स्वराज यात्रा: कुछ अलग सी यात्रा जिसने जलवायु परिवर्तन और प्रतिकूल मौसम की चुनौतियों से निपटने में भी मदद की

राजस्थान के बांसवाड़ा से ‘स्वराज यात्रा’ अपने तरह का एक अलग अभियान है जो बड़े कॉरपोरेट, जीएम बीज और फसलों के हमलों से जूझ रहे किसानों को दिशा दिखाता है।

फोटो: सोशल मीडिया
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भारत डोगरा

आम लोगों से जुड़ने और उनके साथ संवाद स्थापित करने के सशक्त माध्यम के रूप में ‘भारत जोड़ो यात्रा’ की बढ़ती स्वीकार्यता के बावजूद गांधीवादी सिद्धांतों से प्रेरित यह अकेला मार्च नहीं है। पिछले साल राजस्थान में 500 किलोमीटर की स्वराज यात्रा ऐसी ही एक और यात्रा है जिस पर बहुत ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया।

देश के विभिन्न भागों में चल रही तमाम दूसरी यात्राओं की तरह ही ‘स्वराज यात्रा’ कोई साधारण यात्रा नहीं जो किन्हीं खास मांगों की ओर ध्यान खींचने के लिए की गई।

यह यात्रा अधिकारियों से लेकर आम लोगों के लिए एक अलग तरह का अनुभव था। बांसवाड़ा और उसके आसपास रहने वाले जनजातीय समुदाय के किसानों ने इस यात्रा के दौरान उनसे मिलने वाले लोगों से अपने अनुभव और खेती-किसानी में अपनाए जाने वाले बेहतरीन नुस्खे साझा किए। इस दौरान उन्होंने इस बात का सदैव ध्यान रखा कि अधिकारियों को खास तौर पर यह बताएं कि उन्हें क्यों यात्रा पर निकलना पड़ा। 

1980 के दशक के मध्य से बांसवाड़ा क्षेत्र में किसानों और ग्रामीणों के साथ काम कर रहे एनजीओ ‘वागधारा’ के जयेश जोशी ने बताया कि पिछले कई वर्षों से यह जरूरत महसूस की जा रही थी कि जनप्रतिनिधियों और सरकारी अधिकारियों को लोगों की स्थितियों और जरूरतों के प्रति जागरूक और संवेदनशील बनाया जाए। जबकि ज्यादातर ग्रामीण खेती और व्यापार के पारंपरिक तरीकों से खुश थे, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में रुकावट, ऑनलाइन मार्केटिंग, बड़े कॉर्पोरेट निकायों और बदलती तकनीक ने उनके लिए हालात मुश्किल कर दिए हैं। पहले हाट या स्थानीय बाजार उनकी जरूरतों को पूरा करते थे और किसानों, कारीगरों और व्यापारियों के बीच संपर्क का जरिया होते थे, अब उनके लिए तेजी से बदलते तौर-तरीकों और बढ़ती और कभी-कभी अपारदर्शी अदृश्य प्रतिस्पर्धा के साथ तालमेल बैठाना मुश्किल हो रहा है।


जोशी बताते हैं कि यात्रा से पहले यह पता लगाने के लिए विचार-विमर्श की एक श्रृंखला हुई कि तेजी से आ रहे बदलावों के खतरे क्या हैं और लोगों को समाधान के रूप में क्या चाहिए। उन्हें खेती, खाद्य आपूर्ति, बीज, पोषण, मिट्टी, पानी, वन, स्वास्थ्य, शिक्षा और संस्कृति के संदर्भ में किन मुश्किल स्थितियों का सामना करना पड़ रहा है और इनसे जुड़े अहम सवाल क्या हैं। बांसवाड़ा और उसके आसपास के गांवों के लोगों ने अन्य गांवों के लोगों, विशेषज्ञों और विद्वानों से चर्चा की जरूरत महसूस की और इसलिए यात्रा का विचार आया।

 यह यात्रा भारत जोड़ो यात्रा के चार दिन बाद 11 सितंबर को विनोबा भावे की जयंती पर बांसवाड़ा से शुरू हुई और 2 अक्तूबर को गांधी जयंती पर जयपुर में संपन्न हुई। दक्षिणी राजस्थान के बांसवाड़ा से राजधानी जयपुर तक 21 दिनों की इस यात्रा में 200 जनजातीय किसानों ने भाग लिया। यात्रा के अंत में किसानों ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और राज्यपाल कलराज मिश्र को ज्ञापन सौंपा।

