देश का प्रजातंत्र अब बहुत बीमार, स्वास्थ्य सेवाओं में भी चलता है BJP के ध्रुवीकरण और विभाजन का एजेंडा!

स्वास्थ्य सेवाओं में भी अब पक्ष-विपक्ष होने लगा है, हिन्दू-मुस्लिम तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने वर्ष 2017 में ही कर दिया था।

फोटो: सोशल मीडिया
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महेन्द्र पांडे

वर्ष 2024 के चुनावों से पहले बीजेपी देश के हरेक आयाम को और हरेक विभाग को खुलेआम अपने ध्रुवीकरण और विभाजन के एजेंडा में रंगने को आमदा है। ध्रुवीकरण और विभाजन का विरोध करने वाले हरेक पत्रकार और विपक्षी नेता जेल भेजे जा रहे हैं। हरेक निष्पक्ष पत्रकार और सरकार के कुचक्र को जनता के बीच उजागर करने वाला नेता इस अपराधी और हिंसक सत्ता की नजर में अपराधी है, और इस घृणित कार्य में न्यायपालिका के साथ ही सभी संवैधानिक संस्थाएं सत्ता का बखूबी साथ दे रही हैं।

 स्वास्थ्य सेवाओं में भी अब पक्ष-विपक्ष होने लगा है, हिन्दू-मुस्लिम तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने वर्ष 2017 में ही कर दिया था। अस्पताल में एक मौत पर एक अस्पताल का पंजीकरण रद्द कर दिया जाता है क्योंकि उस अस्पताल के ट्रस्टी में गांधी परिवार का नाम है, दूसरी तरफ दो दिनों में 31 मौतों के बाद भी किसी और अस्पताल पर कोई आंच नहीं आती।

महाराष्ट्र के नांदेड में स्थित शंकर राव चह्वाण गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में 30 सितम्बर से 2 अक्टूबर के बीच 31 मरीजों की मौत दर्ज की गयी, जिसमें से आधे से अधिक शिशु और नवजात हैं। कहा जा रहा है कि सभी मौतें अस्पताल में दवा और डॉक्टरों की कमी के कारण हुई हैं। इसके बाद से अस्पताल प्रशासन मामले की लीपापोती में जुटा है और स्थानीय प्रशासन और राज्य सरकार जांच कमेटी का दिखावा कर रही हैं। इससे पहले भी, अगस्त में ठाणे स्थित छत्रपति शिवाजी महाराज गवर्नमेंट हॉस्पिटल में दो दिनों के भीतर 18 मरीजों की मृत्यु दर्ज की गयी थी। नांदेड के बाद महराष्ट्र के औरंगाबाद से भी इसी तरह की खबरें आ रही हैं। इन सभी मामलों को सामान्य करार देने का प्रयास किया जा रहा है और कहीं भी कोई कार्यवाही नहीं की गयी।

 दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश के अमेठी में संजय गांधी मेमोरियल ट्रस्ट हॉस्पिटल में एक महिला की मौत पर राज्य सरकार और प्रशासन ने चंद घंटों की जांच के बाद ही अस्पताल का पंजीकरण रद्द कर दिया है। इस अस्पताल के पंजीकरण रद्द और बंद करने का कारण कोई मौत नहीं थी, यदि मौत कारण होती तो जांच की जाती और केवल लापरवाही करने वाले कर्मचारियों पर कार्यवाही की जाती। इस अस्पताल को बंद करने का असली कारण इसे चलाने वाला ट्रस्ट है – जिसकी अध्यक्ष सोनिया गांधी हैं और सदस्य राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा हैं।


स्वास्थ्य सेवाओं को पक्ष और विपक्ष में बदलने से पहले ही इसे धार्मिक आधार पर भी बांटा जा चुका है। याद कीजिये अगस्त 2017 का गोरखपुर के बाबा राघवदास मेडिकल कॉलेज के अस्पताल का मामला जिसमें कुछ दिनों के भीतर ही लगभग 70 बच्चों की मौत हो गयी थी। इतने के बाद भी ना तो अस्पताल पर कोई आंच आई और ना ही किसी और पर कोई प्रभावी कार्यवाही की गयी, बस ऑक्सीजन की कमी का मामला उठाने वाले डॉ कफील खान को विलेन बनाया गया, देशद्रोही करार दिया गया और जेल में डाला गया। यही नहीं, न्यायालयों के आदेशों के बाद भी उन्हें फिर से नौकरी पर बहाल नहीं किया गया।

 यह पूरा मामला ऑक्सीजन की कमी से जुड़ा था। लखनऊ की पुष्पा सेल्स नामक कंपनी अस्पताल में ऑक्सीजन की आपूर्ति करती थी, जिसका लगभग 70 लाख रुपये का बकाया था और इस कंपनी ने कई पत्र अस्पताल प्रशासन को यह बताते हुए लिखा था कि यदि बकाया राशि नहीं मिली तो ऑक्सीजन की आपूर्ति बाधित हो सकती है। इन पत्रों का अस्पताल प्रशासन ने कोई जवाब नहीं दिया था। यह सब सार्वजनिक होने के बाद भी अस्पताल दौरे पर गए मुख्यमंत्री आदित्यनाथ और तत्कालीन केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे पी नड्डा ने अस्पताल प्रशासन को पूरी मामले में क्लीन चिट देते हुए केवल डॉ कफील खान को दोषी ठहराया था।

