खरी-खरी: निर्मला की दुविधा, कैसे सुधारें बिगड़ी अर्थव्यवस्था

सरकार का बजट ही वह माध्यम होता है जो देश की आशाएं पूरा करने का माध्यम होता है। अतः मोदी सरकार की दूसरी पारी के पहले बजट पर देश की निगाहें हैं। अब देखें कि सीतारमण क्या चमत्कार दिखाती हैं।

फोटो : सोशल मीडिया
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ज़फ़र आग़ा

नई वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के लिए 2019-20 का ऐसा बजट बना पाना, जिससे हर वर्ग को खुश रखा जा सके, एक महान चुनौती है। भारत में इस समय बेरोजगारी अपनी चरम सीमा पर है। देश की आर्थिक व्यवस्था बुरी दशा में है। ऑटोमोबाइल और सिविल एविशन इंडस्ट्री में हाहाकार मचा है। ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री की स्थिति यह है कि हजारों कारें और दोपहिया वाहन कारखानों और दुकानों में खड़े हैं और इनका कोई खरीददार नहीं है।

चुनाव की गहमागहमी और चुनावी नतीजों की तू-तू,मैं-मैं समाप्त हुए लगभग एक महीने का समय हो गया है। अब सरकार के लिए चुनावी वादों और कामकाज का समय प्रारंभ हुआ है। 17वीं लोकसभा का मानसून सत्र भी आरंभ हो चुका है। सांसद शपथ ले चुके हैं। नए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला अपना पद ग्रहण कर चुके हैं। अब ऐतिहासिक विजय के पश्चात मोदी सरकार के लिए इस वर्ष की सबसे बड़ी चुनौती का सामना है। अर्थात चंद दिनों बाद नई मोदी सरकार को अपना पहला बजट पेश करना है।

बजट हर सरकार के लिए एक जोखिम का काम होता है। भारत जैसे बड़ी जनसंख्या वाले देश में वित्त मंत्री को अपने बजट के माध्यम से देश के हर वर्ग को खुश रखने का चमत्कार करना होता है। निःसंदेह यह कोई सरल कार्य नहीं है। कारण यह है कि भारत में बड़े से बड़े कॉरपोरेट से लेकर मध्यवर्ग, नए छोटे शहरों में बसे निम्न मध्यवर्ग, सरकारी कर्मचारियों, किसानों, युवाओं, महिलाओं, तिजारत पेशा वर्ग और भारत की सबसे बड़ी जनसंख्या अर्थात गरीब एवं असहाय वर्ग तक हर वर्ग को एक बजट के माध्यम से खुश रख पाना केवल एक चमत्कारी वित्त मंत्री का ही कार्य हो सकता है।


अतः नई वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के लिए 2019-20 का ऐसा बजट बना पाना, जिससे हर वर्ग को खुश रखा जा सके, एक महान चुनौती है। फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक चमत्कारी नेता हैं। उनके पास एक ऐसा राजनीतिक मंत्र है जो बहुत कम नेताओं के पास होता है। वह गुर यह है कि देश की आर्थिक स्थिति अच्छी हो या बुरी, वह देश की जनता के मन में अपने भाषणों से अपार उम्मीदें और सपने जगा देते हैं।

सन् 2014 और 2019 के चुनावी नतीजे इस बात का प्रमाण हैं कि देश की आर्थिक व्यवस्था बेहद खराब होने के पश्चात भी भारत की बहुत बड़ी जनसंख्या ने मोदी जी के चमत्कारी व्यक्तित्व से आशामय होकर उनको सत्ता सौंप दी। जरा सोचिए, भारत में इस समय बेरोजगारी अपनी चरम सीमा पर है। आंकड़ों के अनुसार इस समय बेरोजगारी की दर 7.2 प्रतिशत है। दिलचस्प बात यह है कि पिछले 40-45 वर्षों में बेरोजगारी इस अवस्था में नहीं पहुंची थी। फिर भी बेरोजगार नौजवानों ने मोदी को जी भर कर वोट डाले। यह मोदी जी का कमाल नहीं तो क्या था कि भूखे पेट जनता के मन में भी वह आशा जगा रहे थे।

खैर, बेरोजगारी को जाने दीजिए, यूं भी देश की आर्थिक व्यवस्था बुरी दशा में है। स्वयं कॉरपोरेट जगत की स्थिति चिंताजनक है। यदि आप केवल ऑटोमोबाइल और नागरिक उड्डयन इंडस्ट्री पर नजर डालिए तो हाहाकार मचा है। ताजा खबरों के अनुसार केवल ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री की स्थिति यह है कि हजारों कारें और दोपहिया वाहन कारखानों और दुकानों में खड़े हैं और इनका कोई खरीददार नहीं है। हद यह है कि टाटा, मारुति, होंडा और महिंद्रा जैसी बड़ी कार कंपनियों ने घोषणा कर दी है कि वे फिलहाल कार निर्माण बंद कर रहे हैं।

