दो माह से आहट दे रही थी कोरोना नाम की महामारी, विपक्ष के लाख कहने पर भी नहीं जागी मोदी सरकार, अब मचा हाहाकर!

अमेरिका और चीन के बीच बढ़ रही तकरार के बीच भारत के लिए चिंता कई गुना बढ़ी है। यहां इस वायरस से मृतकों का आंकड़ा दोहरा अंक यानी 10 को छू चुका है। भारत में संक्रमित लोगों की तादाद 600 के करीब पहुंच चुकी है।

फोटो: सोशल मीडिया
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उमाकांत लखेड़ा

ऐसे नाजुक दौर में जबकि दुनियाभर में कोरोना संक्रमण से मतृकों की तादाद 16573 और कुल संक्रमित लोगों की तादाद 396,000 के चिंताजनक आंकड़े को छू गई। अमेरिका ने चीन को इस बात के लिए घेरा हुआ है कि इस भयावह आपदा को लेकर शुरूआती सूचनाएं छिपाईं। जिस वजह से अमेरिका और बाकी मुल्कों को संभलने में देर लगी। अमेरिका और चीन के बीच बढ़ रही तकरार के बीच भारत के लिए चिंता कई गुना बढ़ी है। यहां इस वायरस से मृतकों का आंकड़ा दोहरा अंक यानी 10 को छू चुका है। भारत में संक्रमित लोगों की तादाद 600 के करीब पहुंच चुकी है।

दुनिया भर में विशेषज्ञ इस बात से चिंतित हैं कि विश्व इतिहास की इतनी बड़ी महामारी का सामना करने के लिए प्रभावित देशों के अलावा संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से इस संकट से एकजुटता के साथ कंधे से कंधा मिलकर लड़ने का भावना का एकदम अभाव झलक रहा है। भारत में कई स्तरों पर आम नागरिक, विपक्षी दल और विशेषज्ञ इस बात को लेकर मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा करने से पीछे नहीं हट रहे कि सरकार ने इस पूरी महामारी के खतरे को बहुत हल्के में लिया।


भारत के इतर दुनिया के जाने माने इतिहासकार युवा नोवा हरारी ने फाइंनेशियल टाईम्स में लिखे ताजा लेख में कहा है कि मौजूदा दौर में राष्ट्रवाद और अलगाव के बीच इस महामारी के विश्वव्यापी अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले वाले संकट का आपसी सहयोग की कमी खल रही है। उनका जोर प्राथमिक स्तर पर इस बात पर है कि विश्व के मुल्कों के बीच सूचनाओं का आदान प्रदान होना चाहिए क्योंकि इस बीमारी के संक्रमण से निपटने के लिए एक दूसरे के अनुभव जरूर काम आ सकते हैं। इस सहयोग की बुनियाद से तात्कालिक तौर पर चिकित्सा उपकरणों के आदान प्रदान के साथ मेडिकल टीमों को एक आपात हालात में एक दूसरे के देशों में भेजने की व्यवस्था हो सकती है। सूचनाओं को आपस में बांटने को वे इसलिए जरूरी है कि अगर दुनिया के किसी कोने के मुल्क में इस वायरस से निपटने के लिए कोई उपचार इजाद होता है तो दुनिया के किसी दूसरे कोने में उसका लाभ मिल सकता है।

सार्क देशों के बीच इस महामारी से निपटने को आवश्यक सहयोग को लेकर डाक्टरों और राजनयिक क्षेत्रों में सकारात्मक पहल के तौर पर देखा जैसा कि पूर्व राजदूत अशोक कुमार शर्मा कहते हैं, “सार्क देशों के साथ प्रधानमंत्री की वीडियो कॉफ्रेंसिंग से तात्कालिक तौर पर भले ही कोई परिणाम नहीं निकले लेकिन इससे सभी संबंधित देशों की कूटनीतिक और ब्यूरोक्रेसी में संदेश जाता है। जैसे कि पड़ोसी पाकिस्तान ने कोरोना से निपटने के लिए भारत से सहयोग की पेशकश की है। ऐसे ही बाकी पड़ोसी मुल्कों; अफगानिस्तान, श्रीलंका, मालदीव, नेपाल और भूटान के साथ इस बहाने डाक्टरों की टीम, दवाओं और उपकरणों की कमी होने पर एक दूसरे के साथ सहयोग को दीर्घकालिक बना सकते हैं।


मेदांता मेडिसिटी गुड़गांव के चेयरमैन डॉ. नरेश त्रेहन कहते हैं, “सरकारी और निजी क्षेत्र दोनों मिलकर इस आपदा से पैदा चुनौती का सामना कर सकते हैं। उनका मानना है कि दुनिया के देश हों या भारत का सरकारी और निजी मेडिकल क्षेत्र एक दूसरे के अनुभवों को साझा करके ही इस चुनौती का सामना किया जा सकता है। भारत में दिनों दिन कोराना रोगियों की तादाद में हो रही बढ़ोतरी से चिंतित डॉ. त्रेहन मानते हैं हम भले ही कहें अभी भारत इस महामारी के दूसरे चरण में है लेकिन वास्तव में हम तीसरी स्टेज में लगभग पहुंचने की स्थिति में पहुंच चुके हैं।

दुनिया भर में विशेषज्ञ इस बात से भी चिंतित हैं कि कोरोना के बाद दुनिया के कई देशों में इस खतरनाक वायरस के उपचार को लेकर दवा या टीके के अनुसंधान को लेकर तीखी जंग छिड़ गई है। जानी मानी अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका नेचर के ताजा अंक में प्रकाशित एक लेख में इस बाबत छिड़ी प्रतिस्पर्धा पर चिंता प्रकट की गई है। हालांकि भारत में कम्युनिटी हेल्थ पर काम कर रहे देहरादून के डाक्टर महेश भट्ट कहते हैं, “इन नकारात्मक प्रतिस्प्रधाओं के बावजूद अच्छी बात यह है इस महामारी से बुरी तरह प्रभावित चीन ने दुनिया भर में अपनी आलोचनाओं के इतर सूचनाओं का आदान प्रदान किया है। स्पिरिच्यल हेल्थ पर दुनिया भर मे चर्चित पुस्तक लिख चुके डा भट्ट कहते हैं, “सामुदायिक और स्वास्थ्य की पहली सीढ़ी यहीं से आरंभ होती है कि हरेक इंसान अपने भीतर यानी अंर्तमन में अपने और समाज प्रति सकारात्मक सोच को निष्ठा से अपनाए तभी समाज को निरोग और स्वस्थ बनाया जा सकता है।”

कोरोना से निपटने को विश्वव्यापी जागरुकता के सार्थक परिणामों पर संतुष्ट विशेषज्ञों की यह भी सलाह है कि जो आरंभिक लक्षण इस महामारी के बारे में बताए जा रहे हैं उन्हें छिपाने के बजाय जितना जल्द हो ऐसे रोगी तुरंत डाक्टर को दिखाएं तथा परिवार से अलग-थलग हो जाएं। जो लोग स्वस्थ हैं उन्हें जनता कर्फ़्यू का कड़ाई से पालन करना चाहिए। एम्स अस्पताल दिल्ली में संक्रमण रोग विभाग की फीजिशियन रह चुकीं डा. अंकिता वैद्य कहती हैं, “पूरी दुनिया में घातक वायरस से बचाव की एक ही उपचार है कि यदि आप स्वस्थ महसूस नहीं कर रहे। खांसी, बुखार और सांस लेने में दिक्कत है तो तत्काल डाक्टर से परामर्श लें।”

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