आकार पटेल का लेख: डांस बार का विरोध करने वाले महिलाओं के काम करने के विरोधी हैं

हम में से कई लोगों को डांस बार जैसी जगहों से दिक्कत हो सकती है क्योंकि हमें यह जगहें समाज को खराब करने वाली नजर आती हैं। हमने कभी यहां काम करने वाली महिलाओं से जानने कीकोशिश नहीं की कि क्या उन्हें ऐसा काम करने में आनंद या गर्व की अनुभूति होती हैया नहीं।

फोटो सोशल मीडिया
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आकार पटेल

डांस बार का चलन मूलत: मुंबई में शुरु हुआ, खास तौर से सेंट्रल मुंबई और उसके आसपास के इलाकों में। देखते-देखते ऐसे ही और इनसे भी बड़े डांस बार मुंबई के उपनगरों और मुंबई के बाहरी इलाकों में भी खुलते चले गए, लेकिन इनकी शुरुआत सेंट्रल मुंबई से ही हुई थी। इस चलन को महाराष्ट्र के पारंपरिक नृत्य लावणी से जोड़ कर देखा गया था।

इसका प्रदर्शन भी ऐसा ही रहा। पुरुषों को छोटे-छोटे समूह और कभी-कभी उनके परिवार भी किसी खुले इलाके में मेज कुर्सियां डालकर बैठ जाते और आधा दर्जन के करीब महिलाएं हिंदी फिल्मों के गानों पर नृत्य करतीं। महिलाएं पूरे कपड़े पहने रहती थी। वेटर शराब परोसते। ऐसी जगहों पर सॉफ्ट ड्रिंक की कीमत भी बीयर के ही बराबर होती। जो महिलाएं नृत्य करतीं, उनपर कभी-कभी वह पुरुष पैसे उछाते जो अपनी मेज़-कुर्सी छोड़कर इन महिलाएं के पास खुली जगह में पहुंच जाते। इन पुरुषों को महिलाओं को छूने की इजाज़त नहीं होती, और ऐसे पुरुषों को काबू में रखने के लिए कई बार बाउंसर (पहलवान जैसे दिखने वाले लोग) तैनात रहते।

पूरा सिस्टम इस बात पर चलता कि जो भी पैसा लुटाया जा रहा है, उसे आपस में कैसे बांटा जाना है, लेकिन मुझे इस बारे में ज्यादा नहीं मालूम है। नृत्य करती महिलाएं कभी उन पैसों को नहीं उठातीं, जो उनपर लुटाए जाते, कोई और उन्हें उठाता।

डांस बार में आमतौर पर कई अलग-अलग हिस्से होते हैं और जो सबसे ऊपर का फ्लोर होता वह खास क्लाइंट्स के लिए रिज़र्व रखा जाता है, क्योंकि ये ज्यादा पैसे खर्च करते हैं। नृत्य करने वाली महिलाएं कुछेक गानों के बाद एक एरिया दूसरे एरिया में चली जाती हैं।

मैं ऐसी ही एक जगह कई साल पहले जिज्ञासावश गया था। उस समय मैं मुंबई में एक अखबार का संपादक था और मेरा अनुभव कोई खराब नहीं रहा। इस तरह के डांस बार दुनिया के कई देशों, जैसे थाइलैंड और जापान में भी हैं।

लेकिन, ऐसी जगहों को कभी भी भारत की तरह सरकारी गुस्से का शिकार नहीं होना पड़ा। मुंबई में कांग्रेस की विलासराव देशमुख सरकार के दौर में डांस बार पर पहली बार 15 साल पहले पाबंदी लगाई गई थी। ऐसा तत्कालीन गृहमंत्री आर आर पाटिल की पहल पर हुआ था। पाटिल एक गांव से आते थे और उन्हें बड़े शहरों के यह तौरतरीके पसंद नहीं थे। उनका एतराज़ इस बात पर था कि महिलाएं देर रात रात काम करती हैं, और वे ऐसा महिलाओं की सुरक्षा के मद्देनजर कर रहे हैं। बार में डांस करने वाली महिलाओं को राजनीतिक समझ में आ रही थी, और उन्होंने अपनी आवाज़ भी उठाई थी, लेकिन पाटिल ने कुछ नहीं सुना।

