एक ही है मोदी और ट्रंप की बुनियाद, इसलिए नहीं रखनी चाहिए दौरे से कोई उम्मीद

ट्रंप बिना कागज वाले आव्रजकों को ‘ठग’ और ‘जानवर’ सहित ‘अपराधी और बलात्कारी’ तक बता चुके हैं, जबकि मोदी ‘प्रदर्शन करने वालों को कपड़ों से पहचानने और इससे पहले गुजरात का सीएम रहते दंगों के बाद बने गोधरा के राहत शिविरों को ‘बच्चे पैदा करने की फैक्ट्री’ कह चुके हैं।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया

अमेरिकी राष्ट्रपति की भारत यात्रा ऐसे समय हो रही है, जब घरेलू मोर्चे पर दोनों ही नेताओं- डोनाल्ड ट्रंप और नरेंद्र मोदी, को मुश्किल हालात का सामना करना पड़ रहा है। वैसे, ट्रंप महाभियोग की आंच से सकुशल निकल चुके हैं और अमेरिकी इतिहास में वह केवल तीसरे ऐसे राष्ट्रपति बन चुके हैं जिनके खिलाफ महाभियोग का मामला चला। दूसरी ओर, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बुनियादी तौर पर भेदभावपूर्ण संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के कारण लाखों लाख लोगों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है।

यह पहली बार है जब प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी को इस पैमाने पर विरोध का सामना करना पड़ रहा है। इसलिए, ट्रंप की इस यात्रा को लेकर चाहे जिस भी तरह का माहौल बनाया जा रहा हो, हमें मौजूदा राजनीतिक माहौल को भी देखना चाहिए, जिसने दुनिया के सबसे बड़े और सबसे पुराने लोकतंत्रों के दो नेताओं को घरेलू स्तर पर उलझा कर रखा हुआ है।

‘नमस्ते ट्रंप’ से लेकर ‘हाउडी मोदी’ तक एक चक्र जैसे पूरा हो गया। ह्यूस्टन में 2019 के सितंबर में आयोजित हाउडी मोदी कार्यक्रम में करीब 50 हजार अमेरिकी भारतीयों ने भाग लिया था और इसमें ट्रंप भी शामिल हुए थे। अमेरिका में अपने इस शानदार कार्यक्रम के बदले मोदी ने ट्रंप को भरोसा दिलाया था कि उनके भारत आने पर लाखों-लाख लोग उन्हें हाथों-हाथ उठाएंगे।

मोदी और ट्रंप की राजनीति में काफी-कुछ समानता है। दोनों ही नेता राष्ट्रवाद, बहुसंख्यकवाद के साथ भय और ध्रुवीकरण के इर्द-गिर्द राजनीति करते हैं। ट्रंप ने बतौर राष्ट्रपति अपना कार्यकाल मुसलमानों के लिए ‘वीजा प्रतिबंध’ के ऐलान से शुरू किया और छह देशों के लोगों को स्थायी वीजा देने पर रोक लगा दी थी। संयुक्त राष्ट्र आमसभा की पिछली बैठक में अपने संबोधन में ट्रंप ने अपनी सरकार के कदमों का यह कहते हुए बचाव किया कि वह अमेरिका के इतिहास, इसकी संस्कृति और विरासत की रक्षा के लिए ऐसा कर रहे हैं।


वैसे ही, मोदी ने 2019 के लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान कहाः “हम राष्ट्रवादी थे, राष्ट्रवादी हैं और राष्ट्रवादी रहेंगे।” जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी हिंसा में लगातार कमी के बावजूद मोदी ने निरंकुश तरीके से अनुच्छेद 370 को हटाया, जिसका खामियाजा भारत के अकेले मुसलमान-बहुल राज्य को आज तक उठाना पड़ रहा है। वहां किसी भी लोकतंत्र में सबसे लंबे समय तक इंटरनेट सेवा बंद रहने का रिकॉर्ड बन चुका है, सिर्फ चार महीनों में ही 4.96 लाख रोजगार छिन गए, 2.4 अरब डॉलर का नुकसान हुआ, क्रूर कानून- सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) के तहत मुख्यधारा के सभी नेताओं से लेकर आम लोगों तक को मनमाने तरीके से हिरासत में रखा गया है।

इस तरह जम्मू और कश्मीर का जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हो गया। ट्रंप की भारत यात्रा के मौके पर अमेरिकी सीनेट के चार रिपब्लिकन सांसदों ने मोदी सरकार द्वारा मनमाने तरीके से अनुच्छेद 370 हटाए जाने पर चिंता जताई और राज्य में यथाशीघ्र सामान्य स्थिति बहाल करने की जरूरत बताई। ट्रंप अपने इन सीनेटरों के संदेश मोदी को देंगे या नहीं, यह तो आने वाला समय ही बताएगा।

लोगों का ध्रुवीकरण करने वाले बयानों के मामले में भी दोनों का मुकाबला नहीं। ट्रंप ने बिना कागज वाले आव्रजकों को ‘ठग’ और ‘जानवर’ कहकर संबोधित किया, मैक्सिको के आव्रजकों को ‘अपराधी और बलात्कारी’ बताया जबकि तमाम अध्ययनों से यह बात साबित हो चुकी है कि अमेरिका में आव्रजकों की अपराध में लिप्तता अन्य समुदाय के मुकाबले काफी कम है।

