योगी राज में RTE का उड़ रहा मखौल, गरीब बच्चे कॉन्वेंट स्कूलों में दाखिले की जोह रहे बाट, बंगले वाले काट रहे मलाई!

UP सरकार का दावा है कि RTE के तहत चालू शैक्षणिक सत्र में पब्लिक स्कूलों में 1.31 लाख से अधिक गरीब बच्चों का प्रवेश हुआ और सवा पांच साल में 5 लाख गरीब बच्चों का एडमिशन पब्लिक स्कूलों में हो चुका है, जबकि SP सरकार में 2012 से 2016 के बीच 21 हजार बच्चों का एडमिशन हुआ था। लेकिन हकीकत भिन्न लगती है।

फोटो: सोशल मीडिया
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के संतोष

योगी आदित्यनाथ राज में शिक्षा के अधिकार (आरटीई) के तहत गरीब बच्चों के कॉन्वेंट स्कूल में होने वाले प्रवेश का मखौल उड़ाया जा रहा है। आरटीई के तहत एक लाख रुपये से कम आय वाले अभिभावकों के बच्चों को निजी स्कूलों की 25 फीसदी सीटों पर निःशुल्क प्रवेश दिलाया जाना है। वहीं, एससी, एसटी, ओबीसी वर्गों के लिए आय सीमा की बाध्यता नहीं है। प्रदेश सरकार का दावा है कि आरटीई के तहत चालू शैक्षणिक सत्र में पब्लिक स्कूलों में 1.31 लाख से अधिक गरीब बच्चों का प्रवेश हुआ है और सवा पांच साल में पांच लाख गरीब बच्चों का एडमिशन पब्लिक स्कूलों में हो चुका है जबकि सपा सरकार में 2012 से 2016 के बीच सिर्फ 21 हजार बच्चों का एडमिशन हुआ था। लेकिन हकीकत भिन्न लगती है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में एडमीशन न होने के कारण अभिभावक राइफल क्लब पर धरना दे रहे हैं। शहर के गणेनपुर निवासी सुनील बताते हैं कि ‘बेटी के प्रवेश के लिए दो साल से प्रयास कर रहे हैं। 2022 में स्कूल ने लिस्ट में नाम होने के बाद भी सीटें फुल बताकर आवेदन निरस्त कर दिया। इस साल शिक्षा विभाग ने फार्म ही निरस्त कर दिया।’ इसी तरह नाथूपुर निवासी जुबेर खान अपने बेटे के प्रवेश के लिए तीन साल से प्रयास कर रहे हैं।

सीएम योगी आदित्यनाथ के शहर गोरखपुर का भी इस मामले में बुरा हाल है। मियां बाजार निवासी अनुपमा श्रीवास्तव दो साल से बेटी के प्रवेश को लेकर दौड़ रही हैं। 2021 में विभाग ने सूची जारी कर जिस स्कूल में प्रवेश लेने को कहा, वह कोरोना के चलते बंद हो चुका था। इस साल शहर के एक पब्लिक स्कूल में प्रवेश के लिए सूची में नाम निकला तो उम्मीद जगी। स्कूल में लगातार 47 दिन दौड़ने के बाद प्रिंसिपल ने चेंबर में बुलाकर एडमिशन लेने से मना कर दिया। अनुपमा बताती हैं कि ‘रिजेक्ट होने का कारण पूछने पर धमकी मिली कि सीएम से लेकर डीएमतक शिकायत कर लो, एडमिशन नहीं करेंगे।’ 15 दिनों तक अवसाद में रहने के बाद अनुपमा ने आभूषण बेचकर दूसरे पब्लिक स्कूल में एडमिशन कराया।

अनुपमा बताती हैं कि ‘बेटी ने स्कूल देख लिया था। वह उसी स्कूल में पढ़ने की जिदकर रही थी। इच्छा की अनदेखी की हिम्मत नहीं जुटा सकी। अगली बार कैसे एडमिशन होगा, खुद मुझे नहीं पता।’ अनुपमा जैसे 13 अभिभावकों ने मुख्मंत्री के जन सुनवाई पोर्टल से लेकर शिक्षा विभाग में शिकायत की लेकिन चंद दिनों बाद ही मामला निस्तारित बता कर उनकी उम्मीदों पर ताला लगा दिया गया। ऐसा नहीं है कि ये सब अधिकारियों को मालूम नहीं है।

