विष्णु नागर का व्यंग्य: आज खुद खतरे में हैं भगवान, ये खतरा उन्हें न मुसलमानों से है...

चर्च, मस्जिद, उलेमाओं, ईसाई धर्मगुरुओं से नहीं है। वामपंथियों, अर्बन नक्सलियों से नहीं है। ये खतरा चूहों से है, गणेश जी की मान्यता प्राप्त सवारी से है!

प्रतीकात्मक तस्वीर
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विष्णु नागर

ओ हिन्दुओं के सिर पर सुबह-शाम-दोपहर-रात' खतरा-खतरा' की तलवार लटकानेवालो, हिन्दुओं की चिंता छोड़ो, भगवान खुद आज खतरे में हैं। पहले उन्हें बचा लो। ये खतरा उन्हें न मुसलमानों से है, न ईसाइयों से, न आतंकवादियों से।

चर्च, मस्जिद, उलेमाओं, ईसाई धर्मगुरुओं से नहीं है। वामपंथियों, अर्बन नक्सलियों से नहीं है। ये खतरा चूहों से है, गणेश जी की मान्यता प्राप्त सवारी से है! इधर तुम रामजन्म भूमि के बाद कृष्ण जन्मभूमि आदि पर लगे हुए हो, उधर खतरा पुरी के जगन्नाथ मंदिर के ऐन गर्भगृह में उपस्थित हो चुका है, जहां जगन्नाथ जी, रत्न सिंहासन पर, बलभद्र जी और सुभद्रा जी के साथ विराजमान हैं। जिन जगन्नाथ जी के दर्शन करने के लिए आम हिन्दू गर्भगृह तक जाने की कल्पना नहीं कर सकता , वहां चूहे दिन- रात  उधम मचाए हुए हैं। भगवान तक को चैन नहीं लेने दे रहे हैं। उनकी कीमती पोशाक कुतर कर खा रहे हैं। उनको चढ़ाया प्रसाद को जीमने की ताक में रहते हैं, उन पर चढ़े फूल खा रहे हैं। ये बदमाश, बेचारे पुजारियों को ठीक से पूजा तक नहीं करने दे रहे हैं।खतरा काष्ठ की मूर्तियों तक को है। डर है कि किसी दिन में इन मूर्तियों को कुतरना शुरू न कर दें। इतना बड़ा खतरा है और तुम हाथ पर हाथ धरे बैठै हो! तुम्हारा यह हिंदुत्व जाग ही नहीं रहा है, कुंभकर्णी नींद सो रहा है!


मान लिया, तुम्हें लोगों की गरीबी, दुखदर्द, मरने-जीने से  कोई मतलब नहीं मगर भगवान पर आए इस संकट से तो है! क्या अब उनकी भी तुम्हें चिंता नहीं रही? पुजारीगणों को वैसे भरोसा है कि मूषकराज, ऐसा कुछ करेंगे नहीं क्योंकि इन प्रतिमाओं पर नियमित रूप से पालिश होती है।चंदन तथा मोम का लेप किया जाता है। चूहे  इस लेप को बेध नहीं सकते। इनके पास फटक नहीं सकते! मगर चूहों का कोई भरोसा है? कोई धर्म-ईमान है? वे हिंदू हैं क्या? उन्हें भगवान से डर लगा है कभी, जो अब लगेगा? जो नहीं जानते कि पाप-पुण्य क्या होता है, स्वर्ग- नरक क्या होता है, जो जगन्नाथ जी के वस्त्रों तक को खाने की दुस्साहस करते हैं, वे क्या नहीं कर सकते? वे किसी प्रभु को नहीं जानते, वे केवल भूख नामक प्रभु को जानते हैं! उनका भगवान, उनका खुदा, उनका परमेश्वर भूख है। केवल भूख! कोरोना के बाद चूहों की जो बाढ़ मंदिर में आई है, उसे अगर पेट भर खाना नहीं मिलेगा तो वे पालिश, चंदन और मोम की परवाह करेंगे? भूख बड़ा भयानक पशु है, राक्षस है। जब भूखा आदमी किसी की परवाह नहीं करता, तो चूहे करेंगे? भूखे चूहों पर विश्वास करना ठीक नहीं।

मैं समझ सकता हूं कि मंदिर के अंदर किसी प्राणी को मारना मना है- चूहों को भी। अच्छा है। मैं भी अहिंसक हूं। उन्हें मत मारो। गणेश जी की वंदना करके देख लो कि हे पार्वतीनंदन, अपनी इस सवारी से बलभद्र जी को बचा लो। तुम भी हिंदुओं के देवता हो, ये भी। तुम मदद नहीं करोगे तो कौन करेगा प्रभु? इससे भी काम न चले तो सीधे मूषक राज की वंदना करके देख लो। वैसे वंदना क्या होती है, चूहे नहीं जानते। फिर भी मंदिर का मामला है, भगवान का मामला है, क्या पता जान जाएं, मान जाएं। भक्त हो, अहिंसक हो, तो यह कोशिश करके भी देख लो!


और ये भी काम न आए तो अंतिम उपाय यह है कि इन चूहों से 'जयश्री राम ' बुलवा कर देख लो।शायद इससे उनके दिमाग ठिकाने आ जाएं। तुम आज चूहों से जयश्री राम बुलवा लो, कल हम तुम्हारे भक्त हो जाएंगे!

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