पीएम और राष्ट्रपति की अनबन के चलते नहीं रोके जा सके श्रीलंका धमाके, सूचनाओं को लेकर क्या सतर्क है भारत !

करीब तीन दशक तक चले तमिल-गृहयुद्ध के बाद उम्मीद थी कि श्रीलंका के निवासी जातीय-सांप्रदायिक आधारों पर अपने आपको बांटने के बजाय सामूहिक सुख-समृद्धि के रास्ते तैयार करेंगे। इन कोशिशों को तोड़ने के प्रयास अब फिर से शुरू हो गए हैं।

फोटोः सोशल मीडिया
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प्रमोद जोशी

सीरिया में पिटाई के बाद लगता था कि इस्लामिक स्टेट (आईएस) कहीं न कहीं सिर उठाएगा। श्रीलंका में रविवार को हुई हिंसा की जिम्मेदारी लेकर उसने इस बात को साबित किया है। अभी तक दक्षिण एशिया उसके निशाने से बचा हुआ था। वैसे 2016 में बांग्लादेश की घटनाओं के बाद कहा गया था कि वहां इस्लामिक स्टेट जड़ें जमा रहा है। कश्मीर घाटी में अक्सर उसके काले झंड नजर आते हैं। फिर भी इस्लामिक स्टेट के खतरे को बहुत गंभीरता से नहीं देखा गया।

श्रीलंका की हिंसा भारत के लिए ही नहीं दक्षिण एशिया के सभी देशों के लिए चेतावनी है। श्रीलंका में तकरीबन दस साल से चली आ रही शांति जिस भयानक हत्याकांड से भंग हुई है, वह समूचे भारतीय उपमहाद्वीप के लिए खतरे की घंटी है। दुनिया की सबसे बहुरंगी-बहुल संस्कृति वाला समाज इसी इलाके में रहता है।

करीब तीन दशक तक चले तमिल-गृहयुद्ध के बाद उम्मीद थी कि श्रीलंका के निवासी जातीय-सांप्रदायिक आधारों पर अपने आपको बांटने के बजाय सामूहिक सुख-समृद्धि के रास्ते तैयार करेंगे। इन कोशिशों को तोड़ने के प्रयास अब फिर शुरू हो गए हैं।

बहरहाल श्रीलंका की प्रशासनिक-व्यवस्था ने इस हिंसा के बाद संभावित टकराव को रोकने में सफलता हासिल की है। श्रीलंका में सांप्रदायिक टकराव का लंबा इतिहास है। लिट्टे के आंदोलन के दौरान भी मुसलमानों पर हमले हुए थे। हाल के वर्षों में बौद्ध समूहों ने भी उन पर हमले किए हैं। क्राइस्टचर्च और दुनिया के दूसरे इलाकों की घटनाओं के उदाहरण देते हुए भी मुसलमान युवकों को भड़काया जा सकता है।

दुनिया में वहाबी विचार का प्रचार भी मुसलमानों के एक तबके को प्रभावित कर रहा है, पर श्रीलंका के ही नहीं पूरे दक्षिण एशिया के मुसलमानों की मुख्यधारा इस किस्म के टकरावों के पक्ष में नहीं है। फिलहाल पहली जरूरत इस बात की है कि समुदायों के बीच वैमनस्य न बढ़े, वे एक-दूसरे के करीब आएं।


इस्लामिक स्टेट का हाथ

ईस्टर संडे को हुए बम धमाकों की जिम्मेदारी पहले दो रोज किसी समूह ने नहीं ली थी। तीसरे रोज दाएश की समाचार एजेंसी अमाक ने दावा किया कि ये धमाके उनकी प्रेरणा से किए गए हैं। इसके पहले सरकार ने कहा था कि शक की सूई नेशनल जमाते तौहीद (एनजेटी) पर है। लेकिन यह समझने में दिक्कत हो रही थी कि यह संगठन ईसाई गिरजाघरों और विदेशियों पर हमले क्यों करेगा।

हालांकि यह संगठन आक्रामक है, लेकिन इस पर इस किस्म की हिंसा के आरोप नहीं लगे हैं। मूलतः इसकी सिंहली बौद्धों से नाराजगी है। दस रोज पहले सरकार के पास सूचना थी कि देशभर में और भारतीय उच्चायोग पर हमले हो सकते हैं, फिर भी एहतियातन कुछ किया नहीं गया। जैसे-जैसे इस मामले की जांच आगे बढ़ रही है, वैसे-वैसे कुछ हैरतंगेज जानकारियां सामने आ रही हैं।

मसलन विस्फोट करने वाले आत्मघातियों का जो विवरण सामने आ रहा है, उनमें, एक को छोड़, किसी के खिलाफ पहले आपराधिक मामले दर्ज नहीं हैं। कोलंबो के शांग्रीला होटल में विस्फोट करने वाला व्यक्ति तो देश के अमीर कारोबारी घराने से ताल्लुक रखता है।

अंतरराष्ट्रीय साजिश

इसके पहले दक्षिण एशिया में सक्रिय किसी आतंकी संगठन ने श्रीलंका को निशाना नहीं बनाया था। इस बार क्यों? संभव है कि तौहीद को इस्लामिक स्टेट ने अपने साथ जोड़ा हो, पर क्यों? इस संगठन से मिलते-जुलते नाम का एक और संगठन देश में है, श्रीलंका तौहीद-जमात। इस संगठन ने इस कांड की न केवल निंदा की है, बल्कि इस मौके पर रक्तदान के लिए आगे भी आया है।

कनाडा के इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक डायलॉग के श्रीलंका मूल के एक विशेषज्ञ अमरनाथ अमरसिंघम का कहना है कि टारगेट के चयन, हमले के प्रकार और दूसरे तत्वों को देखते हुए लगता है कि इसका नियंत्रण कहीं बाहर से हो रहा था। यह स्थानीय समूहों के बस की बात थी ही नहीं। श्रीलंका में ईसाइयों और मुसलमानों के बीच टकराव है ही नहीं।


अमरसिंघम का कहना है कि 2014-16 में जब इस्लामिक खिलाफत का संग्राम चल रहा था, तब श्रीलंका से 32 नौजवान लड़ने के लिए सीरिया गए थे। शायद इस लड़ाई से वापस लौटने वाले लोग ही इसके पीछे हैं। साइट इंटेलिजेंस ग्रुप से जड़ी रीटा काट्ज ने अपने ट्वीटों की श्रृंखला में उन तथ्यों को जोड़ा है, जिनसे साफ हो रहा था कि इसके पीछे दाएश का हाथ है।

बहरहाल इस मामले ने भारत की चिंता बढ़ा दी है। सवाल है कि श्रीलंका का आतंकी गिरोह भारतीय उच्चायोग को निशाना क्यों बनाना चाहता था? भारतीय चुनाव के माहौल को देखते हुए यह घटना महत्वपूर्ण हो गई है। इस इलाके के देशों को अब बेहतर समन्वय की जरूरत होगी।

इस खूंरेजी के साथ-साथ यह बात भी जाहिर हुई है कि देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के बीच की अनबन के कारण सूचनाओं का आदान-प्रदान भी नहीं हुआ। देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों का कहना है कि हमले की खुफिया सूचना थी, तो हमें किसी ने नहीं बताया।

जानकारी थी, फिर भी...

इन सिलसिलेवार बम धमाकों के बाद 321 या इससे भी ज्यादा लोगों के मरने की खबरें हैं। श्रीलंका की सरकार के भीतर अब इस बात को लेकर चर्चा है कि इंटेलिजेंस एजेंसियों को जब पहले से इन हमलों की जानकारी थी, तब एहतियातन कार्रवाई क्यों नहीं की गई? रविवार को ही श्रीलंका के दूरसंचार मंत्री हरीन फर्नांडो ने अपने ट्वीट में 11 अप्रैल को जारी खुफिया संगठन की सूचना की तस्वीर लगाई, जिसमें इस किस्म के हादसे का अंदेशा व्यक्त किया गया था।

इसके अनुसार एक डीआईजी प्रियलाल दसनायके ने लिखा था कि राष्ट्रीय तौहीद जमात (जमा’त-अत-तौहीद अलवतनिया) नामक संगठन देशभर में हिंसक हमले करने की योजना बना रहा है। पुष्टि भी हुई है कि भारतीय खुफिया एजेंसियों ने भी श्रीलंका को सूचना दी थी कि वहां हिंसक कार्रवाई हो सकती है। गिरजाघरों के अलावा भारतीय उच्चायोग पर हमले का अंदेशा भी था। सिनैमॉन ग्रैंड होटल से गिरफ्तार एक व्यक्ति छह महीने से लापता था। उसके परिवार को उसके बारे में जानकारी नहीं थी।

राजनीतिक अंतर्विरोध

प्रधानमंत्री रानिल विक्रमासिंघे ने कहा है कि हमलों की पहले से जानकारी थी, पर मुझे नहीं दी गई। श्रीलंका में सुरक्षा बल राष्ट्रपति के अधीन काम करते हैं। यानी कि देश की आंतरिक राजनीति में पिछले कुछ महीनों से टकराव चल रहा है। राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना और प्रधानमंत्री रानिल विक्रमासिंघे का टकराव अब भी जारी है।


रक्षामंत्री रूवन विजयवर्धने ने पहले रोज ही कहा कि हमलावरों की पहचान हो गई है। ज्यादातर विस्फोटों में आत्मघाती बमबारों का हाथ था। कम से कम सात विस्फोट में एक या एक से ज्यादा आत्मघाती बमबार शामिल थे। सुरक्षा बलों ने पहले रोज ही आठ लोगों को गिरफ्तार करने का दावा किया था। उसके अगले दिन बड़ी संख्या में गिरफ्तारियां और हुईं। सरकार ने सोशल मीडिया पर फौरन रोक लगाई है।

पिछले साल मार्च में देश के कुछ इलाकों में सांप्रदायिक हिंसा हुई थी। कई जगहों पर बौद्धों की भीड़ ने मुसलमानों की मस्जिदों, दुकानों और घरों पर हमले किए थे। देश की 2.2 करोड़ की आबादी में करीब 65 से 70 फीसदी सिंहली बौद्ध हैं और करीब 20 फीसदी तमिल। दस फीसदी से कम मुसलमान हैं और करीब सात फीसदी ईसाई। ईसाइयों में तमिल और सिंहली दोनों शामिल हैं। चूंकि हमले ईस्टर के रोज खासतौर से चर्चों पर हुए हैं, इसलिए लगता है कि निशाने पर ईसाई थे। दूसरा निशाना होटलों में रहने वाले विदेशी थे।

क्या है तौहीद जमात

जमा’त-अत-तौहीद अलवतनिया का अर्थ है राष्ट्रीय एकता समूह। यह ग्रुप अपनी समझ वाली इस्लामिक विचारधारा का प्रचार करता है। यह 2014 में बना है। इसका लक्ष्य वैश्विक जेहादी विचारों का श्रीलंका में प्रसार करना है। इसकी हिंसक प्रवृत्तियों को देखा जाए, तो यह बौद्ध हिंसा के प्रतिरोध में खड़ा है। सवाल है कि इसका निशाना गिरजाघर क्यों बनेंगे? श्रीलंका के मुसलमानों के अनेक संगठन इसकी भर्त्सना करते रहे हैं। इस संगठन के खड़े होने के पीछे एक कारण श्रीलंका के बौद्ध ग्रुपों के हिंसक हमलों की प्रतिक्रिया है।

बौद्ध चरमपंथी समूहों का अध्ययन करने वाले ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन, मुंबई के अध्येता कबीर तनेजा के अनुसार यह समूह बौद्ध हिंसा के जवाब में उभरा था। यह ज्यादा से ज्यादा बौद्ध प्रतिमाओं को तोड़ता-फोड़ता रहा है। नई दिल्ली के सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के ब्रह्म चेलानी के अनुसार तौहीद जमात नाम का एक ग्रुप तमिलनाडु में भी है। कुछ दूसरे देशों में भी जहां श्रीलंकाई मूल के लोग रहते हैं, इसी नाम के समूह हैं। बहरहाल इन समूहों के बीच संपर्कों को लेकर अनुमान लगाने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। हां, यह लगता है कि इस समूह से युवा वर्ग जुड़ा है और मदरसों से निकलने वाले नए छात्र इसमें शामिल हैं।

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Published: 27 Apr 2019, 8:18 PM