ज़फ़र आग़ा का लेखः मुस्लिम समाज पर सामाजिक क्रांति की दस्तक है सऊदी अरब में एक बेटी का घर से भागना

रहाफ मोहम्मद अलकुनुन ने जिस प्रकार घर से भागकर अपनी आजादी हासिल की और सारी दुनिया ने जिस तरह उसका साथ दिया उससे यह स्पष्ट है कि सऊदी अरब करवट बदल रहा है। अब सऊदी समाज को बहुत लंबे समय तक हर प्रकार के मानवाधिकारों पर पाबंदी लगाकर नहीं रखा जा सकता है।

फोटोः सोशल मीडिया
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ज़फ़र आग़ा

इन दिनों सऊदी अरब की एक युवा लड़की रहाफ मोहम्मद अलकुनुन सारी दुनिया के मीडिया जगत में छाई हुई है। रहाफ का कमाल यह है कि वह अपने घर से भाग गई है। पहले अगर कोई लड़की घर से भागती थी तो वह सारी दुनिया में बदनाम और ‘रुसवाये ज़माना’ समझी जाती थी। लेकिन इस इक्कीसवीं सदी में रहाफ घर से भागने के लिए दुनिया भर में चर्चित हो रही है। होना भी चाहिए। क्योंकि रहाफ मोहम्मद ने अपने देश सऊदी अरब का चलन ही नहीं अपितु कानून भी तोड़ा है।

चलन और कानून भी ऐसा जो महिलाओं के प्रति तमाम मानवाधिकारों की अवहेलना करता है। सऊदी कानून के अनुसार रहाफ मोहम्मद का जुर्म यह है कि वह अपने पिता और घरवालों की मर्जी के खिलाफ घर ही नहीं परंतु अपना देश भी छोड़कर चली गई। सऊदी कानून के अनुसार कोई भी महिला अपने किसी पुरुष अभिभावक को साथ लिए बिना घर से बाहर नहीं निकल सकती है।

जी हां, सऊदी अरब औरतों के लिए एक जेलखाना है। वहां औरत आज भी इस इक्कीसवीं सदी में पहले तो घर से बाहर नहीं निकल सकती है, अगर कभी निकले भी, तो उनके साथ उनके अभिभावक यानी पिता, पति या भाई का होना आवश्यक है। फिर सिर से पांव तक काला नकाब तो अनिवार्य है ही।

अगर कोई महिला नौकरी करना चाहती है तो वह केवल सरकार द्वारा घोषित नौकरियां ही कर सकती है। अगर वह इसमें से किसी भी बात का उल्लंघन करती है तो पहले उसके अपने घर वाले उसके साथ दुर्व्यवहार करेंगे। अगर वह फिर भी नहीं मानती, तो अभिभावक की शिकायत पर उसको जेल भेज दिया जाएगा। जहां वह न जाने कब तक कैद रह सकती है।

रहाफ मोहम्मद अलकुनुन का अपराध भी यही था कि वह घर वालों की लगाई पाबंदियों को मानने को तैयार नहीं थी। वह अकेले घर से निकल जाती थी। फिर पिता और भाई की पिटाई सहती थी। कमरे में कैद कर दी जाती थी। अलकुनुन आर्थिक रूप से समृद्ध घराने से ताल्लुक रखती थी। अपने परिवार के साथ दुनिया घुम चुकी थी। आज के स्मार्ट फोन और सोशल मीडिया की दुनिया में उसको दुनिया का हाल पता चलता था। 18 साल की उम्र आते-आते उसने ठान लिया था कि औरतों की ‘कैद’ सऊदी अरब में वह अपना बाकी जीवन नहीं गुजारेगी।

दो हफ्ते पहले उसके पिता घरवालों के साथ कुवैत घूमने गए। बस, वहां होटल से रातों-रात भागकर वह थाइलैंड पहुंच गई। फिर वहां उसने अपने को एक कमरे में बंदकर लिया, जहां से सोशल मीडिया के जरिए उसने अपनी दुर्दशा दुनिया को बताई। फिर छह दिन बाद यूएन रिफ्यूजी विभाग से उसको रिफ्यूजी घोषित कर दिया गया। कनाडा ने उसको शरण दे दी। आज रहाफ मोहम्मद अलकुनुन कनाडा में आजादी की सांस ले रही है। अब वह हर बात करने को तैयार है जिस पर सऊदी अरब में पाबंदी थी।

लेकिन यह बात मत भूलिए कि आज भी सऊदी अरब में रहाफ मोहम्मद अलकुनुन जैसी लाखों महिलाएं मर्दों की गुलामी का जीवन व्यतीत करने पर मजबूर हैं। आखिर क्यों? अगर आप सऊदी अरब की व्यवस्था से यह बात पूछें कि आखिर उनके देश में औरतों पर इतनी रोक-टोक क्यों है, तो उनका जवाब यही होता है कि इस्लाम इसकी इजाजत नहीं देता है।

