ऑस्कर पुरस्कार के लिए शॉर्टलिस्ट फिल्म ‘बिट्टू’, रूढ़िवादी तौर-तरीकों को तोड़ने की है कोशिश

न्यूयॉर्क में रहने वाली भारतीय फिल्मकार करिश्मा देव दुबे की लघु फिल्म ‘बिट्टू’ उन दस फिल्मों में शामिल है जिन्हें 93वें एकेडमी अवार्ड (ऑस्कर पुरस्कार) की ‘लाइव एक्शन शॉर्ट फिल्म’ की श्रेणी के लिए शॉर्टलिस्ट किया गया है।

फोटो: फिल्म पोस्टर
फोटो: फिल्म पोस्टर
user

नवजीवन डेस्क

न्यूयॉर्क में रहने वाली भारतीय फिल्मकार करिश्मा देव दुबे की लघु फिल्म ‘बिट्टू’ उन दस फिल्मों में शामिल है जिन्हें 93वें एकेडमी अवार्ड (ऑस्कर पुरस्कार) की ‘लाइव एक्शन शॉर्ट फिल्म’ की श्रेणी के लिए शॉर्टलिस्ट किया गया है। ऑस्कर पुरस्कार समारोह 25 अप्रैल को होगा। ‘बिट्टू’ की कहानी दो बच्चियों बिट्टू और चांद के बारे में है। करिश्मा देव दुबे कहती हैं, “लघु फिल्मों की फिल्मकार बनना कभी-कभार अकेलपान भी लाता है... मैं इसको (‘बिट्टू’ को) मिली पहचान और दर्शकों के लिए बहुत ही आभारी हूं।”

‘बिट्टू’ स्टूडेंट ऑस्कर पहले ही जीत चुकी है। और करिश्मा की झोली में भी ‘पूर्वी क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ एशियाई अमेरिकी स्टूडेंट फिल्मकार का अवार्ड’ आया है। अब ऑस्कर की दौड़ में ‘इंडियन वुमन राइजिंग’ संस्था उनकी मदद कर रही है। ‘इंडियन वुमन राइजिंग’ को गुनीत मोंगा, एकता कपूर और ताहिरा कश्यप खुराना ने इसी वर्ष जनवरी में मिलकर शुरू किया है। इसके पीछे उद्देश्य यह है कि प्रतिभाशाली भारतीय महिला फिल्मकारों को तलाशा जाए और उन्हें प्रोत्साहित किया जाए।

स्वयं एकेडमी की वोटर होने के नाते मोंगा ने ‘बिट्टू’ फिल्म को उस समय देखा था जब इसकी स्टूडेंट ऑस्कर के लिए स्क्रीनिंग की गई थी। वह इस फिल्मपर फिदा हो गईं और तब से ही वह करिश्मा देव दुबे की सहयोगी बन गईं। मजेदार बात यह है किमोंगा, खुराना और कपूर ‘इंडियन वुमन राइजिंग’ को लेकर पिछले वर्ष या उससे पहले से बातें कर रही थीं लेकिन अंततः यह विचार उस समय साकार हुआ जब दुबे अपने ऑस्कर अभियान के समर्थन के लिए इस वर्ष जनवरी में मोंगा से मिलीं।

मोंगा कहती हैं, “जब मैं किसी दूसरे काम पर शोध कर रही थी तो मैंने पाया कि भारतीय महिला फिल्म निर्देशक पांच प्रतिशत से भी कम हैं और इस तथ्य ने निर्माता होने के नाते मुझे आत्ममंथन करने के लिए प्रेरित किया। मैंने इस बारे में ताहिरा से बातचीत की। इसमें उन्होंने बहुत उत्सुकता दिखाई कि हमें इस बारे में कुछ करने की जरूरत है। जब हमने ‘बिट्टू’ देखी, तो यह सब हकीकत में बदल गया और अब हमारा एकमात्र उद्देश्य है विस्तार करना, लोगों के सामने लाना, वितरण करना और उस किसी भी विषय-वस्तु को प्राप्त करना जिसकी कहानी महिलाएं मुख्यधारा में सुनाना चाहती हैं।”


खुराना इससे सहमत हैं। वह कहती हैं, “हमें बहुत प्यार और समर्थन मिल रहा है और हम निश्चय ही अधिक-से-अधिक महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए इसमें पूंजी लगाएंगे।” वह मानती हैं कि मूल रूप से अलग-अलग क्षमताओं वाली तीन महिलाएं इसलिए साथ आई हैं क्योंकि इसका एक ही कारण है और वह है महिलाओं और सिनेमा के लिए उनका प्रेम।

