विष्णु नागर का व्यंग्यः आगे मूर्खता के और चमत्कार देखने मिलेंगे, अभी तो फूलझड़ी चली है, बम फूटना बाकी है!

साल 2024 तक मूर्खता के 2020 में प्रचलित सभी प्रतिमान ढह चुके होंगे और नये गढ़े जा चुके होंगे। राम मंदिर बन चुका होगा, संसद भवन, प्रधानमंत्री निवास, सचिवालय सब नये हो चुके होंगे। राफेल की बाकी खेप आ चुकी होगी और बीजेपी के 500 में 400 ऑफिस और जुड़ चुके होंगे।

फोटोः सोशल मीडिया
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विष्णु नागर

आप विश्वास नहीं करोगे मगर सच कह रहा हूं, अभी भी हम मूर्खता के सतयुग में जी रहे हैं और आप अभी से पनाह मांगने लगे हो! अभी तो मूर्खता का त्रेतायुग भी नहीं आया, कलयुग आने में भी अभी समय है। वैसे 5जी इंटरनेट के प्रवेश के साथ मूर्खता की स्पीड बहुत हाई हो गई है तो मूर्खता के सतयुग को त्रेतायुग पार करके कलयुग तक पहुंचने में लाखों-करोड़ों साल नहीं लगेंगे। एक कब गया, दूसरा कब आया, इसका पता नहीं चलेगा। जब देश का नेतृत्व इतने 'सबल' हाथों में हो, तब तो ये युग यूं गया, यूं आया कि शैली में आएंगे।

अगर इसे आप मूर्खता का घोर कलयुग भी मानते हैं तो मैं आपकी भावनाओं का सम्मान करूंगा। वैसे धैर्य रखेंगे तो अभी मूर्खता के और बड़े चमत्कार देखने को मिलेंगे। अभी तो फूलझड़ी चली है, बम तो फूटना बाकी है। साल 2024 तक राम मंदिर बन चुका होगा, विश्व की सबसे विशाल राम की प्रतिमा भी स्थापित हो चुकी होगी, संसद भवन, प्रधानमंत्री निवास, सचिवालय सब नये हो चुके होंगे।उधर राफेल की बाकी खेपें भी आ चुकी होंगी, बीजेपी के पांच सौ कार्यालयों में चार सौ कार्यालय और जुड़ चुके होंगे।

इसके अलावा भी न जाने क्या-क्या बनने से ज्यादा बिगड़ चुका होगा। मूर्खता के 2020 में प्रचलित सभी प्रतिमान ढह चुके होंगे और नये गढ़े जा चुके होंगे। संभव है, तब हममें से भी बहुत से ताली-थाली बजा रहे होंगे। तब जो रंगीन नजारा होगा, उसे दिल थाम कर देखिएगा। तब तो गजबै हो जाएगा।

तब भाव के नहीं, पेट के भूखे भक्त भी भांगड़ा से आगे का नृत्य का कोई अभिनव संस्करण प्रकाशित-प्रसारित कर रहे होंगे। किसानों, मजदूरों, वामपंथियों, धर्मनिरपेक्षपंथियों से जेलें भर चुकी होंंगी। सारे अपराधी स्थायी पेरोल पर होंगे और सारे विरोधी सीखंचों से यह नजारा देख रहे होंगे! तब कलयुग का प्रथम चरण या सही कहें तो त्रेतायुग का अंतिम चरण होगा। मान लो 2014, 2019 की तरह 2024 में भी मोदी जी रिपीटा गए, तो फिर कलयुग का प्रथम अथवा द्वितीय चरण आरंभ होगा।

खैर। मूर्खता का कलयुग अभी अगर ग्रीनरूम में है, तब भी चिंता की विशेष बात नहीं, क्योंकि कहा गया है- 'कलयुग केवल नाम अधारा'। राम का नहीं, अगर मोदी का नाम भी लोगे तो इहलोक ही नहीं, परलोक का भी बेड़ा पार हो जाएगा। मैंने तो बचपन में पढ़ा था, जो आज भी याद है: ' राम, राम हर कोई कहे, दशरथ कहे न कोय, जो एक बार दशरथ कहे, कोटि यज्ञ फल होय।'

तो मैंने तो कोटि यज्ञों का फल बचपन में ही प्राप्त कर लिया था और अभी भी किसी न किसी बहाने दशरथ का नाम मुंह से निकल ही जाता है तो मुझे तो कोटि-कोटि महायज्ञों का फल मिल चुका है, इसलिए मेरा तो इहलोक बन रहा है और परलोक की भी गारंटी है। आपने दोनों लोक अगर अभी तक नहीं बनाए हैं तो अब बना लीजिए, देर नहीं हुई है।

पांच राफेलों के आगमन पर मोदीजी के मुखारविंद से संस्कृत का जो श्लोक फूटा है, उसमें ज्ञान का जो ह़िंंद महासागर लहरा रहा है, उसमें डूबिए। जो होगा, सो देखा जाएगा, ऐसा सोच कर 5 अगस्त से रामलला का मंदिर बनाने मेंं जुट जाइए। उस पवित्र दिवस पर सातों समुद्रों में ज्ञान का जो ज्वार मोदी मुख से आ रहा होगा, उसमें बहने का रिस्क लीजिए।

और हां खबर है कि मोदीजी 22.663 किलो की चांदी की ईंट से भगवान श्रीराम के मंदिर की नींंव रखेंगे। जरूर 22633 के आंकड़े का कोई अपना शुभ गणित होगा। इसकी बेहतर जानकारी भक्तों को अवश्य होगी। आप चाहें तो उनसे ज्ञान प्राप्त कर मंदिर निर्माण यज्ञ में योगदान कर सकते हैं।मुझे भी ऐसे किसी परम ज्ञानी की तलाश है। वैसे मूर्खता के इस सतयुग में ज्ञानियों की कोई कमी नहीं है। मेरे दांए, बांए, ऊपर, नीचे सब तरफ ज्ञानी ठुंसे पड़े हैं। मोदीजी का राजकाज इन्हीं के भरोसे चल रहा है, वरना राम मंदिर बनने का सपना भी सपना रह जाता।

अब भविष्य की गारंटी रामजी का मंदिर है, ऊपर से राफेल की गारंटी है, यानी डबल गारंटी है। चीन और पाकिस्तान की तो अब एक साथ ऐसी-तैसी कर देगा भारत। ये पानी मांगते फिरेंगे और हम इनको पानी की एक बूंद तक नहीं पिलाएंगे। क्या समझे! अरे हम भी, हम हैं। अपनी पर आ जाएं तो फिर चीन और पाकिस्तान क्या, पूरी दुनिया भी आंख दिखाए तो उसकी दोनों आंखें फोड़ कर उनके हाथ में दे सकते हैं कि जा ले जा, तू भी क्या याद करेगा! समझ क्या रखा है इन्होंने हमें, मोदी है तो मुमकिन ही मुमकिन है।

जय श्रीराम और जयश्री राफेल। वैसे लगे हाथ राफेल का मंदिर भी बन जाए तो मन संतोष से भर जाएगा। मोदी जी अभी शिलान्यास के मूड में हैं, यह शुभ काम हो जाना चाहिए। अंबाला इसके लिए उपयुक्त है। वहीं पांच राफेलों का अवतरण हुआ था। अवतरण भूमि यानी जन्मभूमि। क्या समझे!

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