मोदी की अमेरिका यात्रा: क्या है इसके पीछे की असली राजनीति और शब्दाडंबर!

प्रधानमंत्री मोदी अमेरिका की अपनी पहली राजकीय यात्रा पर रवाना हो चुके हैं। हालांकि इससे पहले वह 7 बार अमेरिका गए हैं, लेकिन इस बार की यात्रा राजकीय है। आखिर इसके पीछे की असली राजनीति, सत्ता का शब्दाडंबर और कारोबार क्या है!

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भविन कक्कड़

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 21 से 24 जून तक अमेरिका यात्रा के लिए सोमवार को रवान हो चुके हैं। राष्ट्रपति जो बाइडेन के निमंत्रण पर हो रही इस यात्रा को लेकर भारत और अमेरिका दोनों ही देशों के रिश्तों में नए मोड़ के तौर पर देखा जा रहा है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र और दुनिया के सबसे बड़े अर्थतंत्र के बीच इस यात्रा से दोनों देशों को विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग मजबूत होने की उम्मीद है।

इस यात्रा को लेकर व्हाइट हाऊस प्रेस सेक्रेटी और भारतीय विदेश मंत्री दोनों के ही उत्साहवर्धक बयान सामने आए हैं।

2014 में सत्ता में आने के बाद से प्रधानमंत्री मोदी ने 60 से अधिक देशों की करीब 114 विदेश यात्राएं की हैं। इस दौरान में सात बार अमेरिका के दौरे पर गए हैं। लेकिन इस बार की यात्रा उनकी पहली अधिकारिक सरकारी यात्रा है, जिसमें स्टेट रिसेप्शन आदि शामिल है। साथ ही अमेरिकी संसद के संयुक्त सदन को संबोधन भी शामिल है। इससे पहले 2009 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अमेरिका की अधिकारिक सरकारी यात्रा की थी।

इस बार की यात्रा में मोदी 22 जून को अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र को संबोधित करेंगे और 23 जून को अमेरिकियों के एक समूह को अमेरिका की विकास यात्रा में प्रवासी भारतीयों की भूमिका पर भाषण देंगे।

हालांकि मोदी का अमेरिका के मौजूदा राष्ट्रपति और डेमोक्रेट जो बाइडेन के साथ वैसा रिश्ता नहीं है जैसा कि बाइडेन से पहले के रिपब्लिकन राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के साथ था। उनके लिए तो मोदी ने अमेरिका में एक चुनावी रैली में अबकी बार ट्रंप सरकार का नारा तक लगाया था।

बाइडेन से मोदी की अब तक जो बातचीत हुई है उससे ऐसा लगता है कि अमेरिकी सरकार भारत को लेकर किसी खास नीति के पक्ष में नहीं है। 2021 में बाइडेन के साथ हुई मोदी की पहली मुलाकात में अमेरिका ने यह एहसास कराया था कि भारत में मोदी शासन के तौर-तरीकों को लेकर अच्छी राय नहीं रखता है और भारत में लोकतंत्र में आ रही गिरावट को रेखांकित किया गया था।

मुलाकात के दौरान बाइडेन ने भारत में हो रही राजनीतिक अराजकता का हवाला देने के लिए राजनयिकों का इस्तेमाल किया था, जबकि भारतीय मूल की अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने प्रधानमंत्री को यह बताने में संकोच नहीं किया था कि सिद्धांतों और संस्थानों, और मानवाधिकारों को बनाए रखने के लिए लोकतंत्र की रक्षा करना कितना आवश्यक है।


संभवत: यही सारे कारण हैं कि अमेरिका के 17 नागरिक अधिकार संगठनों ने 7 जून को अमेरिकी राष्ट्रपति को पत्र लिखकर राष्ट्रपति द्वारा मोदी को दिए जा रहे सरकारी भोज को स्थगित करने का आग्रह किया था। इन संगठनों में अमेरिकन मुस्लिम इंस्टीट्यूट, हिंदूज फॉर ह्यूमन राइट्स, ग्लोबल क्रिश्चियन रिलीफ, अमेरिकी सिख काउंसिल, जेनोसाइड वॉच और ह्यूमन राइट्स एंड ग्रासरूट्स डेवेलपमेंट सोसायटी शामिल हैं। पत्र में कहा गया था कि अमेरिका द्वारा मोदी को निमंत्रण देना दर्शाता है कि भारत में लोकतंत्र विरोधी एजेंडे को अमेरिका का समर्थन है।

