कोरोना में सरकार की लापरवाही सिर्फ देश नहीं, पूरी दुनिया के प्रति जघन्य अपराध है

इस दौर का जब भी निष्पक्ष इतिहास लिखा जाएगा, उसमें सरकार के हाथ खून से रंगें होंगें और चिताओं से निकला धुआं और परिजनों का हाहाकार इतिहास के पन्नों से बाहर आएगा। सेंट्रल विस्टा परियोजना भी कोविड-19 से मरने वाले श्रमिकों की लाशों के ऊपर बनेगी।

फोटोः सोशल मीडिया
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महेन्द्र पांडे

साल 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के दौर में प्रधानमंत्री मोदी एक चुनावी सभा में आह्वान कर रहे थे, जब गांव-गांव में कब्रिस्तान तो श्मशान क्यों नहीं? भारी भीड़ भी उनके इस आह्वान का तालियों से स्वागत कर रही थी, उनके संवेदनहीन वाक्यों को दुहरा रही थी| प्रधानमंत्री मोदी को यह सपना उसके बाद तो भुला दिया गया, पर अब अचानक से साकार हो गया है| अब हरेक गांव में और पूरे देश में धधकती चिताएं प्रधानमंत्री को आह्लादित कर रही होंगी| यह उनके न्यू इंडिया की सबसे बड़ी पहचान है, और पूरी दुनिया के प्रेस में आज भारत इन्हीं चिताओं से पहचाना जा रहा है| इन चिताओं की आग केवल गांव में ही नहीं धधक रही है, बल्कि अब तो शहरों के सार्वजनिक पार्कों और पार्किंग में भी यह दृश्य दिखाई दे रहा है।

एक सत्तालोभी शासक अपनी अकड़ से और महान बनने की चाह के क्रम में केवल अपनी जनता का ही नरसंहार नहीं करता बल्कि पूरी मानवता के लिए खतरा बनता है– इसका उदाहरण इस समय सबके सामने है। जनवरी में वर्ल्ड इकनोमिक फोरम को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने बड़े गर्व से दुनिया को अपने विजयी अभियान की जानकारी दी थी। उनके अनुसार, सब कहते थे भारत सबसे अधिक प्रभावित होगा, कोविड-19 की सुनामी आएगी, कोई कहता था 60 से 70 करोड़ लोग प्रभावित होंगें, कोई कहता था 20 लाख से ज्यादा लोग मरेंगें– पर हमने इस महामारी पर काबू करके दुनिया को बचा लिया। दूसरे देश की विफलताओं से भारत के हालात की तुलना नहीं करनी चाहिए, हम जीवट वाले हैं और हमारी रोग-प्रतिरोधक क्षमता अलग है और हम पूरी दुनिया से अलग हैं।

बड़े गर्व और अकड़ से दुनिया को ठेंगा दिखाते हुए इस वक्तव्य और भाषण के चार महीनों के भीतर ही तथाकथित विश्वगुरु को आज के दौर में पूरी दुनिया अलग कर चुकी है, अनेक देशों ने हवाई सेवाएं रद्द कर दी हैं, कुछ देश अपने नागरिकों को वापस बुला रहे हैं और कुछ देश यहां से पहुंचे यात्रियों को क्वारंटाइन में भेज रहे हैं। एक समय बड़े शर्मनाक गर्व से दावा किया गया था की हम सबसे अधिक दवाएं बना रहे हैं, सबसे अधिक टीके बना रहे हैं, सबसे अधिक मास्क बना रहे हैं, सबसे अधिक पीपीई किट बना रहे हैं और पूरी दुनिया को बांट रहे हैं। आज सभी देश अपनी तरफ से मदद कर बता रहे हैं कि बेशर्मी से ऐसे दावे किसी को नहीं करने चाहिए। वायरस कोई उनकी जनता नहीं है जो प्रतिरोध नहीं करेगी, वायरस ने अपना प्रतिशोध दिखा दिया।

इस दौर में जब पूरी दुनिया का मीडिया देश के हालात की तस्वीर रोज पेश कर रहा है, जब रोज नए रिकॉर्ड कायम हो रहे हैं, देश के अनेक न्यायालय सरकारों को कोविड-19 के मामलों पर लताड़ रहे हैं, जब छोटे देश भी मानवता के नाते मदद हो हाथ बढ़ा रहे हैं, विश्व स्वास्थ्य संगठन स्थिति को निराशाजनक और दुखद बता रहा है– हमारे स्वास्थ्य मंत्री दावा कर रहे हैं कि कोरोना की दूसरी लहर से लड़ने के लिए हमारी तैयारी पहली लहर की तुलना में बेहतर है– अब हमारा इंफ्रास्ट्रक्चर ज्यादा अच्छा है और संसाधनों की कोई कमी नहीं है|


प्रधानमंत्री जी भी बार-बार यही बताते हैं, फिर दुनिया भारत के बारे में अफवाह क्यों फैला रही है? उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को विदेशी शासकों द्वारा फैलाए जाने वाले इन अफवाहों पर जरूर आपराधिक मुकदमे दर्ज कराने चाहिए, जैसा वे उन अस्पतालों और लोगों के विरुद्ध कर रहे हैं जिन्होंने ऑक्सीजन की किल्लत का प्रचार किया है। कम से कम उत्तर प्रदेश के जाबांज एनकाउंटर विशेषज्ञ पुलिस को ही दुनिया भर में भेज देना चाहिए, जो मुंह से ही ठाएं-ठाएं चिल्लाकर दुनिया भर में उठती तथाकथित अफवाह फैलाने वालों को शांत कर देगी।

