अमेरिका से भारत तक नफरत और ध्रुवीकरण की ओछी राजनीति का दौर!

हमारे देश की राजनैतिक और सामाजिक स्थिति अमेरिका जैसी ही है। अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है तो दूसरी तरफ हमारे देश में भी स्वयं प्रधानमंत्री अपने तीसरे कार्यकाल की चर्चा कर चुके हैं और अमित शाह तो हरेक बैठक में यह बात दुहराते हैं।

फोटो: सोशल मीडिया
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महेन्द्र पांडे

हाल में ही एक अध्ययन में बताया गया है कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति और अब तमाम मुकदमे झेल रहे डोनाल्ड ट्रंप कोई चमत्कारी नेता नहीं थे जैसा अक्सर कहा जाता है, बल्कि वे एक ऐसे नेता हैं जो नस्ली-भेदभाव, रंगभेद और नफरती राजनीति के पुरोधा थे– और समाज की बदकिस्मती यह है कि यही सब अधिकतर लोगों को पसंद है। डोनाल्ड ट्रंप में अपने समर्थकों के ब्रेनवाश की क्षमता नहीं है, बल्कि उनकी ओछी राजनीति ही अमेरिकी समाज का वास्तविक चेहरा है। इस अध्ययन को यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सटर की समाजशास्त्री सुसंनाह क्रोच्फोर्ड ने किया है और इसे इम्प्लिसिट रिलिजन नामक जर्नल में प्रकाशित किया गया है।

सुसंनाह क्रोच्फोर्ड के अनुसार डोनाल्ड ट्रंप को उनके समर्थक और बहुत सारे विरोधी भी चमत्कारी नेता बताते हैं, क्योंकि इसकी व्याख्या करना अपेक्षाकृत आसान है और अमेरिकी समाज की हकीकत भी स्पष्ट नहीं होती। ट्रंप की राजनीति नस्ली भेदभाव, क्रिश्चियन राष्ट्रीयता और कट्टर दक्षिणपंथी विचारधारा पर आधारित थी और दुर्भाग्य से यही समाज की हकीकत है। यही कारण है कि नैतिक तौर पर विकलांग और राष्ट्रपति पद के लिए पूरी तरह से अयोग्य डोनाल्ड ट्रंप तमाम मुकदमों के बाद भी आज भी राष्ट्रपति पद के सबसे प्रबल दावेदार हैं। तमाम मानवाधिकार और सामाजिक समानता के दावों के बाद भी आज भी अमेरिका में गोरा रंग किसी को भी बेहतर राजनीति अधिकार, आर्थिक संपन्नता और कानूनी सहूलियतों की गारंटी देता है। अमेरिका में अधिकतर आबादी क्रिश्चियनिटी को गोरे रंग से जोड़ती है और क्रिश्चियन राष्ट्रवाद का महिमामंडन करती है, जिसके अनुसार गोरे क्रिश्चियन ही अमेरिका को आगे बढ़ा सकते हैं और हरेक दूसरे वर्ण, नस्ल और विचारधारा के लोग अमेरिका को गोरे क्रिश्चियनों से छीनना चाहते हैं। इसी विचारधारा की डोनाल्ड ट्रंप लगातार चर्चा करते हैं।

हमारे देश की राजनैतिक और सामाजिक स्थिति अमेरिका जैसी ही है। अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है तो दूसरी तरफ हमारे देश में भी स्वयं प्रधानमंत्री अपने तीसरे कार्यकाल की चर्चा कर चुके हैं और अमित शाह तो हरेक बैठक में यह बात दुहराते हैं। पर, प्रधानमंत्री मोदी भी ट्रंप की तरह कोई चमत्कारी नेता नहीं है, बल्कि समाज में व्याप्त धर्मभेद, हिंसा और सामाजिक असमानता को बढ़ावा दे रहे हैं।

तमाम रिपोर्ट लगातार बताती रही हैं कि हमारे देश का प्रजातंत्र अब निरंकुश और धर्मांध हो गया है। सत्ता और तमाम समर्थकों के सपनों का देश तैयार हो रहा है, जहां मीडिया पर सत्ता से जुड़े लोग कैमरे के सामने देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने का, एक धर्म-विशेष की आबादी को ख़त्म कर देने का आह्वान करते हैं। सतही तौर पर लगता है कि सत्ता और उसके समर्थकों की विशाल फ़ौज जैसा भारत बनाना चाहती है, वैसा भारत बन चुका है – और देश की जनता खुश भी होगी। पर, ऐसा बिलकुल नहीं है। हैप्पीनेस इंडेक्स में कुल 137 देशों की सूचि में हम 126वें स्थान पर हैं, यानि केवल 11 देश ऐसे हैं जहां की प्रजा भारत से भी अधिक दुखी है।


भारत जैसे देशों में धार्मिक आधार पर भले ही लिखित क़ानून न बनाए जाते हों, पर सत्ता द्वारा धार्मिक कट्टरता का प्रचार धार्मिक कानूनों वाले देशों से भी कई गुना अधिक किया जाता है। दरअसल धर्म के आधार पर सत्ता का आधार एक विभाजित समाज ही होता है। आप इसमें किसी धर्म की रक्षा नहीं करते या फिर उसे आगे नहीं बढ़ाते बल्कि केवल दूसरे धर्मों के विरुद्ध नफरत फैलाते हैं। हमारे देश में सत्ता प्रचारित यह धारणा जनता तक पहुंचा दी गयी है कि भारत केवल हिंदूओं का देश है और हिंदूओं को इस्लाम और दूसरे धर्मों से खतरा है। हमारे देश में सत्ता में बैठे लोगों की खुशनसीबी है कि मीडिया जैसी कोई चीज इस देश में बची ही नहीं है। मीडिया के नाम पर जो आप न्यूज़ चैनल देखते है, या समाचारपत्र पढ़ते हैं वह तो महज सरकार का प्रचार तंत्र है जो बीजेपी के आईटी सेल के तरह झूठ और नफरत फैलाने का माध्यम है।

हमारा देश वर्ष 2019 के चुनावों में बीजेपी की नहीं बल्कि मोदी जी की दुबारा जीत के बाद से ही अघोषित हिन्दू राष्ट्र में तब्दील हो गया है और इसका सार्वजनिक समारोह नई संसद भवन के उद्घाटन के समय किया गया था। इस समारोह में संसद भवन में तथाकथित साधु-संतों और तांत्रिकों का एकाधिकार था। वैसे भी देश यही चला रहे हैं। धीरेन्द्र शास्त्री तो हिन्दू राष्ट्र का राग अलापते अलापते राष्ट्र पुरुष बन बैठे। जैसे अडानी के विरोध करने वालों पर पूरी सत्ता और उनके हिंसक समर्थकों की फ़ौज टूट पड़ती है, ठीक उसी तरह धीरेन्द्र शास्त्री के विरुद्ध हरेक आवाज को सत्ता द्वारा देश और हिन्दू के विरुद्ध करार दिया जाता है। इस सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धियां ही कभी बारिश कभी चट्टानों के खिसकने और कभी ग्लेशियर के टूटने से बंद होने वाली चारधाम आल वेदर हाईवे, तमाम लोगों को बेघर करने वाले विश्वनाथ मंदिर कौरिडोर, एक आंधी में बिखरने वाले महाकाल कौरिडोर और तमाम घपले और आर्थिक अनियमितताओं से घिरा भव्य राम मंदिर ही तो हैं।

