कोरोना वैक्सीन की होने लगी किल्लत, देश में जितने टीके नहीं लगे, उससे ज्यादा सरकार ने विदेशों में भेज दिए

भारत उन चुनिन्दा देशों में शामिल है जहां टीके का उत्पादन किया जा रहा हैl इसी बीच मोदी सरकार को वैक्सीन डिप्लोमेसी का ख्याल आया और देश में जितने टीके नहीं लगे, उससे अधिक विदेशों को भेंट में दे दिए गए, या फिर बेचे गएl अब वैक्सीन की कमी हो रही है।

फाइल फोटोः सोशल मीडिया
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महेन्द्र पांडे

ड्यूक यूनिवर्सिटी के ग्लोबल हेल्थ इनोवेशन सेंटर द्वारा किये गए एक आकलन के अनुसार वर्ष 2021 के दौरान कोरोना वायरस के जितने टीकों के उत्पादन का लक्ष्य है, यदि उतने टीके बन गए और उनका समान वितरण किया गया तब दुनिया की 70 प्रतिशत आबादी को टीका लगाया जा सकेगाl पर, समस्या यह है कि टीके की आपूर्ति पर अमीर देशों का कब्जा हो गया है और यह गरीब देशों तक पहुंच ही नहीं पा रहा हैl

दूसरी तरफ टीका उद्योग एक ऐसे दौर से गुजर रहा है, जिस दौर का अनुभव कभी उसने नहीं किया हैl वर्ष 2019 तक टीका उद्योग सभी रोगों को मिलाकर सम्मिलित तौर पर प्रतिवर्ष लगभग 5 अरब टीके का उत्पादन करता था, पर 2021 में केवल कोविड 19 की रोकथाम के लिए 12 अरब टीके का लक्ष्य हैl विशेषज्ञों के अनुसार उत्पादन की परेशानियों और कच्चे माल की किल्लत के कारण इस लक्ष्य को हासिल करना लगभग असंभव है, फिर भी साल के अंत तक 10 अरब से अधिक टीके तो बन ही जाएंगेl

अंतरराष्ट्रीय आंकड़े उपलब्ध कराने वाली कंपनी, एयरफिनिटी के अनुसार इस वर्ष के शुरू के चार महीनों के दौरान 1 अरब टीके का उत्पादन हो चुका होगा और इसके बाद के महीनों में 9.4 अरब टीके उपलब्ध होंगेl एक तरफ तो कोरोना वायरस के नए प्रकार लगातार सामने आ रहे हैं तो दूसरी तरफ टीके का उत्पादन करने वाली कंपनियां आपूर्ति में देरी कर रही हैंl

हमारे देश में सरकार कहती है कि टीके की कोई कमी नहीं है, पर यही सरकार पिछले वर्ष से कोरोना की अनेक दवाओं का प्रचार भी कर चुकी हैl भारत सरकार के एक विज्ञापन को याद कीजिये, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी की फोटो भी है और साथ में लिखा है, जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहींl इस विज्ञापन के साथ यह भी याद कीजिये, जब जून-जुलाई 2020 में भारत सरकार का आयुष मंत्रालय लगातार प्रचार कर रहा था कि कोविड 19 को मात देने के बहुत सारे काढ़े और दवाएं उसके पास हैंl

इसके बाद उद्योगपति रामदेव के कोरोनिल के प्रचार में भी सरकार जुट गई, जिसके बारे में दावा किया गया कि इससे कोरोना नहीं होगा, यदि हो गया है तो ठीक हो जाएगा और यदि आप ठीक हो चुके हैं तो बाद का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगाl ऐसे हरेक मामले में भारत के स्वास्थ्य मंत्री और विश्व स्वास्थ्य संगठन के एग्जीक्यूटिव बोर्ड के चेयरमैन डॉ हर्षवर्धन लगातार जनता को और दुनिया को गुमराह करते रहेl

बीजेपी के दूसरे नेता भी अपनी तरफ से कभी गौमूत्र से, कभी गोबर से, कभी काढ़ा से, कभी गर्म पानी से तो कभी हवन से कोरोना का इलाज बताते रहेl कोविड 19 के इलाज की इतनी सारी दवाएं तो पूरी दुनिया में सम्मिलित तौर पर भी नहीं होंगीं और न ही किसी देश के सरकार ने ऐसी अफवाहों को सरकारी प्रचार माध्यमों से फैलाया होगाl अब, जब देश में इतनी सारी दवाएं हैं, तो फिर तो जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं वाला पोस्टर अब तो हटा ही देना चाहिए। टीके का इतना प्रचार सरकार क्यों कर रही है?

जिस तरह किसान आन्दोलन के बाद प्रधानमंत्री और दूसरे मंत्रियों ने लगातार देश को गुमराह किया कि कृषि कानूनों को बनाने से पहले अनेक किसान संगठनों से सलाह ली गई थी, उसी तरह कोरोना से संबंधित लॉकडाउन का हाल भी हैl सरकार लगातार कहती रही कि लॉकडाउन से पहले सभी मंत्रालयों, राज्यों और चिकित्सा केन्द्रों से विमर्श किया गया था, पर बीबीसी ने जब आरटीआई में पूछे गए प्रश्नों के माध्यम से इसकी पड़ताल की, तब पता चला कि लॉकडाउन केवल प्रधानमंत्री कार्यालय की उपज थी, इसके लिए न तो किसी मंत्रालय से चर्चा की गई, न तो वित्तीय संस्थानों को जानकारी थी और न ही राज्यों को कुछ पता थाl

अब, कोविड के टीके पर सरकार का पूरा ध्यान है, जबकि कोविड के मामले लगातार बढ़ रहे हैंl ऐसा ही लॉकडाउन के समय भी हुआ था, लॉकडाउन लगते ही मामले तेजी से बढ़ने लगे थे और हम थालियां पीट रहे थे और मोमबत्तियां जला रहे थेl भारत उन चुनिन्दा देशों में शामिल है जहां टीके का उत्पादन किया जा रहा हैl इसी बीच केंद्र सरकार को वैक्सीन डिप्लोमेसी का ख्याल आया और देश में जितने टीके नहीं लगे, उससे अधिक विदेशों को भेंट में दे दिए गए, या फिर बेचे गएl

जब यह मामला तूल पकड़ने लगा तब, सीरम इंस्टिट्यूट ने अनेक देशों के टीके की सप्लाई को रोक दिया हैl सीरम इंस्टिट्यूट ने ब्राजील, मोरक्को और सऊदी अरब- हरेक देश को 2 करोड़ टीके बेचने का ऐलान किया था, पर अब इसकी आपूर्ति में देरी की जा रही हैl सीरम इंस्टिट्यूट ने इन देशों को भेजे गए पत्र में कहा है कि टीकों की आपूर्ति में देरी का कारण जनवरी में उनके प्लांट में लगी आग हैl दूसरी तरफ पुणे में इनके प्लांट में आग लगाने के बाद यह सबने सुना था कि वहां केवल पोलियो के टीके बनते थे और कोविड के टीके वहां से अनेक किलोमीटर दूर बन रहे थेl

समाचार एजेंसी रायटर के अनुसार सीरम इंस्टिट्यूट द्वारा कोरोना वैक्सीन की आपूर्ति में देरी का संबंध उसके प्लांट में लगी आग से नहीं है, बल्कि यह कंपनी देश में ही पर्याप्त आपूर्ति नहीं कर पा रही है और दूसरी तरफ यह अपना उत्पादन बढाने की प्रक्रिया में हैl इतनी बड़ी संख्या में टीके के उत्पादन में पर्याप्त कच्चा माल मिलना भी एक बड़ी समस्या हैl

सीरम इंस्टिट्यूट अब तक ब्राजील को 40 लाख, सऊदी अरब को 30 लाख और मोरक्को को 70 लाख टीके भेज चुका हैl अभी हाल में ही ब्रिटेन सरकार ने भी ऐलान किया है कि उसके नागरिकों को टीके की दूसरे डोज के लिए अभी इंतजार करना पड़ेगाl इसका कारण भी सीरम इंस्टिट्यूट द्वारा टीके की आपूर्ति में देरी हैl सीरम इंस्टिट्यूट को ब्रिटेन में 1 करोड़ टीका भेजना था, जिसमें से 50 लाख टीके भेजे जा चुके हैं, पर पिछले महीने सीरम इंस्टिट्यूट ने ब्रिटेन सरकार को बताया कि अगली खेप में अभी देर होगीl सीरम इंस्टिट्यूट अभी महीने में 6 से 7 करोड़ टीके बना रहा है, पर अगले महीने से उत्पादन बढ़ाकर 10 करोड़ टीके का लक्ष्य हैl

अपने देश में अब तक 4.4 करोड़ टीके खप चुके हैं, पर सीरम इंस्टिट्यूट 75 देशों में 5.2 करोड़ टीके बेच चुका है और 6 करोड़ टीके सरकार ने उपहार स्वरुप दूसरे देशों को भेजे हैंl उपहार देना और दूसरे देशों को टीके प्राथमिकता के आधार पर बेचना, विदेशों में अपनी छवि चमकाने का प्रयास हैl इस मामले में सरकार चीन से प्रतिस्पर्धा कर रही हैl चीन अपनी वैक्सीन, सीनोंफार्म, के जरिये अनेक देशों को अपने गुट में शामिल कर रहा है और भारत इसी प्रतिस्पर्धा में हैl चीन ने अब तक लगभग 7 करोड़ टीके दूसरे देशों को उपहार के तौर पर दिए हैं और 3 करोड़ से अधिक टीके बेच चुका हैl

हमारी सरकार कहती है कि देश में टीके की कमी नहीं है, पर हाल में ही कोविशिल्ड के बूस्टर डोज की अवधि चार सप्ताह से बढ़ाकर 8 सप्ताह कर दी गई है, जिसके लिए ब्रिटेन में किये गए अपुष्ट अध्ययन का हवाल दिया गया हैl जाहिर है, टीके का उत्पादन लक्ष्य के अनुरूप नहीं हो पा रहा हैl

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