विष्णु नागर का व्यंग्यः भविष्य का नक्शा उजला नहीं दिख रहा, फिर भी आइए उम्मीद का सफर जारी रखते हैं!

नेहरू जी के साथ अब गांधी जी के प्रति भी नफरत पूरी तरह उजागर हो चुकी है। सावरकर ही नहीं, नाथूराम गोडसे को भी नायक बनाने की तैयारी कर ली गई है। किसी भी दिन, कहीं भी महामानव जी, उनकी प्रतिमा का अनावरण कर देश और दुनिया को चकित कर सकते हैं!

भविष्य का नक्शा उजला नहीं दिख रहा, फिर भी आइए उम्मीद का सफर जारी रखते हैं!
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विष्णु नागर

आज से चौथे दिन नया साल, 2026 आ चुका होगा। पिछले साल की तरह इस बार भी 31 दिसंबर की रात को खाते-पीते लोग, और पी-पीकर और खा-खा कर, और नाच-नाचकर औंधे हो रहे होंगे। इनमें से कुछ के लिए तो वैसे भी हर साल का हर दिन, नया साल होता है। बशर्ते कि मना-मनाकर खुद को ये अस्पताल न पहुंचा चुके हों!

इनकी हर शाम, जश्न की शाम होती है। इनके पास पैसे और पद की इतनी बड़ी ताकत है कि सत्ता में केंचुआ आए या सांप, सूअर आए या लोमड़ी फर्क नहीं पड़ता! इनकी मौज-मस्ती में खलल नहीं पड़ता। इन्होंने बार-बार देखा है कि जो भी सत्ता में आया है, उसने जो भी मुद्रा अपनाई हो, इनका सच्चा हितैषी साबित हुआ है। बल्कि आज जो विराजमान हैं, ये ही बार-बार आते रहें, इनका आशीर्वाद इन्हें मिलता रहे, 31 दिसंबर की आधी रात को यही दुआ इन्होंने की होगी। इनकी हर दुआ और हर दवा, हर जगह कुबूल होती है तो यह भी हुई होगी! इनसे बड़ा और इनसे बढ़िया, इनका अभिभावक, इनका मार्गदर्शक, इनका चरम और परम मित्र, कृपालु, इससे पहले कोई हुआ नहीं और शायद हो भी नहीं!

वैसे नये साल से उम्मीद तो वे भी लगाते हैं, जिन्हें उम्मीद कहीं नज़र नहीं आती। जो जितने ही हताश हैं, जितने ही पिटे हुए हैं, यहां-वहां धक्के खाकर अधमरे हो चुके हैं, वे भी नये साल को एक चमत्कार की तरह देखते हैं। एक रोशनी की तरह देखते हैं, जो चलकर सीधे उन तक आने वाली है। उनके लिए दुआएं।

पर भविष्य का नक्शा जो आज दिख रहा है, वह उजला नहीं है। कहीं यह नक्शा कटा-फटा है, कहीं धुंधला है, कहीं ऊपर की चीजें नीचे और नीचे की चीजें ऊपर हो गई हैं। अदालत के आदेश से बलात्कारी और हत्यारे रिहा हो रहे हैं और बलात्कार पीड़िता ऐसे नराधम के विरुद्ध गुहार लगाने दिल्ली पहुंचती है, तो पुलिस द्वारा सड़क पर घसीटी जाती है और मंत्री जी इस पर हें-हें करते पाए जाते हैं।


अरावली को नष्ट करने के मामले में अदालत और सरकार में एका हो चुका है। दोनों को इंतजार है कि आंदोलनकारियों में फूट पड़े और ये अरावली का नामोनिशान नक्शे से मिटाने में कामयाब हो जाएं क्योंकि यह वायदा ये लुटेरों से कर चुके हैं और इससे वे पलट नहीं सकते! लुटेरे को एक रुपए के नाममात्र की राशि पर सैकड़ों एकड़ का हरा-भरा जंगल विकास के नाम पर उजाड़ने के लिए भेंट किया जा रहा है और ठंड में नियमपूर्वक झुग्गी-झोपड़ियों पर बुलडोजर चलाया जा रहा है।

अब गोली केवल बंदूक से नहीं चलाई जाती, जुबान से चलाकर भी बेआवाज़ लोगों को मारा जाता है। अब न निवेदन का मतलब रह गया है, न चीख का, न बुलडोजर के आगे लेट कर विरोध प्रकट करने का! कुचल दिया जाएगा। जिसे देश की चिंता सबसे ज्यादा होनी चाहिए, वह रोज देश के करोड़ों रुपए फूंक कर दिवाली मनाता रहता है। अपराधी मूंछ पर ताव देते हुए घूमते हैं और पीड़ितों के लिए जेल के दरवाजे खुले रखे गए हैं।

नाकारा और भ्रष्ट नेता देवत्व का बाना पहने घूमता है और एंकर को साल भर नफ़रत फैलाने की तनख्वाह 11 करोड़ रुपए दी जाती है। मंत्री कमीशनखोरी की शिक्षा देता है और सरकारी नौकरी का नियुक्ति पत्र लेने आई डॉक्टर का हिजाब मुख्यमंत्री खींचता है। इस पर तालियों पर तालियां बजती हैं और मुख्यमंत्री को यह 'हिम्मत 'करने के लिए दाद दी जाती है।

मूर्खों-जाहिलों-ढोंगियों का सम्मान दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है। उनके मुंह में जो भी आ रहा है, बक रहे हैं और मीडिया उसे शान से दिखा रहा है। ब्राह्मणों की सर्वोच्चता के गीत बहुत ऊंचे स्वर में गाये जा रहे हैं और इसे सुनकर नाचने वाले बढ़ रहे हैं। बाबासाहेब को संविधान निर्माता की गद्दी से उतारकर किन्हीं बी. एन. राव को बैठाया जा रहा है। नेहरू जी के साथ अब गांधी जी के प्रति भी नफरत अब पूरी तरह उजागर हो चुकी है। सावरकर ही नहीं, नाथूराम गोडसे को भी नायक बनाने की तैयारी कर ली गई है। किसी भी दिन, कहीं भी महामानव जी, उनकी प्रतिमा का अनावरण कर देश और दुनिया को चकित कर सकते हैं!


मेहनत-मजदूरी करने वालों से आधा पेट खाकर भी मेहनत करने का हक़ छीना जा रहा है। जिन्हें न्याय चाहिए, उन्हें अन्याय मिल रहा है और जो न्याय की शक्ल में अन्याय मांग रहे हैं, उन्हें फौरन यह तोहफे के रूप में दिया जा रहा है। अदालत के आदेशों की कोई कीमत नहीं रह गई है और अदालतों की दिलचस्पी भी अपने आदेशों का पालन करवाने में नहीं है बल्कि अदालतें खुद कह रही हैं, जो सरकार कहे, जो करे, वह सही है।

डॉलर चढ़ता जा रहा है और रुपया जमीन सूंघ चुका है। जो छत्तीस इंची जी, मनमोहन सिंह की सरकार के समय रुपए के गिरने को देश की गिरती साख और भ्रष्टाचार से जोड़ रहे थे, रुपये के मरणासन्न होने की मुनादी कर रहे थे,आज इतने ज्यादा मौन हैं कि लगता है कि झोला उठाकर चल चुके हैं। विदेशी कर्ज के जाल में भारत फंसता जा रहा है और सरकार के किसी नेता के माथे पर चिंता की एक लकीर तक नहीं है। बैंक एक खास पूंजीपति पर कर्ज पर कर्ज न्योछावर कर रही हैं और जो बैंकों का धन जीम कर इंग्लैंड में मौज काट रहे हैं, वे जन्मदिन की खुशियां मनाने की तस्वीर सोशल मीडिया पर डाल कर सरकार को अंगूठा दिखा रहे हैं। उधर प्रधानमंत्री राग घुसपैठिया गा रहा है। देश के विकास के लिए मंदिर-मंदिर पूजा कर और करवा रहा है।

नौ लाख से अधिक भारतीय पिछले पांच वर्षों में भारतीय नागरिकता छोड़ चुके हैं और विकसित भारत वाले उनसे पूछे तक नहीं कि भाइयों-बहनों, अभी तो अमृतलाल चल रहा है, जाने की इतनी जल्दी भी क्या है! झूठ बोलना अब धार्मिक कर्मकांड का स्थान पा चुका है। रोज जितने ठग पकड़े जाते हैं, उससे दस गुना ज्यादा दृश्य पर उपस्थित हो जाते हैं। 25 करोड़ डॉलर की रिश्वत देकर सौर ऊर्जा सौदा हासिल करनेवाले उद्योगपति के खिलाफ अमेरिका वारंट जारी करता है और सरकार का मुखिया उसे पहुंचने नहीं देता!

65 लाख स्कूली बच्चों का पिछले पांच वर्षों में स्कूल जाना छूट चुका है और देश का प्रधानमंत्री वंदेमातरम की चिंता में घुला जा रहा है। देश के दस प्रतिशत सेठ 58 प्रतिशत संपत्ति दबा कर बैठे हैं और सबसे नीचे के 50 प्रतिशत गरीबों के हिस्से में 15 फीसदी संपत्ति आई है मगर मुखिया जी भारत की अर्थव्यवस्था के चौथी और तीसरी और दूसरी और पहली अर्थव्यवस्था बनने की घोषणा कर लोगों को उल्लू बना रहे हैं। भ्रष्टाचार इंडेक्स में भारत 96 नंबर पर‌ विराजमान हो चुका है और प्रधानमंत्री जी, अपनी सरकार को अब तक की सबसे उजली, सबसे ईमानदार सरकार बता रहे हैं। इस पर हंसने वाले अब बचे ही कितने हैं!

कहने को और समझने को तो और भी बहुत है मगर कहने और समझने वाले दिनों-दिन कम होते जा रहे हैं। फिर भी आइए उम्मीद का सफर जारी रखते हैं क्योंकि नये साल की यही रस्म है, यही कायदा है।

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