शरद पवार: सियासी शतरंज के माहिर खिलाड़ी

शरद पवार ने अभी हाल में अपनी पार्टी एनसीपी में जिम्मेदारियों का बंटवारा किया है। इसे लेकर कई किस्म के कयास भी लगाए जा रहे हैं। हालांकि इनकी शुरुआत उनके अचानक इस्तीफे की घोषणा से हुई थी। ऐसे में जरूरत है शरद पवार को समझने की।

एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार (फोटो : Getty Images)
एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार (फोटो : Getty Images)
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सुजाता आनंदन

जब 83 वर्षीय शरद पवार ने एनसीपी अध्यक्ष के तौर पर अपने इस्तीफे की नाटकीय तरीके से घोषणा की, हालांकि उन्होंने बाद में इसे वापस ले लिया, तो इंडियन एक्सप्रेस ने सही ही हेडलाइन लगाई कि वह कभी असमंजस में नहीं रहते ('द ग्रैंड, ओल्ड मैन हू इज नेवर एट सी')। इस मराठा नेता को लंबे समय से जानने वाले प्रसिद्ध संपादक और राज्यसभा सदस्य कुमार केतकर वह याद करते हुए मुस्कुराए जो विंस्टन चर्चिल ने रूस के बारे में कहा था। चर्चिल ने कहा था कि यह 'एक पहेली के अंदर एक रहस्य में लिपटी एक पहेली' है। इसी तरह, पवार का अनपेक्षित कदम उठाना कई बार हतबुद्धि कर देता है क्योंकि वह अपने दोस्तों को निकट, अपने दुश्मनों को और अधिक पास रखते हैं और दोनों कयास लगाते रहते हैं।

महाराष्ट्र के बीजेपी नेताओं ने यह कहकर उन्हें खारिज कर देने का प्रयास किया है कि वह अपना गौरवशाली समय देख चुके हैं। उनसे नेतृत्व का दायित्व ले लेने के इच्छुक बताए जाने वाले उनके भतीजे अजीत पवार ने कई बार साफ संकेत दिया है कि बुजुर्गों के लिए पार्टी के युवा लोगों को रास्ता देने का यह समय है। लेकिन जब शरद पवार ने राजनीति से अवकाश लेने की अंततः घोषणा की, तो केरल के मुख्यमंत्री पिनयारी विजयन से लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे तक- सभी विपक्षी नेता चाहते थे कि वह अपने फैसले पर पुनर्विचार करें। एनसीपी नेताओं ने उनके घर और पार्टी कार्यालय से तब तक हटने से मना कर दिया जब तक उन्होंने मन नहीं बदला। इनमें अजित पवार के कहे जाने वाले समर्थक भी थे।

उन्होंने विपक्ष को भ्रमित कर दिया जब उन्होंने आरोपों से घिरे उद्योगपति गौतम अडानी की प्रशंसा की और कहा कि अडानी समूह को निशाना बनाया जा रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि समूह के खिलाफ आरोपों की जांच करने में संयुक्त संसदीय समिति बहुत सहायक नहीं होगी। इस बात से कृतज्ञ गौतम अडानी कुछ दिनों बाद पवार के आवास पर गए और करीब दो घंटे की बैठक की तथा सबकुछ दुरुस्त कर लिया। उन लोगों ने क्या बातचीत की होगी? जब विपक्षी नेताओं की व्याकुलता पर बीजेपी नेताओं ने मजा लेना आरंभ किया, तो पवार ने साफ कहा कि विपक्षी नेताओं में एकता है और देश में बीजेपी-विरोधी लहर है। लेकिन राजनीतिक पर्यवेक्षक उनके बयान का महत्व समझते, उससे पहले ही उन्होंने केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी की मुक्त कंठ से प्रशंसा कर दी।

कभी भी यह नहीं मानें कि वह आपके साथ ही हैं। संकेत यह है कि वह दोस्तों और दुश्मनों को अपनी मनमर्जी पर रखते हैं। उनका राजनीतिक कॅरियर 63 साल लंबा है। इनमें से 56 साल वह चुनावी राजनीति में रहे हैं। इस दौरान न सिर्फ वह चार बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे बल्कि केन्द्र में रक्षा और कृषि मंत्री भी रहे। कई राजनीतिज्ञों को भले ही सक्रिय राजनीति से दूरी बनानी पड़ी हो, शरद गोविंदराव पवार ऐसे नहीं हैं। वह जानते हैं कि प्रधानमंत्री बनने के अपने जीवन भर की इच्छा पूरा करने का अवसर अब भी उनके पास है।


उनके समर्थकों की भी ऐसी ही आकांक्षा है, हालांकि पर्यवेक्षक और आलोचक इस तरह की संभावनाओं को इस आधार पर खारिज करते हैं कि एनसीपी के लोकसभा में नौ से अधिक सदस्य कभी नहीं चुने जा सके। ऐसे में, पवार के समर्थक तुरंत एच.डी. देवगौड़ा का उदाहरण देते हैं जो जब प्रधानमंत्री बने थे, तब उनकी पार्टी के 17 सांसद ही थे। सर्वसम्मति बनाने वाले या सर्वसम्मत प्रत्याशी के तौर पर उभरने के लिए किसी को भी अपने दायरों से बाहर दोस्त होना जरूरी है और जब असमान समूहों और लोगों को एकसाथ लाने की बात होती है, तो पवार का नाम स्वाभाविक तौर पर उभरता है। महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी (एमवीए) को एकसाथ लाने का श्रेय उन्हें दिया जाता है; और यह साफ तौर पर उनकी पहल थी कि शिव सेना के हिन्दुत्व के साथ संबंध और धर्म को राजनीति से मिलाने को लेकर उद्धव ठाकरे ने विधानसभा में खेद जताया। इसने कांग्रेस का शिव सेना से हाथ मिलाना संभव बनाया।

पवार को एमवीए में एकता बनाए रखने का श्रेय भी दिया जाता है। उद्धव ठाकरे को सांप्रदायिक और संकुचित राजनीति से दूर रहने के उनके गंभीर परामर्श ने राज्य में हाल के कृषि विपणन समिति चुनावों में फायदा पहुंचाया। इसमें एमवीए ने भारी जीत दर्ज की। महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों में चुनाव आम चुनाव से कम महत्वपूर्ण नहीं हैं और इसे किसानों के बीच राजनीतिक मूड का बैरोमीटर माना जाता है।

लेकिन इन सबने पवार को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे से उनके आवास पर मुलाकात करने से नहीं रोका। चूंकि प्रेस छायाकार मौके पर पहुंच गए थे, इसलिए शिंदे असहज और नाखुश थे। इस बैठक ने यह चर्चा फैला दी थी कि पवार भाजपा और शिव सेना से अलग हुए गुट के नजदीक जा रहे हैं। लेकिन भावशून्य पवार ने इस बैठक के संबंध में बताया कि वह शिंदे को एक कार्यक्रम के लिए आमंत्रित करने गए थे और कि जनता से संबंधित उनकी कई मांगें थीं जो वह चाहते थे कि शिंदे पूरा करें।


पवार 83 साल के हैं। 1997 में इसी उम्र में तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी ने देवगौड़ा सरकार से समर्थन वापस लिया था। सबको उम्मीद थी कि पवार कांग्रेस को दोफाड़ कर देंगे और देवगौड़ा का साथ देंगे जिनके साथ किसानों के नेता के तौर पर उनकी अच्छी बनती थी। दोस्ती हो या न हो, पवार कभी ही शायद ऐसा कुछ करते हैं जो उन्हें लाभ न पहुंचाए। उन्होंने साफ कर दिया था कि पार्टी तोड़ने का कोई इरादा नहीं है। इस बारे में मध्यस्थता कर रहे एक व्यक्ति को उन्होंने कहा था कि 'मुझे अभी सक्रिय राजनीति में कम-से-कम 20 साल रहना है। मैं ऐसे व्यक्ति के लिए अपना कॅरियर क्यों जोखिम में डालूं जिसकी अवकाश प्राप्ति का समय आ गया है।'

श्रीमती सोनिया गांधी के विदेशी मूल के सवाल पर 1999 में पवार ने कांग्रेस जरूर छोड़ी। उनके साथ कई नेता थे और उन्होंने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) का गठन किया। अलग होने वाले कई कांग्रेस नेता पार्टी में लौट गए और यूपीए में कृषि मंत्री बनने के लिए पवार ने खुद भी कई समझौते किए। उन्होंने एनसीपी को पाला-पोसा है और संभवतः भरोसा करते हैं कि 2024 ऐसा साल होगा जब गठबंधन सरकार बनाने के लिए असमान विपक्षी दल उन्हें एकसाथ लाने के लिए उनकी ओर देखेंगे।

एनसीपी अध्यक्ष-पद से इस्तीफा वापस लेने के तुरंत बाद उन्होंने कहा था कि 'अगले लोकसभा चुनाव के लिए सिर्फ 10 से 11 महीने बचे हैं और हम सब एकसाथ आ रहे हैं- नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, चंद्रशेखर राव और अरविंद केजरीवाल सभी विपक्षी एकता के लिए एकसाथ आ रहे हैं।'

खास बात यह है कि इनमें से कोई नेता कांग्रेस से मित्रवत नहीं है और पवार ने संकेत दिया है कि वह सीटों का तालमेल और न्यूनतम कार्यक्रम बनाने- दोनों के लिए तैयार हैं। उनके दुश्मन भी मानते हैं कि वह यह मानकर अपना ही नुकसान करेंगे कि पवार का कोई महत्व नहीं है।

वह न सिर्फ कांग्रेस-सहयोगी हैं बल्कि कुछ ऐसे हैं जिनके बिना न तो कांग्रेस, न ही कांग्रेस के अतिरिक्त कोई अन्य पार्टी कुछ कर सकती है। कई पार्टियां एक-दूसरे को आंखों में आंखें डालकर नहीं देखतीं लेकिन वे पवार की ओर देख रही हैं जिन्हें वे अपनी राजनीतिक आकांक्षाओं के लिए लंबे समय तक का खतरा नहीं मानतीं और जिन्हें वे जोड़ने वाली शक्ति के तौर पर काम करने वाली मानती हैं। पवार विपक्षी एकता बना सकते हैं और यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि चुनावों में भाजपा को हराया जाए। ऐसे में, कौन उन्हें देश में सर्वोच्च पद से दूर रख सकता है?

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