शोध रिपोर्ट का दावा, तापमान की स्थिति से प्रभावित होती हैं किसान आत्महत्या की घटनाएं
खेत में जब फसल रहती है तब किसानों का दिन का समय लगभग अकेले सीधी धूप में बीतता है। जब तापमान अधिक होता है तब अकेला महसूस करना और अवसाद से भर जाना सामान्य है। इसीलिये तापमान बढ़ने के साथ ही आत्महत्या की घटनाएं भी बढ़ जाती हैं।
![फोटो: महेंद्र पाण्डेय](https://media.assettype.com/navjivanindia%2F2018-08%2Feabe430b-1491-433b-8bc9-e504d162690a%2F3fb57374_eb3d_4982_a1fb_0746f6e7e724.jpg?rect=0%2C4%2C1024%2C576&auto=format%2Ccompress&fmt=webp)
कर्ज के बोझ से दबे भारतीय किसानों की आत्महत्या भले ही देश की सत्ता के लिए कोई मुद्दा नहीं हो, पर पिछले कुछ वर्षों से यह अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बन गया है और विदेशी मीडिया में लगातार इसके बारे में बातें होती रहती हैं। किसानों द्वारा लगातार की जा रही आत्महत्याएं कितना भयानक रूप ले चुकी हैं, इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि सरकारी फाइलों और पुलिस के रिकार्ड्स के अनुसार वर्ष 1995 से अब तक 3 लाख से अधिक किसानों ने आत्महत्या की है। वास्तविक आंकड़ें निश्चित तौर पर इससे बहुत अधिक होंगे। यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया के वैज्ञानिकों के एक दल ने अपने अध्ययन से निष्कर्ष निकाला है कि पिछले तीन दशकों के दौरान किसानों द्वारा की गयी कुल आत्महत्याओं में से कम से कम 60000 से अधिक मामले बढ़ते तापमान की देन हैं। पिछले वर्ष अमेरिका के बर्कले स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया के विशेषज्ञों ने भारतीय किसानों द्वारा की जाने वाली आत्महत्याओं और बढ़ते तापमान पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की थी।
जिन दिनों फसल खेत में होती है, उन दिनों सामान्य की तुलना में तापमान में प्रति एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि से आत्महत्या के 67 मामले अधिक होते हैं। इसी तरह यदि तापमान 5 डिग्री सेल्सियस अधिक होता है तब सामान्य की तुलना में आत्महत्या के 335 मामले अधिक दर्ज किये जाते हैं। जिन दिनों कोई फसल खेत में नहीं होती, उन दिनों में तापमान वृद्धि का कोई असर आत्महत्या पर नहीं पड़ता। इसी तरह जिस साल में बारिश सामान्य से एक सेंटीमीटर अधिक होती है, उस साल आत्महत्या की संख्या में 7 प्रतिशत कमी होती है।
जब फसल की बुआई का समय नहीं रहता है, या जब फसल खेत में खड़ी नहीं रहती तब किसानों का अधिकतर समय घर या बाज़ार में बीतता है, जहां सीधी धूप से बचा जा सकता है और लोग अकेले नहीं रहते। इसके विपरीत खेत में जब फसल रहती है तब किसानों का दिन का समय लगभग अकेले सीधी धूप में बीतता है। जब तापमान अधिक होता है तब अकेला महसूस करना और अवसाद से भर जाना सामान्य है। अवसाद के दौर में मस्तिष्क में समस्याएं विकराल रूप धारण कर लेती हैं, और कई बार इनके चक्रव्यूह से बाहर आने का रास्ता नजर नहीं आता। इसीलिये तापमान बढ़ने के साथ ही आत्महत्या की घटनाएं भी बढ़ जाती हैं।
नेचर क्लाइमेट चेंज नामक जर्नल के 23 जुलाई के अंक में प्रकाशित एक शोधपत्र का निष्कर्ष है कि पृथ्वी का तापमान जैसे-जैसे बढे़गा वैसे ही आत्महत्या की घटनाओं में तेजी आयेगी। स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्री मार्शल बुर्के ने इस शोध के लिए अमेरिका में काउंटी-स्तर पर और मेक्सिको में म्युनिसिपॉलिटी स्तर पर आत्महत्या के आंकड़ों का अध्ययन किया और वर्ष 2050 के अनुमानित तापमान के आधार पर बताया कि उस समय तक वर्त्तमान की तुलना में आत्महत्या के 21000 मामले अधिक आने लगेंगे। बुर्के के अनुसार तापमान वृद्धि के कारण हजारों आत्महत्या के मामले केवल एक संख्या नहीं होगी, बल्कि सभी प्रभावित परिवारों के लिए ऐसा दुखद नुकसांन होगा जिसकी भरपाई कभी नहीं हो सकेगी। इस अध्ययन को इस तरह का अब तक किया गया सबसे बड़ा अध्ययन कहा जा रहा है।
सामान्य अवस्था में भी गर्मियों के महीने में ही आत्महत्या के अपेक्षाकृत अधिक मामले आते हैं। गर्मियों में बढ़ते आत्महत्या को बेरोजगारी और लम्बे दिनों से जोड़ा जा रहा है। मार्शल बुर्के के दल ने हरेक जगह के उपलब्ध पिछले कई दशकों के तापमान के आंकड़े और आत्महत्या की दर का गहन अध्ययन किया। इतना ही नहीं, बुर्के के सहयोगियों ने लगभग 50 करोड़ ट्विटर के मेसेज की भाषा का भी अध्ययन किया और यह जानने का प्रयास किया कि बढ़ता तापमान क्या लोगों को मानसिक तौर पर प्रभावित करता है। जब तापमान अधिक होता है तब अधिकतर लोग निराशाजक सोच से अवसाद में चले जाते हैं। ऐसी अवस्था में एकाकीपन, फंसना, घिर जाना और आत्महत्या जैसे शब्दों का अधिक उपयोग करने लगते हैं। इस दल का दावा है कि गर्मियों में लोग निराशाजनक भाषा का अधिक उपयोग करते हैं और अवसाद से घिर जाते हैं। संभवतः इसी कारण आत्महत्या की दर बढ़ती है।
अधिक तापमान मनुष्य की सोच को बदलने में सक्षम है और लोग अधिक हिंसक हो जाते हैं। ऐसे समय लोग अपने पर या दूसरों पर शारीरिक हमले भी अधिक करते हैं। वर्ष 2050 के तापमान वृद्धि के आकलन के अनुसार, अमेरिका और मेक्सिको में आत्महत्या की दर में क्रमशः 1.4 प्रतिशत और 2.3 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हो जायेगी।
स्पष्ट है, बढ़ता तापमान लोगों को अवसादग्रस्त करता है और कुछ लोग इससे इतने प्रभावित होते हैं कि आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं। समस्या तो यह है कि आने वाले वर्षों में तापमान वृद्धि की प्रबल संभावना है। तापमान वृद्धि को रोकना तो कठिन है, पर बढे़ तापमान में लोगों को अकेले नहीं छोड़ा जाए, कुछ हद तक यह संभव है। यदि एकाकीपन को मिटाया जा सके तब आत्महत्या में कमी लाई जा सकती है।
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