‘सबके लिए स्वास्थ्य’ का लक्ष्य अभी बहुत दूर, सिर्फ घोषणाओं से काम चला रही है मोदी सरकार 

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन का अति महत्त्वपूर्ण हिस्सा होता है प्रजनन और बाल स्वास्थ्य, लेकिन साल 2018-19 के बजट आवंटन की तुलना पिछले वर्ष के संशोधित बजट से करें तो 33 प्रतिशत की कटौती हुई है।

फोटो: सोशल मीडिया 
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भारत डोगरा

देश के सभी नागरिकों तक स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाने के लक्ष्य पर इन दिनों चर्चा तो बहुत हुई है, लेकिन इसके लिए उपलब्ध संसाधनों को ध्यान से देखें तो स्पष्ट हो जाएगा कि यह अति सराहनीय लक्ष्य अभी वास्तविकता से दूर है।

इस समय केन्द्र सरकार का स्वास्थ्य पर खर्च जीडीपी के 0.3 प्रतिशत के बराबर है। वर्ष 2017 में केन्द्रीय सरकार द्वारा स्वयं घोषित राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति के अनुसार केंद्र और राज्य सरकारों का कुल खर्च सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 2.5 प्रतिशत होना चाहिए, जिसमें से 40 प्रतिशत हिस्सा केन्द्र सरकार के बजट का होना चाहिए। दूसरे शब्दों में कहें तो सरकार स्वयं मानती है कि जीडीपी के 0.3 प्रतिशत के स्थान पर केन्द्र सरकार के स्वास्थ्य के खर्च को लगभग 1 प्रतिशत होना चाहिए यानी 3 गुणा से भी अधिक होना चाहिए। अब यदि इस स्थिति में कोई बड़ा बदलाव किए बिना सरकार तरह-तरह की आकर्षक योजनाएं ले आती है या बड़े-बड़े वायदे कर देती है तो महज इससे तो सबके लिए स्वास्थ्य का लक्ष्य प्राप्त होगा नहीं। इसके लिए तो लक्ष्यों के अनुकूल संसाधन भी बड़े चाहिए।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के कुल बजट को देखें तो इस वर्ष इसे बढ़ाने के स्थान पर इसमें 2 प्रतिशत की कटौती की गई है (पिछले वर्ष के संशोधित अनुमान की तुलना में)।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन का अति महत्त्वपूर्ण हिस्सा होता है प्रजनन और बाल स्वास्थ्य (रीप्रोडक्टिव एंड चाईल्ड हैल्थ)। इस हिस्से के वर्ष 2018-19 के बजट आवंटन की तुलना पिछले वर्ष के संशोधित बजट से करें तो 33 प्रतिशत की कटौती हुई है।

बच्चे और मां के स्वास्थ्य के दृष्टि से महत्त्वपूर्ण योजना है प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना। यह एक बहुप्रचारित योजना है। इसके बावजूद यदि हम इसके वर्ष 2018-19 के आवंटन की तुलना पिछले वर्ष के बजट से बजट के संशोधित अनुमान से करें तो इसमें 8 प्रतिशत की कटौती है।

जिला अस्पतालों को अपग्रेड कर 24 नए मेडिकल कॉलेज की घोषणा वर्ष 2018-19 के बजट में हुई है, पर राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की इस मद में 12 प्रतिशत की कटौती हुई है। पिछले वर्ष के 3300 करोड़ रुपए के संशोधित अनुमान की अपेक्षा इस वर्ष मात्र 2888 करोड़ रुपए का आवंटन हुआ है।

आयुष्मान भारत के अन्तर्गत हाल में घोषित सबसे बड़ी योजना 50 करोड़ नागरिकों के लिए 5 लाख रुपए तक के इलाज की बीमा व्यवस्था की घोषणा है, पर इसके लिए बजट में अलग से कोई संसाधन रखे ही नहीं गए हैं। राष्ट्रीय बीमा सेवा योजना के बजट में जो वृद्धि हुई है वह इसके लिए बहुत ही अपर्याप्त है। अब केन्द्र सरकार की इतनी बड़ी घोषणा को कुछ व्यवहारिक रूप देने के कुछ प्रयास जरूर किए जा रहे हैं, पर यह कितने सफल होंगे यह आगामी समय में ही पता चलेगा। इसी तरह बहुत बड़ी संख्या में स्वास्थ्य और वेलनेस केंद्र विकसित करने के लिए पर्याप्त संसाधनों की उपलब्धि बहुत अनिश्चित है।

सरकार का रुझान नई और आकर्षक योजनाएं घोषित करने की ओर है, जबकि स्वास्थ्य के ढांचे में मौजूद गंभीर कमियों की ओर वह जरूरी ध्यान नहीं दे रही है। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में विशेषज्ञ डाक्टरों की 82 प्रतिशत कमी है। स्पष्ट है कि सरकार की प्राथमिकताएं सही नहीं है और साथ में वह पर्याप्त संसाधन भी नहीं उपलब्ध करवा रही है। इतना ही नहीं, पूरे स्वास्थ्य क्षेत्र में मोटे मुनाफे की प्रवृत्तियां अधिक हावी हो रही हैं। इन प्रवृत्तियों के आधार पर ही नई योजनाएं बन रही हैं। इन महत्त्वपूर्ण समस्याओं को दूर किया जाए तभी हम ‘सबके लिए स्वास्थ्य’ के लक्ष्य के नजदीक आ पाएंगे।

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