बीजेपी कभी भी अपनी या फिर अपने विभागों की गलतियां स्वीकार नहीं कर सकती है, उलटा हास्यास्पद और घिनौने तरीके से उन्हें जायज ठहराती है। कोविड के दूसरे दौर में भी जब पूरे देश में ऑक्सीजन की कमी के कारण लोगों की मौतें हो रही थी, तब भी सत्ता ने देश को यही बताया था कि ऑक्सीजन की कमी से कोई नहीं मरा, और यही नरेटीव टीवी न्यूज़ चैनल पर बैठे उन तमाम टीवी एंकरों ने भी सुनाया जो ऑक्सीजन की कमी के दौर में रिपोर्टिंग कर रहे थे, और कई एंकरों ने तो अपने सगे-सम्बन्धियों को भी इसी कारण खोया था। सत्ता ने उस दौर में केवल अपनी गलती पर पैबंद वाला पर्दा नहीं डाला बल्कि हरेक उस व्यक्ति या संस्था को प्रताड़ित किया जिन्होंने लोगों तक ऑक्सीजन सिलिंडर पहुंचाया।

 हमारे प्रधानमंत्री जी पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जो जल्दी ही तीसरी भी हो सकती है का सब्जबाग़ दुनिया और जनता को दिखा दें, हमारी स्वास्थ्य सेवाएं दुनिया के सबसे पिछड़े देशों के समकक्ष खड़ी हैं। नम्बियो नामक संस्था की वेबसाइट पर 2023 के अर्ध-वार्षिक हेल्थ केयर इंडेक्स में कुल 94 देशों की सूचि में 45वें स्थान पर हैं, जबकि अपनी खस्ता हाल अर्थव्यवस्था से जूझता श्रीलंका 24वें स्थान पर है। इसी वेबसाइट पर क्वालिटी ऑफ़ लाइफ इंडेक्स में 84 देशों की सूचि में भारत 56वें स्थान पर है। देश में कुल जीडीपी का महज 2 प्रतिशत से कुछ अधिक स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च किया जाता है। इकनोमिक सर्वे 2022-2023 के अनुसार देश में सामजिक विकास के लिए जीडीपी का महज 8.3 प्रतिशत खर्च किया जाया है और वित्त वर्ष 2023 में स्वास्थ्य सेवाओं पर महज 2.1 प्रतिशत खर्च किया गया। यहाँ का मीडिया और हमारी सत्ता हमेशा बताती है कि हमारी अर्थव्यवस्था यूनाइटेड किंगडम और जर्मनी से आगे निकल गयी है और चीन तो हमारे समकक्ष कुछ भी नहीं है – यूनाइटेड किंगडम में जीडीपी का 11.3 प्रतिशत, जर्मनी में 12.7 प्रतिशत और चीन में 5.7 प्रतिशत स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च किया जाता है। अमेरिका के लिए यह आंकड़ा 16.6 प्रतिशत का है। हमारे देश में प्रति एक हजार आबादी पर महज 0.89 डॉक्टर और 1.6 नर्सें हैं।


स्वास्थ्य सेवाओं की लापरवाही से मरने वाले अधिकतर गरीब या निम्न मध्यम वर्ग की आबादी होती है। देश के अमीरों के लिए हरेक सुविधा उपलब्ध है। हवाई यात्रा करने वाले उच्च मध्यम वर्गीय या फिर अमीर होते हैं। हाल में ही रांची से दिल्ली आ रही इंडिगो की फ्लाइट में एक 6 महीने के शिशु को, जिसे ह्रदय की समस्या थी, सांस लेने में गंभीर परेशानी होने लगी। उस फ्लाइट में झारखण्ड सरकार के मुख्य सचिव, नितीश कुलकर्णी, जो पेशे से डॉक्टर हैं, और रांची के डॉक्टर मोज़म्मिल फेरोज़ ने बच्चे की देखभाल की और उसकी जान बचाई।

 इसी वर्ष अगस्त में बेंगलुरु से दिल्ली आ रही विस्तारा की फ्लाइट में भी एक 2 वर्षीय बच्चे को सांस की गंभीर समस्या उत्पन्न हुई तब फ्लाइट में बैठे पांच डॉक्टरों ने उसकी देखभाल की और स्थिति को बिगड़ता देख फ्लाइट की इमरजेंसी लैंडिंग नागपुर में कराई गयी।

 यह अच्छा है कि फ्लाइट में भी जरूरत पड़ने पर स्वास्थ्य सुविधाएं मिल रही हैं और मरीजों की जान बच रही है, पर दूसरी तरफ बुनियादी सुविधाओं के अभाव में अस्पतालों में आम मरीज मर रहे हैं और सरकार इसे मामलों से सीख लेने के बजाय मामले को रफा-दफा करने में विश्वास रखती है। बीजेपी सरकारें तो अब स्वास्थ्य सेवाओं को पक्ष-विपक्ष और हिन्दू-मुस्लिम से जोड़ कर देखने लगी हैं। जाहिर है देश का प्रजातंत्र अब बहुत बीमार है। सभी शातिर अपराधी रामनामी चादर ओढ़कर सत्ता में बैठ गए हैं, और जनता रामनामी चादर देखकर खुश है।

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