इसके बाद डांस बार अंडरग्राउंड हो गए और चोरी-छिपे चलते रहे। लेकिन, सेंट्रल मुंबई के मशहूर डांस बार बंद हो गए या उन्होंने अपना काम बदल लिया, क्योंकि वे तो कानूनी तौर पर चल रहे थे।

डांस बार पर पाबंदी से प्रभावित होने वाले लोगों की तादाद कोई बहुत बड़ी नहीं थी, इसलिए राजनीतिक दल भी इन पर पाबंदी के तरीके खोजती रही। लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा पिछले सप्ताह इस पाबंदी को गैरकानूनी करार दिए जाने के बाद हालात बदल गए। आदेश है कि सरकार इनके तौर तरीके तो तय कर सकती है, लेकिन पाबंदी नहीं लगा सकती। दरअसल मेरी दिलचस्पी उस भाषा को लेकर ज्यादा रही जो जजों ने फैसला देते वक्त इस्तेमाल की। जजों ने कहा, “ऐसी प्रथा जो सामाजिक मानकों के आधार पर अनैतिक नहीं है, उसे सरकार भी किसी नैतिकता या सामाजिक नियंत्रण के आधार पर प्रतिबंधित नही किया जा सकता। समाज की प्रथाएं समय के साथ बदलती रहती हैं।”

अदालत ने कहा कि डांस बार में शराब पर पाबंदी पूरी तरह गैरजरूरी, बिना कारण के और मनमाने तरीके से की गई है और लाइसेंसधारक के लिए अच्छे चरित्र का होना बेहद दकियानूसी है। कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसी जगहों को नियमित करने के लिए सीसीटीवी लगाने की बाध्यता निजता के अधिकार का उल्लंघन है।

लेकिन, कोर्ट ने सिक्के, नोट और पैसे लुटाने पर पाबंदी जारी रखी क्योंकि इससे कोई गड़बड़ होने की आशंका रहती है, लेकिन डांसर्स को टिप के तौर पर पैसे दिए जा सकते हैं। मुझे यह बात थोड़ी अटपटी लगी क्योंकि पैसे लुटाना भारतीय परंपरा का हिस्सा रहा है और शादियों में तो यह खूब दिखता है।

कुल मिलाकर कोर्ट का फैसला बेहद उदार है और यह देखना दिलचस्प होगा कि इसके बाद मुंबई में कैसे-कैसे डांस बार खुलते हैं। कोर्ट ने डांस करने वाली महिलाओं को मासिक वेतन देने से इनकार करते हुए कहा कि इससे महिलाओं को एक से अधिक बार में अपनी कला के प्रदर्शन में दिक्कत आएगी।

हम में से कई लोगों को डांस बार जैसी जगहों से दिक्कत हो सकती है क्योंकि हमें यह जगहें समाज को खराब करने वाली नजर आती हैं। हमने मान लिया है कि डांस बार में जो कुछ भी होता वह नैतिक तौर पर सही नहीं है. फिर भी हमने कभी यहां काम करने वाली महिलाओं से जानने की कोशिश नहीं की कि क्या उन्हें ऐसा काम करने में आनंद या गर्व की अनुभूति होती है या नहीं।

हमें पसंद आए या न आए, हमें इसे किसी भी नजरिए से देखे, सामाजिक प्रगति नैतिकता से जुड़ी हुई है और खासतौर से जब महिलाओं से जुड़ी बात हो तो हम कुछ ज्यादा ही नैतिक हो जाते हैं। यही वजह है कि रुढिवादी देश इस किस्म की बहस से बचते हैं।

इसके पीछे सोच वही है जो तय करती है कि महिलाओं को तो घर में रहना चाहिए न कि काम के लिए बाहर निकलें। और डांस बार में तो बिल्कुल नहीं। अब यह फैसला कितना भी नापसंद किया जाए, लेकिन अदालत ने यह फैसला देकर सही कदम उठाया है।

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