धार्मिक जुलूसों की मार्फत सांप्रदायिक हिंसा की पटकथा तो लिख ही कोई और रहा है, इसमें शामिल युवा तो बस चेहरा हैं

धार्मिक जुलूसों में शामिल युवा खुद वे सारे नारे और गाने लिख रहे हैं जिनका शोर होता है, यह अकल्पनीय है। ये लोग कोई एडगुरु नहीं हैं। दरअसल पूरी पटकथा प्रबंधन-संचालन तो कोई और ही लिख रहा है, और वे ही असली दोषी हैं और उन्हें पकड़ने की जरूरत है।

फोटो : सोशल मीडिया
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अरुण शर्मा

मध्य प्रदेश के खरगोन, राजस्थान के करौली, कर्नाटक, बंगाल, गोवा, गुजरात के कुछ शहरों और फिर, देश की राजधानी दिल्ली में पहले रामनवमी और फिर, हनुमान जन्मोत्सव पर कुछ हिन्दुत्ववादी संगठनों की वजह से जिस तरह हिंसा, गुंडागर्दी और घृणा फैलाने की घटनाएं हुई हैं, उसने लोगों को गहरे तक दुखी कर दिया है। कई वीडियो क्लिप्स हैं जो दिखाते हैं कि हिन्दुत्ववादी समूह मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों में तलवारें और डंडे लेकर उत्पात मचा रहे हैं और मुसलमानों के खिलाफ अपमानजनक और धमकाने वाले नारे लगा रहे हैं और कुछ मस्जिदों के ऊपर भगवा झंडे लगा रहे हैं।

इस तरह की गुंडागर्दी करने वाले प्रदर्शनों की प्रकृति और संरचना से संकेत मिलता है कि ये सारे आयोजन सांप्रदायिक वैमनस्य फैलाने के इरादे से पूर्व नियोजित थे। उनमें 25-26 साल आयु वर्ग के लोग ही अधिक थे। किसी धार्मिक जुलूस में तो बुजुर्गों और ज्यादा उम्र के लोगों को आगे-आगे होना चाहिए था क्योंकि स्वभाव से वे धर्मोन्मुख होते हैं और उनमें महिलाओं को भी होना चाहिए था। ये दो वर्ग इन जुलूसों से अनुपस्थित थे जिससे इन जुलूसों के इरादे को लेकर संदेह होता है। ध्यान दें कि इन लड़कों के हाथों में तलवारें, डंडे और यहां तक कि पिस्तौल भी थे। इसकी संभावना नहीं है कि ये हथियार इन बच्चों के ही होंगे। ‘एनडीटीवी’ के रवीश कुमार ने सही ही ध्यान दिलाया है कि ये बच्चे देखने से गरीब और निम्न आय वर्ग परिवारों के लग रहे हैं। मुझे यह भी लग रहा है कि क्या उनके अभिभावक इस बात को जानते भी हैं कि उनके लाड़लों के नरम-नाजुक दिमाग को किस तरह धर्मांध और घृणा फैलाने वाला बनाया जा रहा है।

यह भी देखने को मिल रहा है कि जुलूस में शामिल ये लड़के मुसलमानों के खिलाफ अश्लील होने तक अपमानजनक नारे लगा रहे थे और अपमानजनक गाने गा-बजा रहे थे। मैं सोच भी नहीं सकता कि इन बच्चों ने इन अपमानजनक नारों और अश्लील मुस्लिम विरोधी गानों को खुद बनाया होगा। वे लोग कोई एडगुरु तो होंगे नहीं। पूरी पटकथा प्रबंधन-संचालन करने वालों ने दी होगी। वे असली दोषी हैं और उन्हें पकड़ने कीजरूरत है।

इस तरह के कथित उत्सव भगवान राम के नाम को प्रतिष्ठा देने वाले नहीं थे। उन लोगों ने हिन्दू समुदाय को कलंक ही लगाया। भगवान राम का जन्मोत्सव संस्कारपूर्णहोना चाहिए, न कि इसका जुलूस बखेड़ा करने वाला होना चाहिए। तलवारें, डंडे और पिस्तौल राम के चरित्र के प्रतीक नहीं हैं। याद करें, राक्षस राज रावण पर भगवान राम की विजय के रूप में मनाए जाने वाला दशहरे के उत्सव पर भी मेला ही लगता है, जुलूस नहीं निकलते। इस मेले में रावण और उसके दो भाइयों के पुतले जलाए जाते हैं जो भगवान राम के हाथों बुराई का प्रतीकात्मक नाश है। यह सचमुच विडंबना ही है जैसा कि ‘द वायर’ की आरफा खानम शेरवानीने कहा कि जुलूस में शामिल लोग राम मंदिर जाने की जगह मस्जिदों के सामने नाच (और चिल्ला) रहे थे। अनगिनत वीडियो में राम मंदिर कहीं भी नजर नहीं आ रहा है। साफ तौर पर लक्ष्य राम की पूजा नहीं, मुसलमानों को अपमानित करना था और वह उन लोगों ने किया।