मेरी राय में इस्लाम पर शायद इससे बड़ा कोई और लांछन नहीं हो सकता कि इस्लाम धर्म औरतों को गुलाम बनाकर रखने में विश्वास रखता है। मैं इस्लाम धर्म का कोई बड़ा ज्ञानी नहीं हूं। परंतु मुझे भी इतना ज्ञान तो है कि इस्लाम का स्रोत कुरान है। जब मैंने कुरान को समझ कर इस्लाम में औरतों के अधिकार को समझने की कोशिश की तो मुझे एक दूसरी ही तस्वीर मिली। कुरान समझने के बाद मैं अब यह कह सकता हूं कि मानवता को जेंडर जस्टिस की चेतना सबसे पहले इस्लाम ने दी।

आज जब भारतवर्ष में 10 से 50 साल की औरतों के सबरीमाला मंदिर में प्रवेश पर एक हंगामा मचा हुआ है, तो आप सोचिए इस्लाम ने हर मस्जिद का दरवाजा बेधड़क औरतों के लिए उस समय खोल दिया था। यह सातवीं शताब्दी में औरतों का धार्मिक इंपावरमेंट नहीं तो और क्या था?

पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब की मस्जिद में औरत और मर्द एक साथ नमाज पढ़ते थे। आज भी इस्लाम के सबसे पवित्र स्थान काबा की मस्जिद में हज के मौके पर औरत-मर्द साथ नमाज पढ़ते हैं। केवल इतना ही नहीं, मेरे ख्याल से कुरान पहला धार्मिक ग्रंथ है जो औरत को अपने पति और माता-पिता की संपत्ति में अधिकार देता है। फिर इस्लाम कुरान के अनुसार वह पहला धर्म है जिसने औरत को सातवीं सदी में अपनी मर्जी से तलाक का अधिकार दिया। केवल इतना ही नहीं स्वयं मोहम्मद साहब अपने जीवनकाल में अपनी पत्नियों सहित मदीने की औरतों को जंग में साथ लेकर जाते थे, जहां वह घायलों के इलाज का काम करती थीं।

क्या आपको कुरान की इन बातों के बाद यह संभव लगता है कि एक इस्लामिक देश में औरत का जीवन एक कैदखाने में बीतना चाहिए। हरगिज नहीं। तो फिर सऊदी अरब और मुस्लिम समाज में औरत पर इतनी पाबंदियां क्यों? स्पष्ट है कि सऊदी अरब में जो पाबंदियां हैं उनका सीधा संबंध उनकी कबीलाई प्रथा से है। सऊदी समाज आज भी एक कबीलाई समाज है जिसमें औरतें मर्द की मर्जी के बिना सांस भी नहीं ले सकती हैं। एक समय था कि दुनिया भर में औरतों के कोई अधिकार नहीं होते थे।

औरतें मुख्यतः अपने पिता और पति की मर्जी की गुलाम होती थीं। परंतु विज्ञान की तरक्की से उत्पन्न औद्योगिक क्रांति ने दुनिया में जो सामाजिक क्रांति पैदा की उसने धीरे-धीरे औरतों को मर्दों के बराबर खड़ा कर दिया। परंतु वह समाज जहां यह सामाजिक क्रांति नहीं उत्पन्न हुई है वहां आज भी औरत को रहाफ मोहम्मद अलकुनुन जैसा जीवन गुजारना पड़ता है।

परंतु रहाफ मोहम्मद अलकुनुन ने जिस प्रकार घर से भागकर अपनी आजादी हासिल की है उससे यह स्पष्ट है कि सऊदी अरब करवट बदल रहा है। अब सऊदी समाज के हर प्रकार के मानवाधिकारों पर बहुत लंबे समय तक पाबंदी लगाकर नहीं रखा जा सकता है। कुछ समय पहले खाशोज्जी की हत्या पर सारे संसार में जो हल्ला हुआ और फिर अभी अलकुनुन के मामले पर सारी दुनिया ने जो उसका साथ दिया वह इस बात की पुष्टि करता है कि सऊदी अरब में एक सामाजिक क्रांति करवट ले रही है और उसका लावा कभी भी फूट सकता है।

सच तो यह है कि सऊदी अरब ही नहीं सारी दुनिया में मुस्लिम समाज में एक सामाजिक क्रांति की आवश्यकता है। लेकिन इस क्रांति पर अभी भी मुल्ला समाज का अकुंश लगा हुआ है जो धीरे-धीरे अब ढीला पड़ रहा है। रहाफ मोहम्मद अलकुनुन जैसे लोग इस बात का इशारा कर रहे हैं कि पूरा मुस्लिम समाज अब बदलाव की कगार पर है और एक सामाजिक क्रांति अब मुस्लिम समाज पर दस्तक दे रही है।

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