आकार पटेल का लेख: अमेरिका-ब्रिटेन की तरह किसी भी राजनीतिक दल में अंदरूनी लोकतंत्र नहीं है भारत में

भारत के राजनीतिक दलों में अमेरिका और यूके की तरह कोई लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था नहीं है। ज्यादातर राज्यों में परिवारों द्वारा स्थापित या संचालित राजनीतिक दल हैं। समस्या यह है कि किसी भी राजनीतिक दल में अमेरिका और यूके की तरह कोई अंदरूनी पार्टी लोकतंत्र नहीं है।

फोटो : सोशल मीडिया
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आकार पटेल

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस्तीफा दे दिया है और अगले सप्ताह तक उनकी पार्टी नए अध्यक्ष का चुनाव भी कर लेगी। राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद कांग्रेस में नेतृत्व शून्यता की स्थिति पैदा हुई और इसका असर हमें गोवा और कर्नाटक में देखने को मिल रहा है। इन हालात में कुछ तो नियंत्रण में आ जाएंगे, लेकिन समस्या फिर भी बनी रहेगी और नए अध्यक्ष को कई चुनौतियों का आने वाले समय में सामना करना पड़ेगा।

अभी यह तय नहीं है कि नया कांग्रेस अध्यक्ष कौन बनेगा। बताया जा रहा है कि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और कांग्रेस मुख्यमंत्रियों ने सहयोगियों से नए अध्यक्ष का नाम बंद लिफाफे में मांगा है। जिस नेता को सबसे ज्यादा वोट मिलेंगे, उस पर वरिष्ठ नेताओं से सलाह-मशविरे के बाद उसका नाम कांग्रेस कार्यसमिति को भेज दिया जाएगा। इसके बाद कार्यसमिति नए अध्यक्ष का चयन करेगी।

कांग्रेस कार्यसमिति में 24 सदस्य हैं जिनमें चार महिलाएं (सोनिया गांदी, प्रियंका गांधी, कुमारी सैलजा और अंबिका सोनी) भी हैं। 20 पुरुष सदस्यों में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, अहमद पटेल, पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया, ओमन चांडी और तरुण गोगोई जैसे वरिष्ठ नेता हैं।

एक तरह के पार्टा के लिए नया अध्यक्ष चुना जाना पार्टी के लिए अच्छा रहेगा, क्योंकि उस पर 2019 की हार का बोझ नहीं होगा और वह इस आरोप को भी दरकिनार कर देगा कि कांग्रेस तो सिर्फ एक परिवार की पार्टी है। दूसरी तरफ कांग्रेस अपने को उसी अंदाज़ में ढाल सकेगी जैसा कि दूसरी पार्टियां है। इसे समझने के लिए दूसरे लोकतांत्रिक देशों में पार्टियों की कार्यशैली को देखना होगा।


यूनाइटेड किंगडम यानी यूके में कंजर्वेटिव पार्टी सत्ता में है। इस पार्टी के प्रधानमंत्री ने इसलिए पद छोड़ दिया क्योंकि वह यूरोपीय यूनियन से अलग होने का रास्ता नहीं सुझा पाईं। लेकिन फिर भी कंजर्वेटिव पार्टी सत्ता मे हैं और अब पार्टी नया नेता चुनेगी जो स्वाभाविक रूप से नया प्रधानमंत्री बन जाएगा। इस प्रक्रिया में स्थानीय वोटों का भी दखल है जिसमें पार्टी सदस्य वोट करते हैं। कई उम्मीदवारों ने इस चुनाव में हिस्सा लेने का ऐलान किया, इनमें कुछ मंत्री और लंदन के पूर्व मेयर भी हैं। करीब 10 उम्मीदवारों में दो को चुना गया है और अब इनके बीच पहली और दूसरी प्राथमिकता का वोट होगा।

जो दो उम्मीदवार बचे हैं, उनमें से एक बोरिस जॉनसन हैं और दूसरे जेरेमी हंट। ये दोनों इन दिनों देश भर में घूम-घूमकर पार्टी के करीब 1.2 लाख सदस्यों के बीच अपना प्रचार कर रहे हैं। इस तरह ये 1.2 लाख पार्टी सदस्य देश के नए प्रधानमंत्री को चुनेंगे।

अमेरिका में इन दिनों डेमोक्रेट्स विपक्ष में हैं। राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प का पहला कार्यकाल अगले साल खत्म होने वाला है, और अब वक्त आ गया है कि डेमोक्रेट अपने उम्मीदवार का ऐलान करें जो डॉनल्ड ट्रम्प को चुनौती देगा। अभी तक करीब 25 डेमोक्रेट नेताओं ने चुनाव में उतरने की मंशा जताई है। इनमें पूर्व उपराष्ट्रपति जो बिदेन, भारतीय मूल की दो महिलाएं तुलसी गबार्ड और कमला हैरिस, एक छोटे शहर और न्यूयॉर्क के मेयर और कुछ मौजूदा सांसद (अमेरिका में इन्हें सेनेटर कहते हैं) शामिल हैं।

अमेरिकी व्यवस्था के मुताबिक इन सभी को अपने तौर पर फंड जुटाना होगा ताकि वे अपनी टीम, यात्रा और प्रचार सामग्री आदि पर खर्च कर सके। प्रचार में पार्टी सदस्यों से वोट की अपील की जाएगी और पार्टी चुनाव से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का चयन होगा। इस तरह हर राज्य के पंजीकृत डेमोक्रेट सदस्यों को ट्रम्प के खिलाफ उतारे जाने वाले पार्टी उम्मीदवार को चुनने का अधिकार है।


अमेरिका में यह प्रक्रिया अगले साल शुरु होगी और सबसे पहले अमेरिकी राज्य आयोवा में 3 फरवरी को वोटिंग होगी। बाकी राज्यों में जून माह तक वोटिंग होती रहेगी। इस तरह राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को देश भर में घूमने और अपनी नीतियां और अहम मुद्दों पर अपना नजरिया लोगों के सामने रखने का मौका मिलेगा।

अमेरिका में करीब 12 करोड़ वोटर हैं, इनमें से 4.5 करोड़ पंजीकृत डेमोक्रेट हैं और 3.2 करोड़ पंजीकृत रिपल्बिकन हैं। बाकी निर्दलीय हैं। इसीलिए अमेरिकी चुनावों में वोटरों की भागीदारी यूके से अधिक होती है। और हमें यह मानना पड़ेगा कि यूएस और यूके दोनों में चुनावी प्रक्रिया बेहद पारदर्शी और लोकतांत्रिक है।

भारत के राजनीतिक दलों में अमेरिका और यूके की तरह कोई लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था नहीं है। एक तो यह कि ज्यादातर राज्यों में परिवारों द्वारा स्थापित या संचालित राजनीतिक दल हैं। कोई भी ऐसी पार्टी नहीं है जिसमें वंशवाद न हो, लेकिन मेरी राय में समस्या सिर्फ यह नहीं है। बड़ी समस्या यह है कि किसी भी राजनीतिक दल में अमेरिका और यूके की तरह कोई अंदरूनी पार्टी लोकतंत्र नहीं है। ऐसा नहीं है कि अमेरिका में या दूसरे देशों में परिवारों द्वारा संचालित पार्टियां नहीं है। अमेरिका में क्लिंटन और केनेडी परिवार इसकी मिसाल हैं। लेकिन वहां पार्टियां अंदरूनी लोकतंत्र के जरिए पार्टी सदस्यों के वोट से चलती हैं।


भारत में तो लोकसभा चुनाव का टिकट बिना किसी वोटिंग प्रक्रिया के दे दिया जाता है। ऐसा ही विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनावों में होता है। राज्यसभा सदस्य के लिए किस आधार पर टिकट दिया जाता है, इसमें तो कोई पारदर्शिता है ही नहीं। जाहिर है कोई लोकतांत्रिक व्यवस्था नहीं है और पार्टी नेता अपनी मनमर्जी जिसे चाहें टिकट दे देते हैं, और उन्हें इसके लिए न तो पार्टी को और न ही देश की जनता को कोई जवाब देना पड़ता है।

योग्यता कोई आधार है ही नहीं और कम से कम कोई पारदर्शिता तो नजर नहीं आती है। ऐसे में कांग्रेस के पास खुद के बदलने के कम से कम दो मौके हैं। पहला तो यह कि वह अपना नेता कैसे चुने। और इसके बाद वह नेता पार्टी को नई दिशा कि तरह दे।

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