ध्यान रहे कि प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा से ठीक पहले अमेरिकी विदेश विभाग के अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता कार्यालय ने अपनी रिपोर्ट में भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों के सरकारी मशीनरी द्वारा उत्पीड़न पर चिंता जताई थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि पूरे वर्ष भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया गया।

इसी तरह पिछले साल 2021 की वार्षिक रिपोर्ट जारी करते हुए अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने भारत को एक ऐसा देश कहा था जहां "धार्मिक स्वतंत्रता और धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकार खतरे में हैं।" उन्होंने इशारा किया था कि यह खतरे "इबादत के स्थानों पर बढ़ते हमलों के कारण" हैं।

भारत हालांकि इन रिपोर्ट्स को हमेशा खारिज करता रहा है। लेकिन मोदी की अमेरिका यात्रा की पूर्व संध्या पर व्हाइट हाउस में राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद में सामरिक संचार के समन्वयक जॉन किर्बी ने अपनी आधिकारिक टिप्पणी में कहा कि अमेरिकी प्रशासन "चिंताओं को व्यक्त करने से कभी नहीं कतराता है जो कि दुनिया भर में किसी के साथ भी हो सकता है।"

हालाँकि मोदी ने 2019 के चुनाव के बाद से खुद को ऐसे एकमात्र नेता के रूप में पेश किया है जो भारत को एक मजबूत सरकार प्रदान कर सकता है और इसे "महाशक्ति" बना सकता है, और उनके समर्थक 2015 से उन्हें विश्वगुरु कहने लगे हैं, लेकिन उनके शासन में मानव विकास के अधिकांश पैमानों पर भारत तेजी से फिसलता जा रहा है।

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) के मानव विकास सूचकांक 2023 में भारत 191 देशों में बांग्लादेश और श्रीलंका के बाद 132वें स्थान पर है, और यह भी अनुमान है कि भारत में 23 करोड़ से अधिक लोग यानी आबादी का 16 प्रतिशत, अभी भी गरीब हैं या उससे नीचे हैं।


उधर जो बाइडेन ने अपने अभियान में दुनिया भर में लोकतंत्र की रक्षा को केंद्र में रखा है। मार्च में कनाडा की यात्रा के दौरान उन्होंने कहा था कि उनका "रणनीतिक लक्ष्य" दुनिया के बाकी हिस्सों के साथ संबंध सुधारना था क्योंकि चीन और रूस के खिलाफ लामबंदी करके ही अमेरिका अपना फायदा कर सकता है। उन्होंने कहा था, "जब से मैं राष्ट्रपति बना हूं, तब से मैं विश्व के 80 फीसदी नेताओं से मिल चुका हूं।" बाइडेन सर्वाधिक आबादी और तेजी से उभरती आर्थिक ताकत वाले भारत को क्वाड में एक अहम सदस्य मानते हैं। लेकिन साथ ही चाहते हैं कि भारत अमेरिकी गठबंधन वाले लोकतंत्रों और रूस और चीन के नेतृत्व वाले निरंकुश धड़े में फर्क स्पष्ट करे।

बाइडेन ने पिछले साल सार्वजनिक तौर पर रूसी युद्ध को लेकर भारत के नजरिए पर टिप्पणी की थी, और इसे ‘अस्थिर’ कहा था। लेकिन भारत की अपनी सीमाएं हैं और रूस और अमेरिका के नेतृत्व वाले नाटो गठबंधन के बीच एक अच्छा संतुलन है। भारत ने रूस की निंदा करने वाले संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों पर मतदान से बार-बार परहेज किया है और रूस के खिलाफ वैश्विक गठबंधन में भागीदारी से इनकार कर दिया है क्योंकि यह रूस और अमेरिका दोनों के साथ रणनीतिक साझेदारी का आनंद लेता है।

लेकिन फिर भी अमेरिका ने भारत द्वारा रूस से पांच एस-400 मिसाइल खरीदने पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, जबकि भारत ने इसी किस्म की मिसाइलें अमेरिका से खरीदने से इनकार कर दिया था। इसके अलावा एक और बात है कि रूस को पता है कि भारत इन मिसाइलों का इस्तेमाल चीन और पाकिस्तान के खिलाफ भी कर सकता है जोकि रूस के घोषित सहयोगी हैं।

मोदी सरकार का मानना है कि भारत एक पुरानी सभ्यता है और वह विश्व में अपने असली स्थान को पाने का हकदार है और उसेकिसी से लोकतंत्र पर पाठ पढ़ने की जरूरत नहीं है। विदेशमंत्री एस जयशंकर ने 2020 में प्रकाशित अपनी किताब में लिखा भी है कि अमेरिका की अगुवाई वाला वर्ल्ड ऑर्डर कोई अंतिम सत्य नहीं है।

इसके अलावा बाइडेन प्रशासन द्वारा एरिक गार्सेटी को भारत में अमेरिकी राजदूत बनाकर भेजे जाने से भी भारत में अच्छी नजर से नहीं देख रहे हैं। 2021 में गार्सेटी ने कहा था कि वह भारत में मानवाधिकार मुद्दों को लगातार उठाते रहेंगे। उन्होंने यह बात सीएए (नागरिकता संशोधन कानून) पर पूछे गए एक सवाल के जवाब में कही थी। गार्सेटी ने कहा था कि वह "सीधे नागरिक समाज के ऐसे समूहों के साथ संवाद करेंगे जो सक्रिय रूप से मानवाधिकारों के लिए लड़ रहे हैं।"


नई दिल्ली आने के बाद ही भारत में अमेरिकी दूतावास ने भारतीय युवाओं के लिए थिंक क्रिटिकली नाम से कार्यक्रम शुरु किया था। इस कार्यक्रम में फोर्ड फाउंडेशन और आईरेक्स (इंटरनेशनल रिसर्च एंड एक्सचेंज बोर्ड) ने प्रायोजित किया था। आइरेक्स फाउंडेशन अरबपति अमेरिकी जॉर्ज सोरोस द्वारा वित्त पोषित है जो प्रधानमंत्री मोदी के आलोचक हैं।

बाइडेन शायद इस तथ्य के प्रति सचेत हैं कि मोदी चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के हजारों सैनिकों की भारतीय सीमा में घुसने के मुद्दे को उठाने में असमर्थ रहे हैं। लद्दाक में चीन ने भारत की बहुत सारी जमीन पर कब्जा कर रखा है, लेकिन मोदी सरकार इस मामले को चीन के साथ खुलकर नहीं उठा पाई है। साथ ही अमेरिका को यह भी खबर है कि शायद भारत अरुणाचल प्रदेश, उत्तराखंड और सिक्किम में चीन की सीमा पार आक्रामकता का जवाब भी नहीं दे रहा है।

मार्च 2022 में भारत में अमेरिकी राजदूत केनेथ जस्टर ने कहा था कि भारत-अमेरिका के किसी भी संवाद में या क्वाड के किसी संवाद में चीन का मामला भारत द्वारा न उठाना चिंता का विषय है। इसके विपरीत भारत ने चीन के साथ पहले जैसे ही कारोबारी रिश्ते बना रखे हैं। दोनों देशों के बीच व्यापार में 21 फीसदी का उछाल दर्ज हुआ है। इसी तरह रूस के साथ भारत का आयात भी पांच गुना हुआ है।

इस बीच भारत-अमेरिका रक्षा सहयोग भी नई ऊंचाइयों पर है जिसमें सैन्य अभ्यास तक शामिल हैं। अपने कार्यकाल के दौरान दो बार भारत का दौरा करने वाले पहले अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने 2010 में न्यूयॉर्क टाइम्स में लिखा था कि भारत की आर्थिक शक्ति अमेरिका के लिए कितनी महत्वपूर्ण है। उन्होंने लिखा था कि "वास्तव में, प्रत्येक एक अरब डॉलर के निर्यात के बदले अमेरिका में 5,000 से अधिक नौकरियां सृजित होती हैं।"

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