कानपुर के जिलाधिकारी विशाख जी ने बीती 7 जुलाई को आरटीई के तहत होने वाले प्रवेश को लेकर समीक्षा की तो उनके सामने शिकायतों का पुलिंदा था। शिकायतों के बाद मीटिंग से ही उन्होंने एसीएम जंग बहादुर और वान्या सिंह को स्कूलों में भेजकर जांच कराई। जांच में पता चला कि शहर के प्रतिष्ठित पब्लिक स्कूल की तीन शाखाओं में 75 गरीब बच्चों का एडमीशन होना था लेकिन स्कूल ने सिर्फ 29 का ही एडमिशन लिया है। इसी तरह एक स्कूल ने 14 में से 4, दूसरे ने 18 में से 9 और एक अन्य ने 10 में से सिर्फ 2 प्रवेशलिए हैं।

सबसे अधिक शिकायतें मिशनरी के स्कूलों में प्रवेश को लेकर हैं। प्रबंधन का दावा है कि अल्पसंख्यक विद्यालयों पर आरटीई लागू नहीं होता है। कानपुर के अशोक नगर के एक स्कूल ने तो शिक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारी तक को कैंपस में घुसने नहीं दिया। उसने नोटिस भी लेने से इनकार कर दिया। ऐसे में स्कूल गेट पर नोटिस चस्पा करना पड़ा। वाराणसी में आरटीई को लेकर अभियान चला रहे वल्भाचार्य पांडेय बताते हैं कि‘इस साल की लिस्ट में लॉटरी द्वारा 6,100 बच्चों का नाम आया है लेकिन विद्यालय कोई न कोई बहाना बताकर प्रवेश नहीं ले रहे हैं।’

प्रवेश न लेने के लिए एक तरफ यह स्थिति है, तो दूसरी ओर आलीशान बंगलों और लग्जरी गाड़ियों के मालिकों के बच्चों को आरटीई के तहत एडमिशन दे दिया गया है। आरटीई के तहत फर्जी आय प्रमाणपत्र पर दाखिले की मेरठ में 60 और सहारनपुर में 12 शिकायतें आई हैं। प्रयागराज में भी ऐसी शिकायतें आई हैं। सभी जगहों पर वहां के बीएसए ने जांच शुरू कर दी है। बरेली में सूची में शामिल 918 गरीब बच्चों का प्रवेश नहीं हुआ। जिन 1,983 छात्रों को प्रवेश मिले, उनमें से 40 ऐसे बच्चों की शिकायतें विभाग को मिलीं है जिनके अभिभावकों के पास मकान, दुकान से लेकर कारें तक हैं।

बदायूं के एक स्कूल में आरटीई के तहत बच्चे ने प्रवेश लिया। बच्चे के पिता दिल् लीकी एक निजी फर्म में मैनेजर हैं। उनका मासिक वेतन 80 हजार रुपये बताया जा रहा है। मां शिक्षिका हैं। बरेली के एक प्रतिष्ठित स्कूल में एक छात्र वर्षों से पढ़ रहा है। उसकी सालाना फीस लगभग 72 हजार रुपये है। उसके छोटे भाई ने इस वर्ष आरटीई के तहत इसी स्कूल में प्रवेश लिया है। पिता का तीन मंजिला मकान है। लखनऊ में 16,496 बच्चों का चयन निजी स्कूल में आरटीई के तहत कराने के लिए किया गया है लेकिन विभाग 7,538 बच्चों को ही प्रवेश दिला सका है। इनमें से भी कइयों के खिलाफ शिकायतें बीएसए तक पहुंची हैं।

प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन के अध्यक्ष सौरभ मेहरोत्रा ने कहा कि ‘आरटीई के तहत तमाम अमीरों के बच्चों के भी प्रवेश हुए हैं। लेकिन विभाग के जिम्ममेदार कार्रवाई नहीं कर रहे हैं।’ वैसे, प्राइवेट स्कूल मालिकों का भी अपना दर्द है। हजारों स्कूल के पास पिछले दो सालों से बच्चों और स्कूलों का रिबरस्मेंट नहीं आया है। आरटीई के तहत प्रवेश पाने वाले छात्र-छात्राओं की अधिकतम 450 रुपये फीस शासन देती है जबकि यूनीफॉर्म और किताबों के लिए अभिभावकों को 5,000 रुपये मिलते हैं।

वाराणसी के बीएसए राकेश सिंह का कहना है कि‘फीस प्रतिपूर के लिए शासन को 84 करोड़ रुपये की डिमांड भेजी गई थी। लेकिन 48.50 लाख रुपये ही जारी हुए हैं।’ लखनऊ में अनएडेड प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन के अध्यक्ष अनिल अग्रवाल ने कहा कि‘पिछले तीन वर्षों से स्कूलों को प्रतिपूर्ति शुल्क नहीं देने के अलावा फीस भी नियमानुसार नहीं बढ़ाई गई है।’

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