खरी-खरी: खुद को आर्मी से बड़ा समझने की गलती से इमरान खान हो गए हिटविकेट, अब आखिरी गेंद पर भी नहीं बच सकेगा मैच

इमरान को इधर यह गलतफहमी थी कि वह जैसे वर्ल्ड कप जीते थे वैसे ही वह पाकिस्तानी फौज को भी आउट कर देंगे। इमरान को लगने लगा था कि वह सचमुच जनता के दिलों पर राज कर रहे हैं। लेकिन वे भूल गए कि जिस मीडिया ने उन्हें हीरो बनाया था, उसकी कमान तो फौज के हाथ में है।

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ज़फ़र आग़ा

पाकिस्तान के बारे में कहा जाता था कि वहां की राजनीति की कमान तीन ‘ए’ के हाथों में होती है। ये हैंः अल्लाह, आर्मी और अमेरिका। हालांकि अब अमेरिका का स्थान चीन ने ले लिया है लेकिन अल्लाह एवं आर्मी, अर्थात फौज अभी भी वैसी ही शक्तिशाली है। यदि यह कहा जाए कि पाकिस्तान में तो फौज अल्लाह से भी अधिक शक्तिशाली है, तो किसी भी तरह से गलत नहीं होगा। कुल मिलाकर यह कि भले ही चुनाव के माध्यम से कोई भी जीत कर आए और प्रधानमंत्री पद ग्रहण करे लेकिन उसकी कमान भी फौज के ही हाथों में होती है। अगर प्रधानमंत्री ने फौज से जरा भी चूं की, तो उसका पत्ता साफ । बेचारे इमरान खान, उनको पाकिस्तानी राजनीति का यह मौलिक सिद्धांत तो पता ही था, फिर भी वह फौज से चूं कर बैठे। अब फौज जुल्फिकार अली भुट्टो से लेकर नवाज शरीफ तक हर प्रधानमंत्री का जो हश्र करती चली आ रही है, वही इमरान खान का करने जा रही है। कहते हैं कि केवल आसिफ अली जरदारी अकेले प्रधानमंत्री थे जो सत्ता में अपना पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा कर सके। बाकी जुल्फिकार अली भुट्टो और बेनजीर भुट्टो की तरह या तो मार दिए गए या फिर नवाज शरीफ की तरह जान बचाकर पाकिस्तान छोड़ कर भाग गए।

बहरहाल, अब इमरान खां की सत्ता से बाहर जाने की बारी आ चुकी है। इस सप्ताह पाकिस्तानी संसद में इमरान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग होगी और यह तय है कि वह इस वोटिंग में हार जाएंगे। इसका कारण यह है कि उनकी वे सहयोगी पार्टियां जिनके समर्थन से इमरान सरकार चल रही थी, यह ऐलान करना आरंभ कर चुकी हैं कि वह इमरान के खिलाफ वोट करेंगी। इस प्रकार इमरान सरकार वोटिंग से पहले ही अल्पमत में आ चुकी है। इमरान की सहयोगी छोटी-छोटी पार्टियों ने खान साहब से इसलिए मुंह फेर लिया कि फौज ने उनको यह इशारा कर दिया है कि अब इमरान हमारा पट्ठा नहीं रहा और बस, पाकिस्तानी राजनीति में बवंडर उठ खड़ा हुआ। इमरान खान के दिन सत्ता से बस यह समझिए कि लद गए। अप्रैल की तीन या चार तारीख तक इमरान खान की इनिंग समाप्त समझिए क्योंकि वह अपने सहयोगियों के कारण ही बहुमत खोने वाले हैं। यूं समझिए कि इमरान खान अगले सप्ताह सत्ता से ‘हिटविकेट आउट’ होने वाले हैं।


लेकिन आखिर ऐसी क्या बात हो गई कि फौज इमरान खान से ऐसी बिफर गई कि उसने यह ठान लिया कि अब इमरान को आउट करो। सच यह है कि इमरान शुरू से फौज के पिट्ठू थे। उनको सत्ता में लाने वाली भी फौज ही थी। लेकिन उस समय फौज नवाज शरीफ से नाराज थी और शरीफ को सबक सिखाना था। भुट्टो परिवार पर फौज को भरोसा नहीं है। इसलिए वह इमरान खान जिनकी कुछ समय पहले तक पाकिस्तानी राजनीति में कोई खास हैसियत नहीं थी, वही इमरान खान देखते- देखते पाकिस्तानी जनता के ‘हॉट फेवरिट’ बन गए। यह कृपा भी उन पर फौज की ही थी। और उस समय पाकिस्तान में फौज के इशारे पर वही ड्रामा रचा गया था जो अन्ना हजारे के माध्यम से यूपीए सरकार के खिलाफ भारतीय मीडिया ने नरेंद्र मोदी को सत्ता में लाने के लिए रचा था।

