वक्त-बेवक्त: उमर खालिद पर हुआ हमला आजादख्याल हिंदुस्तान पर भी हुआ हमला है

जेएनयू की एक छोटी सभा पर अपने गंभीर मुख से भारत की जनता को इन छात्रों के ख़िलाफ़ सावधान करनेवाले गृह मंत्री के लिए यह इतनी क्षुद्र घटना है कि तीन दिन बाद तक उन्होंने इस पर मुंह नहीं खोला है।

फोटो: सोशल मीडिया
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अपूर्वानंद

13अगस्त को कांस्टिट्यूशन क्लब के बाहर उमर ख़ालिद पर जो हमला हुआ उसके लिए कौन ज़िम्मेवार है? उमर ने ठीक ही कहा कि पिछले ढाई साल से भी ज़्यादा समय से उनके ख़िलाफ़ भारत सरकार के मंत्रियों, भारतीय जनता पार्टी के नेताओं, उनके अन्य संगठनों के लोगों ने और प्रेस के एक हिस्से ने जो घृणा अभियान चलाया है, उससे उनकी छवि एक राष्ट्रविरोधी की बनी है। लोग यह मानने लगे हैं कि वे किसी राष्ट्रविरोधी षड्यंत्र का हिस्सा हैं। यह भी खुलेआम कहा जाता रहा है कि अगर उमर ख़ालिद जैसे लोगों को मार डाला जाए, तो इससे राष्ट्र का भला होगा। इस प्रचार के चलते अगर कोई यह सोचे कि उमर जैसे व्यक्ति की हत्या करके वह राष्ट्र की सेवा कर रहा होगा, राष्ट्र के एक दुश्मन को कम कर रहा होगा, तो कोई आश्चर्य की बात नहीं।

उमर की इस बात को समझने के लिए उमर ख़ालिद जैसे एक छात्र की राष्ट्रीय ख्याति का कारण जान लेना ठीक होगा।

2016 की 9 फ़रवरी को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अफ़जल गुरू की फांसी की बरसी पर एक छोटी सभा होनी थी जिसके लिए मंज़ूरी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के दबाव के कारण वापस ले ली गई। आयोजकों ने विरोध जताते हुए सभा करने का निर्णय लिया। जेएनयू के लिए इस तरह की सभा और ऐसा विरोध मामूली बात रही थी। लेकिन एबीवीपी ने वहां पहुंचकर सभा का विरोध शुरू किया। झड़प हुई, नारे लगे। ताज्जुब यह कि आम तौर पर दिल्ली में होने वाले बड़े से बड़े प्रदर्शनों को नज़रअंदाज करनेवाले मीडिया में से एक जीटीवी को यह कैम्पस की सभा इतनी महत्त्वपूर्ण लगी कि उसकी एक टीम इसे रिपोर्ट करने वहां पहुंची।

जीटीवी ने रिपोर्ट प्रसारित की जिसके मुताबिक़ इस सभा में देश को टुकड़े टुकड़े करने, उसे बर्बाद कर देने के नारे लगाए गए। इस घटना को इतना संगीन माना गया जैसे राजधानी में कोई दहशतगर्द हमला हो गया हो। उमर ख़ालिद सभा के आयोजकों में एक थे। जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया का सभा से कोई लेना-देना न था। लेकिन टीवी चैनल के इस रिपोर्ट और दूसरे चैनलों के आतंकित कर देने वाले शोर के बाद सरकार ने कहा की यह सभा एक राष्ट्र विरोधी गतिविधि थी। कन्हैया को गिरफ़्तार किया गया। उमर के ख़िलाफ़ उनके और साथियों के साथ वारंट जारी हुआ। उन्होंने ख़ुद को गिरफ़्तारी के लिए पेश किया।

इस बीच भारत के गृह मंत्री ने एक बहुत गंभीर वक्तव्य जारी किया। उन्होंने देश की जनता को स्पष्ट रूप से समझ लेने को कहा कि जेएनयू के इन छात्रों का पाकिस्तान में बैठे आतंकवादियों से सीधा रिश्ता है। उनके मातहत काम करने वाली दिल्ली पुलिस के मुखिया कहते रहे कि उनके पास उमर और कन्हैया के ख़िलाफ़ पर्याप्त प्रमाण हैं कि उन्होंने देशद्रोह किया है।

गृह मंत्री का यह बयान निहायत ही ग़ैर-ज़िम्मेदाराना था। वे जानते थे कि वे एक आधारहीन आरोप लगा रहे हैं। उनके इस झूठ ने दिल्ली पुलिस को अपना झूठ गढ़ने की हिम्मत दी। देश की जनता के मन में गृह मंत्री के इस बयान के कारण यह बात बैठ गई कि जेएनयू के छात्र किसी भयंकर साज़िश में लिप्त हैं। इसके बाद सोशल मीडिया, हिंदी अख़बारों और कुछ टीवी चैनलों ने कन्हैया और उमर के ख़िलाफ़ दुष्प्रचार चलाना शुरू किया। उमर की तस्वीर के साथ उनकी हत्या करने की घोषणावाले संदेश सोशल मीडिया पर बड़ी संख्या में प्रसारित हुए।

इस घटनाक्रम को अगर हम ध्यान में रखें तो यह साफ़ है कि उमर ख़ालिद और उनके मित्रों के ख़िलाफ़ घृणा अभियान की शुरुआत भारत के गृह मंत्री ने की। उनके मंत्रीमंडल के दूसरे साथियों ने कोई कसर न छोड़ी। सरकार और भारतीय जनता पार्टी के हर आलोचक को ये मंत्री, और ख़ासकर मीडिया के चहेते वित्त मंत्री टुकड़े टुकड़े गैंग का सदस्य बताते रहे हैं।

इस ढाई सालों में इस सरकार की दिल्ली पुलिस को इतने भी साक्ष्य नहीं मिले कि कन्हैया, उमर, अनिर्बान, राम नागा जैसे नौजवानों पर वह चार्जशीट दायर कर सके। जीटीवी के जिस वीडियो के आधार पर यह घृणा अभियान चलाया गया था, उसे बनानेवाले पत्रकार ने इस्तीफ़ा दे दिया यह बताते हुए कि यह वीडियो फ़र्ज़ी था और उन पर दबाव डालकर बनवाया गया था।

इन ढाई वर्षों में जेएनयू के इन छात्र कार्यकर्ताओं की ज़िंदगी दूभर हो गई है। हर क्षण वे एक आशंका में रहने को मजबूर हैं। उन पर हमला हो सकता है, यह कोई कल्पना नहीं है। कन्हैया पर अदालत में वकीलों ने दिन-दहाड़े हमला किया। लेकिन उन वकीलों पर उच्चतम न्यायालय तक ने कोई कार्रवाई नहीं की। इसका संदेश भी स्पष्ट था। इन नौजवानों की जान को अदालत उतना महत्त्व नहीं देती है। ऐसा हमला अगर किसी न्यायाधीश पर हुआ होता तो अदालत क्या यही रूख अपनाती?

और आख़िरकार उमर को गोली मारने की कोशिश की गई।

जेएनयू की एक छोटी सभा पर अपने गंभीर मुख से भारत की जनता को इन छात्रों के ख़िलाफ़ सावधान करनेवाले गृह मंत्री के लिए यह इतनी क्षुद्र घटना है कि तीन दिन बाद तक उन्होंने इस पर मुंह नहीं खोला है। लेकिन उनके दल के विचार से जुड़े लोग जो बोल रहे हैं उसे सुनकर हमें सावधान हो जाना चाहिए। हम हत्या के प्रचारकों और समर्थकों के साये में रह रहे हैं।

शासक दल की एक सांसद ने घटनास्थल के क़रीब बिना कुछ जाने ही उमर पर गोली चलने के साथ उमर ख़ालिद ज़िंदाबाद के नारों के सुने जाने का ज़िक्र किया। यह भी कहा कि हो सकता है यह सब कुछ सनसनी फैलाने के लिए कहा जा रहा है। उसके बाद उनके एक प्रवक्ता ने एक टीवी चैनल पर कहा कि उमर भागे क्यों, उन्होंने सीना खोलकर गोली क्यों नहीं खाई! यह कहा जा रहा है कि यह सब ख़ुद उमर के लोगों का किया नाटक है।

जो कल तक यह कह रहे थे कि उमर देश के लिए ख़तरा हैं, आज वे कह रहे हैं कि वे चीज़ ही क्या हैं कि उन पर हमला किया जाए!

स्वाधीनता दिवस के ठीक पहले भारत के एक नौजवान पर, जो अपना दिमाग़ रखता है और उसके मुताबिक़ बात करने की हिम्मत भी रखता है, जिसका दिल समाज के हाशिए से भी बाहर कर दिए गए लोगों के लिए धड़कता है, उस पर हुए क़ातिलाना हमले को एक रूपक की तरह ही देखना चाहिए। यह आज़ादख़्याल हिंदुस्तान पर ही हुआ हमला है। अभी वह बच गया क्योंकि उसके साथ उसके कुछ हिम्मतवर दोस्त थे। इन दोस्तों के बिना अकेला वह मारा जा सकता है।

उमर को अकेला छोड़ने का मतलब अभी हिंदुस्तान को अकेला करना होगा।

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