इस समय ही नहीं बल्कि पिछले वर्ष से ही भारत में कम टेस्टिंग का मुद्दा उठता रहा है, और इस समय तो सभी देसी-विदेशी विशेषज्ञ इसे पूरी क्षमता से बढाने की वकालत कर रहे हैं। पर, सरकार टेस्टिंग कम करती जा रही है। दिल्ली में कुछ दिनों पहले तक हरेक दिन लगभग एक लाख टेस्ट किये जा रहे थे, पर अब यह 60000 के आसपास किये जा रहे हैं। पूरे देश में 24 अप्रैल को 17 लाख टेस्ट किये गए थे, जो 26 अप्रैल तक 16 लाख ही रह गए। दिल्ली के एम्स ने फ्रंटलाइन वर्कर्स के कांटैक्ट ट्रेसिंग और टेस्टिंग की योजना को ही बंद कर दिया है। अपने देश में प्रति दस लाख लोगों पर कुल 44000 टेस्ट भी नहीं किये गए हैं, जबकि दुनिया के गरीब देशों में भी यह आंकड़ा 4 लाख से अधिक है।

दुनिया के सबसे भव्य और बड़े टीकाकरण कार्यक्रम का हश्र भी दुनिया देख रही है। टीके की कमी और बर्बादी की खबरें रोज ही आ रही हैं। हम वैक्सीन डिप्लोमेसी के सन्दर्भ में चीन से आगे निकलने की होड़ में दुनिया को टीके बांटते रहे, बेचते रहे और अंत में टीके की कमी का शिकार हो गए। आज दूसरे देश हमें टीके भेज रहे हैं। यह टीके दुनिया के गरीब देशों को प्रभावित कर रहे हैं, क्योंकि भारत में भेजे जाने वाले अधिकतर टीके गरीब देशों की अमानत थे।

अब सरकारें सोशल मीडिया पर अंकुश लगाकर स्थिति नियंत्रित कर रही हैं। फेसबुक, ट्विटर और इन्स्टाग्राम ने प्रधानमंत्री को खुश करने के लिए सरकार के विरोध वाले अधिकतर मेसेज हटा दिए हैं। फेसबुक ने हैशटैग रिजाइनमोदी के नाम से चल रही मुहीम को भी ब्लाक कर दिया था। जब लोगों ने इस पर लिखना शुरू किया तो सफाई जारी कर कहा कि गलती से ऐसा हो गया था।


उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनावों में ड्यूटी दे रहे अधिकतर शिक्षक कोरोना की चपेट में आ गए और 135 से अधिक शिक्षकों की मृत्यु हो गई। शिक्षक सोशल मीडिया पर सहायता के लिए गुहार लगाते रहे और मुख्यमंत्री सही स्थिति उजागर करने वालों को सजा देते रहे। पश्चिम बंगाल में सत्ता पर काबिज होने की धुन में प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और जेपी नड्डा खुद ही सुपरस्प्रेडर बन गए। बंगाल में कोरोना के मामलों और इससे होने वाली मृत्यु के रोज नए रिकॉर्ड कायम हो रहे हैं। अनेक उम्मीदवार भी कोरोना की चपेट में आकर अपनी जान गंवा बैठे हैं। पूरे देश में कोरोना का पॉजीटिविटी रेट 20 प्रतिशत से कम है, जबकि कोलकाता में यह रेट 50 प्रतिशत से भी अधिक है, जाहिर है यह केंद्र सरकार के चुनाव कराने की जिद का नतीजा है।

दुनिया के हरेक देश भारत में पनपने वाले कोरोना वायरस के नए संस्करण पर चर्चा कर रहे हैं और विश्व स्वास्थ्य संगठन इसे दुनिया के लिए खतरनाक बता रहा है। पर, हम इस मामले में खामोश बैठे हैं और पता ही नहीं कि नए मामलों में इस संस्करण का कितना योगदान है। बीना टीके के ही टीकाकरण अभियान का दायरा बढ़ता जा रहा है, किसी को नहीं मालूम कि जो टीका लगाया जा रहा है, उसका असर इस नए संस्करण पर होगा भी या नहीं।

हमारे देश में जो आज हालात हैं, उसमें वायरस से अधिक योगदान सरकारों का और संबंधित वैज्ञानिक सलाहकारों का है, जिन्होंने विज्ञान के बदले जादू-टोना को विज्ञान की जगह पेश किया। अभी कुछ महीने पहले ही देश की अनेक सरकारी संस्थाएं अचानक देश की आबादी में हर्ड इम्युनिटी पैदा होने का दावा कर रही थीं, पर अब ऐसे सारे दावे पीछे रह गए हैं और बड़ी आबादी रोज मर रही है। यह मंजर, सरकार की यह लापरवाही, यह नरसंहार केवल अपने देश की जनता के साथ विश्वासघात नहीं है, बल्कि यह पूरी दुनिया के प्रति एक जघन्य अपराध है। इस दौर का जब भी निष्पक्ष इतिहास लिखा जाएगा, उसमें सरकार के हाथ खून से रंगें होंगें और चिताओं से निकला धुवां और परिजनों का हाहाकार इतिहास के पन्नों से बाहर आएगा। सेंट्रल विस्टा परियोजना भी कोविड-19 से मरने वाले श्रमिकों की लाशों के ऊपर बनेगी।

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