डर के साए में स्टैंड-अप कॉमेडियन, लेकिन सबसे बड़ा सवाल- समाज और सत्ता हास्य से डर जाए तो...

हम्मद हुसैन का परिवार और उनके रिश्तेदार लगातार उन पर दबाव बना रहे हैं कि वह बतौर स्टैंड-अप कॉमेडियन अपने कॅरियर को अलविदा कह दें। परिवार जन हुसैन की हिफाजत को लेकर खौफ जदा हैं।

फोटो: सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

हम्मद हुसैन का परिवार और उनके रिश्तेदार लगातार उन परदबाव बना रहे हैं कि वह बतौर स्टैंड-अप कॉमेडियन अपने कॅरियर को अलविदा कह दें। परिवारजन हुसैन की हिफाजत को लेकर खौफजदा हैं। यह बात वह स्वयं भी स्वीकार करते हैं कि वह भी बहुत डरे हुए हैं। वह कनाडा चले जाने का मन बना रहे हैं। वह कहते हैं, “मैं कभी भी इंडिया से बाहर नहीं जाना चाहता था। मैं तो इंडिया से बाहर पढ़ना भी नहीं चाहता था। मैं इस देश से बहुत प्यार करता हूं। लेकिन जिस तरह से चीजें एक रुख ले रही हैं, वह बहुत ही डरावना है। मामला केवल मेरी अभिव्यक्ति की आजादी का नहीं है, मामला मेरे वजूद का भी है। मैं ऐसी परिकल्पना पर चल रहा हूं कि शायद मेरा सामाजिक-आर्थिक रुतबा इन सब चीजों के कारण होनेवाले नुकसान को कहीं-न-कहीं थाम लेगा और मुझे हमेशा अपने विशेषाधिकारों को लेकर सचेत रहना पड़ेगा।”

1 जनवरी, 2021 को इंदौर में अपने कार्यक्रम के दौरान 29 वर्षीय स्टैंड-अप कॉमेडियन मुनव्वर फारूकी को गिरफ्तार किया गया था। उनके खिलाफ किसी भी तरह के सबूत नहीं होते हुए भी उन्हें पूरे तीस दिन पुलिस हिरासत में रखा गया। हुसैन कहते हैं, “जिस प्रकार के चुटकुले (जॉक्स) मुनव्वर बनाता है, ऐसे चुटकुले लिखने और बोलने के लिए बहुत दम चाहिए। ये जो दक्षिण पंथी प्रोपेगेंडा (दुष्प्रचार) वीडियोज होते हैं, तो ये कोई भी चुटकुला या वक्तव्य कहीं से भी उठा लेते हैं। मुझे यह समझ में नहीं आता है कि उस वीडियो में ऐसा क्या था जो लोगों को इस हद तक नागवार गुजर गया क्योंकि उसने (मुनव्वर ने) तो उस वीडियो को अपनी गिरफ्तारी सेछह माह पहले ही हटा लिया था। और ये इंदौरवाला शो तो शुरू भी नहीं हुआ था।”

वह अफसोस के साथ आगे कहते हैं, “सबसे बड़ा चुटकुला तो यही है कि लोग सोचते हैं कि मुनव्वर जेल में एक चुटकुले की वजह से गया था। कम-से-कम मुनव्वर के बारे में तो हैशटेग था, बाकी पांच लोग भी जेल में थे लेकिन उनके नाम पर तो कुछ भी नहीं आया।” हुसैन की बात से इत्तफाक रखते हुए दिल्ली में रहने वाले एक और स्टैंड-अप कॉमेडियन मोहम्मद अनस कहते हैं, “चीजें जिस स्तर तक पहुंच गई हैं, उन्हें देखकर हंसी आती है। बस यूं ही, कहीं कोई एक आदमी फैसला कर लेता है कि चलो एक मजाक किया जाए और कहीं किसी की जिंदगी मुश्किल में आ जाती है। कोई जब इस कहानी के बारे में सुनता है तो वह किसी और कॉमेडियन (हास्य कलाकार) के शो में जाता है और बिल्कुल वैसे ही किसी और को मुश्किल में डाल देता है। आखिर वे ऐसा क्यों न करें? क्योंकि वे इसे एक ऐसी व्यवस्था के रूप में देखते हैं जहां उन्हें सुना भी जा रहा है और गंभीरता से लिया भी जा रहा है।” वह हंसते हुए कहते हैं कि यह सब उन्हें टॉम क्रूज की एक फिल्म की याद दिलाता है और बिडंबना है कि उसका नाम ‘माइनॉरिटी रिपोर्ट’ था।


जब हास्य कलाकारों पर उनके लाइव शो के दौरान हमला किया जाता है तो हम ऐसा मानते हैं कि यूट्यूब और इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ऐसे कलाकारों को सुरक्षा देंगे। हालांकि हुसैन इससे सहमत नहीं हैं। उनका मानना है कि लोग भूल जाएंगे कि एक लाइव शो के दौरान क्या हुआ था या फिर अगर किसी को बुरा लगा भी हो तो इसके सबूत नहीं होंगे। लेकिन सोशल मीडिया के मामले में ऐसा नहीं होता है। वहां चीजों की पहुंच बहुत ज्यादा होती है, इसीलिए खतरा स्थायी होता है। वह कहते हैं, “मैंने एक बार किसी प्रसिद्ध हस्ती (सेलिब्रिटी) के साथ कोई कार्यक्रम किया था लेकिन किसी एक को कहीं कुछ अच्छा नहीं लगा। मुझे उसको हटाना पड़ा लेकिन रील वहीं है और दुनिया उसे देख चुकी है।”

