आजादी के लिए महिलाओं की शहादत को कभी नहीं भुलाया जा सकता, वीरांगनाओं की शौर्य गाथा रगों में खून तेज कर देती है

आजादी की लड़ाई के लिए संघर्ष करते हुए शहादत प्राप्त करने वाली कई महिलाओं की शौर्य गाथा काफी प्रेरणादायक है। इनमें रानी चेन्नम्मा, रानी लक्ष्मीबाई, बेगम हजरत महल, कनकलता बरूआ, झलकारी बाई, कस्तूरबा गांधी समेत सैकड़ों वीरांगनाओं के नाम शामिल हैं।

फोटोः सोशल मीडिया
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आजादी की लड़ाई का जो वक्त था, उस समय प्रायः महिलाओं के लिए अनेक सामाजिक बंधन थे। इसके बावजूद उन्होंने इन बंधनों को तोड़ते हुए जिस साहस से आजादी की लड़ाई में सहयोग दिया, वह बहुत सराहनीय था। यहां प्रस्तुत है आजादी की लड़ाई में शहादत प्राप्त करने वाली कुछ महिलाओं का प्रेरणादायक और संक्षिप्त विवरण।

रानी चेन्नम्मा

कर्नाटक की एक छोटी सी रियासत कित्तूर की रानी चेन्नम्मा ने अपना राज्य हथियाने के ब्रिटिश प्रयासों के खिलाफ वर्ष 1824-25 में बहुत बहादुरी से युद्ध किया। 23 अक्तूबर को अंग्रेज सेना ने कित्तूर के किले को घेरा तो रानी चेन्नम्मा की सेना ने अचानक बहुत जोरदार हमला कर ब्रिटिश सेना को बुरी तरह हरा दिया। इससे पहले रानी की हिरासत में जो ब्रिटिश महिलायें व बच्चे आ गये थे उन्हें जरा भी नुकसान नहीं पहुंचाया गया और लौटाने से पहले उन्हें बहुत आराम से रखा गया।

युद्ध के समय रानी घोड़े पर सवार होकर स्वयं मौजूद रहती थीं। किन्तु दिसंबर के आरंभ में कहीं अधिक भारी-भरकम ब्रिटिश सेना ने फिर कित्तूर पर हमला किया और इस बार बहुत बहादुरी से लड़ने के बाद भी रानी चेन्नम्मा की पराजय हुई। उन्हें गिरफ्तार कर एक किले में रखा गया जहां लगभग 5 वर्ष बाद उनकी मृत्यु हो गई।

झांसी की रानी लक्ष्मीबाई

झांसी की रानी और अंग्रेजों का झांसी में मार्च 1858 में 17 दिनों का घमासान युद्ध हुआ। लक्ष्मीबाई ने स्वयं युद्ध में शानदार हिस्सा लिया और बहुत बहादुरी से अपने किले की रक्षा की। अनेक अन्य स्त्रियों की भूमिका भी बहुत बहादुरी की रही और उन्होंने तोपें चलाने और बारूद भरने का कार्य भी किया। जब किले को बचाना संभव नहीं रहा तो रानी ने बहुत कुशलता और वीरता से किले से निकलकर कालपी की ओर प्रस्थान किया। रानी का पीछा कर रहे बेकर को रानी और उनके साथियों ने खदेड़ दिया।

कालपी में रानी ने ‘लाल कुर्ती’ की बहादुर सेना संगठित की। बांदा के नवाब और तांत्या टोपे का सहयोग भी मिला, पर शीघ्र ही अंग्रेजों की अपेक्षाकृत कहीं अधिक शक्तिशाली सेना ने उन पर आक्रमण किया। अब रानी और उनके सहयोगियों ने ग्वालियर की ओर कूच किया। ग्वालियर में वहां की फौज का बड़ा हिस्सा झांसी की रानी से आ मिला। शीघ्र ही ग्वालियर पर भी अंग्रेजों ने जोरदार हमला किया। अंतिम समय तक अपनी वीरता से अंग्रेजों को अचंभित करते हुए रानी ने शहादत प्राप्त की। आज तक भारतवासी याद करते हैं, ’खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।’

