संसद में राष्ट्र गान की तरह सुनाई देता है मोदी-मोदी और जय श्री राम के नारे, तो, अब सनातन है पीएम का चुनावी मुद्दा?

अब तो संसद में मोदी-मोदी और जय श्री राम का जयकारा राष्ट्र गान की तरह सुनाई देता है। बस, यही सनातन की परिभाषा है और इस बार प्रधानमंत्री के लिए यही चुनावी मुद्दा है।

फोटो: सोशल मीडिया
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महेन्द्र पांडे

जी20 शिखर सम्मेलन से दो दिन पहले तमाम समाचार चैनलों पर खबर चल रही थी कि प्रधानमंत्री ने अपने मंत्रियों को कहा है कि सनातन के मुद्दे पर विपक्ष को करारा जवाब दें। वैसे भी देश के मंत्रियों – विशेष तौर पर अनुराग ठाकुर, स्मृति ईरानी, राजनाथ सिंह और अमित शाह– का मंत्रिमंडल में यही काम ही है। देश में कोई काम होता नहीं तो फिर विपक्ष पर ही अनर्गल प्रलाप करना पड़ेगा। आज देश की हालत तो यह है कि राहुल गांधी को भी अपने बारे में उतना पता नहीं होगा, जितना मोदी जी के मंत्री-संतरी जानते हैं।

 प्रधानमंत्री ने चीखते हुए, हवा में हाथ लहराते हुए कहा है कि सत्ताजीवी विपक्ष सनातन पर हमले कर देश को फिर से 1000 सालों की गुलामी में धकेलना चाहता है। प्रधानमंत्री जी को जरा यह भी जानकारी देनी चाहिए कि सनातन और गुलामी में सम्बन्ध क्या है, क्योंकि इतिहास में सनातन और गुलामी के सम्बन्ध की जानकारी नहीं है। हरेक बार गुलामी का आरम्भ व्यापार से हुआ है। सनातन और गुलामी का यदि कोई रिश्ता होगा भी तो यह जरूर बताना चाहिए कि सनातन के रहते हुए देश कैसे गुलाम हो गया था और क्यों बन गया था? जहां तक व्यापार का सवाल है तो इस सन्दर्भ में तो हम आज भी गुलाम हैं। हम रूस को कुछ नहीं कहते क्योंकि तमाम रक्षा सौदे पर संकट आ सकता है, चीन को सीधे इसलिए कुछ नहीं कहते क्योंकि वही हमारा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। अमेरिका और भारत हरेक वार्ता में केवल व्यापार की ही बातें करते हैं। हम दूसरे देशों के भले ही प्रत्यक्ष तौर पर गुलाम नहीं हों, पर हमारा बाजार और हमारी रक्षा व्यवस्था निश्चित तौर पर गुलाम है।

सनातन का नाम हाल-फिलहाल में हिन्दू से भी आगे निकल गया है– इसका नाम लेकर अनेक तथाकथित धर्मगुरुओं ने करोड़ों जनता को अपना गुलाम ही तो बना रखा है। यह बात समझ से परे है कि सनातन का प्रहार करते धर्मगुरु भी देश को सनातन राष्ट्र नहीं बल्कि हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहते हैं। सत्ता ने भी 81 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज देकर अपना गुलाम ही तो बनाया है। जनता ही नहीं बल्कि देश की मीडिया और तमाम संवैधानिक संस्थाएं भी तो सत्ता की गुलामी ही कर रही हैं।

 सनातन की अलख जगाते लोग अपने कर्तव्य से कितनी दूर होते हैं, इसका उदाहरण यूनाइटेड किंगडम के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक हैं। सुनक का देश डूब रहा है, अर्थव्यवस्था तबाह हो रही है, रंगभेद हरेक स्तर पर बढ़ रहा है – पर सुनक राम कथा का आयोजन करा रहे हैं, प्रसाद बांट रहे हैं। जी20 शिखर सम्मेलन से तीन दिन पहले ऋषि सुनक के कार्यालय से एक प्रेस नोट जारी कर बताया गया था कि सुनक प्रधानमंत्री मोदी के साथ द्विपक्षीय वार्ता में रूस के विरोध का मुद्दा जोर-शोर उठायेंगे और भारतीय प्रधानमंत्री को रूस से पेट्रोलियम उत्पादों के व्यापार बंद करने को कहेंगे। ऋषि सुनक भारत आये – यहां आकर दामाद बने, सियाराम कहा, अक्षरधाम का भ्रमण किया, पत्नी के साथ हाथ जोड़कर फोटो सेशन कराया – पर वही काम नहीं किया जो उनके कार्यालय द्वारा जारी प्रेस नोट में बताया गया था।


बात जब देश की गुलामी की होती है तो अंग्रेजों से आजादी के लड़ाई के दौरान इंग्लैंड के ध्वज यूनियन जैक का जिक्र बार-बार आता है। लहराते हुए यूनियन जैक को जान हथेली पर रखकर क्रांतिकारी उतार लाते थे। ऐसा कोई आंकड़ा तो नहीं है, पर उस समय के क्रांतिकारियों का जुनून पढ़कर यही लगता है कि आजादी की लड़ाई के दौरान जितने भी क्रांतिकारियों की अंगरेजी हुकूमत ने हत्या की उनमें से सबसे अधिक हत्याएं हवा में लहराते यूनियन जैक को उतारने के दौरान ही की गयी होंगी। हमारे प्रधानमंत्री हमेशा गुलामी के चिह्नों को मिटाने की बात करते हैं – देश का नाम इंडिया नहीं भारत होगा, अंग्रेजों द्वारा बनवाये गए संसद भवन के बदले सनातनी संसद भवन होगा – पर जी20 के अधिवेशन के कुछ पहले से अबतक दिल्ली में तमाम जगह यूनियन जैक शान से लहरा रहे हैं। अधिवेशन के दिनों में तो शायद औपचारिक आवश्यकता होगी, पर इसके बाद भी इनका लहराना बताता है कि गुलामी शब्द का मतलब भी समय के साथ बदल जाता है।

 प्रधानमंत्री विपक्ष, विशेष तौर पर कांग्रेस को, लगातार सत्ताजीवी बताते रहे हैं, तुष्टिकरण की राजनीति की भी चर्चा करते हैं। देश की मीडिया ने अपना काम छोड़ दिया है और देश की जनता किसी नशे वाली नींद में चली गयी है – वर्ना यही सारे विशेषण विपक्ष से अधिक सत्ता पर फिट होते हैं। देश के प्रधानमंत्री और तमाम मंत्री हमेशा चुनावी मिजाज में रहते हैं, संसद में भी चुनावी भाषण देते हैं। अडानी और मणिपुर जैसे मुद्दे पर प्रधानमंत्री जी एकदम खामोश हो जाते हैं।

जी20 के साझा घोषणापत्र को जिस तरह से सत्ता और मीडिया ने प्रचारित किया, वह अभूतपूर्व है। प्रधानमंत्री जी तो इसे चुनावी रैलियों और उद्घाटन समारोहों में भी बता रहे हैं। पर, सत्ता और मीडिया ने इस साझा घोषणापत्र की एक खूबी नहीं बताई, जो निश्चित तौर पर अभूतपूर्व है। जी20 एक आर्थिक मंच है, और इसमें अधिकतर राजनैतिक और सामाजिक समस्याओं पर चर्चा नहीं की जाती है। पर, इस बार के घोषणापत्र में धार्मिक आजादी से संबंधित एक पूरा पैराग्राफ (पैराग्राफ संख्या 78, एक अधिक समावेशी विश्व का निर्माण) जोड़ा गया है। इसके अनुसार “जी20 देश संयुक्त राष्ट्र सामान्य सभा के प्रस्ताव संख्या ए/आरईएस/77/318 का, विशेष तौर पर पर धार्मिक और संस्कृत विविधता, इससे संबंधित वार्ता और सहिष्णुता के सम्मान को बढ़ावा देंगे। धार्मिक और आस्था की आजादी, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, शांतिपूर्ण बैठक और किसी समूह को बनाना – सभी एक दूसरे से जुड़े हैं, एक दूसरे पर निर्भर हैं और एक के बिना दूसरे का अस्तित्व नहीं है, इसलिए कानूनों में इन्हें उचित और प्रभावी स्थान देने की जरूरत है।” घोषणापत्र में कहा गया है कि “हम कड़े शब्दों में किसी व्यक्ति या धर्म के विरुद्ध धार्मिक उन्माद और घृणा की भर्त्सना करते हैं, भले ही यह सांकेतिक हो या फिर धार्मिक ग्रंथों और धार्मिक चिह्नों के अपमान का मामला हो।”

 पूरे घोषणापत्र का यह पैराग्राफ कम से कम हमारे देश में सबसे उपेक्षित पैराग्राफ है, जाहिर है इसमें मानो अपने देश की ही कहानी कही गयी हो। हमारे देश में बहुत सारी समस्याओं की जड़ में सत्ता में शीर्ष पर बैठे लोगों का अति-आत्मविश्वास है। मनोविज्ञान के अनुसार अति-आत्मविश्वास ऐसी अवस्था है, जब किसी व्यक्ति को अपने वास्तविक ज्ञान की सीमा से अधिक ज्ञान होने का अहसास होता है। अति-आत्मविश्वास वाला व्यक्ति सामान्यतया निर्णय लेने और सही-गलत के अंतर में गलतियां करता है, और ऐसा व्यक्ति वैज्ञानिक तथ्यों पर भरोसा नहीं करता। यह अध्ययन हाल में ही नेचर ह्यूमन बिहेवियर नामक जर्नल में पुर्तगाल के अनेक संस्थानों के मनोवैज्ञानिकों ने सम्मिलित तौर पर प्रकाशित किया है। हमारे देश में इस अध्ययन को समझाना कठिन नहीं है, क्योंकि इसका उदाहरण सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोग लगातार प्रस्तुत करते रहे हैं।


देश की आजादी का मतलब तो संसद के हरेक सत्र में हरेक दिन नजर आता है, यह विशेष सत्र में भी नजर आएगा। पिछले सत्र में मणिपुर हिंसा पर अविश्वास प्रस्ताव में तो आजादी के साथ ही प्रजातंत्र की भी धज्जियां उड़ गईं। मणिपुर से संबंधित अविश्वास प्रस्ताव में प्रधानमंत्री और गृह मंत्री समेत पूरे सत्ता पक्ष के वक्तव्यों में बस एक विषय पूरी तरह से गायब था – मणिपुर। उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री या गृह मंत्री अपनी नाकामियों के लिए करुणा रस और फिर स्थितियों को बदलने के लिए वीर रस का वक्तव्यों में उपयोग करेंगे– पर घंटों चले वक्तव्यों में यही दो रस नहीं थे। इसके बदले सत्ता पक्ष के वक्तव्यों में हास्य, भयानक, रौद्र और वीभत्स रस के साथ ही फ्लाइंग किस भी मौजूद था। अब तो संसद में मोदी-मोदी और जय श्री राम का जयकारा राष्ट्र गान की तरह सुनाई देता है। बस, यही सनातन की परिभाषा है और इस बार प्रधानमंत्री के लिए यही चुनावी मुद्दा है।

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