लघु फिल्म‘बिट्टू’ बिहार के एक स्कूल में 2013 की फूड पॉयजनिंग की एक घटना पर आधारित है लेकिन यह फिल्म दर्शकों को इस घटना से परे जाकर एक व्यापक यात्रा पर ले जाती है। दुबे कहती हैं, “मुझे लगता है कि कहीं-न-कहीं अवचेतन रूप से मैं लोगों की जिंदगियों को सम्रगता में चित्रित करना चाहती थी ताकि मैं यह दिखा सकूं किवे वास्तविक लोग हैं और दुखद घटना के मात्र आंकड़े भर नहीं हैं। उनके अपने सपने, रिश्ते और महत्वाकांक्षाएं थीं। मैं भारत जैसे सभी विकासशील देशों के विभिन्न स्थानों से उपजे इस तरह के कठोर नैरेटिव की घिसी-पिटी बातों से परिचित हूं। दर्शक ऐसी फिल्मों से अक्सर जो अपेक्षाएं रखते हैं, मैं चाहती थी कि यह फिल्म उन अपेक्षाओं को उलट कर रख दे।”

घिसी-पिटी बातों को चुनौती देना ही मुख्य ताकत है। खुराना कहती हैं, “हम इस स्टीरियोटाइप को तोड़ना चाहते हैं कि महिलाएं या तो क्रांतिकारी होती हैं या दर्द की दास्तान। लेकिन वह बहुत कुछ इसके बीच में है। हम ऐसी फिल्मों को बनाने, प्रोत्साहित करने और वितरित करने जा रहे हैं जो शानदार हैं। हम किसी को भी खांचों में नहीं रख सकते।”


मोंगा कहती हैं, “मैं पूरी तरह से विश्वास करती हूं कि जब एक महिला आगे बढ़ती है या फिर जब किसी द्वार-दिशा को खोलती है, तो वह अपने साथ पांच और को भी आगे बढ़ाती है। इससे संवाद और समुदाय आकार लेते हैं। मैं स्वतंत्र फिल्मकारों को आगे बढ़ाने की राह पर चलती रही हूं और यह बहुत हद तक एकला चलो जैसा रहा है। लेकिन अब हम एकसमूह हैं जो हलचलों से भरा है और यह सब बहुत जादू जैसा है। एक और एकसे सच में तीन होते है।”

वह कहती हैं, “हम निर्माता नहीं, केवल प्रस्तुतकर्ता हैं। आज अगर लोग ‘बिट्टू’ के बारे में बात कर रहे हैं तो वह इसलिए कि हम उसे लेकर बहुत शोर मचा चुके हैं। यह फिल्म के लिए, करिश्मा और साथ में उन दो प्यारी बच्चियों के लिए बहुत अच्छी बात है। हम बहुत ही विशिष्ट मकसद से एकसाथ आए हैं और वह है इस प्रकार की कहानियों को विस्तार देना।”

दुबे बताती हैं किअध्यापक का किरदार निभाने वाले कलाकार के अलावा उन्होंने इस फिल्म में किसी भी पेशेवर कलाकार को नहीं लिया। वह कहती हैं, “फिल्म की यह मांग थी कि इसमें अभिनय करने वाले इस क्षेत्र से जुड़े हुए हों और आपस में एकअंतरंग रिश्ता रखते हों। मैं इस फिल्म की प्रमाणिकता को बनाए रखना चाहती थी। मैं नहीं समझती कि इस प्रकार का जो अभिनय हमें इन दो बच्चियों से देखने को मिला है, उस प्रकार का अभिनय हमें एक व्यावसायिक रूप से प्रशिक्षण प्राप्तबाल कलाकार दे पाता।”

दुबे को गैर परंपरागत विषयों पर काम करना अच्छा लगता है, विशेषकर उन मुद्दों पर जिनसे समाजकी रूढ़िवादिता जुड़ी हो। दुबे की फिल्में अक्सर महिलाओं के इर्द-गिर्द ही घूमती हैं। वह कहती हैं, “मेरी रुचि मातृ सत्तात्मक समाज बनाने में रहती है। और मैं अक्सर बहुत सारी औरतों को एक कमरे में रखकर असहज विषयों पर चर्चा करवाती हूं। मैं सोचती हूं कि स्त्रियों की एक दुनिया बनाने का अर्थ यह नहीं है कि उसमें से पुरुष या पितृसत्ता को शून्य कर दिया जाए। मैं इस बात की जांच करने में बहुत रुचि रखती हूं कि जब हमें कोई नहीं भी देख रहा हो तो भी महिलाओं के अंदर पितृसत्ता कैसे अपना स्थान बना लेती है।”

इस लेख के लेखक गरिमा सधवानी हैं

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia