तथाकथित विकसित भारत है बंधुआ मजदूरी में विश्वगुरु, वैश्विक स्तर पर लगभग 5 करोड़ लोग आधुनिक गुलामी की चपेट में

ऑस्ट्रेलिया स्थित वाक फ्री फाउंडेशन हरेक वर्ष ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स प्रकाशित करता है। वर्ष 2023 के इंडेक्स में कुल 160 देशों में भारत का स्थान 34वां था। इस इंडेक्स में पहले स्थान पर उस देश का नाम होता है, जहाँ जबरन मजदूरी सबसे अधिक है।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया
user

महेन्द्र पांडे

इंटरनेशनल लेबर आर्गेनाईजेशन (आईएलओ) के अनुसार आधुनिक गुलामी का दायरा साल-दर-साल बढ़ता जा रहा है और साथ ही इससे जुड़े संस्थानों या संगठनों का मुनाफ़ा भी बढ़ रहा है। 19 मार्च 2024 को प्रकाशित आईएलओ की रिपोर्ट, प्रोफिट्स एंड पावर्टी: द इकोनॉमिक्स ऑफ़ फोर्स्ड लेबर, के अनुसार जबरन मजदूरी या बेगारी में आम जनता को धकेलने वाले संगठनों की वैश्विक स्तर पर अवैध आमदनी 236 अरब डॉलर प्रतिवर्ष तक पहुँच गयी है। इस अवैध आमदनी को श्रमिकों के पास पहुँचना चाहिए, पर यह उनके नियोक्ताओं की जेब में पहुँच जाती है। इस अवैध आमदनी में 73 प्रतिशत हिस्सा श्रमिकों के यौन उत्पीड़न से आता है, जबकि वैश्विक स्तर पर जबरन मजदूरी में फंसे कुल श्रमिको में से 27 प्रतिशत ही संगठित यौन उत्पीड़न का शिकार हैं।

आईएलओ के अनुसार वर्ष 2021 में वैश्विक स्तर पर लगभग 5 करोड़ लोग आधुनिक गुलामी की चपेट में हैं, यानि दुनिया की हरेक 1000 आबादी में से औसतन 3.5 लोग इसकी चपेट में हैं। वर्ष 2016 से 2021 के बीच लगभग 27 लाख नए लोग आधुनिक गुलामी का शिकार हुए। आधुनिक गुलामी के शिकार लोगों में से लगभग 2.8 करोड़ जबरन मजदूरी में और 2.2 करोड़ जबरन शादी में धकेल दिए गए हैं। जबरन मजदूरी में संलग्न आबादी में से 1.7 करोड़ निजी क्षेत्रों में, 63 लाख यौन उत्पीड़न के क्षेत्र में और 39 लाख सरकारी क्षेत्रों में कार्यरत हैं। यौन उत्पीड़न में धकेले गए कुल 63 लाख लोगों में से 49 लाख महिलाएं हैं, जाकी अन्य क्षेत्रों में कुल 60 लाख महिलाएं हैं। जबरन मजदूरी में 12 प्रतिशत संख्या बच्चों की है, जिसमें से आधे से अधिक यौन उत्पीड़न का शिकार हैं। जबरन मजदूरी में फंसे श्रमिकों की सर्वाधिक संख्या, 1.5 करोड़, एशिया-प्रशांत क्षेत्र में हैं जबकि इनका घनत्व सबसे अधिक अरब देशों में है। अरब देशों की प्रति एक हजार आबादी में औसतन 5.3 लोग जबरन मजदूरी में धकेले गए लोगों की है।

इस रिपोर्ट के अनुसार यौन उत्पीड़न के शिकार हरेक श्रमिक से इस कार्य में धकेलने वाले संगठनों को प्रति वर्ष औसतन 27252 डॉलर की अवैध आमदनी होती है, जबकि जबरन मजदूरी में धकेल गए लोगों से उनके नियोक्ताओं को हरेक वर्ष औसतन 10000 डॉलर की अवैध आमदनी होती है। वर्ष 2014 से वर्ष 2021 के बीच इस आमदनी में 37 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज की गयी है। यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक संगठित कारोबार बन गया है और इसमें फंसने वाले श्रमिकों और उनके तथाकथित नियोक्ताओं की आमदनी साल-दर-साल बढ़ती जा रही है।

