सत्ता-समर्थित आतंकवाद नया खतरा, लगातार फैलता जा रहा है दायरा, सवाल करने वाले निशाने पर
विकसित राष्ट्र और सुपरपावर का दर्जा केवल टेक्नोलॉजी और इंफ्रास्ट्रक्चर से नहीं मिलता। इसके लिए एक प्रबुद्ध और शांत समाज, सबको रोजगार और सत्ता के हस्तक्षेप से मुक्त न्याय व्यवस्था और संवैधानिक संस्थाओं की भी जरूरत होती है।

आतंकवाद की परिभाषा तेजी से बदल रही है। पहले हरेक हिंसक हमले आतंकवाद के दायरे में आते थे और इन हमलों के पीछे उग्रवादी संगठन रहते थे। पर अब हिंसा सत्ता, मीडिया और सत्ता के समर्थक करने लगे हैं। पहले आतंकवाद का दौर चंद घंटे में समाप्त हो जाता था, पर जब से सत्ता ने आतंकवाद का जिम्मा उठाया है, तब से ऐसा आतंकवाद हमारे जीवन का और समाज का अभिन्न अंग बन गया है। पारंपरिक आतंकवाद में एक गिरोह के कुछ सदस्य शामिल रहते थे और चंद लोग प्रभावित होते थे, पर अब तो आतंकवाद में सत्ता, पुलिस, प्रशासन, संवैधानिक संस्थाएं और मीडिया सभी शामिल हैं- समाज के एक बड़े तबके को हिंसा का प्रशिक्षण देकर तैयार किया जा रहा है- इनके निशाने पर वे सभी हैं जो सत्ता से सवाल करने की जुर्रत करते हैं।
आतंकवाद भी अब प्रमुख तौर पर दो बड़े वर्गों में बंट गया है- ऑनलाइन आतंकवाद और शारीरिक आतंकवाद। आश्चर्य यह है कि परंपरागत आतंकवाद अब कम होता जा रहा है, पर सत्ता-समर्थित आतंकवाद का दायरा लगातार फैलता जा रहा है। इसके लिए सत्ता तमाम अपराधियों को नियुक्त करती है और ऑनलाइन आतंक के लिए तो एक अदद आईटी सेल ही है। हरेक सत्ता को अपने कारीबियों का आतंक नजर नहीं आता और यह परंपरा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कायम है।
उदाहरण के तौर पर अमेरिका और भारत को इजरायल काआतंकवाद नजर नहीं आता। पश्चिमी देशों को एक तरफ यह आतंकवाद नजर आता है पर दूसरी तरफ फिलिस्तीन के समर्थन में उठी आवाजों को दबाया जाता है। भारत म्यांमार की सेना और रूस की सत्ता का समर्थन कर आतंकवाद का समर्थन ही तो कर रहा है। इसी समर्थन का असर है कि देश के इतिहास में पहली बार इजरायल के राजदूत की हिम्मत इतनी बढ़ गई कि वे संसद सदस्य प्रियंका गांधी पर सीधे हमलावर हो गए।
पारंपरिक आतंकवाद भी सत्ता की नीतियों के कारण ही पनपता है। इसके पनपने का सबसे बड़ा कारण समाज में व्यापक तौर पर आर्थिक तंगी, युवाओं में व्यापक बेरोजगारी और प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकार में कमी या अधिकार पूरी तरह से छिन जाना है। यह निष्कर्ष जर्मनी के लेपजीग यूनिवर्सिटी के सामाजशास्त्रियों के नेतृत्व में किए गए एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन का है। अब तक समाजशास्त्रियों का एक बड़ा वर्ग दुनिया में बढ़ते आतंकवाद का कारण धार्मिक उन्माद और राजनीति में कट्टरपंथियों के बढ़ते वर्चस्व को मानता था।
इस अध्ययन के लिए बाल्कन, मध्य पूर्व, अफ्रीका के उत्तरी और साहेल क्षेत्र में स्थित आतंकवाद से जूझ रहे 17 देशों में आतंकवाद के विस्तार के लिए जिम्मेदार स्थानीय और ढांचागत कारणों का व्यापक विश्लेषण किया गया। इन देशों में मोरक्को, अल्जीरिया, लीबिया, ईजीप्ट, माली, जोर्डन, इराक, सीरिया और सऊदी अरब भी शामिल हैं। इस अध्ययन को लाईने रीनेर पब्लिशर्स ने एक संकलित पुस्तक के स्वरूप में वर्ष 2025 में प्रकाशित किया है, पुस्तक का नाम है- रेजिस्टीग रेडिकलाइजेशन: इक्स्प्लोरिंग द नॉनअकरेन्स ऑफ वाइलेन्ट एक्स्ट्रीमिज़्म- और इसके संपादक हैं, मॉरटेन बोयस, गिलाड बेन नून, उलफ एंजेल और कारी ओसलैंड। इस अध्ययन के लिए वर्ष 2020 से 2023 तक के अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर उपलब्ध आतंकवाद के आंकड़ों के विश्लेषण के साथ ही हरेक देश में आतंकवाद के अध्ययन से जुड़े स्थानीय विशेषज्ञों, धार्मिक समूहों और दूसरे जानकारों की भी मदद ली गई।
