आकार पटेल का लेख: दुनिया समझ गई है कि कम क्यों है हमारे यहां संक्रमण के मामले, लेकिन सरकार कब समझेगी !

स्वास्थ्य को लेकर हमारे यहां कोई मानक प्रक्रिया है ही नहीं। कोरोना काल में यात्रा करने वाले मुझ जैसे लोगों को यह बात एकदम समझ में आ गई। हांगकांग हम पर पांबदी लगाकर जो किया, वैसा ही बाकी दुनिया को भी समझ आ गया है कि आखिर हमारे यहां इतने कम केस क्यों हैं।

प्रतीकात्म फोटो
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आकार पटेल

इस सप्ताह हांगकांग ने एक बार फिर भारतीयों के वहां आने पर पाबंदी लगा दी। वहां पहुंचे कुछ भारतीयों के कोरोना पॉजिटिव पाए जाने के बाद यह पाबांदी लगाई गई। अगस्त से अब तक यह पांचवीं बार है जब हांगकांग ने ऐसी पाबंदी लगाई है।

यात्रियों को कोरोना टेस्ट कराने और निगेटिव आने के बाद ही विमान यात्रा की इजाजत है। लेकिन हमारे यहां शायद इस नियम को किसी किस्म की सख्ती के लागू नहीं किया जा रहा है। जो यात्री हांगकांग पहुंचे उन सबके पास इस बात का सर्टिफिकेट था कि वे निगेटिव हैं, लेकिन दोबारा जांच में यह गलत साबित हुआ।

मुझे इससे हैरानी नहीं हुई क्योंकि भारत में किसी हवाई यात्रा से पहले टेस्टिंग का कोई मानक तरीका अपनाया नहीं जा रहा है। और मैं ऐसा निजी अनुभव के आधार पर कह रहा हूं। बीते कुछ महीनों के दौरान मैं हर महीने मुकदमे की पेशी के लिए सूरत जाता रहा हूं। पहली बार जब मैं गया था तो कोरोना वायरस आ चुका था और तब मुझे पता चला था कि विमान यात्रा के लिए क्या प्रक्रिया अपनाई जा रही है। मुझे एयरलाइन ने बताया कि सूरत म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन द्वारा विकसित एक ऐप को डाउनलोड करना होगा और स्व प्रमाणित फार्म पर हस्ताक्षर करके देने होंगे। मैंने ऐप डाउनलोड करने की कोशिश की लेकिन मेरे फोन में तो यह डाउनलोड ही नहीं हुआ।

सूरत में लैंड करने पर मुझसे किसी ने इस ऐप के बारे में नहीं पूछा और न ही कोई फार्म मांगा गया, हां जो भी यात्री 50 वर्ष से ऊपर के थे उनका रैपिड टेस्ट कराया गया और उनका फोन नंबर और पता दर्ज कर लिया गया। सूरत से वापसी पर मुझसे पूछा गया कि क्या मैंने आरोग्य सेतु ऐप डाउनलोड किया है, जो मैंने नहीं किया था, क्योंकि ऐसी कोई शर्त पहले नहीं थी। बैंग्लुरु वापस पहुंचने पर किसी ने कुछ भी नहीं पूछा।

यह पहली बार हुआ था। दूसरी बार जब अगले महीने मैं सूरत पहुंचा तो एयरपोर्ट पर किसी ने कुछ भी नहीं पूछा और मैं बिना किसी टेस्ट या फॉर्म के एयरपोर्ट से बाहर निकल गया। तीसरी बार अक्टूबर में सूरत एयरपोर्ट पर लोगों का टेंपरेचर नापा जा रहा था, लेकिन न तो किसी का कोई टेस्ट हो रहा था और नही किसी का पता या फोन नंबर लिखा जा रहा था। इस बार तो किसी ने आरोग्य सेतु ऐप के बारे में भी कुछ नहीं पूछा।

एक एयरलाइन ने फेस शील्ड तो दी थी, लेकिन यात्री इसे पहने, इस पर जोर नहीं दिया। वहीं दूसरी एयरलाइन ने फेसशील्ड पहनना जरूरी किया वह भी मास्क के ऊपर।


हर बार हवाई यात्रा के लिए अलग प्रक्रिया थी लेकिन इसमें किसी किस्म की कोई सख्ती नहीं थी। क रैंडम तरीके से बिना किसी गंभीरता से इसका पालन किया जा रहा था। शायद यही कारण है कि दूसरे देशों और खासतौर से चीन में भारत के मुकाबले 100 गुना संक्रमण कम है, और इस सबके चलते ही हांगकांग ने भारतीय विमानों के वहां आने पर पाबंदी लगा दी है।

असल में टेस्टिंग की समस्या सिर्फ एयरलाइंस तक ही सीमित नहीं है। ब्लूमबर्ग में इस सप्ताह आई एक रिपोर्ट के मुताबिक हमारे यहां संदेहास्पद टेस्टिंग के कारण ही शायद कोरोना संक्रमितों की संख्या इतनी कम नजर आत है। भारत में आधे के करीब टेस्ट तो रैपिड ऐंटीजन टेस्ट हैं। यह टेस्ट तेजी से हो सकते हैं लेकिन इनका रिजल्ट अकसर गलत निगेटिव दिखाता है। यानी टेस्ट कराने वाले हर चार में से एक आदमी निश्चित रूप से पॉजिटिव है।

मध्य अगस्त तक भारत हुए कुल टेस्ट में से सिर्फ 25 फीसदी ही रैपिड एंटीजन टेस्ट थे लेकिन अब यह बढ़कर 50 फीसदी हो गए हैं। बिहार जैसे राज्यों में तो 90 फीसदी टेस्ट इसी विधि से हो रहे हैं। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि आखिर भारत में कोरोना केसों की संख्या कम क्यों है। अमेरिका और यूके जैसे दूसरे देशों में बड़ी संख्या में संक्रमण के मामले सामने आ रहे हैं क्योंकि वहां आरटी-पीसीआर टेस्ट किए जा रहे हैं। इसमें समय लगता है लेकिन इनके नतीजे भरोसे लायक होते हैं।

इसके अलावा देश के अलग-अलग हिस्सों में टेस्टिंग की संख्या भी असमान है। जिस दिन ब्लूमबर्ग ने यह रिपोर्ट प्रकाशित की उसी दिन बिहार में चुनाव ख्तम हुए थे यानी मतदान पूरा हुआ था। बिहार में चुनाव के दौरान सिर्फ 600 नए मामले सामने आए जबकि उसी दिन दिल्ली में 7000 केस पता चले।


रिपोर्ट में कई विशेषज्ञों से बात की गई थी जिन्होंने भारत में कोरोना संक्रमितों की संख्या को लेकर संदेह जताया, लेकिन मुझे इससे भी हैरानी नहीं हुई। दरअसल सार्वजनिक स्वास्थ्य को लेकर हमारे यहां कोई मानक प्रक्रिया है ही नहीं। और कोरोना काल में यात्रा करने वाले मुझ जैसे लोगों को तो यह बात एकदम स्पष्ट समझ में आ गई। और हम पर पाबंदी लगाकर जैसा हांगकांग ने किया, यही बात बाकी दुनिया को भी हमारे बारे में समझ में आ गई है।

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