विशेष: हिंदी दिवस के ‘जलसों’ का सुख

भारत में भी काफी गैर-हिंदी लोग बोली समझते हैं, पर देवनागरी में पढ़ नहीं पाते। उन्हें भी रोमन हिंदी समझ में आती है। इसके अलावा मस्ती और मनोरंजन की हिंदी है। हिमा दास या जिनसन जॉनसन से मीडिया हिंदी में बात करता है।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया
user

प्रमोद जोशी

हिंदी के नाम पर हम दो दिन खासतौर से मनाते हैं। एक हिंदी पत्रकारिता दिवस, जो 30 मई 1826 को प्रकाशित हिंदी के पहले साप्ताहिक अख़बार ‘उदंत मार्तंड’ की याद में मनाया जाता है। दूसरा हिंदी दिवस, जो संविधान में हिंदी को संघ की राजभाषा बनाए जाने के प्रस्ताव की तारीख 14 सितम्बर 1949 की याद में मनाया जाता है। इस पखवाड़े सभाएं, गोष्ठियां, कवि सम्मेलन वगैरह होते हैं। दुशाले वगैरह चढ़ाए जाते हैं। यह हिंदी के बारे में ‘दो शब्द’ कहने का समय है।

इन दोनों के अलावा कुछ हिंदियां और हैं। ‘पैन-इंडियन भाषा’ के रूप में विकसित हो रही हिंदी और ‘ग्लोबल हिंदी’। खाड़ी के देशों, अमेरिका और यूरोप में भारत और पाकिस्तान से गए लोग हिंदी, हिंदुस्तानी या उर्दू बोलते हैं। उनका वाक्य-विन्यास और शब्दावली काफी कुछ एक है, लिपि का फर्क है। इसका समाधान किया रोमन हिंदी ने।

भारत में भी काफी गैर-हिंदी लोग बोली समझते हैं, पर देवनागरी में पढ़ नहीं पाते। उन्हें भी रोमन हिंदी समझ में आती है। इसके अलावा मस्ती और मनोरंजन की हिंदी है। तीनों सेनाओं के अंदरूनी इस्तेमाल और खेल के मैदान की हिंदी है। हिमा दास या जिनसन जॉनसन से मीडिया हिंदी में बात करता है।

सभी हिंदियां एक जैसी नहीं हैं। बढ़ती साक्षरता के साथ पाठ्य पुस्तकों वाली ‘शुद्ध हिंदी’ का भी दायरा बढ़ा है। पत्रकारिता की हिंदी भी लम्बे अर्से तक मानक हिंदी के करीब थी, पर वह भी बदल रही है। रोमन हिंदी को लेकर शुद्धतावादी मुंह बिचकाते हैं, पर उसके लोकप्रिय होने की भी वजह है, जिसे झुठला नहीं सकते।

हाल में 2011 की जनगणना आंकड़ों का विश्लेषण जारी हुआ है। इसका निष्कर्ष है कि हिंदी भारत की सबसे तेजी से बढ़ने वाली भाषा है। 2001 से 2011 के बीच के दस सालों में हिंदी बोलने वाले लोगों संख्या में करीब 10 करोड़ की वृद्धि दर्ज की गई है। देश में सबसे ज्यादा करीब 52 करोड़ लोग हिंदी बोलते हैं। दूसरी भाषा के रूप में भी यह सबसे आगे है।

तमिलनाडु और केरल जैसे दक्षिण भारतीय राज्यों में भी हिंदी बोलने वालों की संख्या तेजी से बढ़ी है। इन दोनों राज्यों में हिंदी, असमिया और उड़िया बोलने वाले लोगों की तादाद में 33 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। इन दोनों राज्यों में ही नहीं दक्षिण के शेष तीनों राज्यों में उत्तर से जनसंख्या-प्रवाह बढ़ा है। यह बात रोज़गार की तलाश में होने वाले पलायन को रेखांकित करती है, जो भाषाओं के प्रसार का एक बड़ा कारण है।

जो लोग रोज़गार के लिए दक्षिण भारत जा रहे हैं, उनकी भाषा कोई भी हो, उनसे दक्षिण भारतीयों के और उनके आपसी संवाद की भाषा भी हिंदी है। बेंगलुरु में एक बंगाली को तमिलभाषी से बात करनी होती है, तो वह हिंदी में बोलता है। यह बात मजदूर तबके के संदर्भ में है, जो अंग्रेजी नहीं जानते। अंग्रेजी जानने वाले भी टैक्सी ड्राइवरों, सब्जी वालों, दुकानदारों और सिक्योरिटी गार्ड से हिंदी में बात करते हैं।

बेंगलुरु में घरों में काम करने वाली घरेलू सहायिकाएं अब हिंदी बोलने लगी हैं, क्योंकि उन घरों में उन्हें ज्यादा पैसे वाला काम मिलने लगा है। सॉफ्टवेयर उद्योग के कारण काफी हिंदीभाषी टेकी अब दक्षिण के राज्यों में काम कर रहे हैं। यह संयोग नहीं है कि हैदराबाद, बेंगलुरु और चेन्नई से हिंदी अखबार छपने लगे हैं।

हिंदी के प्रसार का यह एक पहलू है। इसके साथ जुड़े कुछ दूसरे पहलू भी हैं। हिंदी के जिस रूप को हम देख रहे हैं वह 150 से 200 साल पुराना है। ‘उदंत मार्तंड’ की और आज की हिंदी में काफी बदलाव आया है। उस स्वरूप की बुनियाद फोर्ट विलियम कॉलेज की पाठ्य-पुस्तकों से पड़ी। उन्नीसवीं सदी में लल्लू लाल, सदल मिश्र, मुंशी सदासुख लाल, इंशा अल्ला खान और शिव प्रसाद ‘सितारे हिन्द’, भारतेन्दु हरिश्चंद्र और फिर बीसवीं सदी में प्रेमचंद, महावीर प्रसाद द्विवेदी से लेकर गोपाल राम गहमरी और मैथिली शरण गुप्त तक ने भाषा को शक्ल दी।

साठोत्तरी पीढ़ी ने हिंदी में ‘दिनमान’ के मार्फत खबरों का संसार देखा। सन 1983 में ‘जनसत्ता’ भाषा के नए संस्कारों के साथ आया। इसके एक दशक के भीतर टेलीविज़न क्रांति हो गई। सबसे पहले ‘ज़ी टीवी’ ने अंग्रेजी शब्दों को मिलाकर हिंदी पेश की तो बहुत से लोगों को नागवार गुज़री।

अंग्रेज़ी अपने लचीलेपन के कारण दुनिया में अपनी जगह बना सकी। हिंदी का ‘पैन-इंडियन’ स्वरूप वही नहीं होगा, जो इलाहाबाद या वाराणसी में है। मानक भाषा और काम-चलाऊ भाषा एक नहीं होती। हिंदी के इस रोचक बदलाव को ऐतिहासिक दृष्टि से देखना चाहिए। नई प्रवृत्ति के उभरने पर न तो घबराना चाहिए और न यह मान लेना चाहिए कि यह अंतिम सत्य है।

बोलचाल की भाषा और गूढ़ विषयों की भाषा को एक नहीं किया जा सकता। भौगोलिक दायरा बढ़ेगा तो बोलचाल की भाषा भी कई किस्म की होगी। सड़क के भैये और अध्यापक की भाषा एक जैसी नहीं होगी। चैनल और अखबार की भाषा भी एक जैसी नहीं होगी। दो चैनलों की भाषा का अंतर भी उनके बाज़ार के फर्क से तय होगा। आज नहीं तो दस साल बाद यह फर्क आएगा।

हिंदी का एक राजनीतिक सत्य भी है। कुछ साल पहले एक अंग्रेजी दैनिक के सम्पादक ने मुझसे कहा कि हिंदी अखबार बहुत ज्यादा ‘पावरफुल’ हैं। सच है कि हिंदी पावर देती है। दूसरा सच है कि हिंदी वाले ‘पावरफुल’ नहीं हैं। हिंदी आपको शिखर पर पहुंचाती है, पर वह नीचे ही खड़ी रहती है। ऊपर जाने के लिए आपको अंग्रेजी की मदद चाहिए, जो देश के अभिजात्य की भाषा है। बौद्धिक-कर्म की भाषा भी हिंदी नहीं है। वह गरीबों की भाषा है। हिंदी में ज्ञान-विज्ञान, दर्शन, राजनीति, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, विज्ञान, कलाओं और ऐसे ही विषयों पर सामग्री चाहिए। वह तभी होगी, जब उसका बाजार होगा।

हिंदी को जिस किस्म के शब्दकोशों और विश्वकोशों की जरूरत है, वे उपलब्ध नहीं हैं। मसलन, ऑक्सफर्ड इंग्लिश डिक्शनरी को लें, जिसमें हर साल हजारों नए शब्द जोड़े जाते हैं। अपने आप में यह एक विशाल काम है। इस डिक्शनरी के दो संस्करण निकल चुके हैं। पहला 1928 में निकला था और दूसरा 1989 में। तीसरे संस्करण पर काम चल रहा है और सब ठीक रहा तो वह सन 2037 तक पूरा हो जाएगा। बताया जाता है कि तीसरा संस्करण ऑनलाइन होगा, शायद छपेगा नहीं।

इसी तीसरे के छोटे-छोटे संस्करण आप अलग नाम से देखते हैं। इस डिक्शनरी को दुबारा टाइप करना पड़े तो एक व्यक्ति को 120 साल लगेंगे। प्रूफ पढ़ने में 60 साल। इस शब्दकोश को इस तरह तैयार किया गया था कि इसमें अंग्रेजी भाषा के इतिहास में जितने शब्द इस्तेमाल में आए, उन्हें इसमें शामिल कर लिया जाए। फिर भी इसमें सन 1150 तक प्रयोग से बाहर हो चुके शब्द शामिल नहीं हैं।

यह एक विशाल आयोजन है जिसमें शास्त्रीय शब्दों के साथ-साथ बोल-चाल के शब्द और अपशब्द (स्लैंग) भी शामिल हैं। हिंदी में इस किस्म का कोई काम किसी स्तर पर भी हो रहा है या नहीं, मुझे जानकारी नहीं। हिंदी से जुड़े तमाम मसलों पर बात करने की जरूरत है। हिंदी दिवस जैसे सालाना जलसों से हम संतुष्ट हैं और रहेंगे।

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia