विष्णु नागर का व्यंग्यः प्रधानमंत्री को किसी बात का अफसोस नहीं होता, यही उनकी सबसे बड़ी खूबी!

उसे याद आया कि प्रधानमंत्री की तो सबसे बड़ी खूबी यह है कि उन्हें किसी बात का अफसोस नहीं होता। प्रधानमंत्री के सबल नेतृत्व के प्रभाव से उसने भी निश्चय किया कि वह भी किसी बात का अफसोस नहीं करेगा।

प्रधानमंत्री को किसी बात का अफसोस नहीं होता, यही उनकी सबसे बड़ी खूबी!
i
user

नवजीवन डेस्क

प्रधानमंत्री के 'असाधारण नेतृत्व' में सुभाष ने सुबह नौ बजकर बत्तीस मिनट पर बिस्तर छोड़ा, जबकि नरसों, परसों और कल रात भी उसने यह दृढ़ संकल्प किया था कि चाहे सूरज पश्चिम से निकलने लगे मगर वह सात बजे जागकर दुनिया को चकित कर देगा, मगर उसे पता चला कि दुनिया चकित होने के लिए तैयार नहीं है तो वह सोता रहा।

पिछले तीन दिनों देर से जागने का उसे अफसोस-सा था मगर तभी उसे याद आया कि प्रधानमंत्री की तो सबसे बड़ी खूबी यह है कि उन्हें किसी बात का अफसोस नहीं होता। प्रधानमंत्री के सबल नेतृत्व के प्रभाव से उसने भी निश्चय किया कि वह भी किसी बात का अफसोस नहीं करेगा। उसके शब्दकोश से 'अफसोस' शब्द पलायन कर गया जिसका उसे कोई अफसोस नहीं था!

प्रधानमंत्री के नेतृत्व में पूर्ण आस्था रखते हुए उसने बिस्तर से उठने का प्रयास किया मगर उसे सफलता नहीं मिली। वह काफी देर तक यूं ही पड़ा रहा लेकिन उसकी नींद उड़ चुकी थी तो मन मारकर पंद्रह मिनट 26 सेकंड बाद उसे उठना पड़ा। प्रधानमंत्री के संपूर्ण स्वदेशी के आह्ववान का सम्मान करते हुए उसने विको वज्रदंती टूथपेस्ट से ब्रश किया। उसने सोचा कि स्वदेशी प्रेम जिन प्रधानमंत्री जी में कभी सोता, कभी ऊंघता और कभी जागता रहता है, क्या वह भी इसी टूथपेस्ट से ब्रश करते होंगे?

फिर उसे अपनी बुद्धि पर हंसी आई कि वे प्रधानमंत्री हैं, साधारण लोगों के इस देसी टूथपेस्ट का इस्तेमाल करना उनकी आन, बान और शान के खिलाफ है। पद की गरिमा के विरुद्ध है, जिसे साधारण ब्रश और साधारण टूथपेस्ट का प्रयोग कर खंडित नहीं होने दिया जा सकता! अवश्य वह किसी विदेशी टूथपेस्ट और टूथब्रश से ही दांत साफ करते होंगे!


प्रधानमंत्री के सशक्त नेतृत्व में उसने चाय बनाई मगर वह इतनी अधिक सशक्त बन गई कि बेस्वाद हो गई। उसके मन में एक क्षण के लिए यह खयाल आया कि कहीं इसका कारण प्रधानमंत्री के नेतृत्व का कमजोर होना तो नहीं है, जिसकी खबरें इधर तेजी से उड़े लगी हैं! इस आशंका को निर्मूल करने के लिए उसने ग्लूकोज के दो बिस्कुट लिये और चाय पी तो स्वादहीनता में भी स्वाद आया।

उसे यह खयाल आने लगा कि प्रधानमंत्री तो एक भी दिन बेस्वाद चाय नहीं पीते होंगे और किसी दिन ऐसी चाय उनके सामने आती होगी तो कप समेत वह फेंक देते होंगे क्योंकि वह मजबूत प्रधानमंत्री हैं और वह जानते हैं कि इस कप और इस चाय पर उनकी जेब का एक पैसा भी नहीं लगा है, जबकि वह ऐसा नहीं कर सकता। चाय की पत्ती भी उसकी, दूध भी उसका, गैस भी उसकी और बनाने वाला भी वह!