भीड़ के मनोविज्ञान की थोड़ी-बहुत जानकारी हो, तो वह बताती है कि ऐसे युवा और अपरिपक्व लड़कों की भीड़ वही करेगी और ज्यादा संभावना है कि हिंसक हो जाएगी जिन्हें तलवारें, डंडे और पिस्तौल दे दिए जाएंगे, जिन्हें गाली-गलौच वाले नारों और गानों की पटकथा दे दी जाएगी, जिन्हें किसी खास रास्ते से जाने को कहा जाएगा और जिन्हें किन्हीं खास जगहों पर नारे लगाने को कहा जाएगा। और सब वैसा ही हुआ।

इस पृष्ठभूमि में भी मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि गलती खरगोन के मुस्लिम समुदाय की थी और हिन्दुओं ने जो कुछ किया, वह आत्मरक्षा में था। इसके अनुरूप ही, उन्होंने मुसलमानों के 92 घर-दुकान ढहाने का आदेश दिया। यह संक्षिप्त निपटारा न्याय का उपहास है। यह मध्य प्रदेश सरकार द्वारा कानून-व्यवस्था के प्रति पूरी तरह अवहेलना है। फरवरी, 2020 सांप्रदायिक हिंसा के दौरान दिल्ली पुलिस ने जो कुछ किया, उसे देखते हुए जहांगीरपुरी में भी प्रशासन का रवैया पहले की तरह ही रहा।

यह कल्पना करना कठिन है कि रामनवमी और बाद में हनुमान जन्मोत्सव के जुलूस भगवान राम और भगवान हनुमान की प्रार्थना में शांतिपूर्ण तरीके से भजन गाते हुए चले जा रहे थे और किसी उकसावे के बिना ही दूसरे समुदाय ने उस पर पत्थर फेंके। मानव प्रकृति की जरा भी जानकारी किसी के पास हो, तो वह बताएगा कि गरीब और दमित लोगों का समूह कभी दंगा शुरू नहीं करता, और तब तो और नहीं, अगर वह अल्पसंख्यक हो। उन्हें इतनी समझ तो होती ही है कि सरकार के ताकतवर हाथ उसे कुचल देंगे। भाजपा नेता इस तरह नैरेटिव फैलाने के प्रयास में हैं कि ‘दूसरे’ समुदाय ने पहला पत्थर फेंका। अगर वह सच भी हो, तो ऐसा उन्होंने बहुत ही भयानक उकसावे में ही किया होगा। दूसरे शब्दों में, ऐसा उन्होंने अश्लीलता के हद वाले नारों आदि पर किया होगा जैसा कि कई वीडियो में दिख भी रहा है।


हरियाणा के पूर्व डीजीपी वी एन राय ने सही ही कहा है कि ‘चाहे वह खरगोन हो या दिल्ली या कोई अन्य जगह, ये शोभा यात्राएं, जुलूस स्वाभाविक नहीं हैं बल्कि इनका खास मकसद रहा है।’ उन्होंने जहांगीरपुरी हिंसा में मोदी सरकार की मिलीभगत का आरोप तक लगाया है। इस किस्म का विचार रखने वाले वह अकेले नहीं हैं। प्रसिद्ध इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने भी ‘द वायर’ और ‘एनडीटीवी’ को दिए इंटरव्यू में सांप्रदायिक वैमनस्य फैलाने के लिए वर्तमान नेतृत्व को दोषी ठहराया। उन्होंने यहां तक कहा कि भाजपा के मातृ संगठन आरएसएस के पास खास योजना है जिन्हें इन शब्दों में कहा जा सकता है कि ‘हम मुसलमानों को उनकी औकात दिखा देंगे।’ उन्होंने ‘एनडीटीवी’ की निधि राजदान से कहा कि ‘हिजाब, नमाज, और अजान आदि के नाम पर जो कुछ हो रहा है, उन सबमें शीर्ष नेतृत्व की मिलीभगत है और शीर्ष नेतृत्व से मेरा मतलब प्रधानमंत्री और केन्द्रीय गृह मंत्री हैं।’

क्या हम अब भी स्थिति की क्षतिपूर्ति कर सकते हैं?

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