झलकारी बाई

झांसी की रानी की जिन सखियों ने झांसी के युद्ध की शौर्य गाथा में अपना नाम दर्ज करवाया, उनमें झलकारी का विशेष स्थान है। जब रानी को किले से निकालना था तो झलकारी स्वयं रानी की वेशभूषा में किले से बाहर आ गई। उसे लक्ष्मीबाई समझकर अंग्रेज फौज उसकी ओर झपटी जिससे वास्तविक लक्ष्मीबाई को बाहर निकलने का अवसर मिल गया।

वह बहादुरी से लड़ते हुए अंग्रेजों की गिरफ्तारी में आ गई, पर रात को इस गिरफ्तारी से भाग निकली। अगले दिन अंग्रेज यह देखकर हैरान रह गए कि वह अपने तोपची पति पूरन सिंह के पास खड़े होकर उनकी सहायता कर रही थी। जब पूरन सिंह मारे गए तो झलकारी ने स्वयं तोप का संचालन तब तक किया जब तक उसने स्वयं वीरगति प्राप्त नहीं की।


बेगम हजरत महल

अवध में अंग्रेजों के खिलाफ 1857 में विद्रोह हुआ तो बेगम हजरत महल ने नेतृत्व की महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। बेगम सरफराज महल ने उनके बारे में लिखा, ’’हजरत महल खुद हाथी पर बैठकर आगे-आगे अंग्रेजों से मुकाबला करती हैं। ...उनको डर बिलकुल नहीं लगता।’’

बेगम हजरत महल ने महिलाओं को भी सेना में संगठित किया। बाद में जब अंग्रेज अवध में घुसे तो एक महिला पेड़ पर चढ़कर उन पर गोलियां दागती रही। मार्च 1858 में अंग्रेजों की जीत के बाद भी हजरत महल ने घुटने नहीं टेके। अपने बेटे बिरजीस को लेकर वह नेपाल चली गईं जहां 1876 में उनका देहांत हुआ।

कनकलता बरूआ

16 वर्षीय इस छात्रा ने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में गोहपुर पुलिस स्टेशन (जिला दरंग, असम) की ओर बढ़ रहे एक जुलूस का नेतृत्व किया। पुलिस स्टेशन पर तिरंगा लहराते हुए पुलिस की गोली से 20 सितंबर 1942 को इस वीरांगना ने शहादत प्राप्त की।

वनलता दासगुप्ता

वनलता दासगुप्ता ने बहुत कम उम्र से ही बंगाल की क्रांतिकारी गतिविधियों में हिस्सा लिया। बहुत समय जेल में बिताने के बाद केवल 21 वर्ष की अल्पायु में 1 जुलाई 1936 को इनका देहान्त हो गया।

प्रीतिलता वडेदर

बंगाल की इस दिलेर छात्रा ने सूर्यसेन के नेतृत्व में अनेक क्रांतिकारी कार्यवाहियों में हिस्सा लिया। चटगांव जिले में पुलिस से घिरने के बाद भी बहुत मुस्तैदी से वे बच निकलने में सफल रही। इसी जिले में एक यूरोपियन क्लब पर असफल हमला किया और पुलिस के हाथ में पड़ने के स्थान पर जहर खा लिया।

मातागनी हाजरा

मातागनी हाजरा ने सविनय अवज्ञा आंदोलन, नमक सत्याग्रह, चौकीदार टैक्स के विरोध और भारत छोड़ो आंदोलन में आगे बढ़कर हिस्सा लिया और जेल-यात्राएं की। सितंबर 29, 1942 को टमलुक सिविल कोर्ट की ओर बढ़ रहे जुलूस का नेतृत्व किया और वहां तिरंगे को लहराते समय पुलिस की गोली का शिकार हुई। तिरंगे को हाथ में थामे उन्होंने इसी स्थान पर शहादत प्राप्त की। एक वृद्ध विधवा के इस साहस पर लोग नतमस्तक थे।