फिर उसे यह भी ख्याल आया कि वह पता नहीं किस ब्रांड की चाय पीते होंगे और कौन कौन-से मसाले उसमें डलवाते होंगे? उसने एक क्षण के लिए यह भी सोचा कि चायवाले के रूप में मशहूर प्रधानमंत्री क्या सचमुच अपनी चाय खुद बनाकर पीते होंगे? फिर उसने इतने निम्न कोटि के विचार आने पर अपने कान पकड़े और मन ही मन प्रधानमंत्री से क्षमा मांगी। फिर उसे लगा कि इससे उसके पापों का प्रक्षालन नहीं होगा, इसलिए उसने अयोध्या के राममंदिर में अवस्थित भगवान श्री राम का स्मरण किया और पापं शांतम कहा!

वह बेरोजगार था और अपने पूजनीय माता-पिता से खर्चे-पानी के पैसे मंगवाता रहता था। उन्होंने भी अपने एकमात्र लाडले सुपुत्र की इस सेवा में कोई कमी नहीं आने दी थी, चाहे इसके लिए उन्हें उधार लेना पड़ा हो! घर का सामान बेचना पड़ा हो! चाय पीकर फिर से उसका मन लेटने का हुआ क्योंकि आज भी कुछ नया होने की उम्मीद नहीं थी।


फिर इस बात का स्मरण करते हुए कि प्रधानमंत्री 18-18 घंटे काम करते हैं, उसने तत्काल पोटी जाने का काम राष्ट्रीय कर्तव्य समझकर किया। सुखद संयोग कि मई 2014 के बाद आज पहली बार उसका पेट पूरी तरह साफ हुआ था। उसने याद करने की कोशिश की कि कल उसने ऐसा क्या खाया था कि यह चमत्कार संभव हुआ तो याद आया कि उसने लंच और डिनर दोनों में समोसे और कचौड़ी ठूंस-ठूंस कर खाई थी पर यह आज उसका पेट पूरी तरह साफ होने का विश्वसनीय कारण नहीं हो सकता बल्कि इस वजह से तो पेट और ख़राब होना चाहिए था। गहन आत्मपरीक्षण के बाद उसने पाया कि इसका कोई और कारण नहीं हो सकता सिवाय इसके कि प्रधानमंत्री ने बताया है कि भारत दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है ओर तेजी से दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है।

अब चूंकि अत्यंत सफलतापूर्वक जीवन का यह महत्वपूर्ण प्रातः कालीन चरण पूर्णता को प्राप्त हो चुका था तो उसके पेट में चूहे दौड़ने लगे। थोड़ी देर में उसे लगा कि नहीं ये चूहे नहीं, बिल्लियां हैं। इससे पहले उसे इस तरह की अनुभूति कभी नहीं हुई थी। इसका कारण उसे यह समझ में आया कि विकास की जो आंधी देश में बह रही है, उसका यह असर है कि पेट में चूहों की जगह बिल्लियों दौड़ने लगी हैं और भविष्य में इनकी जगह कुत्ते भी ले सकते हैं।

वह तेजी से कदम बढ़ाते हुए पास के एक रेस्तरां में पहुंचा। पता चला कि रेस्तरां मालिक के पिता श्री का आज सुबह ही इंतकाल हुआ है। उसे क्रोध आया कि आज ही उसका पेट ऐतिहासिक रूप से साफ हुआ है और आज ही यह संकट सामने आ गया। फिर उसने प्रधानमंत्री चालीसा का पाठ किया और अगले रेस्तरां की तरफ बढ़ा। संयोग से वहां नाश्ता बढ़िया था। पता लगा कि उसका मालिक संघ का अनुशासित सिपाही है। सुभाष इससे प्रभावित हुआ और उसने पैसे देने से पहले उस अनुशासित सिपाही से बात करने की कोशिश की मगर वह दुकानदारी में इतना व्यस्त था कि सुभाष को इसमें असफलता मिली।

मौके का लाभ उठाकर वह बिना पैसे दिए नीचे उतर गया मगर संघ का अनुशासित सिपाही होने के कारण दुकानदार, फोकटिया ग्राहकों के प्रति बहुत निर्मम था। उसने अपने एक कर्मचारी को उसके पीछे भेजा। सुभाष आने में आनाकानी करने लगा तो वह कालर पकड़कर ले आया।मालिक की दिली इच्छा तो सुभाष को पीटने की थी मगर व्यस्तता के चलते उसने चार मोटी गालियां दीं। पैसा वसूल किया और कहा कि अब कभी इस दुकान की सीढ़ियों पर पैर भी मत रखना वरना हड्डियां तोड़ दूंगा!

इसके बाद लोग कहते हैं कि उसका प्रधानमंत्री के नेतृत्व पर से विश्वास उठ गया है।

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia