रसर

लोकसभा में भारी बहुमत होने के कारण सत्ता पक्ष ने बहुत सारे कानूनों में ऐसे संशोधन किए हैं जिससे आम व्यक्ति के मौलिक अधिकार और उसकी स्वतंत्रता पर गंभीर असर पड़ेगा। जैसे यूएपीए कानून में संशोधन, जिसके तहत सरकार किसी को भी आतंकवादी घोषित कर सकती है।

फोटोः सोशल मीडिया
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ज़फ़र आग़ा

इस समय विपक्ष की राजनीति में जिस प्रकार का बिखराव है ऐसी स्थिति विपक्ष की राजनीति में पहले कभी नहीं दिखाई पड़ी। इसका सबसे बड़ा उदाहरण राज्यसभा में तीन तलाक बिल की वोटिंग पर विपक्षी पार्टियों का रवैया है। यह सब जानते हैं कि राज्यसभा में सत्ताधारी पार्टी बीजेपी के पास बहुमत नहीं है। ऐसी स्थिति में मोदी सरकार के लिए सदन में बिल पास करवाना साधारणतया कठिन काम है। परंतु मोदी सरकार को अपने दूसरे कार्यकाल में किसी भी बिल को कानून में परिवर्तित करने में किसी भी तरह की कठिनाई नहीं दिखाई पड़ रही है।

दरअसल, सरकार की ओर से ‘विपक्ष के मैनेजमेंट’ की रणनीति के चलते बीजेपी को राज्यसभा में ‘नंबर गेम’ में किसी भी प्रकार की कोई समस्या नहीं हो रही है। जैसा अभी कहा, इसका सीधा उदाहरण तीन तलाक बिल है, जिस पर वोटिंग के समय विपक्षी एकता के चिथड़े उड़ गए। विपक्ष की कौन सी ऐसी पार्टी नहीं थी जिसमें इस मुद्दे पर दरार नहीं पड़ गई हो। इन पार्टियों को तीन तलाक बिल के उस अनुच्छेद पर आपत्ति थी जिसके तहत तलाकशुदा पत्नी की शिकायत पर पुलिस पति को गिरफ्तार कर सकती है और अंततः उसको तीन साल की सजा हो सकती है।

कांग्रेस सहित तीन तलाक विधेयक विरोधी अधिकतर पार्टियों का यह मानना था कि यदि तलाक देने वाला व्यक्ति स्वयं जेल चला गया, तो तलाकशुदा औरत और उसके बच्चों को भत्ता कौन देगा। परंतु इस मौलिक विरोध के पश्चात इन पार्टियों के सदस्यों ने राज्यसभा में किसी न किसी प्रकार सत्ता पक्ष का काम सरल बना दिया। परंतु कांग्रेस पार्टी से लेकर शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, सीपीएम समेत अपने को बीजेपी विरोधी कहने वाली किसी पार्टी ने कहीं तो खुलकर, तो कहीं बीजेपी के मैनेजमेंट की आड़ में तीन तलाक मुद्दे पर सत्ताधारी दल का साथ ही दिया।

आइए इस बिल पर राज्यसभा में विपक्ष की वोटिंग प्रक्रिया पर पहले एक निगाह डालें। समाचारों के अनुसार इस बिल पर वोटिंग के समय विपक्ष के कुल 23 सदस्य राज्यसभा में उपस्थित नहीं थे। ये उन पार्टियों के हैं जो मौलिक रूप से तीन तलाक बिल का किसी न किसी कारण से विरोध कर रहे थे। इनमें कांग्रेस के चार, समाजवादी पार्टी के छह, बीएसपी के चार, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के दो, पीडीपी के दो, डीएमके के एक, सीपीएम के एक और टीएमसी के एक सदस्य ऐसे थे जो सदन से वोटिंग के समय गायब हो गए।


फिर विरोध में एक ऐसा समूह भी था जिसने मौलिक रूप से इस बिल का विरोध तो किया परंतु वोटिंग के समय सदन से गायब होकर सत्तापक्ष के हाथ मजबूत कर दिए। इस समूह में मुख्यतः क्षेत्रीय पार्टियां थीं। इस समूह में भी कुल 23 सदस्य थे जिनमें जनता दल (यू), एआईएडीएमके और टीआरएस मुख्य थे। उधर, इस मुद्दे पर वोटिंग के समय ऐसे नेता गायब थे जिनसे यह अपेक्षा नहीं की जा सकती थी कि वह सत्तापक्ष का किसी भी प्रकार काम सरल बनाएंगे।

मसलन शरद पवार और उनके सहयोगी प्रफुल्ल पटेल संसद से गायब हो गए। इसी प्रकार बीएसपी के सतीश मिश्रा सहित चारों राज्यसभा सदस्य सदन में वोटिंग के समय उपस्थित नहीं थे। हद तो यह है कि कद्दावर मुस्लिम नेता की छवि रखने वाले आजम खां की पत्नी तजीन फातिमा ने तीन तलाक बिल पर वोट ही नहीं डाला। कहा जाता है कि वह यकायक बीमार पड़ गईं और सदन में उपस्थित नहीं हो सकीं। जब आजम खां की पत्नी बीमार होकर तीन तलाक जैसे बिल पर वोट डालने से कतरा सकती हैं, तो फिर आप किसी और से क्या गिला-शिकवा कर सकते हैं। विपक्षी पार्टियों का यह रवैया विपक्षी एकता का मखौल बन गया है।

परंतु इस प्रकार सदन के अंदर विपक्ष की राजनीति के बिखराव का क्या कारण है और उसका देश की राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ सकता है? इस संबंध में बीजेपी की रणनीति स्पष्ट थी। बीजेपी नेतृत्व ने इस सत्र में राज्यसभा में साम, दाम, दंड, भेद की रणनीति अपना रखी है। जिस पार्टी के जिस सदस्य की नब्ज जहां दाबी जा सकती थी वहां उसकी नब्ज दबा दी गई।

इसको आप एक इत्तेफाक समझें अथवा कुछ और, जिस समय राज्यसभा में तीन तलाक बिल पर बहस और वोटिंग चल रही थी, ठीक उसी समय आजम खां द्वारा स्थापित मोहम्मद अली जौहर यूनिवर्सिटी पर छापा पड़ रहा था। इस छापे में उत्तर प्रदेश पुलिस वहां से चोरी की कीमती पुस्तकें बरामद कर रही थी। बस उनकी राज्यसभा सांसद पत्नी तजीन फातिमा यकायक बीमार पड़ गईं और सदन में तीन तलाक बिल पर वोट नहीं डाल सकीं।


ऐसा ही कुछ और वोट के समय उपस्थित न होने वालों के साथ हुआ इसकी कोई रिपोर्ट नहीं है। लेकिन ‘इंडियन एक्सप्रेस’ अखबार ने बीजेपी के हवाले से यह लिखा कि सत्ता पक्ष सदन से गायब होने वाले हर विपक्षी सांसद पर ‘गहरी निगाह’ रखे हुआ था और वह उनके संपर्क में भी था। अब इस संदर्भ में यदि आप राहुल गांधी के बयान पर ध्यान दें कि सरकार विपक्ष की एकता को तोड़ने के लिए सरकारी एजेंसियों का प्रयोग कर रही है, तो राज्यसभा में तीन तलाक बिल सहित कई और विवादित बिलों पर सरकार की कामयाबी का रहस्य स्पष्ट हो जाता है।

यह अत्यंत चिंताजनक स्थिति है। परंतु चिंताजनक बात केवल यह नहीं है कि सरकार तीन तलाक विधेयक राज्यसभा में बहुमत की कमी होते हुए पास करवाने में सफल हो गई। चिंता इस बात की है कि लोकसभा में भारी बहुमत होने के कारण सत्ता पक्ष ने बहुत सारे कानूनों में ऐसे संशोधन किए हैं जिससे आम व्यक्ति के मौलिक अधिकार और उसकी स्वतंत्रता पर गंभीर असर पड़ेगा।

जैसे उसने यूएपीए कानून में लोकसभा में एक ऐसा संशोधन पास किया है जिसके तहत किसी भी व्यक्ति को सरकार आतंकवादी घोषित कर सकती है और उसके विरूद्ध कड़े कदम उठा सकती है। अभी तक यह कानून संगठनों पर लागू होता था। परंतु अब सरकार किसी व्यक्ति विशेष को ‘अरबन नक्सल’ कहकर इस कानून के तहत उसको आतंकवादी बताकर कड़े कदम उठा सकती है।

ऐसी ही कुछ हश्र सूचना का अधिकार कानून का हुआ। इस कानून में इस प्रकार के परिवर्तन किए गए हैं जिससे इस संस्था की स्वायत्तता समाप्त हो गई है और यह पूरी संस्था अब सरकार के कब्जे में है। अर्थात सरकार के पास में जो इंफॉर्मेशन नहीं हो सरकार अधिकारियों के बल पर उस इंफॉर्मेशन को रोक सकती है।


इन सारे विधेयकों पर क्षेत्रीय पार्टियां सीधे या तो वाकआउट कर अथवा सदन से गायब होकर सत्ता पक्ष का साथ दे चुकी हैं। परंतु इससे भी अधिक चिंताजनक बात यह है कि अगर विपक्ष ही नहीं बचेगा, तो फिर लोकतंत्र का क्या अंजाम होगा? यह देश के लिए एक चिंताजनक ही नहीं अपितु खतरनाक स्थिति है।

भारतीय जनता पार्टी देश की मुख्यधारा से हटकर एक अलग पार्टी है। यह याद दिलाने की आवश्यकता नहीं है कि बीजेपी दरअसल संघ का राजनीतिक अंग है। संघ देश के संविधान से लेकर लगभग सभी मुद्दों पर एक अलग विचारधारा रखती है। संघ का मुद्दा हिंदू राष्ट्र का मुद्दा है। उसके लिए अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए संविधान और लोकतांत्रिक प्रयोग एक रणनीति भी हो सकती है। अतः संसद पर संपूर्ण नियंत्रण बनाकर स्वयं संविधान को अपनी विचारधारा में ढालने का कार्य भी उसका उद्देश्य हो सकता है। मोदीराज में जिस तेजी से कानून बदले जा रहे हैं उससे यह आभास होता है कि बीजेपी सरकार के कंधों पर सवार संघ हिंदू राष्ट्र की स्थापना में व्यस्त है।

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