ट्रंप और मोदी में अजब समानताएं, कोरोना से लेकर तमाम मुद्दों पर एक सा हाल, हर क्षेत्र में विनाश अपने चरम पर

भगवान के संबंध में भी ट्रंप और मोदी की विचारधारा एक है। दोनों भगवान पर केवल अपना हक मानते हैं। दोनों को लगता है कि भगवान पर भरोसा अकेले वही करते हैं और केवल उन्हीं का ही अधिकार है। दोनोंं साबित करने की कोशिश करते हैं कि विपक्ष तो भगवान को मानता ही नहीं।

फोटोः सोशल मीडिया
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महेन्द्र पांडे

यह तो पता नहीं कि वैलेंटाइन डे पर अमेरिका और भारत एक दूसरे को विश करते हैं या नहीं, पर फ्रेंडशिप डे के दिन तो दोनों एक दूसरे को मुबारकबाद देते हैं। इस कोविड 19 के दौर में ट्रंप और मोदी की नजदीकियां पहले से भी अधिक बढ़ गई हैं और दोनों नेता तमाम खतरों के बाद भी एक दूसरे की मदद के लिए तैयार बैठे रहते हैं। भारत की सीमा में जब कोई घुसपैठ नहीं होती पर 20 से अधिक सैनिक मारे जाते हैं तब भी ट्रंप हरेक मदद को तैयार रहते हैं। मोदी जी जब अमेरिका जाते हैं तब अबकी बार ट्रंप सरकार के नारे लगते हैं और कोरोना के खतरे के बीच भी ट्रंप ‘भारत नमस्ते ट्रंप’ के आयोजन में मुस्कराते शामिल होते हैं।

दोनों नेताओं में कोविड से निपटने के मामले में तो गजब की समानता है। दोनों इसके प्रभावों को नकारते हैं, दोनों इसके विज्ञान को नकारते हैं और दोनों देशों में दुनिया के सबसे अधिक मामलों के बाद भी ट्रंप और मोदी दोनों इसके नियंत्रण के सन्दर्भ में अपनी कामयाबी का ऐलान करते हैं। दोनों नेताओं ने लगातार बताया कि अगर कोरोना से मुकाबले की तथाकथित उनकी नीतियां नहीं होतीं तब कितनी और मौतें होतीं, भले इन आंकड़ों का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं हो। ट्रंप ने भारत में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन से कोरोना का इलाज ढूंढा, तो दूसरी तरफ मोदी को कोविड 19 से सबसे अधिक मौत वाले देश अमेरिका में बनी रेम्सेडीविर अचूक लगती है।

कोविड-19 के दौर से पहले ट्रंप और मोदी, दोनों के चीन के राष्ट्रपति से मित्र राष्ट्र वाले संबंध थे, पर अब दोनों देशों का सबसे बड़ा दुश्मन चीन है। यहां तक कि चीनी उत्पादों से भी दोनों को अचानक चिढ़ होने लगी और इन उत्पादों को प्रतिबंधित करने की मुहीम शुरू कर दी गई। ट्रंप और मोदी दोनों के रूस के राष्ट्रपति पुतिन से, इजराइल के नेतान्याहू से और ब्राजील के बोल्सेनारो से घनिष्ट संबंध हैं। दोनों जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल, कनाडा के त्रुदो और न्यूजीलैण्ड की जेसिंडा अर्देर्न से बहुत दूरी बनाकर रखते हैं और जापान से दोनों की नजदीकियां हैं।

भगवान के संबंध में भी ट्रंप और मोदी की विचारधारा एक जैसी है। दोनों भगवान पर केवल अपना अधिकार समझते हैं। बीते 5 अगस्त को राम मंदिर के शिलान्यास पर तो मोदी और बीजेपी का राम पर अधिकार इतना प्रभावी हो गया था कि उन्हीं की पार्टी के लोगों को कहना पड़ा था कि राम केवल मोदी या बीजेपी की धरोहर नहीं हैं, बल्कि सबके हैं। दोनों नेताओं को लगता है कि भगवान पर भरोसा अकेले वही करते हैं और विपक्ष तो भगवान को मानता ही नहीं, उनका अपमान करता है।