वहीं मोदी कहते हैं कि ‘हिंसा करने वालों को उनके कपड़ों से पहचानो।’ पहले भी, वह गोधरा में हुई सांप्रदायिक हिंसा के बाद बने शिविरों, जिनमें ज्यादातर पीड़ित मुसलमान रह रहे थे, को ‘बच्चे पैदा करने की फैक्ट्री’ कह चुके हैं। वैसे ही, केंद्रीय गृह मंत्री और सरकार के दूसरे सबसे शक्तिशाली माने जाने वाले अमित शाह अवैध आव्रजकों को ‘दीमक’ तक कह चुके हैं और एक-एक को बंगाल की खाड़ी में फेंक देने का ऐलान कर चुके हैं।

ट्रंप की नीति अमेरिका में डिटेंशन कैंप का समर्थन करती है तो मोदी सरकार खुलेआम भारत में इनके होने से इनकार करती है, जबकि गृह मंत्रालय द्वारा 2019 में जारी मॉडल डिटेंशन कैंप मैनुअल के बाद ऐसे तमाम कैंप बनाए जा रहे हैं। ट्रंप अमेरिका फर्स्ट की बात करते हैं तो मोदी इंडिया फर्स्ट की। ट्रंप और मोदी के नेतृत्व वाली सरकारें अल्पसंख्यकों के प्रति बहुसंख्यकों में खौफ का माहौल बनाती हैं।


एक कहती है कि आव्रजकों की अमेरिका में बाढ़ आ जाएगी, तो दूसरी कहती है कि मुसलमानों की आबादी हिंदुओं से ज्यादा हो जाएगी। इनमें से किसी का कोई ठोस आधार नहीं है, लेकिन बहुसंख्यकों के ध्रुवीकरण के लिए इस तरह की बातों का सहारा दोनों ही लेते हैं। समाज का ध्रुवीकरण दोनों ही देशों में राजनीतिक तौर पर काम आया है। अमेरिका में श्वेत-प्रधानता आई, तो भारत में भगवा-प्रधानता।

इनके नतीजों पर गौर करना जरूरी है। एफबीआई की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका में घृणा अपराधों में वृद्धि हुई है और रिपब्लिकन पार्टी द्वारा फैलाई गई अफवाहों के कारण लैटिन अमेरिकियों, ट्रांस जेंडर समुदाय के लोगों के खिलाफ हमलों में इजाफा हुआ है। 2018 में सिख घृणा अपराधों के कारण सर्वाधिक निशाना बनने वाला तीसरा समूह रहा। साल 2018 में 4.3 फीसदी घृणा अपराध सिखों के खिलाफ हुए, जबकि 2017 में यह प्रतिशत केवल 1.5 फीसद था।

जाहिर है, इसका सबसे ज्यादा असर मुसलमानों पर पड़ा जिन्हें 2017 में 18.6 फीसदी ऐसे हमले झेलने पड़े। उसी तरह भारत में भी मोदी सरकार के कार्यकाल में धुर दक्षिणपंथी सदस्यों द्वारा किए जा रहे हिंसक हमलों की घटनाएं बढ़ी हैं। गोरक्षकों और मॉब लिंचिंग के कारण भारत में 44 लोगों की जान चली गई, जिसमें 82 फीसदी मुसलमान थे।

बीजेपी की वैचारिक धुरी है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और आज के समय में प्रधानमंत्री मोदी इसके सबसे ‘होनहार’ सदस्य हैं। संघ फासीवादी सशस्त्र संगठन है और उसका मूल विचार भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित करता है। जाहिर-सी बात है, संघ की यह विचारधारा भारत की धर्मनिरपेक्ष बुनियाद के एकदम विपरीत है। मौजूदा सत्ता भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की ओर बढ़ रही है और धर्म के आधार पर हिंदुओं को नागरिकता देने वाला कानून सीएए, एनआरसी और एनपीआर- उसी दिशा में उठाए गए कदम हैं।

इतना ही नहीं, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सोची-समझी रणनीति के तहत विदेशों में भी अपने पैर फैला रहा है। संघ से जुड़े विभिन्न संगठनों ने अमेरिका में अपनी पहुंच बढ़ाई है। अमेरिका में हिंदू स्वयंसेवक संघ, विश्व हिंदू परिषद ऑफ अमेरिका, सेवा इंटरनेशनल यूएसए, एकल विद्यालय फाउंडेशन- अमेरिका, हिंदू स्टूडेंट्स काउंसिल, ओवरसीज फ्रेंड्स ऑफ दि भारतीय जनता पार्टी-जैसे तमाम संगठनों के जरिये संघ ने अमेरिका में अपनी जड़ें फैला ली हैं। इसलिए ट्रंप और मोदी का मिलन खास है। यह एक ही तरह की राजनीति करने वाले दो नेताओं का मिलन है। मोदी और ट्रंप की इस मुलाकात को इस नजरिये से देखना कम दिलचस्प नहीं है।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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