खरी-खरीः CAA के खिलाफ छात्र-युवाओं के आंदोलन से फूटी उम्मीद की किरण, नई पीढ़ी को मंजूर नहीं हिंदू पाकिस्तान बनना

21वीं सदी की आधुनिक युवा पीढ़ी को फिर से भारत का वही धर्मनिरपेक्ष देश की साझी विरासत वाला संविधान चाहिए। संविधान की छत्रछाया में हर धर्म की युवा पीढ़ी मिलकर देश की आधुनिकता और साझी विरासत के लिए लड़ती रहे तो संघ क्या, कोई भी इसे हिंदू पाकिस्तान नहीं बना सकता।

फोटोः सोशल मीडिया
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ज़फ़र आग़ा

मई, 2019 में जब लोकसभा चुनावों नतीजे आए तो ऐसा लगा था कि बस अब सब खत्म। क्योंकि तब यह स्पष्ट लग रहा था कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का हिंदू राष्ट्र का सपना साकार होकर ही रहेगा। बीजेपी को लोकसभा में प्रचंड बहुमत हासिल हो चुका था। राज्यसभा में कुछ वोट सीधे करने के लिए चाणक्य नीति में विश्वास रखने वाला अमित शाह जैसा गृहमंत्री इसी कार्य के लिए बिठा दिया गया था। अतः कुछ ऐसा ही हुआ। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के पहले ही संसद सत्र में तीन तलाक समाप्त करने का बिल पारित हो गया। फिर रातोंरात जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35ए को समाप्त कर राज्य का विभाजन कर दिया गया।

इसके बाद देश बहुत तेजी से हिंदू राष्ट्र का स्वरूप लेने लगा। कुछ ऐसा प्रतीत होने लगा जैसे भारत एक हिंदू पाकिस्तान सा बनता जा रहा है। लेकिन यह विचार स्वयं मेरे लिए अत्यंत विचलित करने वाला था। हमने सदा अपने मित्रों को यह भरोसा दिलाया कि कुछ भी हो इस देश को पाकिस्तान जैसा स्वरूप नहीं दिया जा सकता है। हमने इस धर्मनिरपेक्ष देश में अपने जीवन के छह दशक से अधिक जीवन व्यतीत किया है। हमारे माता-पिता ने जिन्ना के धर्म आधारित पाकिस्तान को ठुकराकर इस गंगा-जमुनी तहजीब वाले देश की नागरिकता स्वीकार की थी। हमको इस देश की प्रगति, आधुनिकता और यहां की साझी विरासत पर गर्व था। हिंदू राष्ट्र हमारे जैसे मुसलमानों के लिए ही नहीं अपितु करोड़ों हिंदुओं के सपनों का भारत नहीं हो सकता था।

लेकिन 2019 में संसद का पहला सत्र समाप्त होते-होते ऐसा लगा कि अब हम हिंदू पाकिस्तान होकर ही रहेंगे। साल समाप्त होते-होते जो बची खुची कसर थी वह भी पूरी हो गई। संसद के दूसरे सत्र में नागरिकता संशोधन बिल पास हो गया। पहली बार नागरिकता का आधार केवल धर्म ही नहीं हो गया बल्कि स्वयं संविधान में भी धर्म को स्थान मिल गया। नागरिकता के इस कानून से स्पष्ट कर दिया गया कि अब संवैधानिक तौर पर नागरिकता के मामले में इस देश के मुसलमान दूसरे दर्जेके शहरी होंगे। स्पष्ट था कि अब हिंदू राष्ट्र की नींव रख दी गई है, क्योंकि जब मुसलमान की नागरिकता का आधार धर्म होगा तो फिर उसके लिए फिर इस देश में बचा ही क्या?

कहने को नागरिकता कानून में जो संशोधन था, वह पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए गैर मुस्लिम शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देने को था। लेकिन इसमें धर्म जोड़कर और मुसलमान को हटाकर संविधान की धर्मनिरपेक्ष भावना (स्पिरिट) मिटा दी गई और मुसलमानों को दूसरी श्रेणी का बना दिया गया। यहां सदियों से रह रहे मुसलमानों की नागरिकता पर राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) की तलवार लटका दी गई। और तो और, एनआरसी के माध्यम से निकाले जाने वाले अधिकांश मुसलमानों के लिए कैंप यानी बंदीगृह भी बना दिए गए। यह काम पाकिस्तान में बसे हिंदुओं अथवा सिखों के लिए वहां भी नहीं हुआ था। जाहिर है कि यह भारतीय मुसलमानों के अधिकारों पर आखिरी कील ठोकने जैसा ही था, इसके पश्चात सारी आशाएं खत्म। अब उसके लिए सारे रास्ते बंद से थे। और इस प्रकार 2019 का वर्ष समाप्ति की ओर बढ़ने लगा।


लेकिन भारतवर्ष बीजेपी का बनाया देश नहीं कि बीजेपी प्रचंड बहुमत मिलने के पश्चात देश को जैसा स्वरूप देना चाहे वैसा दे दे। यह पाकिस्तान न था और न हो सकता है। पाकिस्तान को अकेले एक पार्टी मुस्लिम लीग और उसके संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने बनाया था। भारत तो सदियों पुरानी सभ्यता का देश है। साझी विरासत इसकी मिट्टी में रची-बसी है और यही हमारी संस्कृति है। इसकी राजनीतिक नींव भी इसी विरासत पर टिकी हुई है। तभी तो गांधी, नेहरू और मौलाना आजाद जैसे नेताओं ने जिन्ना की धर्म आधारित राजनीति ठुकरा दी थी और भारत की साझी विरासत के मूल्यों पर एक आधुनिक धर्मनिरपेक्ष भारत का निर्माण किया था।