एक और हास्यकलाकार हैं शाद शफी। वह 2013 से कॉमेडी कर रहे हैं। उनका कहना है कि कॉमिक्स के लिए अभी कोई अच्छा समय नहीं है। वह कहते हैं, “किसी लाइव शो के दौरान अगर कोई व्यक्ति आप से नाखुश या आहत होता है तो वह वहां होता है। यह असुरक्षित तो होता है लेकिन ऑनलाइन के मामले में आपको देखनेवाले लोगों की संख्या बहुत अधिक होती है इसलिए आपको ट्रोल करनेवाले लोगों की संख्या भी बहुत अधिक होती है औरयह अधिक कटु होता है।”

ये सभी लोग मानते हैं कि सोशल मीडिया के पास कोई उम्मीद की छड़ी नहीं है और न ही ये हल्की-सी भी गलती करने की जगह है। हुसैन सब बातों को समेटते हुए कहते हैं, “वे(सोशल मीडिया) इंद्रधनुषी उदारता और दक्षिणपंथी भगवा झंडों को एक साथ पोषण देते हैं।”


एक और चीज है जिस परइन तीनों हास्य कलाकारों का दृढ़ विश्वास है और वह यह है कि भारत में कॉमेडी सर्किटआपको स्थान भी देता है और यह समावेशी भी है। अनस कहते हैं कि यह सबसे उदारवादी भीड़ होती है। वह कहते हैं, “हास्य (कॉमेडी) हमेशा बहुत सारे मतों को एक साथ पनपने और बढ़ने का मौका देता है। बस, शर्त यह है कि वे (विभिन्न मत) अपनी फितरत में प्रतिगामी नहीं हों। और अगर कोई चीजों को लेकर कट्टरन हो तो हर मत को प्रशंसा मिलती है।” शाद कहते हैं, “मैं देख सकता हूं कि हर कोई एक सजग कोशिश कर रहा है कि कॉमेडी सर्किट को एक सुरक्षित जगह बनाया जा सके।” हास्य के क्षेत्र में अपने तजुर्बे के हवाले से हुसैन कहते हैं, “यह समुदाय आपके लिए है। हो सकता है कि इसमें हर एक व्यक्ति न हो लेकिन फिर भी बहुत सारे लोग हैं। यही तो लोकतंत्र है, है ना? अधिकांश लोग आपके लिए लड़ने को तैयार हैं।”

उनके सामने सबसे बड़ी मुसीबत उनकी मुस्लिम पहचान है। फिर भी हुसैन कहते हैं, “मैं हमेशा शुरुआत कुछ मुस्लिम चुटकुलों से करता हूं क्योंकि मैं चाहता हूं कि कमरे में बैठे श्रोता यह जान जाएं कि वे सामने किसे देख रहे हैं। लेकिन मुझे तब अच्छा नहीं लगता जब कोई अपरिपक्व हास्य कलाकार/मेजबान हमारा परिचय देते समय कहते हैं, ‘अब हमारा अगला कॉमिक (हास्य कलाकार) एक मुस्लिम है और वह आज की रात हमें उड़ा देने वाला है (बॉम)।’ मैं जानता हूं कि वे हमें चोट नहीं पहुंचाना चाहते; बस, एक हल्का-सा मजाक करतेहैं।” फिर भी...।

शाद को सामने मौजूद एक ज्यादा बड़े मुद्दे की चिंता है। वह कहते हैं, “मैं सोचता हूं, हम सच में एक ढलान पर हैं। आज एक विषय पर चुटकुले बनाना सही नहीं है, कल किसी और विषय पर चुटकुले बनाना सही नहीं होगा। एक बार अगर ऐसी नजीर तय हो जाएगी तो लौटना बहुत ही मुश्किल हो जाएगा और फिर फर्क नहीं पड़ेगा कि सत्ता में कौन है, वे इसका इस्तेमाल हमेशा लोगों की आवाजें दबाने के लिए करेंगे।”

जैसे कि स्वयं सेंसरशिप पहले से ही डरावनी नहीं है, अनस एक और सत्य का बम फोड़ देते हैं। वह कहते हैं, “आजकल कला आमतौर पर मुश्किलों में घिरी है। कला ऐसे नहीं जी सकती। ऐसे समाज में जो असहमति को स्वीकार नहीं कर सकता, वहां व्यंग्य तो मृत ही है क्योंकि व्यंग्य मूलतः सरकार/प्रशासन परवार ही तो है।”

क्या इन सब चीजों का कोई समाधान है? उन्हें नहीं मालूम। लेकिन कुछ तो है जो उन सभी को डरा रहा है। अगर आप किसी कलाकार तक तब पहुंचते हैं जब वह मंच पर अपना कार्यक्रम पेश कर रहा हो और उस दौरान आप सब कुछ अस्त-व्यस्त करने, उससे गाली-गलौज करने तथा नुकसान पहुंचाने में सफल हो जाते हैं तो हास्य बहुत समय तक जिंदा नहीं रह सकेगा।

इस लेख की लेखिका गरिमा सघवानी हैं।

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