हुआ यह था कि सन 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अफगानिस्तान गए। जिस रोज मोदी काबुल से वापस आ रहे थे, संयोग से उसी रोज उस समय के पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ का जन्मदिन था। मोदी जी ने शरीफ को बधाई दी और कहा कि इस अवसर पर वह स्वयं उनके घर लाहौर आकर बधाई देना चाहते हैं। शरीफ ने जवाब दिया कि मेरा घर आपका घर है। आपका हर समय स्वागत है। बस, मोदी जी लाहौर पहुंच गए। दोनों प्रधानमंत्रियों ने खूब झप्पी-झप्पी मारी। केक कटा। नवाज शरीफ की बर्थडे पार्टी में भारतीय प्रधानमंत्री ने भाग लिया और दिल्ली लौट आए। भारत-पाकिस्तान संबंधों के इतिहास के अनुसार यह पाप था। भला पाकिस्तानी फौज के गले से यह बात कैसे उतर सकती थी? बस, फौज ने ठान लिया कि नवाज शरीफ को सबक सिखाना है। पाकिस्तान में फौज जो तय कर ले, वह तो होकर ही रहता है।

बस, देखते- देखते पाकिस्तानी संसद एवं पाकिस्तानी सड़कें शरीफ के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों से वैसी ही गूंज उठीं जैसे कि अन्ना आंदोलन के समय भारत में मनमोहन सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोपों से गूंज रही थीं। पाकिस्तान में इस भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के नेता बने इमरान खान और पाकिस्तानी टीवी ने इमरान को देश का अन्ना हजारे बना दिया। कुछ समय बाद चुनाव हुए। नवाज शरीफ चुनाव हार गए। इमरान की पार्टी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। फौज के इशारे पर छोटी-छोटी पार्टियों ने इमरान को अपना समर्थन दिया और इस प्रकार फौजी पिट्ठू इमरान खान सत्ता में आ गए। शरीफ का पूरा परिवार जेल चला गया। जमानत पर छूटे तो इलाज के बहाने लंदन में पनाह ली और इधर इमरान खान पाकिस्तान के हीरो हो गए। लेकिन पाकिस्तान में जो होता है, आखिर इमरान के साथ भी वही हुआ। इमरान को लगने लगा कि वह सचमुच जनता के दिलों पर राज कर रहे हैं और अब उनका कद फौज से भी बड़ा हो चुका है। इमरान यह भूल गए कि जिस मीडिया ने उन्हें हीरो बनाया था, उसकी कमान तो पाकिस्तानी फौज के हाथ में है।


इमरान को इधर यह गलतफहमी थी कि वह जैसे वर्ल्ड कप जीते थे वैसे ही वह पाकिस्तानी फौज को भी आउट कर देंगे। बस, इमरान फौज से भिड़ गए और उनसे भारी गलती हो गई। हुआ यह कि आईएसआई चीफ की नियुक्ति के लिए इमरान खान अपने बंदे फैज हमीद को ही बनाए रखना चाहते थे। कहने को यह नियुक्ति फौज और प्रधानमंत्री- दोनों की सहमति से होती है। फौज ने इमरान खान को जनरल नदीम अंजुम का नाम भेजा। इमरान खान इस मुद्दे पर तीन हफ्ते तक चुप्पी साधे रहे और इस प्रकार सेना के विरुद्ध अपनी नाराजगी का ऐलान कर दिया। लेकिन आखिरकार फौज के बंदे नदीम अंजुम ही आईएसआई चीफ नियुक्त हुए। लेकिन उसी समय यह तय हो गया कि फौज इमरान खान को सबक सिखाएगी। दो दिन बाद ही पाकिस्तानी फौज की मंशा के अनुसार संसद में इमरान सरकार अल्पमत में हो जाएगी। इस प्रकार इमरान की सत्ता की पारी समाप्त होगी और वह हिटविकेट होकर अपने ही सहयोगियों के हाथों सूली पर चढ़ जाएंगे।

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