राहुल गांधी अगर किसी मंदिर चले जाएं तो मोदी जी और उनके समर्थकों को उन्हें नास्तिक साबित करने का एक मौका मिलता है। इसी तरह इसी 6 अगस्त को ट्रंप ने अचानक राष्ट्रपति पद के विपक्षी उम्मीदवार जो बिडेन को नास्तिक करार दिया। ट्रंप ने उनके बारे में कहा कि वे ईश्वर के विरुद्ध हैं, वे बंदूकों के विरुद्ध हैं, वे ऊर्जा के विरुद्ध हैं। दूसरी तरफ जो बिडेन कट्टर कैथोलिक हैं।

साल 2015 में जब बिडेन उप-राष्ट्रपति थे, तब पोप फ्रांसिस के अमेरिका दौरे पर बिडेन शुरू से अंत तक उनके साथ ही थे। उन्होंने अनेक भाषणों में विस्तार से बताया है कि किस तरह ईश्वर ने उनकी पहली पत्नी की, बेटी की और बेटे की मृत्यु के बाद उन्हें संभाला। उनकी जेब में हमेशा जाप करने वाली रोजरी बीड्स रहती है और भाषणों के बीच में भी वे उसे हथेली पर रख लेते हैं। जो बिडेन अमेरिका के इतिहास में पहले कैथोलिक उप-राष्ट्रपति थे और यदि वे अगला राष्ट्रपति चुनाव जीतते हैं तो जॉन एफ कैनेडी के बाद दूसरे कैथोलिक राष्ट्रपति होंगें।

ट्रंप द्वारा बिडेन के नास्तिक होने वाले बयान पर टिप्पणी करते हुए कैथोलिक न्यूज वेबसाइट के सम्पादक रोक्को पल्मो ने कहा, “ट्रंप ने बंदूकों को धार्मिक आस्था से क्यों जोड़ा, यह समझ से परे है। कैथोलिक पादरी हमेशा से ही मानते रहे हैं कि बंदूकों को निजी हाथों में कम से कम दिया जाए।” ट्रंप जैसा ही आस्था और हथियार के समागम की वकालत मोदी जी भी करते रहे हैं और यही आरएसएस की मूल भावना भी है।

हमारे देश में जब भी कोई चुनाव होने वाले होते हैं, या फिर स्वतंत्रत दिवस और गणतंत्र दिवस जैसे मौके होते हैं, तब अचानक खुफिया तंत्र को मोदी जी पर हमले की योजना का पक्का सुराग हाथ लगता है और मोदी जी के प्रति जनता की सहानुभूति उमड़ने लगती है और लोकप्रियता अचानक बढ़ जाती है। अब जब अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव में 90 से भी कम दिन रह गए हैं और ट्रंप की लोकप्रियता गिरती जा रही है, तब ट्रंप ने भी वहां यही दांव आजमाया है।

हाल में ही व्हाइट हाउस में प्रेस ब्रीफिंग के बीच से खुफिया बल ट्रंप को सुरक्षा घेरे में लेकर अन्दर चला गया। फिर 10 मिनट बाद ट्रंप ब्रीफिंग के लिए वापस आ गए और बताया कि बाहर से गोलियां चलने की आवाजें आ रही थीं, इसीलिए खुफिया बल उन्हें अन्दर सुरक्षा घेरे में ले गया था। हालांकि बाद में बताया गया कि बाहर खड़े सुरक्षाकर्मियों ने ही किसी को गोली मारी है। यह सब रहस्यमय इसलिए भी है, क्योंकि आज तक उस व्यक्ति का खुलासा नहीं किया गया है, पर ट्रंप को थोड़ी बहुत सहानुभूति तो मिल ही गई।

इतिहास के किसी भी दौर में दो देशों के समकालीन नेताओं में ट्रंप और मोदी जैसी समानता नहीं देखी गई होगी। दोनों देशों में आम जनता पिस रही है, दोनों देशों में पूंजीपतियों की मुंहमांगी मुरादें पूरी हो रही हैं, दोनों देशों में सरकार की नीतियों में खामियां उजागर करने वाले पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता सरकार के दुश्मन करार दिए जा रहे हैं, दोनों देशों में पर्यावरण का विनाश अपने चरम पर है- फिर भी ट्रंप और मोदी को यही लगता है कि उनका देश इतिहास के किसी भी दौर की तुलना में आज सर्वश्रेष्ठ है।

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