प्रकृति के नजदीक रहने के हैं अद्भुत फायदे, फिर भी शहरों से गायब हो रही हरियाली

जनसंख्या के साथ कंक्रीट वाला विकास भी बढ़ रहा है। जाहिर है बीमारियां भी बढ़ रहीं हैं। इन अध्ययनों से इतना तो स्पष्ट है कि हरा-भरा माहौल स्वास्थ्य के लिए भी आवश्यक है, पर क्या हमारे शहरी और ग्रामीण नियोजक कभी इस पर ध्यान देंगे।

फोटोः सोशल मीडिया
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महेन्द्र पांडे

शहरों में प्रकृति से नजदीकी का एहसास केवल हरियाली वाले क्षेत्रों से होता है, पर अब यह क्षेत्र सिकुड़ते जा रहे हैं और बेतरतीब विकास की बलि चढ़ रहे हैं। शहरी हरे क्षेत्र बड़ी आबादी को साफ़ हवा और भूजल संरक्षण जैसी सुविधाएं देते हैं और उन्हें स्वास्थ्य रखने में सहयोग देते हैं, फिर भी शहरी क्षेत्रों की हरियाली का आधार स्थानीय अर्थव्यवस्था है। हाल में ही नेचर कम्युनिकेशंस नामक जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार विकसित देशों की तुलना में विकासशील देशों के शहरों में एक-तिहाई आबादी को ही हरे-भरे क्षेत्रों की सुविधा मिली है, और विकासशील देशों के शहरों में हरियाली का क्षेत्र आधे से भी कम है।

इस अध्ययन को यूनिवर्सिटी ऑफ़ हांगकांग, येल यूनिवर्सिटी और सिंघुआ यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने संयुक्त तौर पर किया है। इस अध्ययन के लिए वर्ष 2020 में दुनिया के 1028 शहरों की आबादी, शहरों के हरेभरे क्षेत्र और इन क्षेत्रों तक लोगों के पहुँचने की सुगमता का विश्लेषण किया गया है। यह अध्ययन इसी विषय पर पहले किये गए अध्ययनों से बहुत अलग है। इससे पहले इतना बड़ा अध्ययन नहीं किया गया और इस अध्ययन में शहरों को विकसित देश के शहर और विकासशील देशों के शहरों में विभाजित किया गया।


इससे पहले के सभी अध्ययन शहरी आबादी, शहरों के हरे-भरे क्षेत्र और प्रतिव्यक्ति हरे क्षेत्र पर आधारित थे, जबकि इस अध्ययन में हरे-भरे क्षेत्र तक आबादी के पहुँचाने की सुगमता को भी शामिल किया गया है। इससे यह तय किया गया कि शहरी हरियाली वाले क्षेत्र लोगों के लिए उपलब्ध हैं या नहीं। इस अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि कुल 1028 शहरों में से 1000 से अधिक शहर ऐसे हैं जहां शहर के हरे क्षेत्र और आबादी के पहुँचाने की सुगमता वाले क्षेत्रों में व्यापक अंतर है। सिंगापुर का 84 प्रतिशत क्षेत्र हराभरा है, पर महज 55 प्रतिशत क्षेत्र में ही सुगम तरीके से पहुंचा जा सकता है, हांगकांग के लिए यह क्षेत्र क्रमशः 70 प्रतिशत और 35 प्रतिशत हैं, पेरिस के लिए 52 प्रतिशत और 38 प्रतिशत और बेजिंग के लिए क्रमशः 34 प्रतिशत और 28 प्रतिशत हैं।

हाल में ही प्रकाशित एक शोधपत्र का निष्कर्ष है कि प्रकृति से नजदीकी से एकाकीपन कम होता है। प्रकृति से नजदीकी का मतलब है, पानी, पहाड़ों और हरियाली के पास, या फिर खुला नीला आसमान दिखना। समस्या यह है कि दुनियाभर में आवासीय स्थानों में शहर सबसे तेजी से बढ़ रहे हैं, जनसंख्या भी बढ़ती जा रही है, और अधिकतर शहर केवल कंक्रीट के जंगल में तब्दील हो गए हैं। जो शहर कुछ दशक पहले तक हरियाली के लिए जाने जाते थे, वहां भी हरियाली नष्ट कर मकान, बाजार, शौपिंग मॉल और ऑफिस काम्प्लेक्स खड़े हो चुके हैं।