हाल में ही यूनिवर्सिटी ऑफ़ कोपेनहेगेन और यूनिवर्सिटी ऑफ़ लुंड के वैज्ञानिकों के संयुक्त दल ने एक विस्तृत अध्ययन कर बताया है कि मानव समाज के विकास के प्रारम्भिक चरण से लेकर आजतक अधिकतर सत्ता अपने आप को सामान्य जनता से अलग करने के लिए और अपनी निरंकुशता को जनता की नज़रों से दूर करने के लिए धर्म का सहारा लेती रही है। ऐसी हरेक सत्ता प्रजातंत्र से कोसों दूर होती है, जनता सामाजिक विकास से मरहूम रहती है, महिलाओं का शोषण होता है, सामाजिक असमानता बढ़ती है, अल्पसंख्यकों के अधिकार छीने जाते हैं और इन सबके बीच देश या समाज का मुखिया अपने आप को भगवान का प्रतिनिधि बता कर जनता को लूटता है और अपने आप पर उठते सवालों को ईश्वर का अपमान बनाता है।

हमारे देश में सत्ता समर्थित धार्मिक उन्माद का यह आलम है कि टीपू सुल्तान जैसे महान योद्धा और सर्व-धर्म समभाव को सही मायने में आगे बढ़ाने वाले को तथ्य-विहीन तरीके से हिन्दू-विरोधी करार दिया जाता है, मुगलों का इतिहास पुस्तकों से बाहर कर दिया जाता है, सभी खानों की फिल्मों के बहिष्कार का आह्वान किया जाता है। रोज सत्ता और मीडिया ऐसी नफरत वाली कहानियां गढ़ते हैं और जनता के सामने प्रस्तुत करते हैं। जिस संविधान के सामने मोदी जी अनेकों बार शीश झुकाने की नौटंकी वाला प्रदर्शन कर चुके हैं, वही संविधान हमें धर्मनिरपेक्ष बनाता है। पर, 2014 के बाद से बीजेपी सरकार का पूरा अस्तित्व ही धर्मान्धता और जय श्री राम के जयकारों पर टिका है। अब तो संसद में, चुनावों में और दूसरे भाषणों में भी प्रधानमंत्री समेत सभी सत्ता लोभी नेता इसी जयकारे को दुहराते हैं और इसे ही देश के विकास का पैमाना बताते हैं।


आजाद भारत के इतिहास में पहली बार ऐसा हो रहा है जब धर्म व्यक्तिगत आस्था के विषय से बाहर निकलकर सत्ता के गलियारों में भटक रहा है। इसी धर्म के सरकारी संस्करण के कारण देश दो हिस्सों में बंट गया है। एक तरफ धर्म के ठेकेदार सत्तालोभी नेता, उनके चाटुकार और समर्थक हैं, जो धर्म को अपनी जागीर मानते हैं। दूसरी तरफ वे लोग हैं जिनके मुंह से अपने धर्म के बारे में कोई शब्द निकलते ही वे धर्मं को नीचा दिखाने के और धार्मिक भावनाएं भड़काने के आरोपी करार दिए जाते हैं। हालात तो यहाँ तक पहुँच गए हैं कि अब तो हिंसा के बाद भी और यहाँ तक की ह्त्या के बाद भी हिन्दू हिंसक कट्टरवादी गिरोह पुलिस और मीडिया के सामने जय श्री राम का जयकारा सुनाते हैं। यह जयकारा एक ऐसा उद्घोष बन गया है, जिसके लगाते ही किसी के द्वारा किये गए बलात्कार, किसी के द्वारा की गयी हिंसा या फिर हत्या एक राष्ट्रभक्ति में तब्दील हो जाती है। पुलिस, न्यायालय और प्रशासन

 नारे लगाने वालों को, जयकारा लगाने वालों को सुरक्षित करती हैं और हिंसा के शिकार लोगों, गवाहों और उनके परिवारों को साजिश रचने, देशद्रोह जैसे मुकदमें में फंसा देती है। धर्मान्धता ने तो सर्वोच्च न्यायालय के एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश को राज्य सभा तक पहुंचा दिया है। इतना तो स्पष्ट है कि नेता चमत्कारी नहीं होते। डोनाल्ड ट्रंप और मोदी जी भी चमत्कारी नहीं हैं – जिसे हम चमत्कार मानते हैं दरअसल वहा हमारे समाज की कुरीतियाँ हैं – जिन्हें ये नेता सुलगाते हैं और राज करते हैं। 

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