विष्णु नागर का व्यंग्य: अस्वर्गीय नेताओं के लिए स्वर्गीय महानों की उपयोगिता

स्वर्गीय महान का उपयोग किसी वस्तु की तरह भी किया जा सकता है। उसे श्रीफलयुक्त शाल बना दिया जा सकता है या अंगोछा या शर्ट या कुर्ता। ओढ़ने की चादर, बिछाने की दरी या ईरान का गलीचा भी।

फोटो: सोशल मीडिया
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विष्णु नागर

स्वर्गीय महान लोग, अस्वर्गीय छोटे-बड़े, मोटे -खोटे, तड़ीपार-जनसंहारक नेताओं के लिए बहु-उपयोग की वस्तु बन जाते हैं। उनका सबसे बड़ा उपयोग तो यह है कि वे स्वर्गीय हो चुके होते हैं और अस्वर्गीय नेता उनका कुछ भी यानी कुछ भी कर सकते हैं - उनकी चटनी बनाएं या रायता या रसगुल्ले। वे अपने समय के महाबली, परमवीर रहे होंगे मगर आज तो उनसे कोई चूहा भी नहीं डरता। स्वर्गीय होने की अपनी विशेषता के कारण वे न किसी का कुछ बिगाड़ सकते हैं, न सुधार सकते हैं। जो करना होता है, मुंहबली को ही करना होता है। स्वर्गीय महान इन अस्वर्गीय नेताओं पर न क्रोध कर सकते हैं, न विरोध, न दया कर सकते हैं, न करुणा। न खंडन कर सकते हैंं, न मंडन। यहां तक कि मिनमिना भी नहीं सकते क्योंंकि वे सौभाग्य और दुर्भाग्य, दोनों से, महान होकर, स्वर्गीय भी हो चुके होते हैं या स्वर्गीय कर दिए गए होते हैं।

उन्हें बिना पढ़े, बिना जाने, बिना सुने, बिना गुने, नेता बेधड़क होकर जो उसे सूट करे, आराम से  या फटाफट बक सकता है। जनता को  सलाह दे सकता है कि उसे उनके आदर्शों पर चलना चाहिए।और यही वाक्य वह दिन में 6 बार, 7 महापुरुषों के बारे में 8 सूट बदलकर 9 जगह कह सकता है। और इससे किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता, नेता को तो बिल्कुल ही नहीं, क्योंंकि स्वर्गीय महान उसके लिए बकबक करने का एक विषय है, जिससे उसे टीवी कवरेज मिलती है और अखबार में फोटू छपती है।

स्वर्गीय महान का उपयोग किसी वस्तु की तरह भी किया जा सकता है। उसे श्रीफलयुक्त शाल बना दिया जा सकता है या अंगोछा या शर्ट या कुर्ता। ओढ़ने की चादर, बिछाने की दरी या ईरान का गलीचा भी। ‘सॉरी टू से’, मगर उनका 56 इंंची उपयोग डोरमैट या पोंछे के रूप में भी करने का चलन इधर बढ़ गया है। वे नहाने के साबुन से लेकर, कपड़े धोने के वाशिंग पाउडर तक सब बनाए जा रहे हैं, जब जैसी जरूरत हो, जब जैसा संकट हो या संकट पैदा करने की रणनीति हो - अस्वर्गीय नेता सब करने में समर्थ हैं क्योंकि वे स्वर्गीय नहीं हुए हैं और ईश्वर उन्हें क्षमा करे, उन्हें बिल्कुल नहीं मालूम कि उन्हें भी स्वर्गीय होना है।

अस्वर्गीय नेता के लिए स्वर्गीय महानों का उपयोग भोज्य पदार्थ की तरह भी है। वे शाकाहार-मांसाहार सब हैं। मिठाई, नमकीन सब हैं। वे अधिक मिर्च, कम नमक; अधिक खोया, अधिक चीनी; कम खोया, कम चीनी सबमें पहले से उपलब्ध  हैं। वे आज न खाने दूंगा, न खिलाने दूंगा का नारा लगानेवाले को खाने दूंगा और खिलाने दूंगा के फैसिलिटी प्रोवाइडर भी हैं। वे मिट्टी भी हैं, खाद भी, सूरज की रोशनी भी और एयरकंडीशनर की शीतल बयार भी। वे प्राणियों में गाय हैं और गाय में भी देसी गाय हैं। वे दूध भी दे सकते हैं और वह सब भी जो गाय दे सकती है और जो पवित्र होता है। जब तक वे दूध दें, उन्हें खूंटे से बांधकर रखा जा सकता है और दूध देना बंद कर दें तो बिना किसी दुविधा और अपराधबोध के आराम से प्लास्टिक खाकर मरने के लिए छोड़ा जा सकता है। गाय से तो फिर भी थोड़ा खतरा रहता है, वह सींग मार सकती है या लात भी या दोनों भी, स्वर्गीय महानों से ऐसा कोई खतरा सपने में भी नहीं है। उनकी चाहे विश्व की सबसे ऊंची मूर्ति बना लो, चाहे पहले से खड़ी हो, धूल चाटकर भूख-प्यास मिटा रही हो तो  उसे गिरा दो, भूमिसात कर दो।

जो कांग्रेसी रहा हो, उसे चाहे भाजपाई बना दो, उसे चाहे, जिससे बड़ा, जिससे छोटा बता दो। सब नेता की इच्छा पर निर्भर है। मरने के बाद महान भी गीली मिट्टी का लोंदा बन जाता है, उसे जो चाहे, बना दो, वह ऐसी चट्टान है, उसमें जो चाहे तराश लो! महान आदमी अपने समय का कितना ही महान रहा हो, कितना ही प्रदेश-देश, धर्म-जाति से ऊपर रहा हो। लेकिन वह किसी देश, किसी प्रदेश, किसी धर्म, किसी जाति से तो आया होता है तो जहां चाहो, उसे पेल दो, धकेल दो। उसके बहाने, जितना चाहे मैं-मैं कर लो। उसे जितना चाहे, मोदी बना दो, आदित्यनाथ बना दो, गोलवलकर बना दो, शाखा में ध्वज प्रणाम करवा दो क्योंकि वह स्वर्गीय है और उसने जीवन में महान बनने की भूल की थी और ऐसी भूल को नेता कभी माफ नहीं करते। इसलिए मन की बात ये है भाइयो-बहनो, पकौड़े बेच लो मगर महान कभी मत बनो। आप चाहो तो इस मामले में मेरा आदर्श सामने रख सकते हो, हालांकि मैं अभी स्वर्गीय नहीं हुआ हूं।

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