भारत छोड़ो आंदोलन की बरसीः सदा याद रहेगी देश की स्वाधीनता में महिला स्वतंत्रता सेनानियों की शहादत

भारत की आजादी की लड़ाई में अनगिनत महिला स्वतंत्रता सेनानियों ने शहादत को गले लगाया, जिनके प्रेरणादायी संघर्षों को याद रखना आज भी बहुत जरूरी है।

फोटोः सोशल मीडिया
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भारत डोगरा

68 साल की एक बूढ़ी मां कुमली नाथ उस जुलूस में शामिल थी जो असम के दरंग जिले में 20 सितंबर 1942 को ढेकियाजुली फलिस स्टेशन की ओर जा रहा था। जुलूस में उनके बेटे ने हाथ में तिरंगा लिया हुआ था। पुलिस ने उनके बेटे का निशाना लेकर गोली चला दी। बूढ़ी मां ने छलांग मारकर यह गोली अपने सीने पर ले ली और सैकड़ों नतमस्तक लोगों के आगे वहीं शहीद हो गईं।

मातागनी हाजरा ने सविनय अवज्ञा आंदोलन, नमक सत्याग्रह, चैकीदार टैक्स के विरोध और भारत छोड़ो आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और जेल-यात्रा की। उन्होंने 29 सितंबर 1942 को टमलुक सिविल कोर्ट की ओर बढ़ रहे जुलूस का नेतृत्व किया और वहां तिरंगे को लहराते समय पुलिस की गोली का शिकार हुईं। तिरंगे को हाथ में थामे उन्होंने उसी स्थान पर शहादत प्राप्त की। एक वृद्ध विधवा के इस साहस पर लोग नतमस्तक थे।

ये दो आजादी की लड़ाई में हिस्सा लेने वाली महिलाओं के बलिदान के बहुत साहस भरे उदाहरण हैं। आजादी की लड़ाई में अनगिनत महिला स्वतंत्रता सेनानियों ने शहादत को गले लगाया, जिनके प्रेरणादायी संघर्षों को याद रखना आज भी बहुत जरूरी है।

1857 के संघर्ष से पहले भी कर्नाटक के कित्तूर राज्य की चेनम्मा ने 1824-25 में ब्रिटिश सेना का सामना बहुत साहस से किया था। बाद में कैद कर लिए जाने के बाद उनकी मौत हो गई थी। झांसी की रानी और झलकारी बाई और उनकी बहादुर सखियों के संघर्ष को तो भारतवासी कभी नहीं भूल सकते हैं। झलकारी बाई ने तो गिरफ्तारी से बचकर तोप भी संभाल ली थी और इसी मोर्चे पर उन्होंने शहादत प्राप्त की।

कनकलता बरुआ नामक 16 वर्षीय छात्रा ने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में गोहपुर पुलिस स्टेशन (जिला-दरंग, असम) की ओर बढ़ रहे एक जलूस का नेतृत्व किया। पुलिस स्टेशन पर तिरंगा लहराते हुए पुलिस की गोली से 20 सितंबर 1942 को इस वीरांगना ने शहादत प्राप्त की।

वनलता दासगुप्ता ने बहुत कम उम्र से ही बंगाल की क्रांतिकारी गतिविधियों में हिस्सा लिया। बहुत समय जेल में बिताने के बाद केवल 21 वर्ष की अल्पायु में 1 जुलाई 1936 को इनका निधन हो गया।बंगाल की इस दिलेर छात्रा ने सूर्यसेन के नेतृत्व में अनेक क्रांतिकारी गतिविधियों में हिस्सा लिया। चटगांव जिले में पुलिस से घिरने के बाद भी बहुत मुस्तैदी से वे बच निकलने में सफल रही। इसी जिले में एक यूरोपियन क्लब पर असफल हमला किया और पुलिस के हाथ में पड़ने के स्थान पर जहर खा लिया।

जानकी कुमारी ने उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में मात्र 14 वर्ष की आयु में भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया और पुलिस की गोली से शहादत प्राप्त की। कस्तूरबा गांधी ने महात्मा गांधी के सामाजिक और राजनीतिक कार्यों में उनका साथ बखूबी निभाया और कई बार जेल-यात्रा की। सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया। 9 अगस्त 1942 को उनकी गिरफ्तारी हुई। 23 फरवरी, 1944 को जेल-यात्रा के दौरान ही उनकी मौत हो गई।

सरकारी नौकरी छोड़कर ज्योतिर्मय गांगुली आजादी के आंदोलन में कूद पड़ी थीं। नवंबर 1945 में कलकत्ता में आजादी के प्रदर्शनों में ब्रिटिश सेना के ट्रक से कुचले जाने के कारण 56 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हुई। मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले की प्रफुल्ल बाई ने सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेते हुए पुलिस की गोली से 1930 में शहीद हो गईं। मध्य प्रदेश के ही सियोनी की रीनो बाई ने सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान जंगल सत्याग्रह में भाग लिया। गोंडीवाल में पुलिस द्वारा गोली चलाने पर वे गंभीर रूप से घायल हो गईं। अक्तूबर 1930 में जबलपुर के विक्टोरिया अस्पताल में उनका निधन हुआ।

जयवती संघवी नाम की एक छात्रा ने भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया। अंग्रेजी सरकार के खिलाफ एक दूसरे जुलूस में भाग लेने के दौरान पुलिस प्रताड़ना की वजह से 6 अप्रैल, 1943 को केवल 19 वर्ष की अल्पायु में उन्होंने शहादत हासिल की। श्रीमती सत्यवती को कांग्रेस समाजवादी पार्टी के संस्थापकों में गिना जाता है। आजादी के अनेक आंदोलनों में उन्होंने हिस्सा लिया और अनगिनत बार जेल गईं। 1945 में एक जेल-यात्रा के दौरान ही स्वास्थ्य बिगड़ने पर उन्हें अस्पताल ले जाया गया जहां 39 वर्ष की आयु में उनका देहान्त हुआ।महाराष्ट्र की सुलोचना जोशी ने भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया और गिरफ्तार कर ली गईं। पूना की यरवदा जेल में बंद रहने के दौरान अप्रैल 1943 में 22 वर्ष की अल्पायु में उन्होंने शहादत प्राप्त की।

भारत छोड़ो आन्दोलन छिड़ने पर गर्भवती होने के बावजूद सरसीबाला दास ने बंगाल के बर्दवान जिले में इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। पुलिस की निर्मम यातना की वजह से 2 नवंबर 1942 को उनकी मृत्यु हो गयी। बंगाल के मिदनाफर की सिन्धु बाला मैती ने भारत छोड़ो आन्दोलन में भागीदारी की और पुलिस अत्याचार के कारण 22 वर्ष की अल्पायु में 1942 में उन्हें शहादत प्राप्त हुई। स्टेला रोमन कथोलिया झांसी की रानी रेजीमेंट में एक नर्स थीं, जिनकी रंगून से बैंकाक जाने के दौरान ब्रिटिश हवाई बमबारी में मौत हो गई थी।

इस तरह भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में संघर्ष करते हुए शहादत प्राप्त करने वाली अनेक महिला स्वतंत्रता सेनानियों की साहस भरी गाथाएं हैं, जो बहुत प्रेरणादायक हैं और उनके बारे में अधिक जानना और उन्हें याद रखना बहुत जरूरी है।

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