इस अध्ययन के अनुसार स्थानीय सत्ता में पर्याप्त भरोसा, भरोसेमंद सामाजिक सुरक्षा और मजबूत सामाजिक ढांचा आतंकवाद के विस्तार को नियंत्रित करने का सबसे अच्छा माध्यम है। समाज में व्यापक तौर पर सामाजिक-आर्थिक विकास में सुधार लाकर आतंकवाद को रोकना आसान है। सामाजिक असमानता कम करने के लिए, यदि संसाधन नहीं हैं तो अंतरराष्ट्रीय मदद से रोजगार के व्यापक अवसर पैदा किए जा सकते हैं। इसके लिए आर्थिक मदद दी जा सकती है, बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएं शुरू की जा सकती हैं या फिर विदेशी निवेश को बढ़ाने की पहल की जा सकती है। आर्थिक असमानता कम होने पर और रोजगार के व्यापक अवसर पैदा होने के बाद बड़ी आबादी की सोच सकारात्मक होने लगती है और स्थानीय सत्ता पर भरोसा बढ़ता है।
देश में बेरोजगारी की स्थिति भयावह है, बाजार सामानों से भरा है पर खरीददार नहीं हैं, निर्यात पिछले तीन वर्षों से लगभग एक स्तर पर है, छोटे उद्योग तेजी से बंद हो रहे है और सत्ता विकसित भारत के सपने बेच रही है। वर्ष 2024 में जारी वर्ल्ड इनइक्वालटी लैब की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में आर्थिक असमानता का स्तर दुनिया में सबसे अधिक है और यह लगातार बढ़ता जा रहा है। आर्थिक असमानता की ऐसी भयावह स्थिति 1947 के पहले ब्रिटिश राज में भी नहीं रही, पर मोदी सरकार की नीतियों में इसे कम करने की योजनाएं नजर नहीं आतीं। मानव विकास इंडेक्स में कुल 191 देशों में भारत का स्थान 122वां है।
विकसित राष्ट्र और सुपरपावर का दर्जा केवल टेक्नोलॉजी और इंफ्रास्ट्रक्चर से ही नहीं मिलता पर इसके लिए एक प्रबुद्ध और शांत समाज, सबको योग्य रोजगार और सत्ता के हस्तक्षेप से मुक्त न्याय व्यवस्था और संवैधानिक संस्थाओं की जरूरत भी होती है। मोदी सरकार ने वर्ष 2014 के बाद से सबसे अधिक हमला इन्हीं क्षेत्रों में किया है। इन्टरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन के आंकड़ों के अनुसार कुल बेरोजगारों में से पढ़े-लिखे युवा बेरोजगारों की संख्या वर्ष 2000 में 54.2 प्रतिशत थी, पर वर्ष 2022 तक यह संख्या 65.7 प्रतिशत तक पहुंच गई। ये आंकड़े डराने वाले हैं क्योंकि देश की औसत आयु महज 29 वर्ष ही है। दूसरी तरफ वर्ष 2014 के बाद से वेतन में कोई प्रभावी वृद्धि नहीं हुई है। हमारा देश श्रमिक उत्पादकता के संदर्भ में 133वें स्थान पर है तो दूसरी तरफ यहां के 51 प्रतिशत से अधिक श्रमिकों को हरेक सप्ताह 49 घंटे से अधिक काम करना पड़ता है- इस संदर्भ में भारत का स्थान दूसरा है।
देश की गरीबी और साथ ही भुखमरी का मंजर तो ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2024 में भी नजर आता है। आयरलैंड की संस्था कन्सर्न वर्ल्डवाइड और जर्मनी की संस्था वेल्थहंगरलाइफ द्वारा संयुक्त तौर पर तैयार किए गए इस इंडेक्स में भारत को कुल 27.3 अंक दिए गए हैं, जो गंभीर भुखमरी की श्रेणी को दर्शाता है। कुल 127 देशों के इस इंडेक्स में स्वघोषित विश्वगुरु भारत 105वें स्थान पर है। हमारे पड़ोसी देशों में से केवल पाकिस्तान और अफगानिस्तान ही हमसे भी पीछे हैं। दुनिया के 42 देश ऐसे हैं जहां भुखमरी की स्थिति गंभीर है, जिसमें भारत भी एक है। इस इंडेक्स में अफगानिस्तान 116वें, पाकिस्तान 108वें, भारत 105वें, बांग्लादेश 84वें, म्यांमार 74वें, नेपाल 68वें और श्रीलंका 56वें स्थान पर है। चीन इंडेक्स में शीर्ष पर काबिज 22 देशों में शामिल है, जिनके अंक 5 से कम हैं। इस इंडेक्स में अंतिम 5 देश हैं– दक्षिण सूडान, बुरुंडी, सोमालिया, येमेन और चाड।
आतंकवाद पर लगाम लगाने के लिए और नए आतंकवादियों को पनपने से रोकने के लिए शिक्षकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, सामाजिक विकास से जुड़े गैर-सरकारी संगठनों के सदस्यों, स्थानीय सुरक्षा बलों और धर्म-गुरुओं को विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता है, जिससे आतंकवाद के खतरे को समय रहते पहचाना जा सके और कार्यवाही की जा सके।
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Published: 16 Aug 2025, 10:53 PM