कुमली नाथ

कुमली नाथ नामक 68 वर्षीय मां उस जुलूस में थी जो असम के दरंग जिले में 20 सितंबर 1942 को ढेकियाजुली पुलिस स्टेशन की ओर जा रहा था। उनके बेटे ने तिरंगा हाथ में लिया हुआ था। पुलिस ने उनके बेटे का निशाना लेकर गोली मारी। मां ने छलांग मारकर यही गोली अपने सीने पर ले ली और सैकड़ों नतमस्तक लोगों के आगे वहीं शहादत प्राप्त की।

हर कौर

हर कौर अमृतसर में एक घरेलूकर्मी का कार्य करतीं थी, पर साथ ही आजादी की लड़ाई में हिस्सा भी लेती थी। जलियांवाला बाग में मशीन गन की गोली खाकर 50 वर्ष की आयु में उन्होंने शहादत प्राप्त की।

जानकी कुमारी

जानकी कुमारी ने उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में मात्र 14 वर्ष की आयु में भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया और पुलिस की गोली से शहादत प्राप्त की।


कस्तूरबा गांधी

कस्तूरबा गांधी ने महात्मा गांधी के सामाजिक और राजनीतिक कार्यों में उनका साथ बखूबी निभाया और कई बार जेल-यात्रा की। सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया। अगस्त 9, 1942 को उनकी गिरफ्तारी हुई। 23 फरवरी, 1944 को जेल-यात्रा के दौरान ही उनका देहान्त हुआ।

ज्योतिर्मय गांगुली

सरकारी नौकरी छोड़कर वे आजादी के आंदोलन में कूद पड़ीं। नवंबर 1945 में कलकत्ता में आजादी के प्रदर्शनों में ब्रिटिश सेना के ट्रक से कुचले जाने के कारण 56 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हुई।

प्रफुल्ल बाई

प्रफुल्ल बाई (जिला छिंदवाड़ा, मध्य प्रदेश) सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेते हुए पुलिस की गोली से वर्ष 1930 में शहादत प्राप्त की।

रीनो बाई

रीनो बाई (सियोनी, मध्य प्रदेश) ने सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान जंगल सत्याग्रह में भाग लिया। गोंडीवाल में पुलिस द्वारा गोली चलाने पर वे गंभीर रूप से घायल हुईं। अक्तूबर 1930 में विक्टोरिया अस्पताल, जबलपुर में उनका देहान्त हुआ।

जयवती संघवी

जयवती संघवी नामक छात्रा ने भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया। एक अन्य ब्रिटिश विरोधी जुलूस में भाग लेते हुए पुलिस जुल्म के कारण 6 अप्रेल 1943 को केवल 19 वर्ष की अल्पायु में उन्होंने शहादत प्राप्त की।

श्रीमती सत्यवती

श्रीमती सत्यवती को कांग्रेस समाजवादी पार्टी के संस्थापकों में गिना जाता है। आजादी के अनेक आंदोलनों में उन्होंने हिस्सा लिया और बार-बार जेल गईं। 1945 में एक जेल-यात्रा के दौरान ही स्वास्थ्य बिगड़ने पर उन्हें अस्पताल ले जाया गया जहां 39 वर्ष की आयु में उनका देहान्त हुआ।

सुलोचना जोशी

सुलोचना जोशी (महाराष्ट्र) ने भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया और गिरफ्तार कर ली गई। यरवदा जेल पूना में अप्रैल 1943 में 22 वर्ष की अल्पायु में शहादत प्राप्त की।

सरसीबाला दास

भारत छोड़ो आन्दोलन छिड़ने पर गर्भवती होने के बावजूद इन्होंने बर्दवान जिले में आगे बढ़कर हिस्सा लिया। पुलिस की निर्मम मार से बाद में 2 नवंबर 1942 को इनकी मृत्यु हो गयी।

सिन्धु बाला मैती

सिन्धु बाला मैती ने मिदनापुर, बंगाल में भारत छोड़ो आन्दोलन में भागेदारी की और पुलिस अत्याचार के कारण 22 वर्ष की अल्पायु में 1942 में उन्हें शहादत प्राप्त हुई।

फुई कुमारी देवी

फुई कुमारी देवी (शाहबाद, बिहार) ने भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लिया और जेल यात्रा की। जेल में ही उनकी मृत्यु हुई।

उर्मिला बाला परिया

उर्मिला बाला परिया (मिदनापुर, बंगाल) ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन और चौकीदार टैक्स विरोधी आन्दोलन में हिस्सा लिया। पुलिस द्वारा बर्बरता से मारे जाने के बाद अपने गांव में जून 1930 में उनकी मृत्यु हुई।

मधुराबाई माते

मधुराबाई माते ने भारत छोड़ो आन्दोलन में हिस्सा लिया और 12 अगस्त 1942 में पूना में टैंको की गोलाबारी सहते हुए शहादत प्राप्त की। माते के अलावा मोहरानी कुर्मी (जौनपुर, उत्तर प्रदेश), गौरा बाई करिया (जिला नरसिंहपुर, मध्यप्रदेश), श्रीमती पारी (बालासोर, उड़ीसा), लक्ष्मी थेरे (वर्धा, महाराष्ट्र) ने भी इसी आन्दोलन में पुलिस की गोलीबारी से शहादत प्राप्त की।

काशी बाई घमेकर

काशी बाई घमेकर 1946 में बंबई के आजादी के प्रदर्शनों में पुलिस की गोली का शिकार हुईं। 24 फरवरी को 60 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हुई। इन्हीं प्रदर्शनों में पुलिस की गोली से 35 वर्षीया राजम्मा लक्षम्मा की 22 फरवरी को मृत्यु हुई।


गुरदयाल कौर

गुरदयाल कौर मलाया से आकर आजाद हिन्द फौज में झांसी की रानी रेजीमेंट में भर्ती हो गईं। बाद में बैंकाक के एक अस्पताल में उनका देहान्त हुआ।

स्टेला रोमनकथोलिया

स्टेला रोमन कथोलिया झांसी की रानी रेजीमेंट में एक नर्स थीं और रंगून से बैकांक की ओर जाते हुए ब्रिटिश हवाई बमबारी में उनकी मृत्यु हुई।

लक्ष्मी बाई भायेकर

लक्ष्मी बाई भायेकर (नानदिद, महाराष्ट्र) नामक चूड़ी बेचने वाली महिला ने रजाकारों के विरुद्ध जन संघर्ष में हिस्सा लिया। उनके घर में ही घुसकर रजाकारों ने 28 वर्ष की अल्प आयु में उनकी हत्या कर दी।

सुमद्रा भाई गोसनी

सुमद्रा भाई गोसनी और उनके पति की हत्या भी रजाकारों ने इसी तरह की।

रमम्मा गुज्जा

रमम्मा गुज्जा (जिला वारंगल) को रजाकारों ने आन्दोलन में भाग लेने के लिए पकड़ा और साथियों का पता बताने को कहा। रमम्मा ने मना कर दिया तो रजाकारों और निजाम की पुलिस ने उनकी हत्या कर दी।

श्रीमती पुजाजी

श्रीमती पुजाजी नामक आंदोलनकारी महिला (जिला औरंगाबाद) की भी रजाकारों ने हत्या की।

पोसनी बाई राजलिंग

50 वर्षीय पोसनी बाई राजलिंग (जिला नानदिद) को रजाकारों ने जिन्दा जला दिया।

चम्पा सुमादे

चम्पा सुमादे (जिला परभणी, महाराष्ट्र) को 18 वर्ष की अल्पायु में ही आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए रजाकारों ने गोली से मार दिया। 66 वर्षीय आंदोलनकारी गोदावरी बाई टेके की भी रजाकारों ने हत्या कर दी।

श्रीमती फरीची

श्रीमती फरीची ने बारामूला कश्मीर के एक विरोध प्रदर्शन में स्थानीय सैनिकों की गोली से वीरगति को प्राप्त किया। सजीदा बानो भी कश्मीर के जन आदोलन में शोपिया में मारी गईं।

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