स्वराज की गांधीवादी अवधारणा का मूल रूप से मतलब स्व-शासन था लेकिन व्यवहार में हुआ यह कि पूरे समुदाय की कीमत पर कुछ लोगों के हाथों में सत्ता का केंद्रीकरण हो गया। सदियों के जीवन और खेती के पारंपरिक तरीकों ने सामुदायिक संबंधों को विकसित किया है, काफी हद तक आत्मनिर्भरता सुनिश्चित की है और स्वदेशी बीजों और जैव-विविधता की रक्षा की है। सदियों से चली आ रही स्थानीय बीजों और फसलों की एक बड़ी विविधता को संकर बीजों और जीएम (आनुवांशिक रूप से संशोधित) बीजों और फसलों से खतरा है।

दो सौ ग्रामीणों ने 11 सितंबर को बांसवाड़ा से यात्रा शुरू की और रास्ते में उनके समर्थन में और भी लोग यात्रा में उनके साथ हो लिए। बांसवाड़ा से यात्रा में भाग लेने वाले लोगों के लिए अच्छी बात यह रही कि यात्रा में बाद में शामिल हुए लोगों ने भी अपनी चिंताएं साझा कीं और इससे उनकी समझ और व्यापक हुई। मिट्टी की सेहत जिस तरह रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के इस्तेमाल से खराब होती जा रही है, वह चिंता का विषय है। मिट्टी की प्रकृति और इसकी प्राकृतिक उर्वरता में बदलाव और रसायनों के अत्यधिक उपयोग के कारण फसलों के पोषण और औषधीय गुणों के क्षरण तथा बाजरा जैसी पारंपरिक फसलों के नुकसान को लेकर किसानों ने अपनी चिंता जाहिर की।


कृषि संकट की ऐसी कहानियां शायद ही राजस्थान के लिए अनोखी हों। देश के विभिन्न हिस्सों में कृषक समुदाय, विशेष रूप से छोटे आदिवासी समुदाय, इस दर्द को महसूस कर रहे हैं। लेकिन उनकी बढ़ती बेचैनी काफी हद तक दूर नहीं हुई है। हालांकि संविधान ने जनजातीय समुदायों के लिए कई महत्वपूर्ण सुरक्षा उपाय किए हैं, जनजातीय क्षेत्रों में भूमि, जंगल और पानी जैसे दुर्लभ संसाधनों के लिए विशेष प्रावधान और प्रक्रिया भी है लेकिन ये सुरक्षा उपाय समय के साथ कमजोर हो गए हैं।

यात्रा का एक और सकारात्मक पक्ष वे विचारशील प्रतिक्रियाएं और समाधान थे जो ग्रामीणों ने एक-दूसरे से साझा किए। यह पाया गया कि कुछ गांवों ने अन्य गांवों की तुलना में खतरों का बेहतर तरीके से मुकाबला किया और परस्पर बातचीत से यह समझने में मदद मिली कि वे कैसे ऐसा कर पाए। ग्रामीणों ने खुलकर अपनी सर्वोत्तम पद्धतियों को साझा किया।

ग्रामीणों ने रास्ते में पड़ने वाले स्कूलों का भी दौरा किया और छात्रों और शिक्षकों को अपनी चिंताओं से अवगत कराने का भी प्रयास किया। ग्रामीणों ने अपनी चिंताओं के प्रति बच्चों को संवेदनशील बनाना जरूरी समझा क्योंकि भविष्य उन्हीं के हाथ है। यात्रियों ने कहा, परिवारों और स्कूलों और यहां तक कि ग्राम सभाओं में निर्णय लेने की प्रक्रिया में बच्चों को शामिल करने का समय आ गया है।

पंचायत प्रतिनिधियों और स्थानीय अधिकारियों के साथ जुड़ना स्वराज यात्रा की एक और उल्लेखनीय विशेषता थी। जब वे अंततः जयपुर पहुंचे, तो यात्रा के दौरान सामने आए मुद्दों पर विद्वानों, विशेषज्ञों और विचारकों के साथ बैठक आयोजित की गई। इससे मांगों का चार्टर तैयार करने में मदद मिली। चार्टर में ग्रामीण समुदायों को मजबूत करने और जलवायु परिवर्तन और प्रतिकूल मौसम की चुनौतियों से निपटने के लिए उन्हें बेहतर तरीके से तैयार करने के लिए शैक्षिक और सांस्कृतिक पहलों पर भी प्रकाश डाला गया है।

चार्टर में यह भी मांग की गई है कि शामलात और साझा भूमि की पहचान कर नए जंगल उगाए जाएं और बीजों में आत्मनिर्भरता की दिशा में लोगों के प्रयासों को बढ़ावा देने में सरकारी एजेंसियों की पहल हो। मांगों का यह चार्टर मुख्यमंत्री और राज्यपाल को सौंपा गया। राजस्थान कई जन-केंद्रित सरकारी पहलों में सबसे आगे रहा है और इसलिए उम्मीद है कि किसानों के चार्टर पर मुख्यमंत्री सहानुभूति पूर्वक विचार करेंगे।

-भारत डोगरा कैंपेन टु सेव अर्थ नाउ के मानद संयोजक हैं

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