विष्णु नागर का व्यंग्य: संसद भवन के ऊपर चढ़ कर चारों दिशाओं में किस पर दहाड़ रहे ये खाते-पीते तगड़े शेर?

गनीमत है कि इनके मुंह में इनके शिकार और उनके शरीर से बहता खून नहीं है। अब सवाल उठता है कि ये चारों खाते-पीते तगड़े शेर चारों दिशाओं में दहाड़ किस पर रहे हैं और वह भी नये संसद भवन के ऊपर चढ़ कर ?

फोटो: सोशल मीडिया
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विष्णु नागर

लोग पूछ रहे हैं कि नये संसद भवन के ऊपर स्थापित ये चारों शेर चारों दिशाओं में दहाड़ क्यों रहे हैं? किस पर दहाड़ रहे हैं? अशोक स्तंभ के ढाई हजार साल पुराने शेर तो शांत थे! ये दहाड़ू क्यों हैं? कोई वजह?

इस निजाम से ये क्या कोई भी सवाल पूछना अपराध है, मगर विपक्ष से पूछना पुण्यकार्य है लेकिन मैं विपक्ष को यह पुण्य क्यों बटोरने दूं? मैं खुद क्यों न बटोरूं? तो इस सवाल का जवाब मुझे यह मिला कि हम ढाई हजार साल पुराने समय में नहीं हैं (उस समय गिराने को मस्जिद नहीं थी वरना एक मिनट में पहुंच जाते) और हमारे सम्राट अशोक नहीं हैं। आज अपने को जो सम्राट मानता है, वह अशोक को बिल्कुल पसंद नहीं करता। अतः यह अशोक स्तंभ नहीं है, यह इस 'सम्राट' का बनवाया स्तंभ है। आप ही सोचो, इसके शेर शांत और सौम्य कैसे हो सकते हैं? वे यह 'कलंक' अपने सिर पर क्यों लादें? गनीमत है कि इनके मुंह में इनके शिकार और उनके शरीर से बहता खून नहीं है। अब सवाल उठता है कि ये चारों खाते-पीते तगड़े शेर चारों दिशाओं में दहाड़ किस पर रहे हैं और वह भी नये संसद भवन के ऊपर चढ़ कर ?


इसका जवाब वैसे तो स्पष्ट है मगर कोई यह इल्जाम न लगाए कि मैं इसका उत्तर देने से कतरा रहा हूं। तो जवाब यह है कि दहाड़ रहे हैं हम पर, तुम पर। हमारी बुद्धि पर, हमारी चेतना के स्तर पर कि हमने 2014 में जो गलती की, वही 2019 में भी की और इनको पूरा विश्वास है कि यही हम 2024 में भी करने जा रहे हैं। विपक्षमुक्त भारत की भेंट इस देश को देने जा रहे हैं। सब कुछ अनुकूल रहा तो 2024 में संसद में कोई इक्का-दुक्का विपक्षी सदस्य दिखेगा, इसलिए हम अभी से दहाड़ रहे हैं। हम दहाड़ रहे हैं कि देखो, शेर जब तक शांत और सौम्य रहा तो संसद को विपक्ष मुक्त करने की कोई सोच भी नहीं पाया। ये हम पत्थर हो चुके दहाड़ते शेरों का लोकतंत्र है। इसमें कुछ भी मुमकिन है।

ये शेर हमारे सम्राट के हैं मगर हैं तो फिर भी शेर, इसलिए ये पूरी तरह उसके वश में भी नहीं हैं।ये दहाड़ कर इस देश के बहुसंख्यकों के भी बहुसंख्यक वर्ग को सावधान कर रहे हैं कि अक्ल के मारो, तुम इतने गये बीते कब से हो गए कि हमें दहाड़ने यहां आना पड़ा? तुम्हें मुसलमानों को ठीक करने के नाम पर इस फर्जी सम्राट ने मिशन नफ़रत पर लगा दिया और तुम भूल गये कि इसकी आड़ में तुम्हारे ही खिलाफ साजिश रची जा रही है? यह नोटबंदी किसके हक में थी? तुम्हारे हक में और मुसलमानों के विरुद्ध थी ? तब से जो अर्थव्यवस्था लगातार गिर रही है, उसकी तकलीफ़ क्या अकेले मुसलमान झेल रहे हैं? इस देश ने पिछले 45 वर्षों में कभी ऐसी बेरोजगारी नहीं देखी, जैसी आज देख रहा है। अभी जून में ही 25 लाख लोग नौकरियां गंवा चुके हैं। आगे भी ये इसी तरह नौकरियां गंवाते रहेंगे। इसका असर तो केवल मुसलमानों पर पड़ रहा है न? तुम, तुम्हारा बेटा-बेटी तो बेरोजगार नहीं हुए, न होंगे कभी? क्यों? और रुपया, डालर के मुक़ाबले नीचे और नीचे जा रहा है, इसे कौन भुगतेगा? पिछले दस महीनों से विदेशी पूंजी भाग कर अमेरिका जा रही है, उसका असर किस पर पड़ेगा? भारत पर पिछले सात वर्ष में विदेशी कर्ज बढ़ता जा रहा है, उसका भुगतान क्या अमेरिका करेगा? और गिनाऊं? छोड़ो।


इस अडानी को 2.20 खरब डालर का कर्ज किस सरकार ने दिया, जबकि भारत का कुल विदेशी मुद्रा भंडार 4.70 डालर बताया जाता है। अगर ये भी नीरव मोदी, मेहुल चोकसी, विजय माल्या की राह पर चल पड़ा तो क्या तुम ख़ुशी मनाओगे क्योंकि नुकसान तो केवल मुसलमानों का होगा? आंकड़ों के अनुसार 2020-21में 97 प्रतिशत लोग पहले की अपेक्षा गरीब हुए हैं तो ये तो सब के सब मुसलमान हैं न? सभी हिंदू तो तीन फीसद अमीरों में शामिल हैं न? वे तो गरीब हो ही नहीं सकते? जिनकी झुग्गी झोपड़ियां उजाड़ी जाती हैं, जिनके बच्चे मारे-मारे फिरते हैं, उनमें कोई हिन्दू तो नहीं होता है न? तुम तो बहुत सुखी हो गए हो न, क्योंकि मुल्लों को ठीक कर दिया गया है? अरे भाई गर्दन हिला कर एक बार हां तो कहो कि यह काम भी तुम्हारी तरफ से मैं करूं?

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