खरी-खरी: प्रधानमंत्री की मुस्लिम महिलाओं और मुसलमानों की चिंता का अर्धसत्य

मोदी मुस्लिम महिलाओं की समस्याओं की बातें तो करते हैं लेकिन उन्हें दलित महिलाओं पर होने वाले घोर अन्याय का खयाल नहीं है। इसी प्रकार उन्होंने हिन्दू पिछड़े वर्ग के संबंध में भी कभी कोई बात नहीं की। इससे उनकी ‘नीयत’ पर सवाल उठना स्वाभाविक है।

यह तस्वीर 2014 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी की मुंबई में हुई एक रैली का है, जिसमें बुर्का पहने महिलाएं नरेंद्र मोदी के मास्क लगाए नजर आई थीं (फोटो - Getty Images)
यह तस्वीर 2014 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी की मुंबई में हुई एक रैली का है, जिसमें बुर्का पहने महिलाएं नरेंद्र मोदी के मास्क लगाए नजर आई थीं (फोटो - Getty Images)
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ज़फ़र आग़ा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन दिनों भारतीय मुस्लिम समाज की समस्याओं को लेकर चिंतित हैं। अभी कुछ समय पूर्व भोपाल में एक भाषण में उन्होंने यह चिंता खुलकर व्यक्त की। उनके अनुसार, मुस्लिम समाज में प्रचलित दो समस्याएं उनकी चिंता का कारण हैं। पहली, मुस्लिम समाज में सदियों से चले आ रहे मुस्लिम महिलाओं पर होने वाले अत्याचार। दूसरी, मुस्लिम पसमांदा (पिछड़े) वर्ग पर होने वाला सामाजिक अन्याय। यह बात अलग है कि मोदी जी को दलित महिलाओं पर होने वाले घोर अन्याय का खयाल नहीं है। इसी प्रकार उन्होंने हिन्दू पिछड़े वर्ग के संबंध में भी कभी कोई बात नहीं की। प्रधानमंत्री हैं, देश की हर समस्या की प्रतिदिन तो व्याख्या नहीं कर सकते। 

प्रधानमंत्री ने इन दोनों समस्याओं का समाधान भी देश के सामने रख दिया। मुस्लिम समाज में महिलाओं पर हो रहे अत्याचार के संबंध में उनका मानना है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) सब ठीक कर सकता है। यह सत्य है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) हर धर्म के मानने वालों पर लागू होगा, पर मीडिया में जिस प्रकार शोर मच रहा है उससे तो यह प्रतीत होता है कि मुस्लिम समाज ही इसके मुख्य निशाने पर है।

इस संबंध में राजनीतिक एवं कानूनी हलकों में तो चर्चा चल ही रही है। लेकिन अभी तक इस कानून का क्या रूप होगा, यह बात स्पष्ट नहीं है। लेकिन उत्तराखंड सरकार ने अभी इस संबंध में एक मसौदा तैयार कर रखा है जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड का रूप कैसा हो सकता है। इस मसौदे के आधार पर बताया जाता है कि तलाक के संबंध में औरत एवं पुरुष को बराबर हक, तलाक की स्थिति में विरासत में औरत-मर्द को बराबर के अधिकार एवं विवाह का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य जैसे बिंदु होंगे। 

इस इक्कीसवीं शताब्दी में भला किसको इन मुद्दों पर आपत्ति हो सकती है। मुस्लिम समाज में क्या, कहीं भी ऐसी प्रथा प्रचलित हो, वह समाप्त होनी चाहिए। सवाल सही-गलत का नहीं, सवाल तो ‘नीयत’ का है। प्रधानमंत्री सामाजिक अन्याय की आड़ में संघ का मूल (कोर) एजेंडा लागू कर रहे हैं। इसमें भी शक नहीं कि तीन तलाक, राम मंदिर निर्माण, जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 और यूसीसी संघ और बीजेपी का कोर मुद्दा रहा है। तीन तलाक, राम मंदिर निर्माण एवं अनुच्छेद 370 का मोदी सरकार निराकरण कर चुकी है। अब केवल यूनिफॉर्म सिविल कोड बचा है जिसके जल्द ही आने वाले संसद सत्र में लागू होने की आशा है। इस प्रकार मुस्लिम महिलाओं से संबंधित अन्याय भी समाप्त हो जाएगा और संघ का ‘कोर’ एजेंडा भी लागू हो जाएगा। एक तीर से दो शिकार। 


दूसरी मुस्लिम समस्या जो प्रधानमंत्री को चिंतित कर रही है, वह है पसमांदा (पिछड़े) मुसलमानों के साथ प्रचलित सामाजिक अन्याय। यह भी एक ऐतिहासिक सत्य है कि मुस्लिम समाज में यह अन्याय सदियों से प्रचलित है। भारतीय उपमहाद्वीप के अतिरिक्त किसी भी मुस्लिम देश में यह असमानता प्रचलित नहीं है। बात यह है कि इस्लाम धर्म के मूल सिद्धातों में सामाजिक समता एक अहम सिद्धांत है। इसलिए जब इस्लाम भारत तक पहुंचा, तो सूफी संतों ने इस्लाम के इस सिद्धांत पर काफी जोर दिया।

जातिवाद की समस्या से जकड़े भारतीय समाज को इस्लाम की यह बात बहुत अपील करती है। स्पष्ट है कि उस समय के हिन्दू पिछड़े एवं दलित वर्गों के अधिकांश लोगों ने इस्लाम धर्म में प्रवेश किया। यही कारण है कि आज भी भारत वर्ष में कुल मुस्लिम जनसंख्या के कम-से-कम 90 प्रतिशत लोग पिछड़े एवं दलित वर्ग से संबंधित हैं जो मुसलमान होने के बाद भी हिन्दू समाज के समान घोर सामाजिक अन्याय के शिकार हैं।

हद तो यह है कि जिस बात पर स्वयं मुस्लिम समाज में कोई चर्चा नहीं होती है, वह यह है कि आज भी मुस्लिम समाज खुले तौर पर दो वर्गों में बंटा है। एक ‘अशराफिया’, अर्थात हिन्दू समाज के उच्च जाति के समान और दूसरा,  ‘अज़लील’, अर्थात निम्न वर्ग। संघ इसी वर्ग के संबंध में ‘घर वापसी’ की बात करता है। नवीन नागरिकता कानून के निशाने पर अधिकांश यही वर्ग भी है।

यह खुली जातीय प्रथा है जो घोर सामाजिक अन्याय पर आधारित है। हमारा संविधान सामाजिक न्याय की गारंटी देता है। यह तो संभव नहीं कि सामाजिक समता का सवाल केवल हिन्दू समाज तक ही सीमित रहे। यह बात तो सत्य है कि नरेंद्र मोदी ने आज तक हिन्दू समाज में प्रचलित सामाजिक अन्याय पर कभी चर्चा नहीं की। इसका अर्थ तो यह है कि संघ और बीजेपी मुस्लिम समाज के इस सामाजिक अन्याय का राजनीतिक लाभ उठाना चाहते हैं।

अंततः यह कहना भी गलत न होगा कि हर धर्म के मानने वाले ऐसी प्रथाओं से जकड़े हैं जो आधुनिक युग के विपरीत हैं, परंतु बीजेपी और मीडिया जिस प्रकार मुस्लिम वर्ग को निशाना बनाती है, उससे संपूर्ण चर्चा अर्धसत्य पर आधारित हो जाती है।

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