ऑस्ट्रेलिया स्थित वाक फ्री फाउंडेशन हरेक वर्ष ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स प्रकाशित करता है। वर्ष 2023 के इंडेक्स में कुल 160 देशों में भारत का स्थान 34वां था। इस इंडेक्स में पहले स्थान पर उस देश का नाम होता है, जहाँ जबरन मजदूरी सबसे अधिक है और अंतिम नाम उस देश का होता है जहां यह सबसे कम है। इससे इतना तो स्पष्ट है कि आधुनिक गुलामी के सन्दर्भ में दुनिया के केवल 33 देश हमसे भी अधिक पिछड़े हैं, जबकि 126 देशों में स्थिति हमसे बेहतर है। हमारा देश बंधुआ मजदूरी के सन्दर्भ में एशिया-प्रशांत क्षेत्र के देशों में भी छठे स्थान पर है। वाक फ्री फाउंडेशन के अनुसार भारत में 1.1 करोड़ लोग बंधुआ मजदूर हैं, यानि जबरन मजदूरी में संलग्न हैं, यह संख्या दुनिया के किसी भी देश की तुलना में सर्वाधिक है। यहाँ प्रति एक हजार आबादी में बंधुआ मजदूरों की औसत संख्या 8 है, जबकि वैश्विक औसत 3.5 प्रति 1000 है।


वर्ष 2015 में सयुक्त राष्ट्र में सभी देशों में जबरन मजदूरी या बंधुआ मजदूरी को वर्ष 2030 तक शून्य स्तर पर पहुंचाने का लक्ष्य स्वीकार किया था। हमारे देश में वर्ष 2078 से 31 जनवरी 2023 के बीच 315302 बंधुआ मजदूरों को आजाद कराया गया और इनमें से 296305 को सरकारी मदद देकर पुनर्स्थापित किया गया। इसमें से 31 मार्च 2016 तक कुल 282429 बंधुआ मजदूरों को मुक्ति मिल चुकी थी। पर, इस कार्य में वर्ष 2016 से प्रगति नगण्य हो गयी है। वर्ष 2016 में मोदी सरकार ने बड़े तामझाम से बताया था कि देश में 1.84 करोड़ बंधुआ मजदूर हैं, जिन्हें वर्ष 2030 तक आजाद कराकर समाज में पुनर्स्थापित कर दिया जाएगा। पर, इस ऐलान के बाद कुछ भी नहीं किया गया। वर्ष 2022-2023 के लिए लोकसभा की श्रमिकों के अधिकारों से संबंधित 41वीं स्टैंडिंग कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2016 से 2023 के बीच महज 32873 बंधुआ मजदूर ही आजाद कराये गए हैं और सभी पुनर्स्थापित नहीं किये गए हैं। इन आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2016 के बाद से हरेक वर्ष औसतन 4109 बंधुआ मजदूर ही आजाद कराये गए हैं, इस दर से वर्ष 2030 तक 1.84 करोड़ में से महज 57528 बंधुआ मजदूर मुक्त हो पाएंगे। बंधुआ मजदूरों को मुक्त कराने में सरकार की सुस्ती का आलम यह है कि स्टैंडिंग समिति की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2020-21 में महज 320 मजदूर मुक्त कराये गे, वर्ष 2021-22 में यह आंकड़ा बढ़ कर 1676 तक पहुंचा पर अगले वर्ष 2022-23 में महज 334 मजदूरों को ही मुक्ति मिल सकी। जाहिर है, बंधुआ मजदूरों की समस्या और संख्या जानने के बाद भी मुक्ति दिलाना सरकार की प्राथमिकता नहीं है।

वाक फ्री फाउंडेशन की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 1.1 करोड़ बंधुआ मजदूर हैं, पाकिस्तान में 23 लाख, चीन में 58 लाख और उत्तर कोरिया में 26 लाख बंधुआ मजदूर हैं। जी20 समूह के देश, जो दुनिया में सबसे अमीर हैं और जिसकी वर्ष 2023 में अध्यक्षता का डंका आज भी मोदी सरकार बजाती है, दुनिया में बंधुआ मजदूरी को बढ़ा रहा है और दुनिया के कुल बंधुआ मजदूरों में से 50 प्रतिशत से अधिक इन्हीं देशों में कार्यरत हैं। चीन में 58 लाख, रूस में 19 लाख, इंडोनेशिया में 18 लाख, तुर्की में 13 लाख और अमेरिका में 11 लाख बंधुआ मजदूर हैं। यही नहीं, जी20 के भारत समेत दूसरे देश भी दूसरे देशों से ऐसे उत्पादों या प्राकृतिक संसाधनों का बड़े पैमाने पर आयात करते हैं, जिनमें बंधुआ मजदूरों से काम करवाया जाता है। अनुमान है कि ऐसे उत्पादों और संसाधनों का जी20 देशों में कारोबार लगभग 50 करोड़ डॉलर प्रति वर्ष का है।

वाक फ्री फाउंडेशन द्वारा प्रकाशित ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स 2023 के अनुसार दुनिया का कोई भी देश ऐसा नहीं है जो बंधुआ मजदूरी से पूरी तरह मुक्त हो। दुनिया में सबसे कम बंधुआ मजदूर (प्रति एक हजार आबादी) स्विट्ज़रलैंड में हैं, इसके बाद क्रम से नॉर्वे, जर्मनी, नीदरलैंड्स, स्वीडन, डेनमार्क, बेल्जियम, आयरलैंड, जापान और फ़िनलैंड का स्थान है। बंधुआ मजदूरों के प्रति एक हजार आबादी में घनत्व के सन्दर्भ में सबसे आगे उत्तर कोरिया है, इसके बाद के देश क्रम से एरिट्रिया, मॉरिटानिया, सऊदी अरब, तुर्की, ताजीकिस्तान, यूनाइटेड अरब अमीरात, रूस, अफ़ग़ानिस्तान और कुवैत हैं। इंडेक्स में पहले स्थान पर उत्तर कोरिया है और अंतिम स्थान पर स्विट्ज़रलैंड।

दुनिया में लगातार प्रजातंत्र का हनन किया जा रहा है और निरंकुश शासन का जोर बढ़ता जा रहा है। निरंकुश सत्ता हमेश पूंजीपतियों के इशारे पर काम करती है। बंधुआ मजदूरी का कारण भले ही वैश्विक अराजकता, युद्ध, जलवायु परिवर्तन और सामाजिक असमानता को बताया जा रहा हो, पर इन सभी समस्याओं के मूल में पूंजीवाद ही है। आधुनिक गुलामी, पूंजीवाद का एक प्रमुख स्तम्भ है और पूंजीवाद के साथ ही इसका भी प्रसार होता जा रहा है। राजनैतिक और सामाजिक स्तर पर भले ही पूरे विश्व में, विशेष तौर पर यूरोप में, गुलामी की जंजीरों को तोड़ने की बात की जा रही हो पर तथ्य यह है कि आधुनिक गुलामी से सबसे अधिक मुनाफ़ा यूरोप और मध्य एशियाई देशों को हो रहा है। हमारे देश में 81 करोड़ से भी अधिक लोगों को सरकार बेहद गरीब बता कर मुफ्त अनाज दे रही है, जाहिर है इस संख्या में देश के 1.84 करोड़ बंधुआ मजदूर शामिल नहीं हैं। यानि बेहद गरीब से अधिक गरीब देश की लगभग 2 करोड़ आबादी है। यह उस देश का हाल है जो दिनरात पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का राग अलापता है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि स्वघोषित विश्वगुरु भारत, बंधुआ मजदूरी के सन्दर्भ में वास्तविक विश्वगुरु है।

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia