रूस 40 साल से ट्रंप की परवरिश कर रहा था, अमेरिकी पत्रकार की किताब में पूर्व केजीबी जासूस के हवाले से दावा

अब चुनाव किसी देश की जनता की धरोहर नहीं रहे, बल्कि रूस, चीन और अमेरिका जैसे देशों की सरकारों की मर्जी हैं, जो अनेक दशकों तक किसी सनकी व्यक्ति की परवरिश प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति बनाने के लिए करते हैं और चुनावों के दौरान उसके पक्ष में माहौल तैयार करते हैंI

फाइल फोटोः सोशल मीडिया
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महेन्द्र पांडे

क्रैग उन्गेर एक अमेरिकी पत्रकार हैं और पुस्तकें भी लिखते हैंI इनकी शीघ्र ही प्रकाशित होने वाली पुस्तक है- ‘अमेरिकन कोम्प्रोमैट’I यह पुस्तक अमेरिका में तैनात किये गए रूसी खुफिया एजेंसी केजीबी के भूतपूर्व वरिष्ठ अधिकारी युरी श्वेतस द्वारा दी गई जानकारियों पर आधारित हैI इस पुस्तक के अनुसार रूस लगभग पिछले 40 वर्षों से डोनाल्ड ट्रंप को राष्ट्रपति बनाने के लिए उनका पीछा और परवरिश कर रहा थाI यह आश्चर्य का विषय हो सकता है कि ऐसा पिछले 4 दशकों से किया जा रहा था। इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि रूस की सरकार डोनाल्ड ट्रंप को वर्ष 2016 के राष्ट्रपति चुनावों के दौरान अंतिम समय तक मदद करती रही थीI

पुस्तक के अनुसार रूस का ध्यान ट्रंप पर पहली बार 1977 में गया, जब उन्होंने अपनी पहली शादी चेकोस्लोवाकिया की मॉडल इवाना जेल्निकोवा से की थी। इसके बाद से केजीबी लगातार उनका पीछा करता रहाI केजीबी के अनुसार एक अमेरिकी राष्ट्रपति में जो बेवकूफी और मूर्खता वे देखना चाहते थे, सभी ट्रंप में मौजूद थेI इसके तीन साल बाद ट्रंप ने अमेरिका में अपना पहला होटल- ग्रैंड हयात न्यू यॉर्क को शुरू कियाI इसके सभी टीवी सेट जॉयलुड एलेक्रोनिच्स नामक शोरूम से खरीदे गए थे, इस शोरूम के बारे में कहा जाता है कि यह केजीबी के अधिकारियों की दूकान हैI

रूस 40 साल से ट्रंप की परवरिश कर रहा था, अमेरिकी पत्रकार की किताब में पूर्व केजीबी जासूस के हवाले से दावा

साल 1987 में पहली बार ट्रंप और इवाना रूस दौरे पर मास्को और सेंट पीटर्सबर्ग गए, जहां अनेक तरीके से केजीबी के वरिष्ठ अधिकारी बार-बार ट्रंप से मिलते रहे और उन्हें अमेरिकी राजनीति में उतरने की सलाह देते रहेI ट्रंप को लगातार यकीन दिलाया गया कि वही अमेरिका के सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रपति बनने के काबिल हैं और पूरी दुनिया को बदलने की क्षमता रखते हैंI

रूस यात्रा से वापस आते ही ट्रंप 1987 में रिपब्लिकन पार्टी के सदस्य बने और पार्टी की तरफ से राष्ट्रपति उम्मीदवार बनने के जुगाड़ में मशगूल हो गएI उन्होंने न्यू हैम्पशायर में एक बड़ी रैली आयोजित की थी और लगभग सभी बड़े समाचार पत्रों में पूरे पृष्ठ का विज्ञापन प्रकाशित कराया था, जिसमें जनता के लिए ट्रंप की तरफ से एक खुला पत्र थाI इस पत्र में अनेक ऐसे विषयों को उठाया गया था, जिनका अमेरिका की सामान्य नीतियों से दूर-दूर तक का नाता नहीं थाI इस विज्ञापन के बाद रूस में सरकार और केजीबी के अधिकारियों में खुशी की एक लहर दौड़ गईI

ट्रंप ने वर्ष 1999 में रिफॉर्म्स पार्टी को ज्वाइन कियाI ट्रंप कामयाब रहे और पहली बार साल 2000 में रिफॉर्म्स पार्टी की ओर से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार घोषित किये गएI उस चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी के जॉर्ज बुश अमेरिका के राष्ट्रपति बने थेI वर्ष 2001 में ट्रंप डेमोक्रेटिक पार्टी के सदस्य बने, और 2004 और 2008 के चुनावों में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बनने का प्रयास करने के बाद भी असफल रहेI साल 2009 में ट्रंप ने फिर से रिपब्लिकन पार्टी का दामन थामा, पर 2012 के चुनावों में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार नहीं बन पाएI इसके बाद 2016 के चुनावों में केवल रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार ही नहीं बल्कि राष्ट्रपति भी चुने गएI

साल 2016 के राष्ट्रपति चुनावों में रूस की दखलंदाजी से तो सभी परिचित हैं, यह बात दूसरी है कि अमेरिका की सरकार, संवैधानिक संस्थाएं और न्यायालय चुनावों में रूस की दखलंदाजी को साबित नहीं कर पाए, हालांकि ट्रम्प और रूस की दोस्ती बार-बार उजागर होती रहीI इस सन्दर्भ में जांच के लिए बनी मुएलर समिति ने भी ट्रंप की चुनावी टीम और रूस के अधिकारियों के बीच होने वाली 38 मीटिंगों का ब्यौरा प्रस्तुत किया था और यह भी बताया था कि रूस के कम से कम 272 अधिकारियों के साथ ट्रंप के व्यक्तिगत रिश्ते थे और इनके फोन नंबर ट्रंप के पास मौजूद थेI

इस पुस्तक के लेखक क्रैग उन्गेर रूस के मामलों के विशेषज्ञ हैं और इससे पहले, हाउस ऑफ ट्रंप हाउस ऑफ पुतिन, समेत सात पुस्तकें लिख चुके हैंI केजीबी के भूतपूर्व वरिष्ठ अधिकारी युरी श्वेतस अब अमेरिका में बस चुके हैं और इन दिनों सबूत जुटा रहे हैं, जिससे दुनिया जान सके कि साल 2016 के राष्ट्रपति चुनावों में रूस ने ट्रंप को जिताने के लिए सीधा दखल दिया थाI

इस पुस्तक में केवल रूस और अमेरिका की ही चर्चा है, पर इससे दुनिया की राजनीति का भी पता चलता हैI भारत समेत दुनिया के अनेक तथाकथित लोकतंत्र में चुनाव होते हैं और जिन्हें अधिकतर जनता हारता हुआ देखना चाहती है, वे भारी बहुमत से सरकार बना कर जनता को कुचलना शुरू करते हैंI जाहिर है अब चुनाव किसी देश की जनता की धरोहर नहीं हैं, बल्कि रूस, चीन और अमेरिका जैसे देशों की सरकारों की मर्जी हैं, जो अनेक दशकों तक किसी सनकी व्यक्ति की परवरिश प्रधानमंत्री बनाने के लिए करते हैं और चुनावों के दौरान उसके पक्ष में माहौल तैयार करते हैंI

दुनिया में शायद ही कोई ऐसा राष्ट्राध्यक्ष होगा, जिस पर अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जितनी किताबें लिखी गई होंगीI ट्रंप पर लिखी किताबों की खासियत यह भी है कि हरेक किताब ट्रंप से संबंधित एक नया राज लेकर आती हैI हमारे देश में यह परंपरा कम है और जितनी ऐसी किताबें प्रकाशित भी की जाती हैं, वे सभी चाटुकारों द्वारा लिखी जाती हैं, जिनका मकसद किताब लिखना नहीं बल्कि मत्रियों और प्रधानमंत्री के और नजदीक आना होता हैI अपने देश में तो प्रधानमंत्री या किसी बड़े मंत्री पर कोई आलोचनात्मक किताब लिखने पर कोई प्रकाशक भी प्रकाशित करने को तैयार नहीं होता।

इस मामले में अमेरिका की स्थिति अलग हैI वहां सत्ता में बैठे राष्ट्रपति की आलोचना करने वाले लेखक भी हैं और प्रकाशक भीI मेनस्ट्रीम मीडिया में हमारे देश की तरह ऐसे लेखकों को आतंकवादी या फिर देशद्रोही नहीं कहा जाता, बल्कि इसके अंश प्रमुखता से प्रकाशित किये जाते हैं और समाचार चैनलों पर दिखाए जाते हैंI अमेरिका में ट्रंप अपनी पूरी कोशिशों के बाद भी न तो पुलिस को सरकार के आलोचकों को बिना किसी मामले के ही जेल में डालने की लत लगा पाए और न ही न्यायालयों को केवल सरकार के पक्ष में ही फैसले देने की आदतI

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