इसका अर्थ क्या हुआ! बाजार में पैसा नहीं है कि लोग कार खरीदें। जब कार बिक नहीं रही तो कार निर्माण पर कॉरपोरेट जगत रोक लगा रहा है। जब कार निर्माण नहीं होगा तो कारखानों से लोग बाहर निकाले जाएंगे। अर्थात देश में बेरोजगारी और बढ़ेगी। इस प्रकार सिविल एविएशन सेक्टर में ‘जेट एयरवेज’ जैसी कंपनी बंद हो चुकी है और इस कारण हजारों लोग बेरोजगार हो चुके हैं। कई और नागरिक उड्डयन कंपनियां खतरे में हैं। स्वयं ‘एयर इंडिया’ पर कब ताला पड़ जाए कहना मुश्किल है।


यह तो केवल दो बड़ी इंडस्ट्री वाले सेक्टरों का हाल है। घर निर्माण की दशा तो पिछले पांच सालों से खराब है। मैं कोई अर्थशास्त्री नहीं कि अर्थव्यवस्था का बड़ा ज्ञान दे सकूं। परंतु हम और आप सभी पिछले दो-तीन वर्षों से खेत-खलिहानों की डूबती अर्थव्यवस्था का मातम करते रहे हैं। गांवों में खाक उड़ रही हैं। किसान का दाम तक नहीं निकलता है। फिर वह कर्ज में डूबकर आत्महत्या करता है।

इन परिस्थितियों में सीतारमण वित्त मंत्री बनकर खुश क्या अपना माथा पीट रही होंगी। उनकी समस्या यह है कि अर्थव्यवस्था को सुधारने के उपाय बहुत कम हैं। परंतु जिसने भी मोदी सरकार को दोबारा सत्ता तक पहुंचाया है उसको सरकार से आशाएं बहुत हैं।

सरकार का बजट ही वह माध्यम होता है जो देश की आशाएं पूरा करने का माध्यम होता है। अतः मोदी सरकार की दूसरी पारी के पहले बजट पर देश की निगाहें हैं। अब देखें कि सीतारमण क्या चमत्कार दिखाती हैं।

यह तो है अर्थव्यवस्था की स्थिति। परंतु राजनीतिक पटल पर उस वर्ग को बहुत चिंताएं हैं जिन्होंने बीजेपी एवं मोदी के नेतृत्व को इस बार वोट नहीं डाला। मोटे तौर पर इस लिबरल, सेकुलर एवं अल्पसंख्यक वर्ग की चिंता यह है कि क्या मोदी सरकार अपने दूसरे चरण में संविधान के साथ छेड़छाड़ तो नहीं करेगी। घोर राष्ट्रवादी विचारधारा पर आधारित बीजेपी क्या संघ का हिंदुत्व एजेंडा संविधान तक पर नहीं थोपेगी। अर्थात जिस उदारवादी ‘आइडिया ऑफ इंडिया’ पर आधारित संविधान का निर्माण हुआ था, उसको कठोर हिंदुत्व का रंग तो नहीं दिया जाएगा। ये शंकाएं देश के एक बड़े वर्ग को अभी से चिंतित कर रही हैं और इसका आधार यह है कि स्वयं प्रधानमंत्री संघ की विचारधारा में डूबे हिंदू हृदय सम्राट हैं।


इस संबंध में स्वयं प्रधानमंत्री ने शंकाएं मिटाने के संकेत तो दिए हैं। उनका यह जताना कि जिन्होंने उनको वोट नहीं दिया वह उनको भी साथ लेकर चलेंगे। यह अपने आप में आशाजनक बात है। अब प्रधानमंत्री को अपनी कार्यप्रणाली से यह सिद्ध भी करना होगा। यहां यह चुनावी तथ्य स्पष्ट करना आवश्यक है कि 2019 के चुनाव में बीजेपी को कुल 38 प्रतिशत वोट मिले हैं। सहयोगियों सहित एनडीए का कुल वोट 45 प्रतिशत बनता है। अर्थात देश की 55 प्रतिशत जनता अभी भी बीजेपी की हिंदुत्व विचारधारा के विरुद्ध है। इस परिप्रेक्ष्य में विचारधारा के आधार पर संविधान के साथ कोई छेड़छाड़ देश की बहुसंख्या की मंशा के खिलाफ होगी।

इसी परिप्रेक्ष्य में मोदी सरकार-2.0 का पहला संसद सत्र अत्यधिक महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि इस सत्र में मोदी सरकार की आर्थिक और राजनीतिक दिशा एवं दशा के स्पष्ट संकेत मिल जाएंगे और यह स्पष्ट हो जाएगा कि इस सरकार पर संघ का कितना नियंत्रण है।

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