एकाकीपन दुनियाभर में एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है और वैज्ञानिकों के अनुसार इससे मृत्यु का खतरा 45 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। मृत्यु दर में यह बढ़ोत्तरी वायु प्रदूषण, मोटापा और अल्कोहल सेवन के प्रभावों से भी अधिक है। साइंस रिपोर्ट्स नामक जर्नल में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार प्रकृति के नजदीक रहने वालों में एकाकीपन की समस्या 28 प्रतिशत तक कम हो जाती है। यदि आप किसी अपने पसंद के व्यक्ति के साथ हैं तो एकाकीपन में 21 प्रतिशत की कामी आती है, और यदि अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ प्रकृति की गोद में बैठे हैं तो एकाकीपन में 39 प्रतिशत की कमी आती है। प्रायः कहा जाता है, भीड़ में भी अकेलेपन का एहसास रहता है, पर हम इसे स्वीकार नहीं करते और ऐसा कहने वाले की हंसी उड़ाते हैं। इसका जवाब भी इस शोधपत्र में है – भीड़ में एकाकीपन 39 प्रतिशत तक बढ़ जाता है।


इस अध्ययन के लिए दुनियाभर से स्मार्टफोन के ऐप की मदद से रियल-टाइम आंकड़े लिए गए थे। यह ऐप है, अर्बन माइंड रिसर्च ऐप। अध्ययन के मुख्य लेखक, लन्दन स्थित किंग्स कॉलेज की प्रोफ़ेसर एंड्रिया मेचेली के अनुसार प्रकृति के साथ आप कभी अकेलापन महसूस नहीं करते और पेड़ों और पंछियों से ही आप दोस्ती कर लेते हैं, प्रकृति की गोद में यदि आप अपनों के साथ बैठे हैं, तो फिर कभी अकेला महसूस नहीं करते। यूनाइटेड किंगडम में किये गए एक अध्ययन के अनुसार वहां के हरे क्षेत्र के कारण प्रतिवर्ष 19 करोड़ पौंड की बचत होती है, क्योंकि इससे आप तंदुरुस्त रहते हैं और डॉक्टर का बिल बचता है।

ब्रिटिश जर्नल ऑफ़ एजुकेशनल साइकोलॉजी में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार हरे-भरे माहौल में रहने वाले बच्चे ज्यादा ध्यान केन्द्रित करने में सक्षम होते हैं और जल्दी सीखते हैं। ऐसे बच्चे अध्ययन में, विशेष तौर पर गणित में, उन बच्चों से तेज होते हैं जो हरे-भरे वातावरण में नहीं रहते। यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ़ लन्दन की ईरिनी फ्लोरी की अगुवाई में किये गए इस अध्ययन में 11 वर्ष की उम्र के 4768 बच्चों को शामिल किया गया था जो ब्रिटेन के शहरी क्षेत्रों से थे।

अनेक बार हमारे अनुभव का कोई महत्व नहीं होता, जबतक हम उसका प्रमाण न प्रस्तुत करें। हम सबका अनुभव बताता है कि हरियाली के बीच जाकर हम तनावमुक्त हो जाते हैं, पर अब अनेक वैज्ञानिक अध्ययन भी उपलबद्ध हैं जिनसे इन अनुभवों की पुष्टि की जा सकती है। जर्नल साइकोसोमेटिक मेडिसिन के एक अंक में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार हरा-भरा परिवेश, साफ़ हवा और साफ़ सुथरे स्कूल के माहोल में बच्चों को तनाव कम रहता है। यह अध्ययन यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया के डेनिएल रुबिनोव ने किया है। तनाव का आकलन कोर्टिसोल की मात्रा से जांचा गया। कोर्टिसोल एक हारमोन होता है, जो तनाव के समय अधिक उत्सर्जित होता है। यदि शरीर में इसकी मात्रा कम है तब इसका मतलब है आदमी तनाव में नहीं है। इस अध्ययन के समय हरे भरे माहौल वाले 32 बच्चों में कोर्टिसोल की मात्रा 45 परसेंटाइल थी, जबकि बिना हरियाली वाले माहौल के 133 बच्चों में इसकी मात्रा 75 परसेंटाइल तक पहुँच गयी थी। कोर्टिसोल की कम मात्रा कम तनाव का सूचक है।

यूनिवर्सिटी ऑफ़ एक्सटर के डॉ डेनिएल कॉक्स ने 270 लोगों के अध्ययन के बाद बताया कि हरा भरा माहौल अवसाद, तनाव, चिंता से मुक्त करता है और मानसिक स्वास्थ्य को मजबूत करता है। इन 270 लोगों में हरेक आयु वर्ग के लोग सम्मिलित थे। यह अध्ययन जर्नल बायोसाइंस के 18 अगस्त के अंक में प्रकाशित हुआ है।

तनाव और अवसाद को हम बीमारी जैसा नहीं मानते, पर ये अनेक गंभीर रोगों के कारक हैं। तनाव से कोर्टिसोल नामक हार्मोन अधिक उत्पन्न होता है, और इससे उच्च रक्तचाप, अधिक ब्लड सुगर, पीठ का दर्द, हड्डियों का कमजोर होना, मोटापा, नींद न आना, व्यर्थ की चिंता और कमजोरी और थकान होता है। ये सभी गंभीर बीमारियाँ हैं और शहरों की एक बड़ी आबादी इनकी चपेट में है।


कुछ अध्ययन बताते हैं कि हरियाली से पुरुषों की अपेक्षा महिलायें अधिक तनावमुक्त होती हैं। अप्रैल 2018 में 95000 लोगों पर कराये गए अध्ययन से पता चलता है कि पुरुषों की अपेक्षा महिलायें हरियाली से अधिक तनावमुक्त होती हैं। इसी तरह 60 वर्ष से कम आयु के लोग और बिना हरियाली वाले क्षेत्रो के लोगों पर भी हरियाली का अधिक प्रभाव पड़ता है। इस अध्यययन को यूनिवर्सिटी ऑफ़ ऑक्सफ़ोर्ड और यूनिवर्सिटी ऑफ़ हांगकांग ने संयुक्त तौर पर किया था और इसमें इंग्लैंड, स्कॉटलैंड और वेल्स के 95000 व्यक्ति शामिल किये गए थे। इस अध्ययन का एक महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह भी था कि मानसिक रोगों से ग्रस्त व्यक्तियों का रोग 5 प्रतिशत तक कम केवल हरियाली से हो जाता है। कुछ वर्ष पहले भी इंग्लैंड और नीदरलैंड में किये गए अध्ययन से स्पष्ट हुआ था कि महिलायें हरियाली के बीच तनावमुक्त रहती हैं।

हरियाली केवल शहर को सुन्दर ही नहीं बनाती – पानी बचाने में मदद करती हैं और वायु प्रदूषण से बचाती है, पर इसका लोगों के स्वास्थ्य पर विशेष प्रभाव पड़ता है। इसे शहरी और ग्रामीण नियोजकों को विकास के इस दौर में समझना पड़ेगा। पर, वास्तविकता यह है कि शहरों में हरियाली लगातार घटती जा रही है, और जनसंख्या के साथ कंक्रीट वाला विकास भी बढ़ रहा है। जाहिर है बीमारियां भी बढ़ रहीं हैं। इन अध्ययनों से इतना तो स्पष्ट है कि हरा-भरा माहौल स्वास्थ्य के लिए भी आवश्यक है, पर क्या हमारे शहरी और ग्रामीण नियोजक कभी इस पर ध्यान देंगे।

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