आजादी से अब तक लगभग चार-पांच पीढ़ियां इसी विचार और मूल्यों पर जी और मर चुकी हैं। धर्मनिरपेक्षता का मूल्य हर भारतीय के रगों में खून बनकर दौड़ने लगा है। ऐसे में बीजेपी ने भारतीय सभ्यता और उसकी आधुनिकता तथा धर्मनिरपेक्षता पर नागरिकता कानून के कवच से गहरा प्रहार कर दिया। फिर क्या था। बस देखते-देखते एक लावा फूट पड़ा। जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में जो चिंगारी फूटी वह एक लावा बन गई। हजारों की तादाद में हिंदू- मुसलमान लड़के-लड़कियां संविधान के संरक्षण में उतर पड़े। यह एक जन आंदोलन था जो पूरे देश में गली-गली, शहर-शहर बह निकला।

लेकिन यह हुआ कैसे? हिंदू राष्ट्र की ओर तेजी से अग्रसर भारत यकायक मोदी से खफा क्यों हो गया? उसको कौन सी बात ऐसी चुभ गई कि कल का मोदी भक्त नौजवान, मोदी विरोधी हो गया। दरअसल बीजेपी से एक गलती हो गई। मोदी-शाह ने नागरिकता संशोधन कानून से भारत की आत्मा पर वार कर दिया। आखिर बुद्ध, कबीर, नानक, चिश्ती, निजामुद्दीन और गांधी जैसे धर्मनिरपेक्ष सदगुरुओं के भारत में हिंदू पाकिस्तान का क्या काम! तब ही तो इस आंदोलन की शुरूआत भले ही मुस्लिम नौजवानों ने पुलिस दमन के खिलाफ जामिया से की हो लेकिन रातोंरात इस आंदोलन की कमान सारे देश में हर धर्म के युवा छात्रों ने अपने हाथों में ले ली।

इस नई पीढ़ी का नारा क्या था- ‘नागरिकता कानून हटाओ, संविधान बचाओ’। इस आंदोलन में शामिल हर नौजवान अब संविधान की धारा 14 पढ़कर सुना रहा था। वह सेकुलर शब्द जिसको आडवाणी ने अछूत बना दिया था उसी धर्मनिरपेक्षता की दुहाई अब नौजवान दे रहा था। इस पूरे आंदोलन में कोई राजनीतिक पार्टी नहीं शामिल थी। यह तो एक लावा था जो नोटबंदी के समय से अब तक पक रहा था। इस लावे को भले ही मोदी ने घृणा की राजनीति के माध्यम से अब तक फटने से रोक लिया हो। लेकिन लावा अंततः फटता ही फटता है। और वही हुआ। जब मोदी ने भारत की आत्मा को ही ठेस पहुंचा दी तो लावा फटना ही था, सो फट पड़ा।


पर इस पूरे प्रकरण में मुझे एक बात नहीं समझ में आ रही थी। वह यह कि नागरिकता के नए कानून से खतरा तो केवल मुस्लिम नागरिक को था, तो फिर हजारों हिंदू नौजवान सड़कों पर क्यों निकल पड़ा। फिर यकायक मेरी समझ में आया कि यह केवल मुस्लिम प्रश्न नहीं है। यह तो भारत की आधुनिकता का प्रश्न है। जैसे इस्लामी पाकिस्तान में आधुनिकता का गला घुट गया, वैसे ही हिंदू राष्ट्र भारत में भी आधुनिकता की मृत्यु हो जाएगी। और यही भारतीय युवा पीढ़ी का पिछले छह वर्षों का अनुभव भी है। देश में रोजगार समाप्त और कारखानों पर ताले लटक गए। किसानों की कमर टूट गई। युवाओं का भविष्यअंधकार में डूब गया। और क्यों न डूबता क्योंकि मोदी और शाह संघ की छत्रछाया में केवल हिंदू राष्ट्र निर्माण में लगे रहे।

पाकिस्तान के समान भारतवर्ष भी आधुनिकता से भटककर धर्म एवं घृणा की राजनीति की भेंट चढ़ गया। आखिर यह 21वीं सदी का हिंदू नौजवान कब तक सहता। वह तो आईटी क्रांति से जुड़कर पश्चिमी देशों की युवा पीढ़ी से कांधा मिलाकर चल रहा था। वह यूरोप, अमेरिका में ‘ऐपल’ जैसी कंपनियों का सीईओ बन रहा है। उसकी महिला अमेरिका के चुनाव में राष्ट्रपति बनने की रेस में हिस्सा ले रही है। वह नासा की शीर्ष श्रेणियों पर आसीन है। भला ऐसी आधुनिक युवा पीढ़ी को मोदी और मोहन भागवत के हिंदू राष्ट्र में क्या हासिल हो सकता है।

तब ही तो उसको फिर भारत का वही धर्मनिरपेक्ष आधुनिक देश की साझी विरासत वाला संविधान चाहिए जिसके लिए वह मुस्लिम पीढ़ी के कांधे से कांधा मिलाकर लड़ रहा है। अब यह मुस्लिम युवा पीढ़ी का कर्तव्य है कि वह इस आंदोलन को किसी धार्मिक रंग देने से दूर रहे। ऐसे आंदोलन में मुल्ला-मदरसों का काम नहीं। बस संविधान की छत्रछाया में हर धर्म की युवा पीढ़ी मिलकर इस देश की आधुनिकता और साझी विरासत के लिए लड़ती रहे तो संघ क्या कोई भी इसको हिंदू पाकिस्तान नहीं बना सकता। सन 2019 और 2020 के छात्र आंदोलन से यही एक नई आशा की किरण फूटी है जो देश में फैले हिंदुत्व के अंधकार को मिटा सकती है।

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